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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ओजोन छिद्र के कारणों एवं परिणामों को बताते हुए इसके समाधान हेतु वैश्विक प्रयासों पर चर्चा कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग इस पर्यावरणीय चुनौती को प्रभावी ढंग से किस प्रकार हल कर सकता है? (250 शब्द)

    10 Apr, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ओज़ोन छिद्र/क्षरण के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • ओज़ोन छिद्र में कमी लाने के कारणों, परिणामों एवं संबंधित वैश्विक प्रयासों पर चर्चा कीजिये।
    • इस पर्यावरणीय चुनौती से निपटने के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    ओज़ोन छिद्र से तात्पर्य पृथ्वी के समताप मंडल में ओज़ोन परत के विरल होने से है, जिसका मुख्य कारण क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हेलोन एवं अन्य औद्योगिक रसायनों जैसे ओज़ोन-क्षरण वाले पदार्थों (ODS) के उत्सर्जन के कारण होता है। इससे मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र एवं पर्यावरण के लिये खतरा होता है।

    मुख्य भाग:

    ओज़ोन क्षरण के कारण:

    • ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थ (ODS):
      • CFCs, हेलोन एवं मिथाइल ब्रोमाइड जैसे औद्योगिक रसायन इसके प्राथमिक कारक हैं।
      • समताप मंडल में पहुँचने पर ये पदार्थ क्लोरीन तथा ब्रोमीन का उत्सर्जन करते हैं, जिससे यह ओज़ोन अणुओं को तोड़ देते हैं।
    • मानवीय गतिविधियाँ:
      • औद्योगिक प्रक्रियाएँ, एयरोसोल स्प्रे, एयर कंडीशनिंग और प्रशीतन प्रणालियों से वायुमंडल में ODS का उत्सर्जन होता है।
    • प्राकृतिक कारक:
      • ज्वालामुखी विस्फोट एवं सौर ज्वालाएँ भी ओज़ोन क्षरण में योगदान कर सकती हैं, हालाँकि मानवीय गतिविधियों की तुलना में इनका योगदान काफी कम होता है।

    ओज़ोन क्षरण के परिणाम:

    • यूवी विकिरण में वृद्धि:
      • ओज़ोन परत के विरल होने से अधिक पराबैंगनी (UV) विकिरण पृथ्वी की सतह तक पहुँच सकता है, जिससे मनुष्यों में त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद के साथ प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर हो सकती है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
      • UV विकिरण से फाइटोप्लांकटन, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के साथ फसलों एवं वनों को नुकसान होता है, जिससे जैवविविधता एवं खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
    • जलवायु परिवर्तन:
      • ओज़ोन की कमी से जलवायु प्रतिरूप पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे तापमान, वर्षा एवं वायुमंडलीय परिसंचरण में असंतुलन हो सकता है।
    • आर्थिक प्रभाव:
      • UV विकिरण में वृद्धि के कारण फसलों, समुद्री जीवन एवं पर्यटन स्थलों पर प्रभाव पड़ने से कृषि, मत्स्य पालन तथा पर्यटन क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।

    ओज़ोन क्षरण को कम करने हेतु वैश्विक प्रयास:

    • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:
      • वर्ष 1987 में अपनाया गया मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक अंतर्राराष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य ODS के उत्पादन एवं उपयोग को चरणबद्ध रूप से कम करना है। इससे वैश्विक स्तर पर 99% ODS को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा सका है।
    • अनुवर्ती संशोधन:
      • कई संशोधनों द्वारा मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को और भी प्रभावी बनाया गया है, जिससे अतिरिक्त ODS को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने तथा विकासशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने में गति आई है।
      • किगाली संशोधन: यह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का विस्तार है, जिसका उद्देश्य शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) को चरणबद्ध तरीके से कम करना है।
    • अनुसंधान एवं नवाचार:
      • ओज़ोन क्षरण एवं ओडीएस के विकल्पों पर निरंतर शोध से ओज़ोन-अनुकूल प्रौद्योगिकियों तथा प्रथाओं का विकास हुआ है।
    • जन जागरूकता:
      • जागरूकता अभियानों से ओज़ोन परत की सुरक्षा के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ी है, जिससे व्यक्तिगत तथा औधोगिक स्तर पर ओज़ोन-अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के क्रम में प्रोत्साहन मिला है।

    प्रभावी शमन हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:

    • वैश्विक सहयोग:
      • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करता है।
      • ओज़ोन छिद्र की रिकवरी: अंटार्कटिक में ओज़ोन छिद्र की रिकवरी के संकेत दिख रहे हैं, जो ओज़ोन क्षरण को कम करने के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की प्रभावशीलता का परिचायक है।
    • तकनीकी हस्तांतरण:
      • विकसित देशों ने विकासशील देशों की, ओज़ोन संरक्षण प्रयासों में समान भागीदारी सुनिश्चित करने के क्रम में वित्तीय एवं तकनीकी सहायता की है।
    • निगरानी और अनुपालन:
      • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) एवं विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन, ODS उत्सर्जन की निगरानी करने के साथ संधि से संबंधित दायित्वों का अनुपालन सुनिश्चित करने की दिशा में भूमिका निभाते हैं।
    • अनुकूलन और लचीलापन:
      • पर्यावरणीय चुनौतियों के अंतर्संबंध को पहचानते हुए, ओज़ोन क्षरण को कम करने के क्रम में किये जाने वाले प्रयासों को जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    ओज़ोन क्षरण के मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जलवायु तंत्र पर दूरगामी परिणाम होने के क्रम में यह एक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौती बनी हुई है। हालाँकि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल जैसे वैश्विक प्रयास इस खतरे को प्रभावी ढंग से कम करने के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। इस दिशा में सहयोग, नवाचार तथा लोक जागरूकता बढ़ाने के माध्यम से ओज़ोन परत की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है।

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