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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की समस्या के समाधान में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) की प्रभावशीलता को बताते हुए भारत में परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) के लिए इसके निहितार्थ का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    13 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) को कम करने में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये।
    • भारत में परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) के लिये IBC के निहितार्थों पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के मुद्दे को हल करने के लिये वर्ष 2016 में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता को लाया गया था। इसका उद्देश्य दिवालिया कंपनियों की ऋण समाधान प्रक्रिया में तेज़ी लाना तथा ऋणों की वसूली में सुधार करना है। परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ (ARCs) बैंकों से इन परिसंपत्तियों को प्राप्त करने के साथ बकाया वसूलने का प्रयास करके NPAs के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

    मुख्य भाग:

    • NPA को हल करने में IBC की प्रभावशीलता:
    • तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का समाधान: IBC ने समयबद्ध रूपरेखा प्रदान करके तनावग्रस्त संपत्तियों के लिये समाधान प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है। सितंबर, 2022 तक समाधान योजनाओं के तहत 2.43 लाख करोड़ रुपए की वसूली हुई है।
    • रिकवरी रेट में वृद्धि: IBC के तहत रिकवरी रेट अन्य प्रक्रियाओं की तुलना में अधिक रही हैं। IBC के तहत हल किये गए मामलों की रिकवरी दर लगभग 42% थी, जो पहले की रिकवरी दरों की तुलना में काफी अधिक है।
      • हालाँकि IBC के तहत रिकवरी दरें मार्च 2019 और सितंबर 2023 के बीच 43% से गिरकर 32% हो गई हैं।
    • बेहतर क्रेडिट संस्कृति: IBC ने उधारकर्त्ताओं और ऋणदाताओं के बीच अनुशासन स्थापित करके देश में क्रेडिट संस्कृति को बेहतर बनाने में भी योगदान दिया है। अपनी कंपनियों पर नियंत्रण खोने के भय से डिफॉल्टर कर्ज़दार बकाया चुकाने के लिये अधिक प्रेरित हुए हैं।
    • NPAs में कमी: IBC ने बैंकिंग प्रणाली में NPA को कम करने में योगदान दिया है। सकल NPA मार्च 2018 के 8.96 लाख करोड़ रुपए से कम होकर दिसंबर 2020 में 5.77 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
    • बड़े कॉर्पोरेट डिफॉल्ट्स का समाधान: IBC भूषण स्टील, एस्सार स्टील और जेपी इंफ्राटेक जैसे बड़े कॉर्पोरेट डिफॉल्ट्स का समाधान करने में प्रभावी रहा है। इससे बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों को कर्ज़ की राशि वसूलने में काफी मदद मिली है।

    परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) के लिये निहितार्थ:

    • व्यवसाय के अवसरों में वृद्धि: IBC ने ARCs के लिये व्यवसाय के अवसरों में वृद्धि की है क्योंकि बैंक इन कंपनियों को अपने NPA बेचने के लिये अधिक इच्छुक दिखती हैं। इससे ARCs को पुनर्निर्माण हेतु बड़ी संख्या में संपत्ति हासिल करने में मदद मिली है।
    • समाधान में चुनौतियाँ: ARCs को मुकदमेबाज़ी, खरीदारों की कमी और समाधान प्रक्रिया में देरी जैसे विभिन्न कारणों से IBC के तहत अर्जित संपत्तियों को हल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इससे बकाया वसूलने और मुनाफा कमाने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
    • पूंजी की आवश्यकता: IBC के तहत ARCs के लिये न्यूनतम ₹300 करोड़ का शुद्ध स्वामित्व वाला फंड होना आवश्यक है, जो छोटे ARCs के लिये एक चुनौती हो सकता है। यह आवश्यकता ARCs क्षेत्र में नए भागीदारों के प्रवेश को सीमित करती है।
    • नवप्रवर्तन की आवश्यकता: ARCs को अपनी पुनर्प्राप्ति दर और लाभप्रदता में सुधार के लिये परिसंपत्ति समाधान हेतु नवप्रवर्तन एवं नई रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है। इसमें परिसंपत्ति प्रतिभूतिकरण, सह-उधार और अन्य वित्तीय संस्थानों के साथ साझेदारी जैसे विकल्प तलाशना भी शामिल हैं।
    • नियामक वातावरण: ARCs के लिये नियामक वातावरण विकसित हो रहा है, इसके साथ ही कर लाभ एवं नियामक पूंजी आवश्यकताओं जैसे कुछ पहलुओं पर स्पष्टता की आवश्यकता है। यह अनिश्चितता ARCs के विकास और संचालन को प्रभावित कर सकती है।

    निष्कर्ष:

    दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, ऋण समाधान प्रक्रिया में तेज़ी लाकर तथा वसूली दरों में सुधार करके भारत में NPAs को हल करने में प्रभावी रही है। हालाँकि ARC से संबंधित चुनौतियाँ और निहितार्थ बने हुए हैं। NPAs का समाधान करने तथा बैंकिंग क्षेत्र को मज़बूत करने में IBC की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये इन चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।

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