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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    डीजल वाहनों से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं पर चर्चा करते हुए इन चिंताओं को दूर करने से संबंधित नीतिगत पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। भारत में डीजल वाहनों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने हेतु और क्या कदम उठाए जाने चाहिये? (250 शब्द)

    13 Sep, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जीवाश्म ईंधन आधारित वाहनों द्वारा उत्पन्न पर्यावरणीय चिंताओं का उल्लेख करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • इस संदर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए कुछ नीतिगत उपायों और उनकी प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये।
    • जीवाश्म ईंधन आधारित वाहनों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये किये जाने वाले कुछ उपाय बताइये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    जीवाश्म ईंधन आधारित वाहन वायु प्रदूषण एवं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसी पर्यावरणीय समस्याओं का प्रमुख स्रोत हैं। इन वाहनों के धुएँ से होने वाला वायु प्रदूषण श्वसन संबंधी बीमारियों, हृदय संबंधी समस्याओं और समय से पहले मौत का कारण बन सकता है। जीवाश्म ईंधन के दहन से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है, जिसका पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता एवं मानव कल्याण पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक निष्कर्षण और उपयोग से संसाधनों की कमी होने से ऊर्जा असुरक्षा, भू-राजनीतिक संघर्ष के साथ पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ावा मिल सकता है।

    मुख्य भाग:

    सरकार ने इन पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करने तथा जीवाश्म ईंधन आधारित वाहनों के स्वच्छ एवं अधिक टिकाऊ विकल्प के रूप में EVs को बढ़ावा देने के लिये कई नीतिगत पहलें की हैं। जैसे;

    • नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (NEMMP) 2020, जिसका लक्ष्य वर्ष 2020 तक हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों की 6-7 मिलियन बिक्री करना था।
    • FAME योजना (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles), जिसके तहत EVs के लिये मांग प्रोत्साहन, आपूर्ति प्रोत्साहन और चार्जिंग बुनियादी ढाँचे का समर्थन करना शामिल है।
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, जिसके तहत जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के साथ उत्सर्जन को कम करने के लिये क्रमशः पेट्रोल और डीज़ल के साथ इथेनॉल एवं बायोडीज़ल के मिश्रण को अनिवार्य करना शामिल है।
    • भारत की G20 प्रेसीडेंसी के तहत वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA) का शुभारंभ किया जाना, जिसका उद्देश्य इस संदर्भ में देशों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाना तथा टिकाऊ जैव ईंधन के उपयोग को तीव्र करना है।

    इन नीतिगत पहलों का भारत के EVs क्षेत्र पर कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जैसे EVs (विशेष रूप से दोपहिया और तिपहिया) वाहनों की बिक्री में वृद्धि; चार्जिंग स्टेशनों का एक नेटवर्क बनना; EVs प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित मिलना तथा उपभोक्ताओं एवं निर्माताओं के बीच जागरूकता उत्पन्न होना।

    हालाँकि भारत में EVs क्षेत्र में तीव्र और व्यापक परिवर्तन प्राप्त करने के लिये कुछ चुनौतियों को हल करने की आवश्यकता है जैसे;

    • EVs खरीदारों और उत्पादकों के लिये पर्याप्त एवं किफायती वित्तपोषण विकल्पों का अभाव होना।
    • विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों में चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के मानकीकरण और अंतरसंचालनीयता का अभाव होना।
    • बैटरी, मोटर और पावर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे EVs घटकों के लिये पर्याप्त घरेलू उत्पादन क्षमता एवं आपूर्ति शृंखला का अभाव होना।
    • EVs के प्रदर्शन, विश्वसनीयता और सुरक्षा में उपभोक्ता जागरूकता तथा विश्वास की कमी होना।
    • केंद्र और राज्य सरकारों, उद्योग संघों, नागरिक समाज संगठनों, शिक्षाविदों एवं मीडिया जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय तथा एकीकरण का अभाव होना।

    इन चुनौतियों पर काबू पाने तथा भारत में जीवाश्म ईंधन आधारित वाहनों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये निम्नलिखित उपाय हैं:

    • EVs खरीदारों एवं उत्पादकों के लिये कम लागत वाले ऋण के साथ सब्सिडी, कर, लाभ और बीमा योजनाओं की उपलब्धता एवं पहुँच सुनिश्चित करना।
    • राज्यों और विभिन्न क्षेत्रों में चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के लिये तकनीकी मानकों एवं विनियमों में सामंजस्य स्थापित करना; चार्जिंग के लिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना तथा निजी चार्जिंग सुविधाओं की स्थापना को प्रोत्साहित करना।
    • नवाचार, अनुसंधान, कौशल विकास, गुणवत्ता नियंत्रण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का समर्थन करके EVs क्षेत्र की घरेलू उत्पादन क्षमता एवं आपूर्ति शृंखला को उन्नत करना; लिथियम, कोबाल्ट व निकल जैसे महत्त्वपूर्ण कच्चे माल के आयात पर निर्भरता कम करना तथा बैटरियों के पुनर्चक्रण एवं पुन: उपयोग को बढ़ावा देना।
    • विभिन्न अभियानों, प्रदर्शनों, कार्यशालाओं, प्रदर्शनियों आदि आयोजित करके EVs के संदर्भ में उपभोक्ता जागरूकता और विश्वास बढ़ाना; EVs के लाभ, लागत, रखरखाव, सुरक्षा आदि पर सटीक जानकारी प्रदान करना; इसके प्रदर्शन संबंधी समस्याओं का समाधान करना तथा बिक्री के बाद पर्याप्त वारंटी सुनिश्चित करना।
    • संवाद, परामर्श, सहयोग, फीडबैक, निगरानी, मूल्यांकन आदि के लिये मंच बनाकर विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय एवं एकीकरण को मज़बूत करना; विभिन्न स्तरों पर नीतियों तथा प्रोत्साहनों को समन्वित करना; EVs को बढ़ावा देने में नागरिक समाज संगठनों, शिक्षाविदों, मीडिया आदि को शामिल करने के साथ पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता को सुनिश्चित करना।

    निष्कर्ष:

    इन कदमों को उठाकर, भारत EVs क्षेत्र में तीव्र विकास कर सकता है और जीवाश्म ईंधन आधारित वाहनों से उत्पन्न नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है। इससे न केवल भारत को ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास एवं सामाजिक कल्याण के अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी बल्कि पेरिस समझौते के तहत जलवायु कार्रवाई की अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भी योगदान मिलेगा।

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