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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. "निजी भागीदार, अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं के विकास हेतु आवश्यक नवाचार ला सकते हैं"। इस कथन के आलोक में, भारत के अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निजी क्षेत्र की भूमिका पर प्रकाश डालिये। (150 शब्द)

    07 Dec, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में अंतरिक्ष उद्योग की स्थिति का संक्षेप में वर्णन करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र से संबंधित विभिन्न पहलों की चर्चा कीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    वर्ष 2021 तक स्पेसटेक एनालिटिक्स के अनुसार, भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उद्योग में छठा सबसे बड़ा देश है, जिसके पास दुनिया की अंतरिक्ष-तकनीक कंपनियों का 3.6% हिस्सा है। स्पेस-टेक इकोसिस्टम में सभी कंपनियों में यू.एस. का हिस्सा 56.4% है।

    अन्य प्रमुख देशों में यूके (6.5%), कनाडा (5.3%), चीन (4.7%) और जर्मनी (4.1%) शामिल हैं।

    भारतीय अंतरिक्ष उद्योग का मूल्य वर्ष 2019 में $7 बिलियन था और वर्ष 2024 तक $50 बिलियन तक बढ़ने की संभावना है। देश की असाधारण विशेषता इसकी लागत-प्रभावशीलता (Cost-Effectiveness) है।

    मुख्य भाग

    • भारत में निजी क्षेत्र की भूमिका:
      • नवाचार में वृद्धि: निजी क्षेत्र अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं के विकास के लिये आवश्यक नवाचार ला सकते हैं। इसके अतिरिक्त, इन सेवाओं की मांग भारत और दुनिया भर में बढ़ रही है, अधिकांश क्षेत्रों में उपग्रह डेटा, इमेजरी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
        • इसके अलावा इसरो को इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये वर्तमान स्तर से 10 गुना अधिक विस्तार करना होगा। उद्योग के अनुमानों के अनुसार, भारत में वर्तमान में 40+ स्टार्ट-अप अंतरिक्ष और उपग्रह परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं और यह संख्या बढ़ने की संभावना है।
      • लागत प्रभावी: निजी क्षेत्र यह सुनिश्चित करेगा कि नई तकनीक कीमत के साथ-साथ दक्षता के मामले में इसे और अधिक प्रभावी बनाती है।
      • कंपनियों के बड़े बुनियादी ढाँचे: बड़ी कंपनियों के पास परीक्षण बुनियादी ढाँचे, निर्माण क्षमताओं और असेंबली लाइन्स जैसी क्षमताएँ होती हैं, लेकिन अंतरिक्ष निर्माण उनके कुल औद्योगिक उत्पादन का एक छोटा सा अंश है। चूँकि अंतरिक्ष क्षेत्र एक पूंजी प्रधान व्यवसाय है, निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिये प्रारंभिक कदम इन कंपनियों द्वारा उठाया जाना चाहिये।
    • भारत में निजी अंतरिक्ष प्रक्षेपण के हाल ही के उदाहरण:
      • हाल ही में देश के पहले निजी तौर पर विकसित रॉकेट, विक्रम-एस को श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से एक सब-ऑर्बिटल मिशन में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था, जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नए युग का प्रतीक है।
    • संबंधित पहल:
      • IN-SPACE:
        • भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के लिये निजी कंपनियों को समान अवसर प्रदान करने के लिये IN-SPACE लॉन्च किया गया था।
        • यह इसरो और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बीच एकल-बिंदु इंटरफ़ेस के रूप में कार्य करता है।
      • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
        • इसे बजट 2019 में घोषित किया गया। इसका लक्ष्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये इसरो द्वारा वर्षों से किये गए अनुसंधान और विकास का उपयोग करना है।
      • इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISpA):
        • ISpA को भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को एकीकृत करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है। ISpA का प्रतिनिधित्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक निगमों द्वारा किया जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष तथा उपग्रह प्रौद्योगिकियों में उन्नत क्षमताएँ हैं।

    निष्कर्ष

    • एक नई नीति की आवश्यकता है जो सभी इच्छुक पक्षों के साथ रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण जैसे ज्ञान और प्रौद्योगिकी को साझा करके भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र के इसरो के एकाधिकार को समाप्त करे।
    • भारत के पास दुनिया के सबसे अच्छे अंतरिक्ष कार्यक्रमों में से एक होने के साथ, अंतरिक्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देने का कदम भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक बड़ा खिलाड़ी बना देगा।

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