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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    यह इतिहास की विडम्बना ही थी कि जिस देश ने उपनिवेशवाद से लड़कर अपनी स्वतंत्रता एवं जीवनमूल्यों की स्थापना की, वही शीतयुद्धकालीन वैचारिक रुग्णता से ग्रस्त होकर उपनिवेशवाद विरोधी राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्षों के खिलाफ खड़ा हो गया। विवेचना करें।

    25 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • अमेरिका में उपनिवेशी विद्रोह के उल्लेख से उत्तर प्रारम्भ करेंगे।
    • शीतयुद्ध काल में अमेरिका ने किस प्रकार तीसरे विश्व के राष्ट्रों में उपनिवेश विरोधी आंदोलनों को सीमित करने का प्रयास किया, इसका उल्लेख करेंगे।
    • निष्कर्ष।

    प्रश्न में उल्लेखित कथन अमेरिकी नीति के संदर्भ में कहा गया है। अमेरिका 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश उपनिवेशवाद का शिकार था। अमेरिकी क्रांति का प्रादुर्भाव ही इंग्लैण्ड और उसके उपनिवेशों के मध्य आर्थिक हितों के संघर्ष के कारण हुआ था। यद्यपि इस संघर्ष में राजनीतिक और सामाजिक कारक भी सम्मिलित थे, तथापि आर्थिक कारकों ने ही इस संघर्ष को बल दिया।

    ग्रेट ब्रिटेन द्वारा अमेरिकी उपनिवेशों का आर्थिक शोषण विभिन्न कानूनों यथा- नौसंचालन कानून, व्यापारिक अधिनियम, औद्योगिक अधिनियम आदि के द्वारा किया जा रहा था। इसी आर्थिक शोषण के विरोध में अमेरिकी जनता ने उपनिवेशी शासन के विरुद्ध विद्रोह किया और 4 जुलाई, 1776 को अमेरिकी नेताओं ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया।

    किंतु यह विडम्बना ही कही जाएगी कि जिस देश ने औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध लड़कर स्वतंत्रता प्राप्त की थी, वह अपनी स्वतंत्रता के लगभग 200 वर्षों बाद एक ऐसी नीति अपना लेता है, जो शीतयुद्ध काल की पूंजीवादी और समाजवादी वैचारिक रुग्णता से ग्रस्त थी और इसी रुग्ण नीति को साकार करने के लिये अमेरिका ने तृतीय विश्व के देशों, जो औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संघर्ष कर रहे थे, को विभिन्न प्रकार के आर्थिक और राजनीतिक दबाव के द्वारा सीमित करने का प्रयास किया।

    इस क्रम में ‘मार्शल प्लान’- जिसके अंतर्गत अमेरिका ने नव स्वतंत्र राष्ट्रों को वृहद् स्तर पर आर्थिक सहायता प्रदान की, ‘नाटो’- जो अमेरिकी नेतृत्व में पश्चिमी देशों का एक सैन्य संगठन था, के द्वारा अमेरिका ने तृतीय विश्व के देशों में पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत नवसाम्राज्यवाद को फैलाने का प्रयास किया।

    इसके अतिरिक्त गाम्बिया, बुरुण्डी, रवांडा आदि अफ्रीकी राष्ट्रों ने तानाशाही को समर्थन दिया, वहीं वियतनाम और कोरियाई प्रायद्वीप में भी पूंजीवाद और साम्यवाद के द्वंद्व ने अस्थायित्व को बढ़ाया।

    निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि जिस देश ने एक ऐसी शोषणकारी विचारधारा (उपनिवेशवाद) के विरुद्ध लड़कर स्वतंत्रता प्राप्त की, वही देश कालांतर में वैचारिकता के आधार पर परोक्ष रूप से उपनिवेशवाद का समर्थक हो गया।

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