इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    आप एक ज़िलाधिकारी के रूप में पदस्थ हैं। आपको अपने अधिकार क्षेत्र के एक गाँव की स्थिति के बारे में पता चलता है जहाँ की जनसंख्या रक्ताल्पता (एनीमिया) से पीड़ित है। एक परियोजना के तहत गाँव वालों को फोर्टिफाइड (पोषक तत्त्वों से युक्त) चावल उपलब्ध कराने की पहल की गई ताकि उन्हें पोषण प्रदान किया जा सके। किंतु गाँव वाले इस गलत धारणा के चलते कि ये चावल प्लास्टिक के हैं, इनका उपभोग करने से मना कर देते हैं। वहीं दूसरी तरफ ग्रामवासी वामपंथी विचारधारा से भी प्रभावित हैं और आपको यह भी पता चलता है कि नक्सलवादी ग्रामीणों की इस आम धारणा का प्रयोग अपने फायदे के लिये कर रहे हैं जिससे सरकार को जनता तक पहुँचना अधिक मुश्किल हो रहा है।

    एक अन्य वैकल्पिक पहल के रूप में लोगों को आयरन की गोलियाँ उपलब्ध कराई गई लेकिन इसने भी ग्रामीणों के बीच एक अन्य गलतफहमी पैदा कर दी कि इन गोलियों के सेवन से गर्भस्थ शिशुओं के वजन में वृद्धि हो जाती है जो गर्भवती महिलाओं में प्रसव संबंधी जटिलताओं में वृद्धि का कारण बनती है। इस प्रकार यह पहल भी विफल साबित हुई।

    (a) उपर्युक्त केस स्टडी में निहित विभिन्न मुद्दे कौन-से हैं?
    (b) नक्सलियों द्वारा प्रसारित गलत सूचनाओं के परिप्रेक्ष्य में आप जन सामान्य की धारणाओं को कैसे बदलेंगे? (250 शब्द)

    06 May, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • शामिल प्रमुख हितधारकों को सूचीबद्ध कीजिये।
    • इस मामले में शामिल विभिन्न मुद्दों का क्रमवार विश्लेषण कीजिये।
    • नक्सलियों द्वारा गलत सूचनाओं के प्रसार की पृष्ठभूमि में लोगों की धारणा को बदलने के लिये उचित सुझाव दीजिये।

    प्रस्तुत ‘केस स्टडी’ में विभिन्न हितधारक निम्नलिखित हैं-

    1. गाँववाले: रक्ताल्पता (एनीमिया) से पीड़ित व्यक्ति, गर्भवती महिलाएँ एवं नक्सलियों द्वारा गुमराह सामान्य ग्रामीण जनता।
    2. नक्सली: नक्सली अपने लाभ के लिये ग्रामीणों के बीच विद्यमान गलत धारणाओं का दुरुपयोग कर रहे हैं और सरकार के लिये जनता तक पहुँचना मुश्किल बना रहे हैं।
    3. ज़िला प्रशासन: ज़िला प्रशासन के पास हल करने के लिये विभिन्न समस्याएँ हैं, जिसके चलते वह ग्रामीण समुदाय में व्याप्त भ्रामक सूचनाओं को दूर करने के लिये पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहा है।

    भारत में विकास गतिविधियाँ कई कारकों से नकारात्मक रूप से प्रभावित हैं। इन कारकों में गरीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा व कुपोषण आदि प्रमुख हैं। नक्सलवाद इस तरह की समस्याओं के लिये ईंधन का काम करता है। उपरोक्त ‘केस स्टडी’ नक्सल प्रभावित क्षेत्र में व्याप्त विविध समस्याओं से संबंधित है। इस ‘केस स्टडी में’ ‘फोर्टीफाइड चावल’ व ‘आयरन की गोलियों’ के प्रयोग को लेकर स्थानीय जनता में फैली भ्रामक धारणाओं को दूर करना ज़िला प्रशासन के लिये चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है। नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्र होने के कारण ज़िला प्रशासन के लिये ग्रामीणों की सोच में बदलाव का कार्य और भी कठिन साबित हो रहा है।

    इस केस स्टडी में शामिल विविध मुद्दे निम्नलिखित हैं-

    • फोर्टीफाइड चावल के प्लास्टिक का चावल होने की भ्रामक धारणा: गाँववासी एनीमिया से पीड़ित हैं जिसे दूर करने के लिये उन्हें फोर्टीफाइड चावल के रूप में पूरक पोषाहार उपलब्ध कराया जा रहा है, परंतु उन्होंने इसे प्लास्टिक से बना होने की बात कहकर लेने से इंकार कर दिया है।
    • आयरन की गोलियों के प्रयोग से गर्भवती महिलाओं में प्रसव संबंधी जटिलताएँ पैदा करने की भ्रामक धारणा: ग्रामीण जनता में एनीमिया की समस्या को दूर करने के लिये आयरन की गोलियों के रूप में उपलब्ध कराए गए वैकल्पिक समाधान के संदर्भ में यह भ्रामक धारणा बैठ गई है कि ये गोलियाँ गर्भस्थ शिशुओं के वज़न में वृद्धि करती हैं, जिससे जन्म के समय स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, अत: ग्रामीणों ने इसे भी अपनाने से इनकार कर दिया है।
    • नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों में फैली भ्रामक धारणाओं का अपने स्वार्थ के लिये दुरुपयोग करना: वामपंथी विचारधारा और सामाजिक दबाव के माध्यम से नक्सली स्थानीय जनता को गुमराह कर रहे हैं।
    • नक्सलियों द्वारा गलत सूचनाएँ फैलाने की पृष्ठभूमि में लोगों की धारणा बदलने का प्रयास: ज़िला प्रशासन को ग्रामीण जनता तक सही सूचनाओं को पहुँचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिये। फोर्टीफाइड चावल और आयरन की गोलियों के संदर्भ में ग्रामीणों को सही जानकारी देने के लिये निम्न कदम उठाए जा सकते हैं-
    • जनजागरूकता अभियान चलाना: इसके लिये संबंधित क्षेत्र में फोर्टीफाइड चावल व आयरन की गोलियों से होने वाले लाभों को बताने के लिये जनजागरूकता कैंपों का आयोजन किया जा सकता है। इस संदर्भ में स्थानीय भाषा में सार्वजनिक रूप से वीडियो लेक्चर देकर अथवा सोशल मीडिया आदि के माध्यम से दिए जा सकते हैं। इस उद्देश्य के लिये नुक्कड़ नाटकों का भी सहारा लिया जा सकता है।
    • सामाजिक अनुनयन: सामाजिक अनुनयन को लोगों के विश्वास एवं धारणाओं में बदलाव के एक उपकरण के रूप में प्रयोग करना।
    • पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप: लक्षित समुदाय में सरकार की नीतियों का प्रचार-प्रसार करने के लिये गैर-सरकारी संगठनों और विशेषज्ञ निजी संस्थाओं का सहयोग लेना, जैसे-राष्ट्रीय पोषण मिशन के संदर्भ में देखा जा सकता है।
    • विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करना: क्षेत्र-विशेष के विद्यालयों में विद्यार्थियों को फोर्टीफाइड चावल और आयरन की गोलियों से होने वाले लाभों के बारे में शिक्षा देना ताकि वे अपने स्वयं के परिवारों में फोर्टीफाइड चावल और आयरन की गोलियों के प्रयोग के संदर्भ में व्यवहारिक परिवर्तन ला सकें।
    • विश्वास बहाली तंत्र का निर्माण: उपरोक्त संदर्भ में यह माना जा सकता है कि स्थानीय समुदाय और प्रशासन के मध्य विश्वास की कमी है। अत: निरंतर संवाद एवं संपर्क के माध्यम से प्रशासन को विश्वास बहाली के उपाय करने चाहिये।
    • प्रशासन को क्षेत्र में नक्सली समस्या के समाधान का प्रयास करना चाहिये: इसके लिये पुलिस बल का आधुनिकीकरण, भूमि चकबंदी कानूनों का न्यायपूर्ण प्रवर्तन एवं नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सरकार द्वारा प्रदान की गई धनराशि का अधिकतम लाभ के लिये प्रयोग आदि उपाय अपनाए जा सकते हैं।

    इसके अतिरिक्त स्थानीय समुदाय के उन लोगों को जो फोर्टीफाइड चावल और आयरन की गोलियों के उपभोग के लिये तैयार हो जाते हैं तो कुछ अतिरिक्त खाद्यान्न या मौद्रिक लाभ प्रदान किया जा सकता है। इस प्रकार समस्या का अल्पकालीन समाधान किया जा सकता है।

    उपरोक्त उपायों के अलावा स्थानीय पंचायतों, आंगनवाड़ियों, स्वयं सहायता समूहों और आदिवासी नेताओं का सहयोग स्थानीय समुदाय के लोगों को सही दिशा में ले जाने के लिये लिया जा सकता है ताकि वे लंबे समय के लिये ऐसी गलत धारणाओं से मुक्त होकर व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से अपना विकास करने में स्वयं सक्षम हो सकें।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2