इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    19वीं शताब्दी के लगभग मध्य से लेकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक अंग्रेजी शासन के विरूद्ध हुए अनेक प्रतिरोधों में 'नील विद्रोह' सर्वाधिक संगठित और जुझारू था जिसने न केवल किसानों की ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिरोध की एक मिसाल कायम की बल्कि कुछ अर्थों में सफलता भी प्राप्त की। चर्चा करें।

    05 Jun, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण-

    • भूमिका
    • नील आंदोलन का कारण
    • महत्त्व
    • निष्कर्ष

    19वीं शताब्दी के लगभग मध्य से लेकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक अंग्रेजी शासन के विरूद्ध अनेक किसान आंदोलन हुए जैसे -नील आंदोलन, पाबना आंदोलन, दक्कन विद्रोह, किसान सभा आंदोलन, एका आंदोलन, मोपला विद्रोह, बारदोली सत्याग्रह, तेभाग आंदोलन, तेलंगाना आंदोलन आदि।

    इतिहासकारों के अनुसार वर्ष 1859-60 में बंगाल में हुआ ‘नील-विद्रोह’ किसानों का अंग्रेजी शासन के विरूद्ध पहला संगठित व सर्वाधिक जुझारू विद्रोह था।

    यूरोपीय बाजारों में ‘नील’ की बढ़ती मांग की पूर्ति के लिये बंगाल के किसानों से नील उत्पादक जबरन यह अलाभकारी खेती करवा रहे थे। वे किसानों की निरक्षरता का लाभ उठाकर उनसे थोड़े से पैसों में करार कर चावल की खेती लायक जमीन पर नील की खेती करवाते थे। यदि किसान करार के पैसे वापिस कर शोषण से मुक्ति पाने का प्रयास करते तो नील उत्पादक उनको अपहरण, अवैध बेदखली, लाठियों से पीटकर, उनकी महिलाओं एवं बच्चों को पीटकर, पशुओं को जब्त करने जैसे क्रूर हथकंडे अपनाकर उन्हें नील की खेती करने के लिये मजबूर करते थे।

    उपरोक्त परिस्थितियों में वर्ष 1859 के मध्य में एक नाटकीय घटना हुई। एक सरकारी आदेश को समझने में भूल कर कलारोव के डिप्टी मैजिस्ट्रेट ने पुलिस विभाग को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि किसान अपनी इच्छानुसार भूमि पर उत्पादन कर सकें। फिर तो, शीघ्र ही किसानों ने जबरन नील-उत्पादन कराये जाने के विरूद्ध अर्जिया देनी शुरू कर दी। जब अर्जियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो नादिया जिले के गोविंदपुर गाँव के किसानों ने दिगम्बर विश्वास एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। जब सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिये बल का प्रयोग किया तो किसान उग्र हो गये ।

    गोविंदपुर के किसानों से प्रेरित हो आसपास के क्षेत्र के किसानों ने भी नील की खेती करना व जमींदारों को लगान देना बंद कर दिया। जब नील उत्पादकों ने किसानों के खिलाफ मुकदमें दायर किये तो किसानों ने उत्पादकों की सेवा में लगे लोगों का सामाजिक बहिष्कार प्रारम्भ कर दिया। बंगाल के बुद्धिजीवियों ने भी किसान आंदोलन के समर्थन में समाचार-पत्रों में लेख लिखे, जनसभाएँ की एवं सरकार को ज्ञापन सौंपे। दीनबंधु मित्र ने ‘नीलदर्पण’ में गरीब नील-किसानों की दयनीय स्थिति का मार्मिक प्रस्तुतीकरण किया। स्थिति की गंभीरता समझकर सरकार ने नील उत्पादन की समस्याओं पर सुझाव देने के लिये ‘नील आयोग’ का गठन किया। इस आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर सरकार ने अधिसूचना द्वारा किसानों को आश्वासन दिया कि उन्हें नील उत्पादन के लिये विवश नहीं किया जाएगा।

    नील उत्पादकों ने भी परिस्थितियों को विपरीत देख बंगाल से अपने कारखाने बंद करने शुरू कर दिये तथा 1860 तक ‘नील विद्रोह’ सफलता के साथ समाप्त हो गया। उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि नील विद्रोह ने निश्चित तौर पर प्रतिरोध की एक मिसाल कायम की जिसने बाद के किसान आंदोलनों को निश्चित तौर पर प्रेरित किया ।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow