इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘मानव जनसंख्या वृद्धि, प्रजाति विलोपन के संकट, पर्यावास के क्षय और जलवायु परिवर्तन सहित हमारे सबसे अहम पर्यावरण संबंधी के मुद्दों की जड़ है।’ टिप्पणी कीजिये।

    16 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • अधिक जनसंख्या के दुष्परिणामों को प्रजाति विलोपन, पर्यावास के क्षय और जलवायु
    • परिवर्तन के संदर्भ में बताएँ, साथ ही इस संकट से उबरने हेतु उपायों की चर्चा करें।

    इस ग्रह पर लगभग 7 अरब से अधिक लोग रह रहे हैं और इसमें हर दिन 2,27,000 से अधिक लोग और जुड़ रहे हैं। निःसंदेह घटते संसाधनों का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या है, जिस वजह से सबको पर्याप्त भोजन और आवास मिलना संभव नहीं हो पा रहा है। इन मुद्दों को जल्द से जल्द हल करने की जरूरत है।

    जनसंख्या वृद्धि के कारण मनुष्य दिन-प्रतिदिन वनों की कटाई करते हुए खेती और घर के लिये जमीन पर कब्जा कर रहा है। खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिये रासायनिक खादों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे न केवल भूमि, बल्कि जल भी प्रदूषित हो रहा है। यातायात के विभिन्न नवीन साधनों के प्रयोग के कारण ध्वनि एवं वायु प्रदूषण हो रहा है।

    65 लाख साल पहले डायनासोर के विलुप्त होने के बाद से प्रजातियों में से सबसे बड़ी प्रजाति विलुप्त होने का संकट मनुष्य पैदा कर रहा है। जिसकी दर सामान्य से 1000 से 10,000 गुना ज्यादा है। संकटग्रस्त प्रजातियों की आईयूसीएन रेड लिस्ट 2012 के अनुसार दुनियाभर में 63,837 प्रजातियों में से, 19,817 विलुप्त होने के कगार पर हैं जो कि कुल का लगभग एक तिहाई है। वैज्ञानिकों ने वर्तमान रुझान जारी रहने की दशा में कुछ दशकों के भीतर, पृथ्वी पर सभी पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से कम से कम आधे के विलुप्त हो जाने की चेतावनी दी है।

    वर्षा वन, प्रवालभित्तियों, झीलों और आर्कटिक में बर्फ के रूप में पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान के पीछे मानव जनसंख्या एक प्रमुख कारण है। एक अनुमान के अनुसार, कुछ दशकों के भीतर, पृथ्वी पर सभी पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से कम से कम आधे विलुप्त हो जाएंगे। वैज्ञानिकों ने ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ के वर्ष 2050 तक नष्ट हो जाने का पूर्वानुमान लगाया है। विशाल जंगलों के कटने और मानव आबादी के लगातार संपर्क में आने से जीवन, वनसंपदा एवं जैव-विविधता सभी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बढ़ती आबादी और आसमान छूता उपभोक्तावाद विखण्डन की आग में घी का कार्य कर रहे हैं।

    मानव जनसंख्या वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग के लिये प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। मनुष्य अपने यंत्रीकृत जीवन शैली में ऊर्जा के लिये जीवाश्म ईंधन का उपयोग अधिक से अधिक कर रहा है। अधिक जनसंख्या का मतलब है तेल, गैस, कोयला और खनन की अधिक जरूरत और परिणामस्वरूप वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का और अधिक उत्सर्जन ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि का कारक होगा। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार, 20वीं सदी के दौरान मानव आबादी 1-6 अरब से बढ़कर 6-1 अरब हो गई।

    कार्बन डाइऑक्साइड जो कि प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, के उत्सर्जन में इस दौरान 12 गुना वृद्धि हुई। जनसंख्या के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये, अधिक जनसंख्या के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षा के प्रसार, जनसंख्या के बारे में जागरूकता, जन्म नियंत्रण उपकरणों तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करने और परिवार नियोजन के लिये प्रेरित करना आवश्यक है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2