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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    अपशिष्ट प्रबंधन से आप क्या समझते हैं? भारत में अपशिष्ट प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों की चर्चा करते हुए सरकार द्वारा अपनायी जाने वाली पाँच सूत्रीय कार्य-योजना पर प्रकाश डालें।

    24 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण-

    • भूमिका

    • अपशिष्ट प्रबंधन, परिचय

    • चुनौतियां

    • पाँच सूत्रीय कार्य-योजना

    • निष्कर्ष

    शहरीकरण, औद्योगीकरण और जनसंख्या में विस्फोट के साथ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन 21वीं सदी में राज्य सरकारों तथा स्थानीय नगर निकायों के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बन गई है।

    विशेषज्ञों के अनुसार, अपशिष्ट का आशय हमारे प्रयोग के पश्चात् शेष बचे हुए अनुपयोगी पदार्थ से होता है। यदि शाब्दिक अर्थ की बात करें तो अपशिष्ट ‘अवांछित’ और ‘अनुपयोगी सामग्री’ को इंगित करता है।

    संबंधित चुनौतियाँ-

    • भारत में अधिकांश शहरी स्थानीय निकाय वित्त, बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी की कमी के कारण कुशल अपशिष्ट प्रबंधन सेवाएँ प्रदान करने के लिये संघर्ष करते हैं।
    • शहरीकरण में तीव्रता के साथ ही ठोस अपशिष्ट उत्पादन में भी वृद्धि हुई है जिसने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को काफी हद तक बाधित किया है।
    • हालाँकि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 में अपशिष्ट के अलगाव को अनिवार्य किया गया है, परंतु अक्सर बड़े पैमाने पर इस नियम का पालन नहीं किया जाता है।
    • अधिकांश नगरपालिकाएँ बिना किसी विशेष उपचार के ही ठोस अपशिष्ट को खुले डंप स्थलों पर एकत्रित करती हैं। अक्सर इस प्रकार के स्थलों से काफी बड़े पैमाने पर रोगों के जीवाणु पैदा होते हैं और आस-पास रहने वाले रोग भी इससे काफी प्रभावित होते हैं। इस प्रकार के स्थलों से जो दूषित रसायन भूजल में मिलता है वह आम लोगों के जन-जीवन को काफी नुकसान पहुँचाता है।
    • कई विशेषज्ञ इन स्थलों को वायु प्रदूषण के लिये भी ज़िम्मेदार मानते हैं।
    • भारत में अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र का गठन मुख्यतः अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा किया जाता है जिनमें से अधिकांश शहरों में रहने वाले गरीब होते हैं। अनौपचारिक श्रमिक होने के कारण इन लोगों को कार्यात्मक और सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल पाती है।

    पाँच सूत्रीय कार्य-योजना-

    • वर्तमान में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय मिशन के रूप में कार्य करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों ने इसके लिये पाँच सूत्रीय कार्य-योजना प्रस्तुत की है, जो इस प्रकार है-
    • वहनीय तकनीक: सर्वप्रथम नगरपालिकाओं को वहनीय तकनीक तक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है जो कि भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल हो। वर्तमान में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये आवश्यक अधिकांश प्रौद्योगिकी/उपकरण आयातित, महंगे हैं और अक्सर हमारी विभिन्न स्थानीय स्थितियों में अनुकूल नहीं होते हैं। भारत को अपनी जटिल शहरी संरचना के लिये सस्ती, विकेंद्रीकृत, अनुकूलित समाधान की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये जल निकायों को साफ़ करने के लिये रोबोट्स का प्रयोग किया जा सकता है।
    • त्वरित खरीद प्रक्रिया: अपशिष्ट प्रबंधन में तकनीकी उन्नयन हेतु त्वरित खरीद प्रक्रिया को अपनाने की आवश्यकता है। लंबी प्रशासनिक प्रक्रिया के कारण प्रौद्योगिकी और उपकरणों की खरीद में अत्यधिक समय लग जाता है। बंबई नगरपालिका को उर्जा संयंत्र के अपशिष्ट प्रबंधन के लिये आवश्यक उपकरणों की खरीद करने में लगभग सात वर्ष का समय लग गया था।
    • एकीकृत नीति: अपशिष्ट प्रबंधन हेतु एक एकीकृत नीति की आवश्यकता है। जिससे अपशिष्ट के विभिन्न प्रकारों का निस्तारण करने में सहूलियत होगी। इसके माध्यम से हजारों एकड़ भूमि लैंडफिल से मुक्त कराई जा सकती है।
    • कुशल मानव संसाधन: अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्रों के संग्रह, संचालन, रखरखाव और अपशिष्ट प्रबंधन श्रृंखला को संचालित करने तथा बनाए रखने के लिये कुशल और प्रशिक्षित पेशेवर कर्मियों की नियुक्ति पर ध्यान देना होगा।
    • शून्य अपशिष्ट समाज: भारत पारंपरिक रूप से एक ऐसा समाज है जहाँ वस्तुओं की बर्बादी बहुत कम है और सब कुछ पुन: उपयोग और पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है। हमें ऐसे समाज के विकास को बढ़ावा देने की ज़रुरत है।

    निष्कर्षतः देश को एक व्यापक अपशिष्ट प्रबंधन नीति की आवश्यकता है ऐसे में अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। नीति निर्माण के समय हमारा ध्यान और अधिक लैंडफिल के निर्माण के बजाय पुनर्चक्रण तथा पुनर्प्राप्ति पर होना चाहिये।

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