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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्रप्रदेश राज्यपाल के उस आदेश को असंवैधानिक घोषित किया जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में स्कूल शिक्षकों के पदों पर ‘अनुसूचित जनजाति’ के उम्मीदवारों को सौ प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया था। उपरोक्त के संदर्भ में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत पक्ष की चर्चा करते हुए आरक्षण प्रणाली के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या के प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालें।

    21 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भूमिका
    • राज्य सरकार का पक्ष
    • कोर्ट द्वारा आरक्षण की व्याख्या के मुख्य बिंदु

    आंध्र प्रदेश राज्य के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा जनवरी 2000 में जारी की गई अधिसूचना को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करने के लिये पाँच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का गठन किया गया था। हालाँकि परिस्थितियों को देखते हुए संवैधानिक पीठ ने आंध्र प्रदेश के इस नियुक्ति आदेश को रद्द नहीं किया है लेकिन भविष्य में इस तरह के प्रावधान नहीं करने को कहा है।

    संवैधानिक पीठ ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि आरक्षण के हकदार लोगों की आरक्षण सूचियों को समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिये। सूचियों का अद्यतन, आरक्षण व्यवस्था में बदलाव किये बिना जा सकता है अर्थात किसी वर्ग को प्रदान किये गए आरक्षण के कुल% में किसी प्रकार की कमी न की जाए।

    आंध्र प्रदेश सरकार का पक्ष:

    • अनुसूचित क्षेत्रों में 100% आरक्षण प्रदान करने के पीछे सरकार द्वारा यह तर्क दिया गया कि- "आदिवासियों को केवल आदिवासियों द्वारा ही शिक्षा देनी चाहिये।"
    • पीठ ने सरकार के पक्ष को इस आधार पर खारिज कर दिया कि जब अन्य स्थानीय निवासी जनजातीय क्षेत्र में रह रहे हैं तो वे भी इन आदिवासियों को पढ़ा सकते हैं।

    आरक्षण प्रणाली के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या :

    • संवैधानिक पीठ के अनुसार अनुसूचित जनजातियों को 100% आरक्षण देने से अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों को उनके उचित प्रतिनिधित्त्व से भी वंचित किया गया है।
    • आरक्षण की अवधारणा समानुपाती नहीं, बल्कि पर्याप्त (Not Proportionate but Adequate) पर आधारित है, अर्थात आरक्षण का लाभ जनसंख्या के अनुपात में न होकर, पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने के लिये है।
    • इस प्रकार कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।
    • आरक्षण प्रदान करते समय मेरिट को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
    • राज्यपाल का निर्णय कानून से ऊपर नहीं हो सकता, अत: असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिये (इंदिरा साहनी वाद का निर्णय)।

    निष्कर्षतः भारतीय समाज विशेषकर पिछड़े वर्ग के विकास में आरक्षण की भूमिका को पहचानने की ज़रूरत है। आवश्यक है कि विषय से संबंधित विभिन्न हितधारकों से विचार-विमर्श किया जाए और यथासंभव एक संतुलित मार्ग की खोज की जाए।

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