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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों द्वारा लगातार यह मांग की जा रही है कि POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम के तहत ‘आयु’ को पुनर्परिभाषित किया जाए’ POCSO के प्रावधानों को संक्षेप में समझाते हुए, आयु कम करने की मांग के पीछे निहित तर्कों को स्पष्ट करें।

    20 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संक्षेप में POCSO के प्रावधान

    • आयु कम करने की मांग के पीछे निहित तर्क

    • निष्कर्ष

    विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों तथा मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा सुझाव दिया गया है कि 16 वर्ष की आयु के पश्चात् आपसी सहमति से बने यौन संबंध, शारीरिक संपर्क या संबद्ध कृत्यों को ‘‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POSCO) अधिनियम’’ के दायरे से बाहर रखा जाए।

    POCSO अधिनियम के प्रावधान:

    • POCSO अधिनियम 2012 को कानूनी प्रावधानों के माध्यम से बच्चों के साथ होने वाले यौन व्यवहार और यौन शोषण को प्रभावी ढंग से रोकने हेतु लाया गया था।
    • भारत ‘संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार कन्वेंशन का एक पक्षकार है, जिसके तहत इस पर (भारत) बच्चों को सभी प्रकार के यौन दुर्व्यवहार और यौन शोषण से बचाने का कानूनी दायित्व भी है।’
    • यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को एक बच्चे के रूप परिभाषित करता है। जो बच्चे को प्रलोभन या बलपूर्वक किसी भी गैरकानूनी यौन गतिविधि में शामिल होने से निषिद्ध करता है।
    • यह केंद्र तथा राज्य सरकारों को अधिनियम के प्रावधानों के प्रचार-प्रसार को सुनिश्चित कर सभी उपायों के व्रियान्वयन हेतु बाह्य करता है।
    • यह ऐसे अपराधों को त्वरित सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
    • यह लैंगिक रूप से तटस्थ कानून है।

    POCSO अधिनियम के अंतर्गत आयु को कम करने की मांग के पीछे निम्नलिखित तर्क निहित हैं:

    बढ़ते तकनीकी के प्रयोग ने बच्चों के पास इन माध्यमों में अत्यधिक सूचनाओं एवं ज्ञान सुलभ है।

    इसके परिणामस्वरूप वे समय से पूर्व परिपक्व हो जाते हैं और 16 वर्ष की आयु में भी किसी भी संबंध के लिये सहमति देने की स्थिति में होते हैं।

    • वर्तमान में 16-18 वर्ष के बच्चों की संलिप्तता वाले पुलिस में दर्ज किये गए यौन शोषण के कई मामले प्रकृति में सहमति आधारित होते हैं।
    • इससे विभिन्न न्यायालयों में लंबित ऐसे आपराधिक मामलों की संख्या में कमी आएगी जिनमें अधिनियम के प्रावधानों का गंभीर दुरुपयोग किया गया है।
    • किशोर न्याय अधिनियम 2015, जो जघन्य अपराध वाले मामलों में 16-18 वर्ष के किशोरों पर वयस्कों के रूप में महाभियोग चलाने की अनुमति देता है, के साथ अमल में लाए जाने पर किसी नाबालिग के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने पर 16 वर्ष से अधिक के बच्चे पर अभियोग चलाया जा सकता है।
    • यह अधिनियम डॉक्टरों को अपने 18 वर्ष से कम आयु के रोगियों की पहचान को प्रकट करने के लिये बाह्य करता है।

    निष्कर्षत: POCSO के तहत बच्चों को परिभाषित करने हेतु उसकी आयु को वरीयता दी है, जहाँ किसी बच्चे की सहमति यौन उत्पीड़न संबंधी अपराध को संरक्षण प्रदान नहीं करती है। हालाँकि आयु कम करने के न्यायालय के निर्देश की सराहना की गई है। तथापि, इस तरह के संशोधन में कोई जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिये।

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