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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला विस्थापन युद्ध और हिंसक संघर्षों की वजह से होने वाले विस्थापन से ज़्यादा भयावह है।’ टिप्पणी करें।

    18 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भूमिका। 

    • ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम।

    • विभिन्न संस्थाओं द्वारा दिए गए आंकड़ें। 

    • निष्कर्ष।

    जब भी हम जलवायु परिवर्तन की चर्चा करते हैं, तो इसे बढ़ते तापमान, प्रदूषण, बंजर होती ज़मीन (मरुस्थलीकरण), अम्ल वर्षा और ध्रुवों पर बर्फ के पिघलना आदि से जोड़कर देखते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व में आई एक अनजान वास्तविकता से अधिकांश लोग परिचित नहीं हैं। वह है इसकी वजह से होने वाला विभिन्न देशों के लोगों का विस्थापन। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला विस्थापन युद्ध और हिंसक संघर्षों की वजह होने वाले विस्थापन से भी ज़्यादा भयावह है। इससे विश्व के 148 देश प्रभावित है जिसमें भारत भी शामिल है, इन देशों मेंअधिकांश जनसंख्या निर्धन और वंचित लोगों की है। विशेषज्ञ इसे दुनिया के लिये एक गंभीर समस्या मानते हैं, जो वर्ष 2050 तक हमारी उम्मीद से ज़्यादा बढ़ जाएगी और प्रत्यक्ष तौर पर विस्थापन के परिणाम भी लोगों को दिखने लगेंगे। 

    ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों को दुनिया जलवायु परिवर्तन के रूप में देख रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं असमय बारिश हो रही है, तो कहीं अतिवृष्टि। बेमौसम पड़ने वाले ओले और बर्फ किसानों की फसल को खराब कर देते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्म दिनों की संख्या बढ़ रही है, जिससे सर्दियों के दिन कम हो रहे हैं। गर्मी बढ़ने के कारण सूखे की समस्या बढ़ रही है। भारत की लगभग 30 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण की चपेट में आ चुकी है। जंगलों में प्रतिवर्ष आग लगने से लाखों हेक्टेयर वन संपदा नष्ट हो जाती है। तापमान बढ़ने का परिणाम हाल ही में पूरा विश्व आस्ट्रेलिया के बुश फायर और अमेज़न के जंगलों की आग के रूप में देख चुका है। तो वहीं अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने सहित दुनिया भर के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। हर साल दुनिया भर में, विशेषकर भारत में बाढ़ भारी तबाही मचाती है। जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही इन सभी घटनाओं की समय समय पर चर्चा तो होती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे विस्थापन का कोई ज़िक्र तक नहीं करता और न ही ये विस्थापन कभी चर्चा का विषय बनता है। इसी अनदेखी के कारण आज यह  एक वैश्विक समस्या बन गई है।

    संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट में 148 देशों पर किये गए सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर निष्कर्ष दिया गया है कि दुनिया में करीब 2.8 करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं, जिनमें से 1.75 करोड़ लोग जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली विभिन्न आपदाओं की वजह से विस्थापित हुए हैं, जबकि शेष लोग युद्ध और हिंसक संघर्षों की वजह से विस्थापित हुए हैं। वर्ष 2018 में विश्व बैंक ने अनुमान लगाते हुए कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक उप सहारा, अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका में 14.3 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़कर विस्थापित होने के लिए मज़बूर होना पड़ेगा। अंतर्राष्ट्रीय आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएससी) के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2018 के अंत तक 16 लाख लोग राहत शिविरों में थे। भारत के संदर्भ में तो यह आंकड़ा और गंभीर है।

    बीते वर्ष मैड्रिड में हुए काॅप 25 में विश्व मौसम संगठन ने वैश्विक जलवायु दशा रिपोर्ट 2019 जारी कर मौसमी घटनाओं के कारण हो रहे विस्थापन पर चिंता जताई। रिपोर्ट में बताया गया कि जनवरी 2019 से जून 2019 के बीच एक करोड़ लोग अपने देश में ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर विस्थापित हुए हैं। इनमें से 70 लाख लोग बाढ़, हरिकेन और चक्रवात आदि के कारण विस्थापित हुए हैं। इससे आबादी वाले इलाकों, विशेषकर शहरों की जनसंख्या में तेज़ी से इज़ाफा हो रहा है। भारत में तो आपदाओं और इनकी भयावहता का रूप हम केदारनाथ आपदा के रूप में वर्ष 2013 में देख ही चुके हैं। तो वहीं वर्ष 2009 में बंगाल की खाड़ी में आया चक्रवात तथा 2004 की सुनामी का कहर सभी को याद है। कुछ वर्ष पूर्व ही नेपाल में भूकंप से मची तबाही के ज़ख्म आज भी हरे हैं। 

    इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले दो वर्षों में भारत में हर महीने एक प्राकृतिक आपदा अवश्य हुई है। पिछले साल एशिया में 93 प्राकृतिक आपदाएं आईं, जिनमें से 48 आपदाएं केवल भारत में ही आई थी। हांलाकि वर्ष 2019 में 2018 की अपेक्षा प्राकृतिक आपदाएं कम आईं, लेकिन आपदा में जान गँवाने वालों की संख्या में 48 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ था। दुनिया भर में होने वाला विस्थापन न केवल अपने-अपने देश की सीमाओं के अंदर हुआ, बल्कि कई जगहों पर लोगों को अपना देश छोड़ने के लिए भी मज़बूर होना पड़ा। भारत का सुंदरबन का इसका जीता जागता उदाहरण है, जो धीरे-धीरे समुद्र के पानी में समा रहा है। इसी सूची में मुंबई सहित समुद्र के किनारे बसे सभी शहर हैं। ऐसे में जलवाुय परिवर्तन एक गंभीर  मामला है। हर वर्ग इसके दुष्प्रभावों से प्रभावित है। इसका समाधान करने के लिए अभी से दुनिया के सभी देशों और हर नागरिक को प्रयास करना होगा, वरना हमें भविष्य में अपना घर या देश छोड़ने के लिए मज़बूर होना पड़ सकता है।

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