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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में भारत द्वारा इंडो-पैसिफिक मामलों के लिये एक समर्पित इंडो-पैसिफिक डिवीज़न की स्थापना की गई है। इस क्षेत्र के प्रति भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए पृथक इंडो-पैसिफिक विंग के लाभ बताएं।

    03 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका।

    • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर भारत का दृष्टिकोण।

    • इंडो-पैसिफिक विंग के लाभ।

    ‘इंडो-पैसिफिक’ के विचार की कल्पना 2006-07 में की गई थी। हिंद महासागर तथा प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद-प्रशांत या इंडो-पैसिफिक क्षेत्र कहते हैं, हाल ही में चीन की राजनीतिक-सैन्य आक्रामकता के कारण यह क्षेत्र चर्चा में रहा।

    शांगरी ला डायलॉग में भारत ने इंडो-पैसिफिक की अवधारणा को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित बिंदुओं को रेखांकित किया है-

    • यह क्षेत्र एक स्वतंत्र, खुले तथा समावेशी क्षेत्रकों संदर्भित करता है, जो प्रगति और समृद्धि के साझे उद्देश्य की प्राप्ति के लिये सभी संबंधित पक्षों को सम्मिलित करता है।
    • दक्षिण-पूर्व एशिया अथवा आसियान देश इसके भविष्य के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
    • एशिया का भविष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर निर्भर है।
    • भारत इस बात का पक्षधर है कि वार्ता के माध्यम से कुछ सामान्य नियमों का निर्माण किया जाए जिसमें सभी देशों की सहमति हो।
    • भारत इस क्षेत्र में संरक्षणवाद के स्थान पर प्रतिस्पर्द्धा का पक्षधर है। साथ ही मुक्त और स्थिर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था के विकास हेतु प्रतिबद्ध है।
    • इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सर्वाधिक आवश्यकता कनेक्टिविटी की है। भारत इसके लिये दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, हिन्द महासागर, अफ्रीका, पश्चिम एशिया तथा अन्य क्षेत्रों में स्वयं तथा अन्य देशों (जैसे- जापान) के साथ मिलकर अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है।

    भारत के दृष्टिकोण को पाँच ‘स’ में समझा जा सकता है: सम्मान (रिस्पेक्ट), संवाद (डायलॉग), सहयोग (को-ऑपरेशन), शांति (पीस) तथा समृद्धि (प्रॉस्पैरिटी)।

    एक पृथक इंडो-पैसिफिक विंग के लाभ:

    • एकीकृत दृष्टिकोण का निर्माण: पूर्व में इस क्षेत्र के साझे दृष्टिकोण को विभाजित करते हुए आसियान क्षेत्र और हिंद महासागर क्षेत्र के लिये पृथक कार्यक्षेत्र का निर्धारण किया गया था। अत: नियमों को अधिक स्पष्ट करने और इंडो-पैसिफिक के विचार को मूर्त स्वरूप प्रदान करने के पश्चात् इस एकीकृत डिवीज़न द्वारा अधिक सामंजस्य एवं फोकस हेतु सभी संबंधित मुद्दों को एक ही मंच पर लाया जाएगा।
    • बेहतर नीति निर्माण: यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र से संबंधित भारत की तैयारियों और प्रारूपों को तीव्र करने में सहायक होगा।
    • सुगम समन्वय स्थापित करने में सहायक: अन्य देशों द्वारा इंडो-पैसिफिक के प्रति अपने दृष्टिकोण के पुन: अभिमुखीकरण के आलोक में विदेश मंत्रालय के ये क्षेत्रीय विभाग अन्य देशों के एक समर्पित विभाग के साथ सुगम समन्वय स्थापित करने में सहायक सिद्ध होंगे।
    • इस क्षेत्र को नेतृत्व प्रदान करना: प्रत्येक क्षेत्रीय विभाग की अध्यक्षता एक पृथक संयुक्त सचिव द्वारा की जाती है, जिससे नीति को एक सुसंगत स्वरूप प्रदान करना महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।
    • इस क्षेत्र में भारतीय डायस्पोरा का लाभ पहुँचाना: ऑस्ट्रेलिया, न्यू कैलेडोनिया, फिजी और न्यूज़ीलैंड में भारतीय प्रवासियों की एक बड़ी संख्या निवास करती है, जो दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत (पड़ोसी) देशों व भारत के मध्य सूचना के आदान-प्रदान के लिये एक मुक्त मार्ग प्रदान करते हैं।

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