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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘भ्रष्टाचार जोखिम प्रबंधन’ से क्या आशय है?भ्रष्टाचार जोखिम को उत्पन्न करने वाले राजनीतिक-प्रशासनिक कारकों की चर्चा करते हुए इसके प्रभावी प्रबंधन की रणनीति बताएँ।

    25 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भ्रष्टाचार जोखिम प्रबंधन को परिभाषित करते हुए उत्तर प्रारंभ करें।

    • भ्रष्टाचार जोखिम को उत्पन्न करने वाले राजनीतिक और प्रशासनिक कारको का पृथक-पृथक उल्लेख करें।

    • इन कारको के प्रबंधन हेतु बहुआयामी रणनीति लिखें।

    सामान्यत: भ्रष्टाचार जोखिम प्रबंधन से तात्पर्य है किसी संगठन में भ्रष्टाचार की संभावना को न्यून करना या समाप्त करने का प्रयास करना।

    सरकारी विभागों व संगठनों में भ्रष्टाचार जोखिम को उत्पन्न करने वाले कई राजनीतिक व प्रशासनिक कारक हैं जिन्हें हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं-

    राजनीतिक कारक

    • चुनावों में भारी गैर-कानूनी खर्च भ्रष्टाचार जोखिम को अत्यधिक बढ़ाता है।
    • राजनीति का अपराधीकरण और अपराधियों का राजनीतिकरण भी भ्रष्टाचार जोखिम को बढ़ाता है।
    • राजनीतिक चंदों का दुरुपयोग तथा राजनीतिक दलों का आर.टी.आई (RTI) कानून के दायरे से बाहर होना।
    • राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव।

    प्रशासनिक कारक

    • नियमों की जटिलता व अस्पष्टता।
    • अधिकारियों के पास अधिकाधिक विवेकाधीन शक्तियाँ।
    • ‘‘सरकारी गोपनीयता अधिनियम’’ का दुरुपयोग।
    • अधिकारियों पर किसी कार्य की निश्चित जबावदेही व ज़िम्मेदारियों का अभाव।
    • सेवाओं को पूरा करने के लिये निश्चित समय-सीमा का अभाव।
    • सरकार अनेक क्षेत्रों में एकमात्र सेवा प्रदाता है। इसके कारण कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं है, उपभोक्ताओं के लिये कोई अन्य विकल्प नहीं है। इस कारण सरकारी कर्मचारी मनमाने ढंग से कार्य करते हैं जो भ्रष्टाचार के बढ़ने का एक प्रमुख कारक है।

    भ्रष्टाचार जोखिम के प्रभावी प्रबंधन के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-

    • चुनावी खर्च के संबंध में महत्त्वपूर्ण सुधार किये जाने आवश्यक हैं। इस दिशा में राज्य द्वारा चुनावों का वित्तपोषण किया जा सकता है। हाल ही में सरकार द्वारा ‘इलेक्टोरल बॉण्ड’ की व्यवस्था बजट में की गई जो एक महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकता है।
    • राजनीतिक दलों को आर.टी.आई. कानून के दायरें में लाया जाना चाहिये। यह राजनीतिक दलों की आंतरिक अनियमितताओं को दूर करने में सहायक होगा।
    • जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की तीव्र सुनवाई के लिये विशेष फास्ट ट्रैक न्यायालयों की व्यवस्था की जा सकती है।
    • स्व-विवेकी निर्णयों को कम किया जाए। कानूनों की स्पष्ट चर्चा की जाए तथा पद्धतियों को सरल किया जाए। इसके लिये ‘सिंगल विंडों क्लीयरेंस’ या ‘वन-स्टॉप सर्विस सेंटर’ महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकते हैं।
    • सेवाओं की आपूर्ति की एक निश्चित समय-सीमा तय की जानी चाहिये। इस दिशा में लोक सेवा अधिकार कानून एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
    • शासन व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिये आई.सी.टी. (ICT) तकनीक का बेहतर प्रयोग किया जा सकता है।
    • उन कार्यालयों में जहाँ जनता का ‘इंटरेक्शन’ (interaction) ज़्यादा होता है, वहाँ एक बेहतर ‘फीडबैक मैकनिज़्म’ की व्यवस्था की जानी चाहिये।

    कार्यालयों को भ्रष्टाचार की संभावना के आधार पर अधिक, मध्यम व कम जोखिम वाले कार्यालयों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है तथा कर्मचारियों को गोपनीय रिपोर्ट के आधार पर उनका भी इसी प्रकार अधिक, मध्यम व कम जोखिम वाले कर्मचारी के रूप में वर्गीकरण किया जा सकता है। ‘भ्रष्टाचार के अधिक जोखिम’ वाले कार्यालयों में ‘कम जोखिम वाले अधिकारियों’ की नियुक्ति भी भ्रष्टाचार के नियंत्रण के लिये एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत करता है।

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