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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्राकृतिक आपदाओं के कारण के रूप में स्थापित चरम मौसमी घटनाओं यथा-बाढ़ और भारी वर्षा के अलावा चरम ताप का धीरे-धीरे इसमें शामिल होना क्या जलवायु परिवर्तन की तीव्र परिणति को दर्शाता है? भारत द्वारा इस संदर्भ में किये जा रहे प्रयासों पर चर्चा करें।

    19 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    भूमिका:


    पूरे विश्व में जलवायु संबंधी पैटर्न में आए बदलाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि गर्म दिनों की बारंबारता में लगातार वृद्धि हो रही है एवं गर्म दिनों के तापमान में भी वृद्धि देखी जा रही हैं। जबकि ठंड के दिनों में कमी देखने को मिल रही है। कई स्थानों पर रिकार्ड स्तर पर उच्च तापमान को भी दर्ज किया गया है। ताप-लहर आजकल व्यापक हो गया है जिसके पीछे जलवायु परिवर्तन को दोषी माना जा रहा है।

    विषय-वस्तु


    विषय-वस्तु के पहले भाग में चमर ताप के कुप्रभावों पर प्रकाश डालेंगे-

    चरम ताप में वृद्धि जलवायु परिवर्तन की तीव्र परिणति को दर्शाता है। चरम मौसमी घटनाएँ जो प्राकृतिक आपदा का कारण होती है उसमें अब चरम ताप भी शामिल हो रहा है। साथ ही यह अन्य प्रकार के आपदाओं के खतरों में भी वृद्धि कर रहा है। ताप के कारण सूखा जैसे प्राकृतिक आपदा में तीव्रता आ सकती है जो कि और अधिक चरम ताप को बढ़ावा देता है। ऐसी गर्म और सूखी स्थिति वनाग्नि के खतरे में वृद्धि करती है।

    कई स्थानों पर चरम ताप को एक घातक प्राकृतिक आपदा के रूप में स्वीकार किया गया है जहाँ लोग हरिकेन, तड़ित झंझावत, भूकंप और बाढ़ की अपेक्षा चरम ताप से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

    उच्च आद्रता और रात्रि के समय बढ़ा हुआ तापमान ताप संबंधित रोगों और मृत्यु दर का कारण बनता है। ताप-तनाव मानव में तब उत्पन्न होता है जब मानव शरीर स्वयं को सक्षमतापूर्वक ठंडा करने में अक्षम होता है। अंतत: इसकी परिणति हीट-स्ट्रोक के रूप में होती है।

    रात्रि के समय उच्च तापमान की स्थिति कृषि को भी प्रभावित करता है। कुछ फसलों को रात्रि में ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है। उच्च तापमान मवेशियों में हीट-स्ट्रेस के खतरे में भी वृद्धि होती है परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादन में कमी, वृद्धि में धीमापन एवं गर्भाधान दरों में कमी आती है। साथ ही हम देखते हैं कि नदियों और झीलों का गर्म होना तापगृहों से उत्सर्जित बेकार ताप के अवशोषण में कमी लाता है।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में इस दिशा में भारत द्वारा किये जा रहे प्रयासों पर चर्चा करेंगे-

    भारत UNFCCC के मूलभूत सिद्धांत पर अमल करता है। इसके अनुसार जलवायु परिवर्तन हेतु जिम्मेदार देशों को, अन्य देश जो कम जिम्मेदार हैं, की अपेक्षा उत्सर्जन कटौती में ज्यादा योगदान देना होगा। इस प्रकार भारत इन जिम्मेदारियों से बँधा नहीं है परंतु स्वैच्छिक योगदान देता है।

    भारत द्वारा किये जा रहे प्रयास-

    अंतर्राष्ट्रीय स्तर

    • UNFCCC के अंतर्गत ग्रीन हाउस गैसों में कमी लाने के उद्देश्य से भारत ने 22 अप्रैल, 2016 को पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किया।
    • भारत UNFCCC को वित्त, प्रौद्योगिकी, वानिकी एवं अन्य क्षेत्रों पर कई प्रस्तुतीकरण दे चुका है-

    ♦ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं विकास हेतु एक तंत्र की सलाह
    ♦ जलवायु परिवर्तन हेतु वित्तीय उपलब्धता के संदर्भ में सलाह
    ♦ REDD + हेतु व्यापक दृष्टिकोण के लिये एक प्रस्तावना का प्रस्तुतीकरण

    राष्ट्रीय स्तर

    • 2008 में जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना जारी की गई जिसके तहत राष्ट्रीय संवर्धित ऊर्जा दक्षता मिशन, राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय ‘हरित भारत’ मिशन आदि मिशन शामिल किये गए हैं।
    • जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन पर भारतीय तंत्र (INCCA) की स्थापना
    • समन्वित ऊर्जा नीति, 2006
    • राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 एवं पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन
    • गृह काउंसिल की स्थापना
    • UNFCCC हेतु राष्ट्रीय संचार (NATCOM) की शुरूआत
    • बायोफ्यूल पर राष्ट्रीय नीति, 2018
    • नीति आयोग ‘नया भारत /75’ के अंतर्गत सतत् ऊर्जा विकास एवं पर्यावरण संरक्षण पर जोर

    निष्कर्ष


    अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

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