इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय संदर्भ में मानसून के निवर्तन की ऋतु को स्पष्ट करें। साथ ही मानसूनी वर्षा की विशेषताओं पर चर्चा करें।

    22 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    भूमिका में:


    मानसून के निवर्तन की ऋतु के बारे में बताते हुए उत्तर प्रारंभ करें-

    अक्तूबर और नवंबर के महीनों को मानसून के निवर्तन की ऋतु कहा जाता है।

    विषय-वस्तु


    विषय-वस्तु के पहले भाग में भारतीय प्रायद्वीप में सूर्य की स्थिति और वायुदाब की पेटियों पर चर्चा करते हुए मानसून के निवर्तन की ऋतु के बारे में बताएँ-

    सितंबर के अंत में सूर्य के दक्षिणायन होने की स्थिति में गंगा के मैदान पर स्थित निम्न वायुदाब की पेटी भी दक्षिण की ओर खिसकना आरंभ कर देती है। फलस्वरूप दक्षिण-पश्चिमी मानसून कमज़ोर पड़ने लगता है। सितंबर के पहले सप्ताह में मानसून पश्चिमी राजस्थान से लौटना शुरू होता है एवं अंत तक राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी गंगा मैदान तथा मध्यवर्ती उच्चभूमियों से लौट जाता है। गौरतलब है कि अक्तूबर के आरंभ में मानसून बंगाल की खाड़ी के उत्तरी भागों में स्थित रहता है तथा नवंबर के शुरू में कर्नाटक और तमिलनाडु की ओर बढ़ जाता है। मानसून के निवर्तन की ऋतु में उत्तरी भारत में मौसम सूखा होता है, जबकि प्रायद्वीप के पूर्वी भागों में वर्षा होती है। दिसंबर के मध्य तक निम्न वायुदाब का केंद्र प्रायद्वीप से संपूर्ण रूप से हट जाता है।

    मानसून के निवर्तन की ऋतु की विशेषता यह है कि इस समय आकाश स्वच्छ रहता है और तापमान बढ़ने लगता है एवं भूमि में नमी मौजूद होती है। यह कार्तिक मास की ऊष्मा कहलाती है। अंतत: अक्तूबर माह के उत्तरार्द्ध में तापमान तेज़ी से गिरने लगता है जिसे उत्तरी भारत में विशेष रूप से महसूस किया जा सकता है। इस ऋतु की व्यापक वर्षा का संबंध चव्रवातीय अवदाबों के कारण माना जाता है जो अंडमान समुद्र में पैदा होते हैं और दक्षिणी प्रायद्वीप के पूर्वी तट को पार करते हैं।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम मानसूनी वर्षा की विशेषताओं पर चर्चा करेंगे-

    • दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा मौसमी होती है जो जून से सितंबर माह के दौरान होती है।
    • मानसूनी वर्षा मुख्य रूप से उच्चावच अथवा भूआकृति द्वारा नियंत्रित होती है।
    • समुद्र से दूरी बढ़ने के साथ ही मानसूनी वर्षा की मात्रा भी घटती जाती है।
    • मानसूनी वर्षा के आर्द्र दौरों के मध्य कुछ सूखे अंतराल भी आते हैं जिन्हें विच्छेद कहा जाता है।
    • ग्रीष्मकालीन वर्षा मूसलाधार होती है जिससे मृदा अपरदन होता है।
    • देश में होने वाली कुल वर्षा का तीन-चौथाई भाग दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतु के दौरान प्राप्त होता है।
    • मानसूनी वर्षा का स्थानिक वितरण भी असमान है (12cm. से 250 cm. से अधिक वर्षा के मध्य)
    • कई बार पूरे देश में या इसके एक भाग में वर्षा का आरंभ काफी देर से होता है।
    • कई बार वर्षा सामान्य समय से पहले समाप्त हो जाती है।

    निष्कर्ष :अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2