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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सिविल सेवाओं में लैटरल इंट्री की आवश्यकता क्यों है? इससे होने वाले लाभ और इसके समक्ष आने वाली चुनौतियों पर भी चर्चा करें।

    29 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा –

    • सिविल सेवाओं में लैटरल इंट्री की आवश्यकता को समझाएँ।
    • लैटरल इंट्री से होने वाले संभावित लाभ बिंदुवार लिखें।
    • इसके समक्ष उपस्थित चुनौतियों का उल्लेख करें। 
    • निष्कर्ष

    विश्व बैंक द्वारा जारी व्यापार सुगमता सूचकांक (index for Ease of doing business) में भारत का स्थान 130वां है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार बोध सूचकांक में भारत 76वें स्थान पर है। एशिया-प्रशांत देशों में सर्वाधिक घूसखोरी भारत में होती है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारत की नौकरशाही अन्य 12 एशियाई देशों में सबसे धीमी कार्यशैली वाली नौकरशाही है। ये आँकड़े भारत की नौकरशाही के अनुत्पादक प्रदर्शन को उजागर करते हैं और तत्काल ही इसके कायाकल्प का आग्रह करते हैं।  

    वर्तमान दौर विशेषज्ञता का दौर है। ऐसे में सिविल सेवा के क्षेत्र में भी विशेषज्ञता की ज़रूरत महसूस की जा रही है। प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग, सुरेन्द्रनाथ समिति, होता समिति व द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी इसकी सिफारिश की है। वर्तमान परिस्थितियों में नीति-निर्माण एवं प्रभावी प्रशासन के लिये विशेष कौशल और ज्ञान की ज़रूरत है। ऐसे में सिविल सेवा में विशेषज्ञों की लैटरल इंट्री एक ज़रूरी कदम जान पड़ता है। 

    सिविल सेवा में लैटरल इंट्री के लाभ-  

    • नीति-निर्माण और उनके कार्यान्वयन की सूक्ष्मता से परख की जा सकेगी तथा नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।   
    • लैटरल इंट्री सिविल सेवकों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा लाएगी, जिससे उनकी कार्यशैली में गुणात्मक परिवर्तन होगा।  
    • इससे पहले भी विभिन्न निकायों के प्रमुखों के रूप में लैटरल इंट्री के माध्यम से नंदन निलेकणी, अरविंद सुब्रमण्यन, रघुराम राजन, मोंटेक सिंह अहलुवालिया आदि के सफल उदाहरण मौजूद हैं।   
    • यह भी संभावना है कि लैटरल इंट्री से आए सिविल सेवकों के कार्य निष्पादन में राजनीतिक हस्तक्षेप कम होगा।   

    सिविल सेवा में लैटरल इंट्री के समक्ष चुनौतियाँ-   

    • इससे नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिल सकता है।   
    • पारदर्शिता में कमी के चलते नियुक्तियों में भ्रष्टाचार बढ़ सकता है।  
    • बाहरी विशेषज्ञों को सिविल सेवकों की तुलना में ज़मीनी स्तर का अनुभव बहुत कम होता है। अतः संभव है कि यथास्थिति के आधार पर नीति-निर्माण की जगह केवल किताबी ज्ञान पर आधारित नीतियों का निर्माण किया जाए।   
    • उच्च स्तरीय निर्णयकारी पदों पर लैटरल इंट्री से नीति-निर्माण और उनके क्रियान्वयन के बीच सामंजस्य में कमी आने की संभावना है।  

    सिविल सेवाओं में विशेषज्ञता निश्चित तौर पर समय की मांग है। लैटरल इंट्री के लाभ और इससे जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए यह भी किया जा सकता है कि केवल मिशन मोड परियोनाओं के लिये विशषज्ञों की लैटरल इंट्री की व्यवस्था हो, जैसे- आधार प्रोजेक्ट के लिये नंदन निलेकणी। साथ ही नियुक्तियों में पारदर्शिता के लिये दूसरे प्रशासनिक आयोग की 10वीं रिपोर्ट की सिफारिश के अनुसार सुपरिभाषित भर्ती एवं सेवा नियम होने चाहिये।

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