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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    गहराते जल संकट की समस्या से छुटकारा पाने तथा जल-स्रोतों के रख-रखाव तथा वितरण के लिये क्या जल का निजीकरण करना एक कारगर विकल्प होगा? टिप्पणी करें।

    20 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • जल की महत्ता तथा उससे जुड़े संकट का संक्षिप्त विवरण दें।
    • जल के निजीकरण को समझाएँ।
    • जल के निजीकरण के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करें।
    • जल के निजीकरण के विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करें।
    • निष्कर्ष

    जल जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। जल की महत्ता को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने इसे व्यक्ति के मानवाधिकार के रूप में मान्यता दी है। हमारी धरती पर जल संकट का कारण अक्सर कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, उचित संस्थानों की कमी, नौकरशाही की जड़ता और मानव क्षमता एवं भौतिक बुनियादी ढाँचे में निवेश की कमी है। 

    जल संकट की समस्या से छुटकारा पाने के लिये विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल-स्रोतों के रख-रखाव और वितरण की ज़िम्मेदारी निजी क्षेत्र को सौंप दी जाए तो इससे कुछ हद तक निजात मिल सकती है। इसके पीछे तर्क यह है कि पानी का आर्थिक मूल्य तय कर इसका प्रबंधन किया जा सकता है। एक और तर्क यह भी है कि राज्य आधारित जलापूर्ति प्रणाली असफल साबित हो रही है, अतः इसके समाधान के रूप में बाज़ार आधारित या निजी क्षेत्र की भागीदारी कारगर साबित हो सकती है।

    जल के निजीकरण के पक्ष में तर्क-

    • जलोपचार के द्वारा इससे जल की गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
    • लोगों तक जल की उपलब्धता सुचारु तरीके से सुनिश्चित की जा सकेगी।
    • नालियों तथा सीवर प्रणाली को व्यवस्थित करने के क्षेत्र में निवेश में वृद्धि होगी तथा जल की गुणवत्ता में सुधार के लिये बेहतर तकनीकों का विकास किया जा सकेगा। 
    • सरकार की आय में वृद्धि होगी।
    • जल का अपव्यय भी रोका जा सकेगा। 


    जल के निजीकरण के विपक्ष में तर्क- 

    • निजी संचालकों द्वारा गोपनीयता बरतने के कारण इनकी नीतियों और कार्यशैली में पारदर्शिता में कमी आएगी।
    • निजी कंपनियों के लाभ और उपभोक्ताओं के लाभ के बीच हितों के टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
    • निजी कंपनियाँ अपने लाभ को बढ़ाने के लिये जल की कीमतों में वृद्धि करेंगी, जिसके कारण निर्धन वर्ग को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
    • जल के निजीकरण से सार्वजनिक जवाबदेहिता समाप्त हो जाएगी। 

    भारत जैसे विशाल देश के लिये, जहाँ एक बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे गुज़ारा करती है, वहाँ जल के निजीकरण को तर्कसंगत नहीं माना जा सकता है। किंतु फिर भी जल के कुप्रबंधन की समस्या को सुलझाना तथा सभी को पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ जल आपूर्ति करनी है तो नगरपालिकाओं को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ साझेदारी करनी चाहिये क्योंकि ये कंपनियाँ निजी क्षेत्र की कंपनियों की तुलना में अधिक संवेदनशील, विश्वसनीय और लागत प्रभावी होती हैं।

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