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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    IPC की धारा 497 और संविधान में निहित समानता के उपबंधों की संगतता पर विचार कीजिये। क्या बदलते सामाजिक परिवेश में इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है? तर्कों के आधार पर अपने विचारों की पुष्टि करें।

    03 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • सविधान में निहित समानता के उपबंधों तथा IPC की धारा 497 के बारे में लिखें। 
    • दोनों में निहित अंतर्विरोध को स्पष्ट करें। 
    • इसकी प्रासंगिकता पर विचार करते हुए निष्कर्ष लिखें।

    हमारे संविधान में अनुच्छेद 14 के तहत विधि के समक्ष समता  तथा अनुच्छेद 15 के तहत लैंगिक समानता को स्थापित किये जाने  की बात की गई है। आईपीसी की धारा 497 का संबंध व्याभिचार से है। इस कानून के अनुसार यदि कोई महिला अपने पति की सहमति के बगैर किसी अन्य व्यक्ति से संबंध बनाती है तो उसे दोषी मानते हुए 5 वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है। यह दो आधारों पर संविधान में निहित समानता के उपबंधों के विरुद्ध है-

    • प्रथम यह कि इसमें स्त्री-पुरुष दोनों की सहमति से बनने वाले संबंध के लिये केवल पुरुष को ही दोषी बनाया गया है। एक ही अपराध के लिये एक व्यक्ति को दंड दिया जाना और दूसरे को मुक्त किया जाना संविधान की मूलभूत भावना के विरुद्ध है
    • इसके अलावा  पुरुष की सहमति से संबंध बनाए जाने का प्रावधान पितृसत्तात्मक सोच का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि पति द्वारा संबंध बनाए जाने की स्थिति में पत्नी से सहमति  लिये जाने के प्रावधान नहीं है। यहां भी लैंगिक आधार पर असमानता को देखा जा सकता है।

    प्रथम स्थिति में दी गई छूट के लिये संविधान की धारा 15(3) को आधार बनाया जा सकता है, जिसमें बच्चों तथा स्त्रियों के लिये विशेष प्रावधान बनाने की बात की गई है। पारंपरिक पितृसत्तात्मक ढांचा तथा आर्थिक रुप से कमजो़र स्थिति के कारण हमारे समाज में स्त्रियों की स्थिति कमजोर है। अतः सामाजिक कारणों से ऐसे अपराधों में उद्दीपन का कार्य पुरुष अधिक आसानी से करता है। यहाँ एक तर्क यह भी दिया जा सकता है कि व्याभिचार के लिये दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक है, ऐसे में केवल पुरुष को दोषी मानने से अपराध में कमी आएगी।

    वास्तव में देखा जाए तो हमारी सामाजिक संरचना पिछले दो दशकों में काफी तेजी़ से बदली है। महिलाओं की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति में तेजी़ से वृद्धि हुई है और शहरों में उनकी सुदृढ़ स्थिति को देखा जा सकता है। ऐसे में वर्तमान समय में महिला ऐसे कानूनों का दुरुपयोग कर सकती है। इसके अलावा पति-पत्नी मिलकर भी इसमें लोगों को हनी ट्रैप में फसाँ सकते हैं।  साथ ही केवल पति की सहमति का प्रावधान भी नारी अस्मिता के विरुद्ध है। अतः इस कानून पर विचार करना आज की आवश्यकता है।

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