इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    आईपीसी की धारा 377 पर प्रकाश डालें। क्या बदलती सामाजिक परिस्थितियों में इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है?

    11 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • आईपीसी की धारा 377 के बारे  में लिखें।
    • वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता पर विचार करें।

    IPC की धारा 377 का संबंध अप्राकृतिक शारीरिक संबंधों से है। इसके अनुसार यदि दो लोग आपसी सहमति अथवा असहमति से आपस में अप्राकृतिक संबंध बनाते हैं और दोषी करार दिए जाते हैं तो उनको 10 वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सजा़ हो सकती है। अधिनियम में इस अपराध को संज्ञेय तथा गैर-जमानती अपराध माना गया है।

    यद्यपि व्यक्ति की चयन की स्वतंत्रता को महत्त्व देते हुए 2009 में हाईकोर्ट ने आपसी सहमति से एकांत में बनाए जाने वाले समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने का निर्णय दिया था। किंतु 2013 में सर्वोच्च न्यायालय  द्वारा समलैंगिकता की स्थिति में उम्रकैद के प्रावधान को पुनः बहाल करने का फैसला दिया गया।

    वर्तमान समय में भौतिकता के प्रभाव से जहाँ संबंधों की स्थिति जटिल हुई है, वहीं चयन की स्वतंत्रता की मांग भी बढ़ी है। आज लोग अपनी स्वतंत्रता के मामले में सजग है। ऐसे में निम्नलिखित आधारों पर इस कानून पर विचार किया जा सकता है-

    • सामान्य रूप में देखा जाए तो यह कानून ना केवल काल की दृष्टि से पुराना है बल्कि अतार्किक भी है जो व्यक्ति के चयन की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करता है।  
    • हमारे न्यायालय में भी जीवन की स्वतंत्रता के तहत चयन के अधिकार को आधारभूत माना है। 
    • साथ ही मिल के हानि सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति की स्वतंत्रता पर तभी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, जब उसके कार्यों से अन्य व्यक्तियों को हानि पहुंचती हो। व्यवहार में देखा जाए तो एकांत में  आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध का बनाया जाना समाज के अन्य लोगों के हितों को प्रभावित नहीं करता। 
    • यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 19( 2) के तहत युक्ति-युक्त प्रतिबंधों में नैतिकता के आधार पर कुछ लोग इसका विरोध कर सकते हैं किंतु नैतिकता की अवधारणा अपने आप में वस्तुनिष्ठ नहीं है और इस आधार पर समाज के एक वर्ग के लोगों की सामान्य  इच्छाओं का विरोध अनुचित है। 
    • इसके अलावा दंड के आधार पर किसी व्यक्ति की चयन कि स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करना धारणीय भी नहीं है। इसके लिये व्यक्ति के अंदर ऐसे मूल्यों का निर्माण किया जाना ज्यादा प्रभावी होगा कि वे स्वयं ही ऐसे कार्यों में शामिल न हों।

    किंतु इस कानून पर विचार करते समय इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि आपराधिक कृत्यों से इन्हें बाहर किये जाने से इनका दुरुपयोग ना हो। उदाहरण के लिये ऐसा किये जाने से समलैंगिकता के आधार पर बलात्कार तथा सार्वजनिक स्थानों पर  अश्लील माने जाने वाले कृत्यों की अभिव्यक्ति की घटनाएँ बढ़ सकती है। इसके अलावा समलैंगिक वर्ग के लोग  अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करने के लिये आक्रमक उपाय भी अपना सकते हैं।

    स्पष्ट है कि चयन की स्वतंत्रता और समाज के हितों के मध्य संतुलन साधते हुए इस कानून पर विचार किया जाना आज की आवश्यकता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2