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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    "अपशिष्ट जल (Wastewater) एक समस्या नहीं बल्कि बहुमूल्य परिसंपत्ति है" जिसका प्रयोग सतत् विकास के लिये किया जाना चाहिये।" भारत में अपशिष्ट जल का कैसे प्रयोग किया जाए कि यह एक बहुमूल्य परिसंपत्ति सिद्ध हो सके?

    24 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    तीव्र जनसंख्या वृद्धि, त्वरित शहरीकरण और आर्थिक विकास के कारण ताजे पानी के अधिकांश स्रोत प्रदूषित होने लगे एवं अपशिष्ट जल की मात्रा में तीव्र वृद्धि हुई। वैश्विक स्तर पर, कुल उत्पन्न अपशिष्ट जल का 80% से अधिक बिना किसी उपचार के पुनः पारिस्थितिकी तंत्र में चला जाता है। इससे हैजा, पेचिश, टायफाइड और पोलियो जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। अतः जल-प्रदूषण की समस्या से निपटना आवश्यक है।

    हालाँकि जल प्रदूषण को पूर्णतया समाप्त कर देना संभव नहीं है लेकिन जल प्रदूषण को इस स्तर तक कम किया जा सकता है जो सामाजिक रूप से स्वीकार्य हो एवं पारिस्थितिकी तंत्र के लिये घातक न हो। निम्नलिखित प्रबंधन रणनीतियों के माध्यम से अपशिष्ट जल का उपयोग एक संसाधन के रूप में कर सतत् विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है-

    • लगभग 39% सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ‘नदियों में जल-डिस्चार्ज पर पर्यावरण संरक्षण नियमों’ के अनुरूप नहीं हैं। आधुनिक तकनीक के माध्यम से इस प्रकार के जल का पर्याप्त उपचार कर उसका प्रयोग पेय और गैर-पेय उपयोग दोनों के लिये किया जा सकता है।
    • राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर, जल प्रदूषण निवारण नीतियों को ऐसी गैर-जल नीतियों के साथ एकीकृत करना चाहिये जो जल की गुणवत्ता को प्रभावित करती है, जैसे- कृषि, भूमि उपयोग प्रबंधन, व्यापार, उद्योग, ऊर्जा और शहरी विकास।
    • जल प्रदूषण को दण्डनीय अपराध घोषित करना चाहिये एवं ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ (Polluter pay principle) को प्रभावी रूप में लागू करने पर विचार करना चाहिये।
    • जल संसाधनों के संरक्षण की नीतियों, योजनाओं एवं रणनीतियों में सरकार उद्योग एवं जनता की सक्रिय भागीदारी होनी चाहिये। स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण समुदाय को निर्णय लेने और उन्हें उपयुक्त अधिकारियों के बीच प्रसारित करने में सक्षम बनाता है एवं राजनीतिक प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करता है।
    • जल प्रदूषण पर कर लगाया जाना चाहिये एवं प्रदूषण प्रबंधन उपकरणों की स्थापना के लिये सब्सिडी, कर छूट, सस्ते ऋण आदि के माध्यम से प्रोत्साहन देना चाहिये।
    • कृषि में पर्यावरण अनुकूल आगतों, जैसे-जैव उर्वरकों एवं प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रयोग, वस्त्र उद्योग में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग तथा उद्योगों में तकनीकी प्रयासों से प्रदूषण प्रबंधन किया जाना चाहिये।
    • शहरी क्षेत्रों में उत्पन्न अपशिष्ट जल का उपयोग उप-शहरी क्षेत्रों, उद्योगों, सिंचाई एवं उपचार के पश्चात घरेलू अनुप्रयोगों के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।

    इस प्रकार, यदि तकनीक के प्रयोग द्वारा इसके उपचार एवं अपशिष्ट जल के युक्ति संगत प्रयोग से यह अपशिष्ट जल समस्या के स्थान पर परिसंपत्ति सिद्ध होगा।

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