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  • 05 Jul 2025 निबंध लेखन निबंध

    दिवस 18

    प्रश्न 1. सभ्यताएँ मूल्यों पर निर्मित होती हैं; संस्कृति के बिना उनका पतन हो जाता है। (1200 शब्द)

    प्रश्न 2. सोशल मीडिया समाज का दर्पण और आवर्द्धक दोनों है। (1200 शब्द)

    1. सभ्यताएँ मूल्यों पर निर्मित होती हैं; संस्कृति के बिना उनका पतन हो जाता है। (1200 शब्द)

     परिचय:

    रोम साम्राज्य के पतन की अवस्था में, रोम शहर अपने भव्य एम्फीथिएटरों, जलसेतुओं और महलों के साथ चमक बिखेरता था। फिर भी इस वैभव के पीछे नैतिक ढाँचा बिखर चुका था। नागरिकों में उदासीनता छाने लगी थी, नेतृत्व भ्रष्ट होता गया और अनुशासन तथा नागरिक कर्त्तव्य जैसे गुण विलुप्त होते गए। जैसा कि इतिहासकार एडवर्ड गिबन ने उल्लेख किया है, रोम साम्राज्य का पतन केवल बाह्य आक्रमणकारियों के कारण नहीं हुआ, बल्कि मूल्यों के आंतरिक क्षय के परिणामस्वरूप हुआ। इसका पतन एक शाश्वत चेतावनी के रूप में कार्य करता है: जब कोई सभ्यता अपनी सांस्कृतिक और नैतिक नींव को त्याग देती है, तो उसका पतन अपरिहार्य हो जाता है।

    इतिहास में रोम के पतन से, जिसने अपने नागरिक गुणों को खो दिया, से लेकर मुगल साम्राज्य के पतन तक, जिसने अपनी बहुलवादी परंपराओं को भुला दिया। सभ्यताएँ तब नहीं ढही जब बाह्य शत्रुओं ने आक्रमण किया, बल्कि तब ढही जब वे अंदर से विक्षिप्त पड़ गईं

    इतिहास ऐसे अनुस्मारकों से भरा पड़ा है। सभ्यताएँ केवल सेनाओं, ढाँचागत सुविधाओं या अर्थव्यवस्थाओं की शक्ति पर नहीं, बल्कि मूल्यों और संस्कृति की स्थायी बुनियाद पर खड़ी होती हैं। एक सभ्यता मात्र संगठित शासन प्रणाली नहीं होती, यह एक नैतिक और सांस्कृतिक पारिस्थितिकी तंत्र होती है। न्याय, सत्य और करुणा जैसे मूल्य समाज के नैतिक दिशा-निर्देशक के रूप में कार्य करते हैं, जबकि संस्कृति कला, परंपरा और सामूहिक स्मृति के माध्यम से किसी समुदाय को उसकी पहचान प्रदान करती है।

    मुख्य भाग: 

    सभ्यता, मूल्यों और संस्कृति के बीच सहजीवी संबंध 

    • सभ्यताएँ भौतिक या राजनीतिक उपलब्धियों से कहीं अधिक हैं - वे नैतिक और सांस्कृतिक पारिस्थितिकी तंत्र हैं
    • संस्कृति पहचान को आकार देती हैं, संधारणीयता की भावना प्रदान करती है और सामूहिक व्यवहार का मार्गदर्शन करती है।
    • मूल्य स्थिरता, न्याय और प्रगति के लिये आवश्यक नैतिक दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण:
      • सिंधु घाटी सभ्यता - साझा नागरिक मूल्यों के कारण संगठित, समतावादी और शांतिपूर्ण।
      • प्राचीन ग्रीस - दार्शनिक, लोकतांत्रिक और कलात्मक मूल्यों के कारण फला-फूला।
      • भारतीय सभ्यता - धर्म, सहिष्णुता और बहुलवाद में गहराई से निहित है।

    सभ्यताओं के निर्माण और स्थायित्व में मूल्यों की भूमिका 

    • सामाजिक सामंजस्य: साझा नैतिक मूल्य विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोगों को एक दूसरे से जोड़ते हैं।
    • न्याय और शासन: नैतिक सिद्धांत विधिक, प्रशासन और निष्पक्षता का मार्गदर्शन करते हैं (उदाहरण के लिये, अशोक के शिलालेख)।
    • सहानुभूति और सहयोग: सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना, संघर्ष को कम करना।
    • बौद्धिक स्वतंत्रता और जिज्ञासा: ज्ञान और नवाचार को प्रोत्साहित करता है (उदाहरण के लिये नालंदा, बगदाद का हाउस ऑफ विज़डम)।
    • उदाहरण: 
      • अशोक के अधीन मौर्य साम्राज्य: कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने कल्याण, करुणा और नैतिक शासन पर ध्यान केंद्रित करते हुए बुद्ध के मूल्यों को अपनाया।

    सभ्यताओं को जीवन देने में संस्कृति की भूमिका 

    • भाषा, कला, साहित्य और अनुष्ठान एक साझा चेतना का निर्माण करते हैं।
    • संस्कृति भौतिक प्रगति से परे आध्यात्मिक, भावनात्मक और कलात्मक समृद्धि को बढ़ावा देती है।
    • सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ इतिहास को संरक्षित करती हैं, उत्पीड़न का विरोध करती हैं और पहचान को पुनर्जीवित करती हैं
    • उदाहरण: 
      • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन: भारतीय संस्कृति, खादी, स्थानीय कला और गांधीवादी मूल्यों के पुनरुत्थान ने लोगों को एकजुट किया।
      • पुनर्जागरण यूरोप: शास्त्रीय संस्कृति की पुनः खोज ने मानवतावाद और आधुनिक यूरोप को जन्म दिया।

    सभ्यताओं का पतन: जब संस्कृति और मूल्य क्षीण हो जाते हैं 

    • जब मूल्यों का स्थान लालच, अन्याय और भौतिकवाद ले लेता है तो पतन शुरू हो जाता है।
    • नैतिक पतन से राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और सामाजिक अशांति उत्पन्न होती है।
    • उदाहरण: रोम साम्राज्य: आंतरिक भ्रष्टाचार, नैतिक पतन और नागरिक मूल्यों के विघटन के कारण ध्वस्त हो गया।
    • मुगल साम्राज्य (अंतिम चरण): अपव्यय, उत्पीड़न और सांस्कृतिक समावेशिता की हानि के कारण पतन हुआ।
    • आधुनिक उदाहरण:
      • घृणास्पद भाषण, सत्य का अभाव, बढ़ती असमानता - वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिये खतरा हैं।
      • सांस्कृतिक एकरूपता और उपभोक्तावाद स्वदेशी मूल्यों को नष्ट कर रहे हैं

    आधुनिक विश्व में प्रासंगिकता 

    • वैश्वीकरण ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को तीव्र किया है, लेकिन सांस्कृतिक क्षरण भी हुआ है
    • भारत का सामर्थ्य विविधता, बहुलवाद और मूल्यों की निरंतरता में निहित है
    • संवैधानिक नैतिकता: प्राचीन भारतीय मूल्यों - स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व की आधुनिक अभिव्यक्ति।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 मूल्य-आधारित और संस्कृति-एकीकृत शिक्षा पर ज़ोर देती है ।
    • उदाहरण: 
      • योग और आयुर्वेद - वैश्विक स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करने वाली भारतीय संस्कृति।
      • सॉफ्ट पॉवर: सांस्कृतिक कूटनीति (जैसे, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस)।
      • विश्व के विभिन्न भागों में लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण से मानव अधिकारों और सभ्यतागत स्थिरता को खतरा है।

    आगे की राह 

    • शिक्षा, समुदाय और मीडिया के माध्यम से संस्कृति को संरक्षित और बढ़ावा देना
    • नैतिक नेतृत्व और मूल्य-आधारित शासन पर ज़ोर देना।
    • सांस्कृतिक संस्थाओं, विरासत संरक्षण और समावेशी आख्यानों में निवेश करना।
    • युवाओं को नागरिक मूल्यों, सांस्कृतिक गौरव और वैश्विक सहानुभूति से सशक्त बनाना।

    निष्कर्ष:

    सभ्यता का विकास केवल धन संचय या तकनीकी उन्नति नहीं है — यह नैतिक स्मृति की निरंतरता और पीढ़ियों के बीच सांस्कृतिक चेतना का संचरण है। एक समाज जो अपनी नैतिक दिशा भूल जाता है और अपने सांस्कृतिक स्व को खो देता है, वह अस्तित्व में तो रह सकता है, लेकिन वह सभ्यता नहीं रह पाता। जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने चेतावनी दी थी, "कोई भी सभ्यता लंबे समय तक टिक नहीं सकती, जो नैतिक शक्ति पर आधारित न हो।" 

    भारत की यात्रा में गांधी की नैतिक राजनीति, टैगोर का सांस्कृतिक बहुलवाद और अंबेडकर की सामाजिक न्याय एवं नैतिक लोकतंत्र की दृष्टि ने एक विविध समाज के लिये नैतिक आधारशिला का कार्य किया है। ये हमें स्मरण कराते हैं कि मूल्य और संस्कृति सजावटी नहीं हैं — वे अस्तित्वपरक हैं। सभ्यता को बचाए रखने के लिये, हमें बुनियादी ढाँचे के निर्माण के साथ-साथ विवेक का भी उतना ही गहन पोषण करना होगा।


    2. सोशल मीडिया समाज का दर्पण और आवर्द्धक दोनों है। (1200 शब्द)

    परिचय:

    वर्ष 2020 में, जब पूरी दुनिया महामारी से जूझ रही थी, एक भारतीय प्रवासी मज़दूर का घर लौटने की मदद की विनती करता एक साधारण ट्विटर पोस्ट राष्ट्रीय ध्यान का केंद्र बन गया। कुछ ही घंटों में वह पोस्ट सोशल मीडिया पर फैल गया, जिससे सहायता के साथ-साथ सरकार को भी कार्रवाई के लिये बाध्य होना पड़ा। उस क्षण में सोशल मीडिया ने लाखों अदृश्य पीड़ाओं को उज़ागर किया और समाज की गहरी असमानताओं को हमारे सामने रखा। लेकिन इसी के साथ इसने सहानुभूति को भी बढ़ाया, अजनबियों को एकजुटता में एक साथ लाया।

    यही दोहरा चरित्र आज सोशल मीडिया की पहचान है। यह सिर्फ संचार का माध्यम नहीं है — यह एक ऐसा मंच है जहाँ समाज स्वयं को देखता है और कभी-कभी स्वयं को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता है। यह हमारी उपलब्धियों और चिंताओं, एकता और विभाजन, गुणों और अवगुणों को प्रतिध्वनित करता है।

    एक दर्पण के रूप में, यह सामाजिक चेतना को प्रतिबिंबित करता है। एक आवर्द्धक के रूप में, यह सत्य और विकृति, दोनों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत कर सकता है। 

    मुख्य भाग: 

     समाज के दर्पण के रूप में सोशल मीडिया 

    • वास्तविक समय की सामाजिक चेतना को दर्शाता है:
      • जनमत, सामाजिक भावनाओं और शिकायतों पर प्रकाश डालता है।
      • उदाहरण के लिये, #JusticeforNirbhaya, #BlackLivesMatter, किसान विरोध प्रदर्शन, NEET परीक्षा आक्रोश।
    • विविधता और समावेशिता को दर्शाता है:
      • उपेक्षित जनों की आवाज़ों, क्षेत्रीय संस्कृतियों और भाषाओं को प्रतिबिंबित करता है।
      • ट्विटर(एक्स), इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म ग्रामीण मुद्दों, आदिवासी कला, LGBTQ+ कहानियों को सामने लाते हैं।
    • दस्तावेज़ परिवर्तन और निरंतरता:
      • परंपराओं, त्योहारों और सामाजिक अनुष्ठानों का उत्सव मनाता है।
      • साथ ही बदलती लैंगिक भूमिकाओं, युवा संस्कृति और डिजिटल उद्यमिता को भी प्रतिबिंबित करता है।

    समाज को आगे बढ़ाने के रूप में सोशल मीडिया

    • सामाजिक आंदोलनों को बढ़ावा:
      • विरोध प्रदर्शन और लोकतांत्रिक सहभागिता को उत्प्रेरित करता है।
      • उदाहरण के लिये अरब स्प्रिंग, मीटू कैम्पेन, CAA विरोध प्रदर्शन, नागरिकों द्वारा कोविड राहत प्रयास।
    • ध्रुवीकरण और प्रतिध्वनि कक्षों को बढ़ाता है:
      • एल्गोरिदम अतिवादी विषय-वस्तु को आगे बढ़ाते हैं; पुष्टिकरण पूर्वाग्रह बढ़ता है।
      • घृणास्पद भाषण, राजनीतिक ट्रोलिंग, वैचारिक अलगाव का उदय।
    • गलत सूचना और फर्जी खबरें फैलाना:
      • कोविड वैक्सीन संबंधी गलत सूचना, डीपफेक और चुनावी षड्यंत्र।
      • वायरल अफवाहों के कारण भारत में व्हाट्सएप पर लिंचिंग की घटनाएँ।
    • युवा मनोविज्ञान पर प्रभाव:
      • नार्सिसिज़्म, साइबरबुलिंग और शारीरिक छवि से जुड़ी समस्याएँ फिल्टरों और मान्यता संस्कृति (validation culture) द्वारा और भी अधिक बढ़ जाती हैं।

    भारतीय लोकतंत्र, शासन और समाज पर प्रभाव 

    • शासन और पारदर्शिता:
      • शिकायत निवारण, ई-गवर्नेंस (MyGov, आरोग्य सेतु, स्वच्छ भारत फीडबैक) के लिये उपयोग किया जाता है।
    • चुनावी प्रभाव:
      • राजनीतिक अभियान, लक्षित विज्ञापन, मतदाता लामबंदी (इसमें हेरफेर भी शामिल है)।
      • डीपफेक और आईटी सेल के दुष्प्रचार पर चिंता।
    • नागरिक समाज एवं सक्रियता:
      • गैर सरकारी संगठन और व्यक्ति जागरूकता के लिये इसका उपयोग करते हैं (मासिक धर्म स्वच्छता, जलवायु परिवर्तन, RTI)।
    • न्यायपालिका और जनता का दबाव:
      • जनता की राय मुकदमों की धारणा को प्रभावित करती है (उदाहरण के लिये सुशांत सिंह राजपूत मामला)।
      • नैतिक मुद्दे - मीडिया द्वारा परीक्षण बनाम उचित प्रक्रिया।

     चुनौतियाँ और नैतिक दुविधाएँ 

    • डेटा गोपनीयता उल्लंघन (कैम्ब्रिज एनालिटिका, पेगासस)।
    • युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य संकट - डोपामाइन फीडबैक लूप्स।
    • निगरानी पूंजीवाद - उपयोगकर्त्ता ही उत्पाद बन जाते हैं।
    • एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह - अल्पसंख्यक आवाजों को दबाया जा सकता है या गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है।

    आगे की राह 

    • डिजिटल साक्षरता और आलोचनात्मक सोच:
      • ऑनलाइन सामग्री को परिभाषित करने और उस पर प्रश्न उठाने के बारे में शिक्षित करना।
    • सुदृढ़ नियामक ढाँचे:
      • IT नियम, 2021; वैश्विक नैतिक मानकों की आवश्यकता।
      • एल्गोरिदम में पारदर्शिता, प्लेटफार्मों के लिये जवाबदेही।
    •  रचनात्मक उपयोग को प्रोत्साहित करना:
      • नागरिक तकनीक, डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं और सांस्कृतिक आख्यानों को बढ़ावा देना।
      • सामाजिक परिवर्तन में प्रभावशाली व्यक्तियों की भूमिका।
      • सोशल मीडिया को न केवल यह प्रतिबिंबित करना चाहिये कि हम कौन हैं, बल्कि यह भी बताना चाहिये कि हम क्या बनना चाहते हैं।

    निष्कर्ष : 

    सोशल मीडिया समाज में पहले से मौज़ूद चीज़ों को दर्शाता है जिसमें हमारी आकांक्षाएँ, चिंताएँ, पूर्वाग्रह और संभावनाएँ शामिल हैं। यह विभाजन या प्रगति का स्रोत नहीं है, बल्कि एक ऐसा साधन है जो उन मूल्यों को बढ़ाता है जिन्हें हम सामूहिक रूप से बढ़ावा देना चाहते हैं। जैसे एक कैमरा किसी परिदृश्य को कैद करता है और कभी-कभी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है, वैसे ही सोशल मीडिया अपने इस्तेमाल के आधार पर उसे विकृत या स्पष्ट कर सकता है।

    इसकी दोहरी प्रकृति दर्पण और आवर्द्धक दोनों के रूप में नागरिकों, संस्थाओं और सरकारों पर साझा ज़िम्मेदारी डालती है। हमें सचेत रूप से तय करना होगा कि हम किस प्रकार का प्रतिबिंब देखना चाहते हैं इसे विकृत और विभाजित होने दें या इसका बुद्धिमानी से उपयोग हमारे लोकतांत्रिक संवाद और सांस्कृतिक अखंडता को गहरा करने के लिये करें। जैसा कि क्रिश्चियन लूस लैंग ने चेतावनी दी थी, कि "प्रौद्योगिकी एक उपयोगी सेवक है, लेकिन एक खतरनाक स्वामी भी।"

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