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भारत का कार्बन बाज़ार

  • 30 Aug 2024
  • 30 min read

यह एडिटोरियल 29/08/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Establishing a carbon market” लेख पर आधारित है। इसमें भारत द्वारा PAT योजना के तहत ऊर्जा दक्षता लक्ष्यों से लेकर अपने स्वयं के कार्बन बाज़ार की स्थापना करने तक के संक्रमण पर प्रकाश डाला गया है, जहाँ देश ने, विशेष रूप से लोहा एवं इस्पात जैसे ‘हार्ड-टू-अबेट’ उद्योगों में, जलवायु लक्ष्यों को अपनी विकास प्राथमिकताओं के साथ संतुलित किया है।

प्रिलिम्स के लिये:

प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार योजना, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, कार्बन क्रेडिट, कार्बन टैक्स, विश्व बैंक की कार्बन मूल्य निर्धारण 2024 की स्थिति और रुझान, कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, कार्बन पदचिह्न, भारत का औद्योगिक क्षेत्र, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, विश्व आर्थिक मंच। 

मेन्स के लिये:

वर्तमान में भारत में कार्बन बाज़ार से संबंधित सरकारी पहल, कार्बन टैक्स लागू करने के लाभ, भारत में कार्बन कराधान से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ।

विश्व के तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में भारत को अपने जलवायु उद्देश्यों को पूरा करने के साथ-साथ अपनी विकासात्मक आकांक्षाओं को बनाए रखने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वित्त मंत्री द्वारा हाल ही में ‘हार्ड-टू-अबेट’ (hard to abate) उद्योगों को ऊर्जा दक्षता लक्ष्यों से उत्सर्जन लक्ष्यों की ओर स्थानांतरित करने की घोषणा देश की नीति में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को परिलक्षित करती है। यह बदलाव मौजूदा प्रदर्शन, उपलब्धि एवं व्यापार (Perform, Achieve, and Trade- PAT) योजना की सीमाओं को चिह्नित करता है, जो मुख्य रूप से सापेक्ष ऊर्जा दक्षता पर केंद्रित है।

भारतीय कार्बन बाज़ार (Indian Carbon Market) की स्थापना की दिशा में उठाया गया कदम एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। हालाँकि भारत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDCs) के तहत अनिवार्य उत्सर्जन कटौती के लिये बाध्य नहीं है, लेकिन यह कदम उत्सर्जन को कम करने के लिये बाज़ार आधारित समाधान की तलाश करने की मज़बूत प्रतिबद्धता का संकेत देता है। हालाँकि, एक ऐसे कार्बन बाज़ार के लिये, जो भारत की विकास प्राथमिकताओं के साथ प्रभावी रूप से संरेखित हो और साथ ही उत्सर्जन में पर्याप्त कमी सुनिश्चित करे, रणनीतिक और सूक्ष्म योजना-निर्माण की आवश्यकता होगी।

कार्बन बाज़ार (Carbon Market) क्या है?

  • परिचय: कार्बन बाज़ार, बाज़ार-आधारित तंत्र हैं, जिन्हें व्यक्तियों और संगठनों हेतु उनके कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के उद्देश्य से वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने के माध्यम से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • वे ‘कैप-एंड-ट्रेड’ (cap-and-trade) के सिद्धांत पर कार्य करते हैं, जहाँ सरकार या नियामक निकाय किसी विशिष्ट क्षेत्राधिकार के भीतर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की कुल मात्रा पर एक सीमा निर्धारित करते हैं।
  • कार्बन बाज़ार के प्रकार:
    • अनुपालन बाज़ार (Compliance Markets): ये बाज़ार अधिदेशात्मक (mandatory) होते हैं, जिनमें विनियमित निकायों द्वारा अपने उत्सर्जन की भरपाई के लिये कार्बन क्रेडिट खरीदना आवश्यक होता है। ये निकाय प्रायः बड़े औद्योगिक प्रदूषक होते हैं।
    • स्वैच्छिक बाज़ार (Voluntary Markets): ये बाज़ार स्वैच्छिक होते हैं, जो व्यक्तियों, व्यवसायों और संगठनों को विनियामक आवश्यकताओं से परे अपने उत्सर्जन की भरपाई के लिये कार्बन क्रेडिट खरीदने की अनुमति देते हैं।
      • भारत विकेंद्रीकृत स्वैच्छिक बाज़ार में कार्बन क्रेडिट का एक महत्त्वपूर्ण निर्यातक है, जहाँ इसका क्रेडिट प्रति वर्ष 200-300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच रहा और वर्ष 2022 में वैश्विक आपूर्ति में 17% हिस्सेदारी दर्ज की।

  • कार्बन क्रेडिट: वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी को दर्शाते हैं जिसका व्यापार किया जा सकता है। एक कार्बन क्रेडिट एक टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (tCO2e) को कम करने या उससे बचने के बराबर होता है।
    • कार्बन क्रेडिट विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से सृजित किया जा सकता है, जैसे:
      • ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को लागू करना, अपशिष्ट को कम करना, या नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण करना।
      • वनों की कटाई को रोकना या पुनः वनरोपण को बढ़ावा देना।

  • कार्बन टैक्स: ये ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर प्रत्यक्ष लेवी (direct levy) हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रदूषक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर कर का भुगतान करते हैं।
    • कार्बन करों से सरकार के लिये राजस्व उत्पन्न होता है, जिसका उपयोग जलवायु शमन एवं अनुकूलन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये या अन्य करों को कम करने के लिये किया जा सकता है।
  • कार्बन बाज़ारों में वैश्विक रुझान: अगस्त 2023 तक की स्थिति के अनुसार, विश्व भर में 74 कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्रों की पहचान की गई है, जो या तो कार्बन करों के रूप में या उत्सर्जन व्यापार योजनाओं (ETS) के रूप में क्रियान्वित हैं।
    • विश्व बैंक की वार्षिक ‘कार्बन मूल्य निर्धारण की स्थिति एवं रुझान 2024’ (State and Trends of Carbon Pricing 2024) शीर्षक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में कार्बन मूल्य निर्धारण राजस्व रिकॉर्ड 104 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।

भारत में कार्बन बाज़ार से संबंधित वर्तमान सरकारी पहलें कौन-सी हैं?

  • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना CCTS): विद्युत संरक्षण अधिनियम, 2001 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के आधार पर आगे बढ़ते हुए भारत ने कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों के व्यापार के माध्यम से GHG उत्सर्जन को कम करने के लिये CCTS की शुरुआत की।
    • CCTS का अनुपालन खंड वर्ष 2025-26 में शुरू होगा, जिससे गैर-बाध्यकारी निकायों (non-obligated entities) को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों (CCCs) में भाग लेने और व्यापार करने की अनुमति मिलेगी।
  • अन्य विद्यमान योजनाएँ: प्रदर्शन, उपलब्धि एवं व्यापार (PAT) योजना और नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) प्रणाली भारत में पहले से मौजूद बाज़ार-आधारित उत्सर्जन न्यूनीकरण योजनाएँ हैं।
  • निगरानी और सत्यापन: ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) और भारतीय कार्बन बाज़ार के लिये राष्ट्रीय संचालन समिति (National Steering Committee for Indian Carbon Market- NSCICM) कठोर निगरानी, रिपोर्टिंग एवं सत्यापन प्रक्रियाओं के माध्यम से कार्बन क्रेडिट की अखंडता सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं।

कार्बन कर (Carbon Tax) लागू करने के क्या लाभ हैं?

  • हरित नवाचार को प्रोत्साहित करना: कार्बन कर व्यवसायों के लिये अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु एक मज़बूत वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है, जिससे स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
    • भारत में, जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहा है, कार्बन कर इसकी गति को और तीव्र कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये, कार्बन कर लागू करने के बाद ब्रिटिश कोलंबिया में कर के दायरे में आने वाले क्षेत्रों के उत्सर्जन में 6.1% की कमी देखी गई।
    • भारत में, यह G20 देशों से अनुमानित रूप से 15% CO2 कमी (आधारभूत स्तर की तुलना में) के लिये भी ज़िम्मेदार होगा।
      • भारत में इसे लागू करने पर सौर, पवन और ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हो सकती है, जिससे भारत स्वच्छ प्रौद्योगिकी नवाचार में वैश्विक अग्रणी देश के रूप में स्थापित हो सकता है।
  • जलवायु अनुकूलन के लिये राजस्व सृजन: कार्बन करों से सरकारों के लिये जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों में निवेश करने हेतु पर्याप्त राजस्व उत्पन्न हो सकता है।
    • भारत में, जहाँ जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहले से ही गंभीर है, यह महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि कार्बन कर वर्ष 2030 में 35 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के हिसाब से सकल घरेलू उत्पाद को 1-2% तक बढ़ा सकता है।
    • इस धन को बाढ़ सुरक्षा अवसंरचना, सूखा-प्रतिरोधी कृषि और अन्य महत्त्वपूर्ण अनुकूलन उपायों के लिये निर्देशित किया जा सकता है, जिससे भारत की सबसे भेद्य/संवेदनशील आबादी को जलवायु प्रभावों से बचाने में मदद मिलेगी।
  • सार्वजानिक स्वास्थ्य में सुधार: जीवाश्म ईंधन के उपभोग को कम करने के रूप में, कार्बन कर से वायु गुणवत्ता और सार्वजानिक स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। यह भारत के लिये विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहाँ वायु प्रदूषण चिंता का प्रमुख विषय है।
    • IMF के नवीनतम ‘फिस्कल मॉनिटर’ के अनुसार, केवल G-20 देशों में ही प्रति टन CO2 पर 50 अमेरिकी डॉलर का कार्बन कर लगाने से वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 6,00,000 वायु प्रदूषण संबंधी असामयिक मौतों को रोका जा सकता है।
    • इसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य देखभाल लागत में कमी और उत्पादकता में सुधार से भारत की अर्थव्यवस्था को पर्याप्त बढ़ावा मिल सकता है, जो कार्बन कर के आरंभिक आर्थिक प्रभाव की भरपाई कर सकता है।
  • उपभोग संबंधी जागरूकता: कार्बन कर विभिन्न उत्पादों और सेवाओं के कार्बन फुटप्रिंट के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिससे उपभोक्ता व्यवहार प्रभावित हो सकता है।
    • भारत में, जहाँ जलवायु परिवर्तन के बारे में उपभोक्ता जागरूकता बढ़ रही है लेकिन अभी भी सीमित है, कार्बन कर एक शैक्षिक उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है।
    • कार्बन-गहन उत्पादों को अधिक महंगा बनाकर उपभोक्ताओं को अधिक संवहनीय विकल्पों की ओर प्रेरित किया जा सकता है।
    • इस बदलाव का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, जहाँ व्यवसायों को अधिकाधिक निम्न-कार्बन विकल्पों की पेशकश करने का प्रोत्साहन मिलेगा तथा समग्र रूप से संवहनीय अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण में तेज़ी आएगी।

भारत में कार्बन कराधान से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • उद्योगों पर आर्थिक प्रभाव: कार्बन कर लागू करने से भारत के औद्योगिक क्षेत्र, विशेष रूप से इस्पात, सीमेंट एवं वस्त्र जैसे ऊर्जा-गहन उद्योगों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
    • यद्यपि इससे स्वच्छ उत्पादन पद्धतियों को प्रोत्साहन मिलेगा, लेकिन इससे अल्पावधि में उत्पादन लागत की वृद्धि भी हो सकती है।
    • इससे इन क्षेत्रों में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर संभावित रूप से असर पड़ सकता है; इसलिये, पर्यावरणीय लक्ष्यों और आर्थिक विकास के बीच संतुलन के निर्माण के लिये सावधानीपूर्वक नीति तैयार करने की आवश्यकता होगी।
  • निम्न-आय वर्ग पर प्रतिगामी ‘नेचर-बर्डन’ (Nature-Burden): कार्बन कर प्रतिगामी सिद्ध हो सकते हैं और निम्न-आय वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, जो अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा ऊर्जा पर खर्च करते हैं।
    • चूँकि भारत 22.8 करोड़ के साथ दुनिया भर में सर्वाधिक गरीबी आबादी रखता है (Global MPI 2022), यह एक गंभीर चिंता का विषय है।
    • अकुशलता से डिज़ाइन किये गए कार्बन टैक्स से ऊर्जा और परिवहन लागत में वृद्धि हो सकती है, जिससे आर्थिक असमानता और भी बढ़ सकती है।
  • सीमित दायरा: विश्व आर्थिक मंच (WEF) के अनुसार, कार्बन कर जीवाश्म ईंधनों से उत्पन्न CO2 उत्सर्जन को कम करने में प्रभावी होते हुए भी सीमित दायरा रखते हैं।
    • वे मीथेन जैसी अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैसों की समस्या का समुचित समाधान कर सकने में सक्षम नहीं होंगे, जो कृषि गतिविधियों से बड़ी मात्रा में उत्सर्जित होती हैं।
    • उदाहरण के लिये, मीथेन गैस की तापन क्षमता CO2 से अधिक उच्च है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख योगदानकर्ता बन जाती है।
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को व्यापक रूप से संबोधित करने के लिये मीथेन और अन्य गैर-CO2 गैसों पर विशेष रूप से लक्षित अतिरिक्त नीतियों एवं विनियमनों की आवश्यकता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र की समस्या: भारत का विशाल अनौपचारिक क्षेत्र, जो कार्यबल के लगभग 90% भाग को नियोजित करता है, कार्बन कर के कार्यान्वयन के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
    • छोटे, अपंजीकृत व्यवसायों से होने वाले उत्सर्जन पर नज़र रखना एवं उस पर कर लगाना अत्यंत कठिन है और इससे अनजाने में ही उन्हें कार्बन कर से छूट मिल सकती है। इससे कार्बन कराधान की प्रभावशीलता कम हो सकती है और बाज़ार में विकृतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • अंतर्राज्यीय असमानताएँ: भारत का संघीय ढाँचा कार्बन कराधान में जटिलता की एक और परत का योग करता है।
    • विभिन्न राज्यों में औद्योगीकरण, ऊर्जा मिश्रण और राजकोषीय क्षमता का स्तर भिन्न-भिन्न है।
    • एक सार्वभौमिक राष्ट्रीय कार्बन कर झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे कोयला उत्पादक राज्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
  • ‘कार्बन लीकेज’: कार्बन लीकेज—यानी वह स्थिति जहाँ उत्सर्जन-गहन उद्योग ढीले पर्यावरणीय नियमों वाले क्षेत्राधिकारों में स्थानांतरित हो जाते हैं, एक गंभीर चिंता का विषय है।
    • भारत के लिये, जो ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल के माध्यम से वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने का प्रयास कर रहा है, यह जोखिम विशेष रूप से गंभीर है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निहितार्थ: चूँकि कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्रों को लागू करने वाले देशों की संख्या बढ़ रही है, भारत के निर्यात को कड़े पर्यावरणीय मानकों वाले बाज़ारों में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
    • उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ (EU) द्वारा प्रस्तावित कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM) भारतीय निर्यात पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
    • भारत के इस्पात क्षेत्र को यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा कर के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण यूरोपीय संघ को भारतीय निर्यात में 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक का नुकसान हो सकता है।

कार्बन बाज़ार की प्रभावी स्थापना के लिये भारत कौन-से उपाय कर सकता है?

  • चरणबद्ध कार्यान्वयन – क्रमिक हरितीकरण: भारत कार्बन कराधान के लिये चरणबद्ध दृष्टिकोण अपना सकता है, जहाँ आरंभ में निम्न दर रखी जाए और समय के साथ इसमें धीरे-धीरे वृद्धि हो।
    • इससे उद्योगों को अचानक आर्थिक आघातों का सामना किये बिना स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में अनुकूलन और निवेश की सुविधा मिलेगी।
    • सरकार ब्याज दरों में वृद्धि की स्पष्ट समय-योजना पेश कर सकती है, जिससे व्यवसायों को अपने निवेश की योजना बनाने में निश्चितता प्राप्त होगी।
    • विभिन्न क्षेत्रों को चरणबद्ध तरीके से कर व्यवस्था के अंतर्गत लाया जा सकता है, जहाँ शुरुआत सबसे अधिक कार्बन-गहन उद्योगों से की जा सकती है।
    • इस दृष्टिकोण से हरित ऊर्जा विकल्प और ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम जैसे सहायक बुनियादी ढाँचे और नीतियों के विकास के लिये भी समय मिलेगा।
  • सीमा कार्बन समायोजन – वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा को समतल करना: भारत कार्बन लीकेज संबंधी चिंताओं को दूर करने और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिये सीमा कार्बन समायोजन (BCAs) लागू करने पर विचार कर सकता है।
    • इसमें आयातित वस्तुओं पर उनके अंतर्निहित उत्सर्जन के आधार पर कार्बन मूल्य लागू करना शामिल होगा, जिससे घरेलू उत्पादकों के लिये समान अवसर उपलब्ध होंगे।
    • इस उपाय को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों और भारत की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतिबद्धताओं के अनुपालन हेतु सावधानीपूर्वक तैयार करने की आवश्यकता होगी।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रोत्साहन – नवाचार अंतराल को दूर करना: कार्बन कर को, विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिये, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये सुदृढ़ प्रोत्साहनों के साथ संयुक्त किया जा सकता है।
    • कर राजस्व का एक हिस्सा ‘स्वच्छ प्रौद्योगिकी अंगीकरण कोष’ (Clean Tech Adoption Fund) के वित्तपोषण के लिये किया जा सकता है, जो हरित प्रौद्योगिकी निवेश के लिये कम ब्याज दर पर ऋण या अनुदान प्रदान करेगा।
  • ‘कार्बन-कांशस’ उद्योगों के लिये ‘ग्रीन लेन’: एक स्तरीकृत विनियामक प्रणाली लागू करें जो कार्बन कटौती के महत्त्वपूर्ण प्रयास करने वाले उद्योगों के लिये शीघ्र अनुमोदन एवं प्रोत्साहन प्रदान करे।
    • इस ‘ग्रीन लेन’ (Green Lane) दृष्टिकोण में त्वरित पर्यावरणीय मंज़ूरी, सरकारी निविदाओं में प्राथमिकता और निम्न ब्याज दर पर हरित वित्तपोषण तक पहुँच शामिल हो सकती है।
    • कार्बन के प्रति जागरूक (Carbon-Conscious) व्यवसायों के लिये ठोस लाभ का सृजन कर, भारत विभिन्न क्षेत्रों में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण में तेज़ी ला सकता है।
    • यह उपाय आर्थिक विकास को पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के साथ संतुलित करता है और उद्योगों को कठोर नियम लागू किये बिना स्वेच्छा से कार्बन कटौती अपनाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • SMEs के लिये कार्बन क्रेडिट सहकारिता: लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) को सामूहिक रूप से कार्बन बाज़ार में भागीदारी हेतु सक्षम बनाने के लिये एक सहकारी ढाँचा स्थापित किया जाए।
    • यह प्रणाली छोटे व्यवसायों को अपने उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयासों को साझा करने, सामूहिक रूप से कार्बन क्रेडिट का सृजन करने और लाभ साझा करने की अनुमति देगी।
    • भारत SMEs के लिये प्रवेश की बाधा को कम कर कार्बन बाज़ार में सहभागिता को व्यापक बना सकता है और ज़मीनी स्तर पर उत्सर्जन में कमी लाने के लिये नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
  • घरेलू समाधानों के लिये ‘कार्बन टेक इनक्यूबेटर्स’: स्वदेशी कार्बन न्यूनीकरण प्रौद्योगिकियों के विकास पर केंद्रित विशेष इनक्यूबेटर्स का एक नेटवर्क लॉन्च किया जाए।
    • ये इनक्यूबेटर कार्बन कैप्चर, ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में नवोन्मेषी समाधानों पर कार्यरत स्टार्टअप्स के लिये वित्तपोषण, मार्गदर्शन एवं परीक्षण सुविधाएँ प्रदान करेंगे।
    • भारत स्वदेशी जलवायु प्रौद्योगिकी के एक सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देकर आयातित प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता कम कर सकता है और अपने अद्वितीय पर्यावरणीय एवं आर्थिक संदर्भ के अनुरूप समाधान तैयार कर सकता है।
  • हरित वित्त क्रांति: भारत अपने कार्बन बाज़ार को समर्थन देने के लिये एकसुदृढ़ हरित वित्त (Green Finance) पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित कर सकता है।
    • इसमें ग्रीन बॉण्ड, SSL (sustainability-linked loans) और जलवायु जोखिम बीमा उत्पाद शामिल हो सकते हैं।
    • निम्न-कार्बन परियोजनाओं में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिये एक राष्ट्रीय हरित निवेश बैंक (national green investment bank) की स्थापना की जा सकती है।
  • मौजूदा योजनाओं के साथ एकीकरण: नीतिगत सुसंगतता के लिये भारत के नए कार्बन बाज़ार को PAT और REC जैसी मौजूदा योजनाओं के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • इसमें विभिन्न प्रकार के क्रेडिट के बीच रूपांतरण तंत्र (conversion mechanisms) का निर्माण करना शामिल हो सकता है।
    • विभिन्न योजनाओं में तरलता (liquidity) बढ़ाने के लिये एक साझा ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म विकसित किया जा सकता है।
    • धीरे-धीरे फिर इन योजनाओं का एक व्यापक राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार में विलय किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारत एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जहाँ कार्बन बाज़ार की स्थापना आर्थिक विकास के साथ इसके जलवायु लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से संतुलित कर सकती है। भारत इस बाज़ार को रणनीतिक रूप से डिज़ाइन कर, मौजूदा योजनाओं को एकीकृत कर और नवाचार को प्रोत्साहित कर स्वयं को सतत विकास में वैश्विक अग्रणी देश के रूप में स्थापित कर सकता है। चूँकि भारत निम्न-कार्बन भविष्य की ओर आगे बढ़ रहा है, यह उपयुक्त समय है कि वह निर्णायक कदम उठाए और एक प्रत्यास्थी, जलवायु-सजग अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिये नेतृत्वकारी भूमिका निभाए। 

अभ्यास प्रश्न: कार्बन क्रेडिट को पर्यावरण नीतियों में एकीकृत करने के संबंध में भारत के दृष्टिकोण और संबद्ध चुनौतियों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करते हुए कार्बन क्रेडिट की अवधारणा पर चर्चा कीजिये तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने में उनकी संभावित भूमिका का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2023)

कथन - I: ऐसी संभावना है कि कार्बन बाज़ार, जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक सबसे व्यापक साधन बन जाए।

 कथन- II : कार्बन बाज़ार संसाधनों को प्राइवेट सेक्टर से राज्य को हस्तांतरित कर देते हैं।

उपर्युक्त कथनों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है।
(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है।
(c) कथन-I सही है किन्तु कथन-II गलत है।
(d) कथन-I गलत है किन्तु कथन-II सही है।

उत्तर: B


प्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई है? (2009)

(a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो
(b) क्योटो प्रोटोकॉल
(c) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(d) जी-8 शिखर सम्मेलन, हेलीजेंडम

उत्तर: (b)

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