दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स



भारतीय अर्थव्यवस्था

विस्तार और स्थायित्व के बीच भारत का डिजिटल इकोसिस्टम

  • 17 Dec 2025
  • 179 min read

यह एडिटोरियल 10/12/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “State should reclaim its role, shape digital markets” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। लेख में भारत की उन नियामक बाधाओं को उजागर किया गया है जो राज्य को डिजिटल क्षेत्र को निष्पक्ष रूप से विनियमित करने से रोकती हैं। इसके अलावा, इसमें नियामकीय नीति कार्यढाँचे को मज़बूत करने के लिये कुछ सुझाव भी दिये गए हैं।

प्रिलिम्स के लिये: DPI, भारत की डिजिटल इकॉनमी रिपोर्ट, 2025, डिजिटल अर्थव्यवस्था का विनियमन, UPI, गिग इकॉनमी, GCC, डिजिलॉकर, IndiaStack, GeM

मेन्स के लिये: डिजिटल अर्थव्यवस्था की स्थिति, विनियमन में चुनौतियाँ, उभरते बाज़ारों के विनियमन के लिये नीतिगत सुझाव।

भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था एक रणनीतिक विकास इंजन और देश के विकास पथ में एक महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक बदलाव के रूप में उभरी है। सरकार के भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का आकलन और आकलन (स्टेट ऑफ इंडियाज़ डिजिटल इकोनॉमी 2024) के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में डिजिटल अर्थव्यवस्था का राष्ट्रीय आय में लगभग 11.74% योगदान रहा तथा वित्त वर्ष 2029-30 तक सकल बाज़ार मूल्य (GVA) के लगभग 20% तक पहुँचने का अनुमान है। इसके अलावा, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था, जो लगभग 14.67 मिलियन श्रमिकों (कुल श्रम बल का लगभग 2.55%) को रोज़गार प्रदान करती है तथा उच्च उत्पादकता रखती है, डिजिटल भुगतान और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) निर्यात में वैश्विक स्तर पर अग्रणी है, जिसमें वैश्विक वास्तविक काल लेन-देन का 49% UPI के माध्यम से होता है।

भारत के डिजिटल परिवर्तन में वैश्विक अग्रणी के रूप में उभरने के पीछे कौन-से कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं?

  • विकास गुणक के रूप में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI): भारत के डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं का विशिष्ट समूह, जिसमें आधार, डिजिलॉकर, फास्टैग, कोविन, ONDC, अकाउंट एग्रीगेटर, ई-केवाईसी शामिल हैं, ने एक कम लागत वाली, अंतर-संचालनीय डिजिटल आधार का निर्माण किया है जो विश्व स्तर पर विशिष्ट है।
    • यह लेन-देन लागत को कम करता है, रियल टाइम में सेवा-प्रणाली को सक्षम बनाता है और एक प्लग-एंड-प्ले डिजिटल आर्किटेक्चर प्रदान करता है, जो निजी नवाचार को बढ़ावा देता है।
      • विश्व बैंक से जुड़ी रिपोर्टों के अनुसार, भारत में वित्तीय समावेशन की दर वर्ष 2008 में लगभग 25 प्रतिशत से बढ़कर पिछले छह वर्षों में वयस्क आबादी के 80 प्रतिशत से अधिक तक पहुँच गई है, जिसका मुख्य कारण JAM-सक्षम बुनियादी अवसंरचना है।   
  • डिजिटल भुगतान का तेज़ी से अंगीकरण: IMF ने भारत की UPI को ब्राज़ील, थाईलैंड और चीन से कहीं आगे, विश्व की सबसे बड़ी रीयल-टाइम रिटेल भुगतान प्रणाली के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता दी है, क्योंकि इसमें शून्य लागत भुगतान, अंतर-संचालनीयता एवं मोबाइल-आधारित अभिगम्यता जैसी विशेषताएँ हैं।
    • इससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है और उपभोग व्यवहार में बदलाव आया है, जिससे डिजिटल बाज़ार का आकार प्रत्यक्ष रूप से बढ़ा है।
      • उदाहरण के लिये, UPI ने भारत भर में छोटे किराना स्टोर, स्ट्रीट वेंडर और स्वरोज़गार करने वाले श्रमिकों को भी स्मार्टफोन के माध्यम से तत्काल, बिना किसी लागत के डिजिटल भुगतान स्वीकार करने में सक्षम बनाया है।
  • किफायती स्मार्टफोन और कम लागत वाला डेटा: किफायती स्मार्टफोन और कम लागत वाले डेटा ने भारत को एक मोबाइल-फर्स्ट अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा, डिजिटल भुगतान और मनोरंजन तक अभिगम्यता में वृद्धि हुई है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत में मोबाइल डेटा की कीमतें विश्व में सबसे सस्ती हैं, जहाँ 1GB के लिये 18.5 रुपये या 0.26 डॉलर लगते हैं, जबकि वैश्विक औसत 8.53 डॉलर या लगभग 600 रुपये प्रति GB है।
    • भारत में एक उपभोक्ता द्वारा स्मार्टफोन के लिये चुकाई जाने वाली औसत कीमत (250 डॉलर - 294 डॉलर) वैश्विक औसत (357 डॉलर - 370 डॉलर) की तुलना में कम है।
    • इसके अलावा, भारत ने अपने मोबाइल फोन क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से बदलाव किया है और वर्ष 2024 में 20.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ एक प्रमुख निर्यातक बन गया है।
  • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सेवाओं और डिजिटल निर्यात का तीव्र विस्तार: भारत विश्व के 55% वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) का मेज़बान है, जो IT सहायता, अनुसंधान एवं विकास तथा व्यावसायिक प्रक्रिया प्रबंधन जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करते हैं। 
    • राज्य सरकारें GCC (जनसंपर्क समुदाय) की स्थापना के लिये समर्पित नीति अपना रही हैं। उदाहरण के लिये, मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया जिसने GCC के लिये एक समर्पित नीति बनाई है, उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह की पहल है। 
  • अर्थव्यवस्था का औपचारिककरण और प्लेटफॉर्मीकरण: डिजिटल अर्थव्यवस्था ने डिजिटल अनुपालन, ई-गवर्नेंस और पता लगाने योग्य लेन-देन का विस्तार करके औपचारिककरण को गति दी है। 
    • GST, ई-वे बिल और डिजिटल इनवॉइसिंग ने 1.51 करोड़ से अधिक GST करदाताओं को एक एकीकृत अप्रत्यक्ष कर नेटवर्क में ला दिया है, जिससे पारदर्शिता एवं राजस्व में वृद्धि हुई है। 
    • ONDC और GeM जैसे डिजिटल मार्केटप्लेस ने छोटे विक्रेताओं को राष्ट्रीय बाज़ारों में एकीकृत कर दिया है, जबकि NITI आयोग (2022) के अनुसार लॉजिस्टिक्स, मोबिलिटी एवं फूड डिलीवरी में प्लेटफॉर्म-आधारित कार्य 7.7 मिलियन से अधिक गिग वर्कर्स को रोज़गार प्रदान करता है।
      • औपचारिकीकरण और प्लेटफॉर्मीकरण मिलकर एक अधिक पारदर्शी, विस्तार योग्य एवं उत्पादकता-संचालित अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं, जिससे भारत की डिजिटल विकास की गति मज़बूत हो रही है।
  • डिजिटल कौशल और रोज़गार क्षमता में वृद्धि: भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था की स्थिति (SIDE) रिपोर्ट- 2024 से पता चलता है कि 14.6 मिलियन से अधिक श्रमिक पहले से ही डिजिटल नौकरियों में कार्यरत हैं तथा कम कौशल वाले व्यवसायों से तकनीक-सक्षम व्यवसायों की ओर तेज़ी से पलायन हो रहा है।
    • AI/ML, साइबर सुरक्षा, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा एनालिटिक्स और IT सेवाओं में वृद्धि से सभी क्षेत्रों में रोज़गार एवं उत्पादकता बढ़ रही है।
      • इसके साथ ही, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था इसकी आर्थिक वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में उभर रही है, जो सत्र 2022-23 में GDP का 11.74% हिस्सा है।
  • नीतिगत प्रोत्साहन और निवेश की गति: डिजिटल इंडिया, IndiaStack विस्तार, इलेक्ट्रॉनिक्स/सेमीकंडक्टर्स के लिये PLI योजनाएँ, IndiaAI मिशन और स्टार्ट-अप इनोवेशन फंड जैसे सरकारी कार्यक्रमों ने एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया है।
    • भारत 100 से अधिक यूनिकॉर्न कंपनियों के साथ एक अग्रणी स्टार्टअप हब बन गया है, जिनमें से कई डिजिटल-फर्स्ट क्षेत्रों में हैं।
    • बंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई और दिल्ली-NCR जैसे प्रमुख केंद्र इस परिवर्तन में सबसे आगे रहे हैं, जबकि छोटे शहर भी इस गति को बढ़ाने में तेज़ी से योगदान दे रहे हैं, जिनमें से 51% से अधिक स्टार्टअप टियर II और टियर III शहरों से उभर रहे हैं।
  • महामारी के बाद उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन: महामारी ने डिजिटल एडॉप्शन के लिये एक बड़े उत्प्रेरक के रूप में काम किया, जिससे उपभोक्ताओं की आदतें मौलिक रूप से ई-कॉमर्स, डिजिटल भुगतान, दूरस्थ कार्य, टेलीमेडिसिन और एडटेक की ओर परिवर्तित हो गईं। 
    • यह व्यवहारिक बदलाव एक अस्थायी व्यवधान होने के बजाय संरचनात्मक बन गया है, जिससे लक्षित डिजिटल बाज़ार का दायरा स्थायी रूप से बढ़ गया है तथा विभिन्न जनांकिकीय समूहों में डिजिटल-फर्स्ट वरीयता सुदृढ़ हो गई है।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय वर्ष 2024 में ई-कॉमर्स बाज़ार के 125 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 में 345 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है तथा वर्ष 2035 तक इसके 550 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।

भारत के तेज़ी से विस्तार कर रहे डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष प्रमुख नियामक चुनौतियाँ क्या हैं?

  • डिजिटल प्लेटफॉर्म का एकाधिकार और प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी आचरण: डिजिटल बाज़ारों में एकीकृत प्लेटफॉर्म पारिस्थितिकी तंत्रों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, जिनमें ऑपरेटिंग सिस्टम, ऐप स्टोर और डेटा पर नियंत्रण शामिल है। इससे नए प्रवेशकों के लिये बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, उपभोक्ता लॉक-इन की स्थिति बनती है और विनर-टेक्स-ऑल जैसे परिणाम सामने आते हैं।
    •  वर्तमान में प्रयुक्त पारंपरिक विनियामक उपकरण, जैसे प्रतिस्पर्द्धा कानून और डेटा संरक्षण कार्यढाँचा, प्रायः क्षति हो जाने के बाद ही हस्तक्षेप करते हैं अर्थात ये एक्स-पोस्ट विनियमन के स्वरूप में कार्य करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने एंड्रॉइड इकोसिस्टम का लाभ उठाकर अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने के लिये Google पर ₹1,337.76 करोड़ का जुर्माना लगाया, जो एल्गोरिदम-आधारित बहिष्करण, उपभोक्ता लॉक-इन और प्लेटफॉर्म निष्पक्षता के क्षरण से जुड़ी चिंताओं को उजागर करता है।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के भीतर जोखिम: यदि निजी पक्ष खोज, वितरण अथवा डेटा स्तर पर प्रभुत्व स्थापित कर लेते हैं, तो DPI के भीतर पुनः एकाधिकार की संभावना बन जाती है।
    • उदाहरण के लिये, UPI के प्रभुत्व के कारण सेवा प्रदाताओं के बीच वस्तुतः एकाधिकार स्थापित हो गया है, जो दर्शाता है कि सार्वजनिक उद्देश्य के बावजूद DPI शक्ति का केंद्रीकरण कर सकता है।
      • PhonePe और Google Pay मिलकर कुल UPI लेन-देन की मात्रा और मूल्य का 80 प्रतिशत से अधिक नियंत्रित करते हैं, जिससे गंभीर बाज़ार संकेंद्रण एवं प्रणालीगत जोखिम उत्पन्न होते हैं।
    • इस परिदृश्य में गेटकीपिंग की भूमिका प्लेटफॉर्म से हटकर लॉजिस्टिक्स, पेमेंट गेटवे या आइडेंटिटी लेयर्स की ओर स्थानांतरित हो सकती है।
  • PPP-आधारित DPI में शासन और डेटा सॉवरेनिटी के जोखिम: PPP के नेतृत्व वाले DPI तकनीकी मानकों, क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर और AI उपकरणों के लिये निजी भागीदारों पर तेज़ी से निर्भर हो रहे हैं, जिससे डेटा प्रबंधन में जवाबदेही की कमी उत्पन्न होती है तथा राज्य का नियंत्रण कमज़ोर होता है। 
    • उदाहरण के लिये, AWS, Microsoft Azure और Google Cloud ग्लोबल क्लाउड बाज़ार के लगभग 65-70% हिस्से पर नियंत्रण रखते हैं, ऐसे में निजी क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर पर चलने वाले सार्वजनिक DPI सेवा के रूप में संप्रभुता का एक मॉडल बनाने का जोखिम उठाते हैं, जहाँ महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक डेटा और डिजिटल कार्य बाह्य प्लेटफॉर्मों पर निर्भर करते हैं।
  • सार्वजनिक डेटा का मुद्रीकरण: वर्तमान डेटा संरक्षण कानून DPI के माध्यम से उत्पन्न सार्वजनिक डेटा के व्यावसायीकरण के जोखिमों को पर्याप्त रूप से दूर नहीं करते।
    • इसमें सार्वजनिक प्लेटफॉर्मों से प्राप्त डेटा के लिये अधिकारों, सहमति और उपयोग की सीमाओं पर स्पष्टता का अभाव शामिल है। 
    • DPDP अधिनियम में उल्लेखनीय कमियाँ हैं, क्योंकि यह गैर-व्यक्तिगत और सार्वजनिक डेटा को अपने दायरे से बाहर रखता है, राज्य को अनुमानित सहमति के माध्यम से व्यापक उपयोग की अनुमति देता है तथा DPI-जनित डेटा के लिये सहमति, स्वामित्व या व्यावसायिक पुनः उपयोग की सीमाओं का कोई स्पष्ट ढाँचा प्रदान नहीं करता।
  • कमज़ोर पर्यवेक्षण और जवाबदेही: विभिन्न क्षेत्रों के नियामकों के बीच खंडित विनियमन से प्रवर्तन में कमियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • क्षेत्रीय विखंडन: रिपोर्टों में MeitY, CCI, RBI, TRAI और नवगठित डेटा संरक्षण बोर्ड में प्रवर्तन में अतिव्यापी एवं असंगतता पर प्रकाश डाला गया है।
      • डीपफेक के प्रसार ने पता लगाने के तंत्रों को पीछे छोड़ दिया है, जिससे एक नियामक अंतराल उत्पन्न हो गया है जहाँ नए दिशानिर्देशों के बावजूद AI-जनित गलत सूचनाओं के लिये जवाबदेही अस्पष्ट बनी हुई है।
      • मुख्य समस्या एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्मों पर ओरिजिनेटर ट्रेसबिलिटी लागू करने और यूज़र की प्राइवेसी की रक्षा करने के बीच है, जो एक तकनीकी गतिरोध उत्पन्न करता है तथा दुरुपयोग करने वालों को बढ़ावा देता है।
  • डेटा संरक्षण अधिनियम के तहत शासन संबंधी चिंताएँ: डेटा संरक्षण बोर्ड को पूर्ण स्वायत्तता न मिलने से जवाबदेही को लेकर आशंकाएँ बढ़ रही हैं।
    • ऑनलाइन गेमिंग के प्रति विनियामक दृष्टिकोण कभी अत्यधिक कराधान तो कभी पूर्ण प्रतिबंध के बीच द्वंद्व में रहा है, जिससे निवेश के लिये अस्थिर वातावरण बना है तथा कौशल और जुए के बीच स्पष्ट अंतर नहीं किया जा सका है।
    • उच्चतम GST स्लैब और नए निषेधात्मक कानून के संयुक्त प्रभाव ने ग्रे मार्केट को प्रोत्साहित किया है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता विदेशी एवं अनियमित सट्टेबाज़ी वेबसाइटों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
      • ऑनलाइन गेमिंग के संवर्द्धन और विनियमन अधिनियम द्वारा ऑनलाइन मनी गेमिंग पर प्रतिबंध लगाये जाने के बाद वैध ऑपरेटरों के लिये दाँव की फेस वैल्यू पर 28 प्रतिशत GST व्यावहारिक रूप से अप्रासंगिक हो गया है।
  • सैटेलाइट संचार स्पेक्ट्रम: प्रशासनिक आवंटन बनाम नीलामी: उपग्रह संचार स्पेक्ट्रम (सैटकॉम) के आवंटन को लेकर नीति स्तर पर तीव्र विवाद बना हुआ है,  जिसमें वैश्विक सैटेलाइट दिग्गज घरेलू दूरसंचार ऑपरेटरों के खिलाफ खड़े हैं।
    • प्रशासनिक आवंटन मॉडल तेज़ी से सैटेलाइट इंटरनेट विस्तार के पक्ष में है, परंतु स्थलीय स्पेक्ट्रम के लिये भारी निवेश कर चुके दूरसंचार ऑपरेटर इसका विरोध करते हैं और इसे असमान प्रतिस्पर्द्धा तथा राजस्व हानि से जोड़ते हैं।
    • दूरसंचार अधिनियम, 2023 ने उपग्रह स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन का समर्थन किया, जिससे दूरसंचार कंपनियों की ओर से विधिक चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं।
  • डेटा उल्लंघनों और साइबर सुरक्षा कमज़ोरियों में वृद्धि: भारत का तेज़ी से विस्तार करने वाला डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र बड़े पैमाने पर डेटा उल्लंघनों, रैंसमवेयर हमलों और राज्य-प्रायोजित साइबर घुसपैठ के प्रति तेज़ी से उजागर हो रहा है, जिससे साइबर शासन एवं प्रवर्तन क्षमता में महत्त्वपूर्ण कमियाँ सामने आ रही हैं।
    • आधार, UPI, डिजिलॉकर जैसे DPI, फिनटेक प्लेटफॉर्म, हेल्थ-टेक सिस्टम और क्लाउड-आधारित सार्वजनिक सेवाओं के प्रसार ने साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील डेटा की मात्रा एवं संवेदनशीलता में तेज़ी से वृद्धि की है।
    • भारत में साइबर सुरक्षा से जुड़ी घटनाएँ वर्ष 2022 में 10.29 लाख से बढ़कर वर्ष 2024 में 22.68 लाख हो गईं। केंद्रीय बजट 2025-2026 में साइबर सुरक्षा परियोजनाओं के लिये 782 करोड़ रुपये आवंटित किये गए।

भारत अपने डिजिटल इकोसिस्टम को मज़बूत बनाने और भविष्य के लिये तैयार करने के लिये कौन-से उपाय अपना सकता है?

  • पूर्वव्यापी विनियमन से संस्थागत बाज़ार डिजाइन की ओर बदलाव: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम जैसे पूर्वव्यापी साधन नुकसान होने के बाद काम करते हैं, प्रायः तब जब प्रभुत्व पहले से ही स्थापित हो चुका होता है।
    • पूर्व-निवारक दृष्टिकोण (एक्स-पोस्ट) नुकसान होने से पहले ही बाज़ार में होने वाले उलट-फेर को रोक सकता है।
      • उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ का डिजिटल मार्केट्स एक्ट (DMA) गेटकीपर (बड़ी तकनीकी कंपनियों) को सक्रिय दायित्वों (जैसे: अंतर-संचालनीयता, अपनी सेवाओं को प्राथमिकता न देना) के साथ नामित करता है, ताकि नुकसान होने से पहले ही प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित की जा सके।
    • राज्य को डिजिटल बाज़ारों के नियमों, संरचना और प्रोत्साहनों को आकार देने वाले निर्माता के रूप में कार्य करना चाहिये।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को मज़बूत और विस्तारित करना: DPI को खुले, अंतर-संचालनीय, कम लागत वाले सार्वजनिक रेल के रूप में उपयोग करना चाहिये जो कई प्रदाताओं को निजी गेटकीपरों पर निर्भरता के बिना नवाचार करने की अनुमति देता है। 
    • उदाहरण के लिये: UPI का शून्य-लागत मॉडल खुली पहुँच को बढ़ावा देता है और शुल्क-आधारित एकाधिकार को रोकता है।
    • ओपन-प्रोटोकॉल मोबिलिटी एग्रीगेटर ONDC की नम्मा यात्री ने ओपन DPI का उपयोग करके मूल्य निर्धारण मॉडल में नवाचार किया तथा उच्च प्रवेश बाधाओं के बिना मौजूदा कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा की।
  • पुनः एकाधिकार के विरुद्ध सुरक्षा उपाय बनाना: DPI को नई बाधाएँ उत्पन्न करने से रोकने के लिये, उन्हें इस प्रकार डिज़ाइन किया जाना चाहिये कि सभी यूज़र्स एवं प्रतिभागियों के साथ समान व्यवहार किया जाए और किसी भी पक्ष को कोई विशेष लाभ न मिले।
    • किसी एक निजी संस्था द्वारा नियंत्रण को रोकने के लिये सहभागी शासन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। वैश्विक साइबरस्पेस में विधिक अंतर-संचालनीयता और समावेशी शासन को बढ़ावा देने वाला एक बहु-हितधारक मॉडल, सहभागी डिजिटल गवर्नेंस के लिये एक संदर्भ है। 
  • PPP-आधारित DPI के संचालन में सुधार: जवाबदेही, पारदर्शिता और लेखापरीक्षा तंत्र के लिये स्पष्ट संविदात्मक दायित्व।
    • निजी साझेदारों को अनौपचारिक रूप से मानकों या परिचालन स्तरों को नियंत्रित करने से रोकना चाहिये।
    • डेटा सॉवरेनिटी को सुदृढ़ करना चाहिये और क्लाउड पर निर्भरता कम किया जाना चाहिये।
      • उदाहरण के लिये, Gaia-X (यूरोप) नामक एक एकीकृत डेटा अवसंरचना परियोजना क्लाउड सेवाओं में डेटा नियंत्रण, पारदर्शिता और सॉवरेनिटी सुनिश्चित करती है।
    • महत्त्वपूर्ण डेटा इनपुट (DPI) के लिये सार्वजनिक या राष्ट्रीय स्तर पर संचालित क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। ग्लोबल क्लाउड दिग्गजों के साथ किसी तरह के बंधन से बचने के लिये अंतर-संचालनीयता और डेटा पोर्टेबिलिटी को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
    • डेटा के जनहित में उपयोग को सुनिश्चित करने वाले न्यासी खंड शामिल किया जाना चाहिये।
  • नियामक क्षमता और समन्वय को बढ़ाना: कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल प्लेटफॉर्मों की जटिलता को प्रबंधित करने के लिये, राज्य को सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया से आगे बढ़कर विशेष तकनीकी शासन की ओर बढ़ना होगा।
    • इसके लिये तकनीकी-विधिक लेखा परीक्षकों का एक दल गठित करने की आवश्यकता है जो ब्लैक-बॉक्स मॉडल में पूर्वाग्रह और अस्पष्टता का पता लगाने के लिये एल्गोरिदम ऑडिट करने में सक्षम हों।
    • इसके अलावा, वर्तमान पृथक दृष्टिकोण को समाप्त करना महत्त्वपूर्ण है, जहाँ CCI, MeitY और RBI के बीच मुद्दे परस्पर संबंधित हैं। 
      • प्रवर्तन में सामंजस्य स्थापित करने, अनुपालन के बोझ को कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि गतिशील डिजिटल बाज़ार खंडित, विरोधाभासी निर्णयों से बाधित न हों, एक एकीकृत डिजिटल नियामक या अंतर-एजेंसी तंत्र की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक मूल्यों की रक्षा करना और सार्वजनिक डेटा के व्यावसायीकरण को रोकना: भारत को अप्रतिबंधित खुले डेटा से हटकर प्रबंधित सार्वजनिक साझा संसाधन कार्यढाँचे की ओर बढ़ना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रशिक्षण के लिये संप्रभु डेटासेट तक पहुँचने वाली निजी संस्थाएँ (विशेष रूप से लार्ज लैंग्वेज मॉडल) पारस्परिक मूल्य लाइसेंस से बंधी हों जो अनन्य वाणिज्यिक अधिग्रहण को रोकते हैं।
    • इससे डेटा प्रोडक्शन के समाजीकरण और मुनाफे के निजीकरण पर रोक लगती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सार्वजनिक डेटा से प्राप्त आर्थिक अधिशेष का पुनर्निवेश बड़ी तकनीकी कंपनियों के एकाधिकार को बढ़ावा देने के बजाय राष्ट्रीय डिजिटल बुनियादी अवसंरचना में किया जाए।
  • खुले, गैर-भेदभावपूर्ण डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: भारत को डिजिटल साइलो को खत्म करने और ‘वॉल्ड गार्डन’ के गठन को रोकने के लिये इंटर-ऑपरेबिलिटी जनादेश को सख्ती से लागू करना चाहिये, जहाँ प्रमुख प्लेटफॉर्म यूज़र्स को बांधे रखते हैं। 
    • DPI में सार्वजनिक शब्द का अर्थ कानूनी रूप से बाध्यकारी ओपन API आर्किटेक्चर होना चाहिये, जो यह सुनिश्चित करे कि बुनियादी अवसंरचना तटस्थ बना रहे, न कि विशिष्ट विक्रेताओं के लिये एक बाधा बन जाए। 
    • ONDC (ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स) की सफलता इसका उदाहरण है, जिसने बाज़ार की एकाधिकारता को कम किया है।
  • ऑनलाइन गेमिंग में कराधान-प्रतिबंध की विरोधाभासी स्थिति का समाधान: नियामक भ्रम को समाप्त करने के लिये, भारत को न्यायिक परीक्षणों के आधार पर, कौशल वाले खेलों को जुए से अलग करने के लिये एक स्पष्ट केंद्रीय कानून की आवश्यकता है।
    • अंकित मूल्य पर लगाए जाने वाले दांव पर 28% GST को कौशल-आधारित खेलों के लिये प्लेटफॉर्म कमीशन पर कर (GGR मॉडल) के साथ मिलाकर पूंजी पलायन को रोकने तथा ग्रे मार्केट पर अंकुश लगाने के लिये अनुकूलित किया जाना चाहिये।
  • सैटेलाइट संचार आवंटन में प्रशासन बनाम नीलामी के अंतर को कम करना: निष्पक्षता सुनिश्चित करते हुए सैटेलाइट इंटरनेट के विस्तार में तेज़ी लाने के लिये एक हाइब्रिड आवंटन मॉडल का अंगीकरण: पारदर्शी उपयोग शुल्क के साथ प्रशासनिक आवंटन किया जाना चाहिये।
    • सरकारी कोष के हितों की रक्षा करने और स्थलीय दूरसंचार कंपनियों के साथ समान अवसर प्रदान करने के लिये स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क या राजस्व-साझाकरण लागू किया जाना चाहिये।
    • सभी ऑपरेटरों के लिये नियमित हितधारक परामर्श और स्पष्ट तकनीकी-तटस्थ दायित्वों के माध्यम से नीतिगत निश्चितता और निवेश विश्वास सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • साइबर सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना: भारत को एक समग्र राज्य स्तरीय साइबर सुरक्षा कार्यढाँचा अपनाना चाहिये, जिसमें वास्तविक समय में डेटा उल्लंघन की रिपोर्टिंग, समयबद्ध प्रकटीकरण और सभी क्षेत्रों में डेटा के लिये जिम्मेदार व्यक्तियों की वर्गीकृत जवाबदेही अनिवार्य हो। 
    • सार्वजनिक डेटा सुरक्षा प्राधिकरणों (DPI) को सुरक्षा-आधारित मानकों का पालन करना चाहिये, जिसमें नियमित तृतीय-पक्ष ऑडिट, ज़ीरो-ट्रस्ट आर्किटेक्चर और स्वदेशी क्रिप्टोग्राफिक उपकरण शामिल हैं। प्रभावित यूज़र्स के लिये स्पष्ट मुआवज़ा मानदंड और लापरवाही के लिये सख्त दंड से जवाबदेही में सुधार होगा। 
    • अंततः, प्रणालीगत निर्भरता को कम करने और डिजिटल सॉवरेनिटी को बढ़ाने के लिये घरेलू साइबर क्षमताओं एवं क्लाउड बुनियादी अवसंरचना में रणनीतिक निवेश आवश्यक है।

निष्कर्ष:

भारत की डिजिटल यात्रा दर्शाती है कि राज्य न केवल बाज़ारों को नियंत्रित कर सकता है, बल्कि उन्हें आकार भी दे सकता है। डिजिटल निवेश परियोजनाओं (DPI) ने समावेशन को बढ़ाया है तथा बंद निजी प्लेटफॉर्मों पर निर्भरता को कम किया है। हालाँकि, अब चुनौती पुन: एकाधिकार को रोकना, PPP प्रणालियों में खंडित जवाबदेही में सुधार करना और ग्लोबल क्लाउड एवं AI अवसंरचना पर निर्भरता के बीच डिजिटल सॉवरेनिटी को सुदृढ़ करना है। अगले चरण में अंतर-संचालनीय, पारदर्शी, उद्देश्य-सीमित डेटा सिस्टम और एक सुदृढ़, एकीकृत तकनीकी नियामक का निर्माण करना आवश्यक है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के साथ भारत का अनुभव दर्शाता है कि राज्य डिजिटल बाज़ारों को आकार दे सकता है, फिर भी पुन: एकाधिकार, डेटा गवर्नेंस विफलताओं और खंडित विनियमन के महत्त्वपूर्ण जोखिम बने हुए हैं। इस संदर्भ में, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को विनियमित करने में आने वाली चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा एक खुले, समावेशी एवं नवाचार-अनुकूल डिजिटल इकोसिस्टम को सुनिश्चित करने के लिये एक कार्यढाँचा सुझाव दीजिये।

 

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

1. भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को एक प्रमुख विकास इंजन क्या बनाता है?
भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय आय में लगभग 12% का योगदान करती है और DPI, डिजिटल भुगतान, ICT निर्यात तथा बढ़ते डिजिटल कौशल के कारण तेज़ी से विस्तार कर रही है।

2. डिजिटल बाज़ारों के लिये पारंपरिक पूर्वव्यापी नियमन अपर्याप्त क्यों हैं?
क्योंकि डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र नियामक प्रतिक्रियाओं की तुलना में तेज़ी से विकसित होते हैं, इसलिये पूर्व-परिणाम उपकरण प्रायः नुकसान होने के बाद ही कार्य करते हैं तथा संरचनात्मक प्रभुत्व या डेटा विषमताओं का हल नहीं कर सकते हैं।

3. डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के संबंध में मुख्य चिंता क्या है?
निजी संस्थाओं द्वारा खोज़, वितरण या डेटा स्तरों पर अधिग्रहण करने पर DPI के पुन: एकाधिकार का खतरा उत्पन्न हो जाता है, जिससे सार्वजनिक प्लेटफॉर्म होने के बावजूद नए अवरोध उत्पन्न हो सकते हैं।

4. भारत के लिये डिजिटल सॉवरेनिटी क्यों महत्त्वपूर्ण है?
ग्लोबल क्लाउड और AI अवसंरचना पर निर्भरता संवेदनशील सार्वजनिक डेटा पर राष्ट्रीय नियंत्रण को कमज़ोर करती है तथा रणनीतिक स्वायत्तता को सीमित करती है।

5. डिजिटल बाज़ारों को विनियमित करने के लिये आगे का सुझाया गया तरीका क्या है?
भारत को खुले मानकों, अंतर-संचालनीयता जनादेश, सुदृढ़ डेटा सुरक्षा उपायों और समन्वित नियामक क्षमता के साथ संस्थागत बाज़ार डिज़ाइन की ओर बढ़ना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2022)

  1. आरोग्य सेतु
  2. कोविन 
  3. डिजीलॉकर 
  4. दीक्षा

उपर्युक्त में से कौन-से, ओपेन सोर्स डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बनाए गए हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2, 3 और 4

(c) केवल 1, 3 और 4

(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न 1. भारतीय अर्थव्यवस्था में डिजिटलीकरण की स्थिति क्या है? इस संबंध में आने वाली समस्याओं का परीक्षण कीजिये और सुधार के लिये सुझाव दीजिये। (2023) 

प्रश्न 2. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है।" विवेचना कीजिये। (2020)

close
Share Page
images-2
images-2