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भारत की शिक्षा प्रणाली पर पुनर्विचार

  • 18 Dec 2025
  • 162 min read

यह एडिटोरियल 12/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “The stark reality of educational costs in India” पर आधारित है। यह लेख शिक्षा के लिये विधिक रूप से सुनिश्चित अधिकारों के बावजूद विद्यालयी व्यवस्था की बढ़ती लागत को सामने लाता है। यह रेखांकित करता है कि विद्यालयी तंत्र में मौजूद संरचनात्मक खामियों ने निजी संस्थानों का ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र विकसित कर दिया है, जो निर्धन परिवारों पर वित्तीय बोझ डाल रहा है तथा इसके परिणामस्वरूप असमानता को और गहरा कर रहा है।

प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)- 2020, मूलभूत साक्षरता और संख्याज्ञान (FLN), NIPUN भारत मिशन, UDISE+ DIKSHA, PARAKH

मेन्स के लिये: भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली, SDG 4 को प्राप्त करने में चुनौतियाँ, शिक्षा संबंधी समितियाँ।

शिक्षा भारत के जनांकिकीय लाभांश और दीर्घकालिक आर्थिक विकास की आधारशिला है। संविधान के अनुच्छेद 21A के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के तहत इसका विस्तार 3 से 18 वर्ष आयु वर्ग तक किया गया है। हालाँकि ज़मीनी स्तर की वास्तविकताएँ नीति के उद्देश्य और नागरिकों के वास्तविक अनुभव के बीच बढ़ते अंतर को उजागर करती हैं। निजी विद्यालयों और कोचिंग पर बढ़ती निर्भरता तथा सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता में असमानता शिक्षा को एक सामाजिक अधिकार के स्थान पर बाज़ार-प्रेरित वस्तु में रूपांतरित कर रही है।

फिर भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 एक सशक्त संवैधानिक अधिदेश और युवा जनसंख्या के साथ भारत के पास शिक्षा को पुनः सार्वजनिक हित के रूप में स्थापित करने का अवसर उपलब्ध है। सरकारी विद्यालयों में नवीकृत निवेश और समानता-आधारित सुधार भारत की जनांकिकीय क्षमता को स्थायी राष्ट्रीय शक्ति में परिवर्तित कर सकते हैं।

भारत की शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाने वाले प्रमुख सुधार क्या हैं?

  • शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 - सार्वभौमिक विद्यालय अभिगम्यता: शिक्षा का अधिकार अधिनियम ने अनुच्छेद 21A को लागू किया, जो 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है।
    • प्राथमिक स्तर पर लगभग सार्वभौमिक नामांकन लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिली, जिसमें नामांकन अनुपात 95% से अधिक रहा।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 - संरचनात्मक बदलाव: भारत ने 34 वर्ष पुरानी NEP- 1986 की जगह राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 को अपनाया, जिसका उद्देश्य रटने की बजाय वैचारिक समझ, समुत्थानशील और बहुविषयक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना है।
    • 3 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के लिये 5+3+3+4 की पाठ्यचर्या संरचना शुरू की गई।
    • इसका उद्देश्य उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) को वर्ष 2035 तक लगभग 28-30% से बढ़ाकर 50% करना है।
    • NEP- 2020 ने उच्च शिक्षा में लचीलापन और गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये बड़े सुधार पेश किये।
      • बहुप्रवेश-निकास प्रणाली और आजीवन अधिगम के लिये अकादमिक क्रेडिट बैंक (ABC) की व्यवस्था की गयी।
      • बहुविषयक विश्वविद्यालयों को प्रोत्साहन तथा एकल-विषयक महाविद्यालयों के क्रमिक उन्मूलन का प्रस्ताव किया गया।
      • नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करने के लिये उच्च शिक्षा आयोग (HECI) की स्थापना का प्रावधान किया गया।  
  • समग्र शिक्षा अभियान (SSA)— एकीकृत स्कूल शिक्षा: समग्र शिक्षा अभियान के माध्यम से प्री-प्राइमरी से कक्षा 12 तक समग्र समर्थन प्रदान किया जाता है। 
    • इसका मुख्य उद्देश्य बुनियादी अवसंरचना का उन्नयन, शिक्षकों का प्रशिक्षण, डिजिटल कक्षाएँ और वंचित समूहों को शामिल करना है।
    • इस योजना में सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों के 11.6 करोड़ स्कूल, 15.6 करोड़ से अधिक छात्र और 5.7 करोड़ शिक्षक शामिल हैं।
  • NIPUN भारत मिशन - मूलभूत शिक्षा सुधार: पठन-बोध एवं संख्या ज्ञान के साथ अध्ययन में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल (NIPUN भारत) का लक्ष्य सत्र 2026-27 तक कक्षा 3 तक मूलभूत साक्षरता और संख्याज्ञान सुनिश्चित करना है।
    • यह प्रारंभिक कक्षाओं की शिक्षण पद्धति, शिक्षक सहायता और अधिगम के परिणामों पर केंद्रित है।
  • डिजिटल शिक्षा अवसंरचना का विस्तार: भारत ने शिक्षा के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) में भारी निवेश किया है।
    • DIKSHA प्लेटफॉर्म के 200 मिलियन से अधिक उपयोगकर्त्ता हैं, जो शिक्षकों और छात्रों को डिजिटल अध्ययन सामग्री के साथ समर्थन प्रदान करते हैं।
    • SWAYAM 5,000 से अधिक ऑनलाइन पाठ्यक्रम संचालित करता है, जिससे उच्च शिक्षा तक अभिगम्यता का विस्तार होता है।
    • PM eVIDYA इंटरनेट की सुविधा से वंचित छात्रों तक पहुँचने के लिये TV, रेडियो और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को एकीकृत करता है।
  • समावेश और सामाजिक न्याय  पर बढ़ता ध्यान: लक्षित योजनाओं का उद्देश्य शैक्षणिक असमानता को कम करना है।
    • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय शैक्षणिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा का समर्थन करते हैं।
    • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (जैसे: पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति), अन्य पिछड़ा वर्ग (जैसे: PM-YASASVI) तथा अल्पसंख्यक (जैसे: बेगम हजरत महल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति) के लिये छात्रवृत्तियाँ और छात्रावास योजनाएँ संचालित हैं।
      • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, नवोदय विद्यालयों की तर्ज पर, दूरस्थ और जनजतीय बहुल क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के छात्रों को निशुल्क, गुणवत्तापूर्ण आवासीय शिक्षा प्रदान करते हैं।
    • उच्च शिक्षा में महिला भागीदारी प्रतिशत (GER) में लगातार वृद्धि हुई है, जो हाल के वर्षों में लगभग 48% तक पहुँच गई है।

भारत की शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • अपर्याप्त निधि और बजट की कमी: सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक शिक्षा में अपर्याप्त निवेश है। भारत शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 3-3.5% ही व्यय करता है, जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में 6 प्रतिशत व्यय का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
    • सीमित वित्तपोषण के कारण अनेक विद्यालयों में विज्ञान प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों, शौचालयों, स्वच्छ पेयजल तथा डिजिटल शिक्षण उपकरणों जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। 
    • कमज़ोर अधोसंरचना न केवल अधिगम की गति को प्रभावित करती है बल्कि कई बार बच्चों के विद्यालय में नामांकन और नियमित उपस्थिति में भी बाधा बनती है।
  • निम्न और असमान सकल नामांकन अनुपात (GER): यद्यपि भारत ने उच्च शिक्षा तक अभिगम्यता का विस्तार किया है, फिर भी GER का वितरण असमान बना हुआ है।
    • कुछ राज्य (जैसे तमिलनाडु: लगभग 47% GER) अन्य राज्यों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं, जबकि बिहार जैसे कई राज्य राष्ट्रीय औसत से नीचे हैं।
    • यह असमानता उच्च शिक्षा तक अभिगम्यता में क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक असमानता को दर्शाती है।
  • शिक्षा में डिजिटल डिवाइड: ऑब्ज़र्वर्स रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार, भारत के 14.7 करोड़ स्कूलों में से केवल 32.4% स्कूलों में ही कार्यात्मक कंप्यूटर उपलब्ध हैं। 
    • केवल 24.4% स्कूलों में ही आधुनिक कौशल अधिगम के लिये स्मार्ट क्लासरूम हैं। यह अंतर ग्रामीण और सरकारी स्कूलों को असमान रूप से प्रभावित करता है, जिससे शैक्षणिक असमानता और बढ़ जाती है। 
    • इससे छात्रों को डिजिटल साक्षरता, कोडिंग और समस्या-समाधान कौशल से वंचित होना पड़ता है, जो आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिये आवश्यक हैं। 
      • परिणामस्वरूप, प्रौद्योगिकी-आधारित और योग्यता-आधारित शिक्षा की नई नीति- 2020 का वादा अभी तक पूरी तरह से साकार नहीं हो पाया है। भारत के जनांकिकीय लाभांश को भविष्य के लिये तैयार कार्यबल में बदलने के लिये इस अंतर को न्यूनतम करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • शिक्षा का वस्तुकरण: शिक्षा तेज़ी से एक सार्वजनिक सेवा के बजाय एक बाज़ार आधारित वस्तु का रूप लेती जा रही है।
    • अब परिवारों की आय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक अभिगम्यता को काफी हद तक निर्धारित करती है। यह अनुच्छेद 21A की भावना और सामाजिक न्याय के जनादेश का उल्लंघन है।
    • निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों वाले परिवार प्रति छात्र प्रति वर्ष औसतन ₹25,002 व्यय करते हैं, जो सरकारी स्कूलों के छात्रों पर व्यय होने वाले ₹2,863 से लगभग 9 गुना अधिक है। यह निजी शिक्षा के भारी वित्तीय बोझ को उजागर करता है।
  • उच्च शिक्षा में अनुसंधान और नवाचार की कमी: भारत का अनुसंधान और विकास (R&D) पर व्यय वैश्विक स्तर पर लगातार सबसे कम बना हुआ है, जो GDP का लगभग 0.64-0.65% है, जबकि चीन (≈2.4%), संयुक्त राज्य अमेरिका (≈3.5%) और इज़रायल (≈5.7%) का व्यय इससे कहीं अधिक है, जिससे अनुसंधान अवसंरचना एवं दीर्घकालिक वैज्ञानिक क्षमता सीमित हो जाती है।
  • शिक्षकों की कमी और शिक्षण की निम्नस्तरीय गुणवत्ता: कई स्कूलों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, शिक्षकों की भारी कमी है और छात्र-शिक्षक अनुपात बहुत अधिक है।
    • शिक्षा मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, देश भर में 33 लाख से अधिक छात्र एक लाख से अधिक एकल-शिक्षक विद्यालयों में नामांकित हैं।
  • बुनियादी अवसंरचना और मूलभूत सुविधाओं में कमी: भारत के सार्वजनिक विद्यालयों के बड़े हिस्से अभी भी अपर्याप्त कक्षाओं, खराब स्वच्छता, पेय जल की कमी और असुरक्षित इमारतों से ग्रस्त हैं, विशेषकर ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में।
    • प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों, खेल के मैदानों और छात्रावासों की कमी से समग्र शिक्षा कमज़ोर होती है। इन बुनियादी अवसंरचना संबंधी कमियों का सीधा असर नामांकन, छात्रों के स्कूल में बने रहने एवं शैक्षणिक समानता पर पड़ता है। 
      • उदाहरण के लिये, 1.52 लाख स्कूलों में अभी भी बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
      • सरकारी स्कूलों की संख्या सबसे अधिक है, 10.17 लाख सरकारी स्कूलों में से 9.12 लाख स्कूलों में बिजली की सुविधा उपलब्ध है।
  • संक्रमण संकट-शिक्षा में फनल प्रभाव: यद्यपि शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम ने प्राथमिक नामांकन के लिये सफलतापूर्वक एक आकर्षण कारक बनाया है, लेकिन शिक्षा प्रणाली निम्नस्तरीय आंतरिक दक्षता से ग्रस्त है, जिसका अर्थ है कि यह बच्चों को आकर्षित तो करती है, लेकिन उच्च कक्षाओं में जाने पर उन्हें बनाए रखने में विफल रहती है।
    • इस घटना को प्रायः ‘फनल प्रभाव’ के रूप में वर्णित किया जाता है, जहाँ प्राथमिक छात्रों का एक विस्तृत आधार विशिष्ट संरचनात्मक और सामाजिक-आर्थिक बाधाओं के कारण माध्यमिक स्तर पर काफी संकुचित हो जाता है।
    • कक्षा 8 तक स्वचालित पदोन्नति जैसी नीतियाँ, प्रायः इसके अनुरूप अधिगम के परिणामों को सुनिश्चित किये बिना प्रारंभिक वर्षों में उच्च प्रतिधारण सुनिश्चित करती हैं।
    • जब छात्र कक्षा 9 में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें शैक्षणिक कठोरता और मानकीकृत परीक्षाओं में अचानक वृद्धि का सामना करना पड़ता है। चूँकि उनकी बुनियादी साक्षरता और अंकगणित प्रायः कमज़ोर होते हैं (अधिगम की कमी), वे पाठ्यक्रम का सामना नहीं कर पाते और अंततः स्कूल छोड़ देते हैं।
      • UDISE+ के आँकड़ों के अनुसार, माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर सत्र 2024-25 में 8.2% है।
  • तर्क की बजाय स्मरण-प्रधान शिक्षण की प्रवृत्ति: भारतीय शिक्षा प्रणाली वर्तमान में एक फैक्ट्री मॉडल पर काम करती है, जो समालोचनात्मक परीक्षण की अव्यवस्थित, समय लेने वाली प्रक्रिया की तुलना में सूचना के कुशल प्रतिरूपण को प्राथमिकता देती है। 
    • इससे एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहाँ एक छात्र शैक्षणिक रूप से सफल (उच्च अंक प्राप्त करने वाला) होने के बावजूद बौद्धिक रूप से अविकसित हो सकता है।
    • साथ ही, जब सफलता का मापदंड केवल वार्षिक परीक्षा बन जाता है, तब अधिगम का उद्देश्य ज्ञानार्जन के बजाय परीक्षा उत्तीर्ण करना रह जाता है। 
      • इससे शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही अवधारणात्मक समझ के स्थान पर उत्तरों को याद करने पर केंद्रित हो जाते हैं।

भारत अपने शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिये कौन-से उपाय अपना सकता है?

  • शिक्षा में सार्वजनिक निवेश और वित्तपोषण को बढ़ाना: शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय को धीरे-धीरे सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 6% तक बढ़ाना चाहिये, जिसमें स्कूल के बुनियादी अवसंरचना, शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण पर स्पष्ट ध्यान केंद्रित किया जाए।
    • राज्यों को सरकारी स्कूलों में प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों, स्वच्छता सुविधाओं और डिजिटल कक्षाओं को उन्नत बनाने के लिये परिणाम-आधारित एवं आवश्यकता-आधारित अनुदान प्रदान करने की शुरुआत करना चाहिये।
    • दक्षिण कोरिया और फिनलैंड जैसे देश, जो शिक्षा में GDP का 5-6% से अधिक निवेश करते हैं, ने निजी शिक्षा पर न्यूनतम निर्भरता के साथ सुदृढ़ सार्वजनिक स्कूली शिक्षा प्रणाली विकसित की है।
    • दिल्ली और केरल के केस स्टडी से पता चलता है कि उच्च गुणवत्ता वाले सरकारी विद्यालय सामुदायिक विश्वास पुनः अर्जित कर सकते हैं तथा निजी संस्थानों की ओर हो रहे पलायन को रोक सकते हैं।
  • उच्च शिक्षा में नामांकन के लिये अभिगम्यता और समावेशन में सुधार: निम्न सकल नामांकन अनुपात (GER) वाले राज्यों में लक्षित केंद्रीय सहायता के माध्यम से सार्वजनिक विश्वविद्यालयों और डिग्री महाविद्यालयों का विस्तार किया जाना चाहिये। 
    • ग्रामीण क्षेत्रों और पहली पीढ़ी के शिक्षार्थियों के लिये छात्रवृत्ति, छात्रावास, परिवहन सुविधाएँ और डिजिटल पहुँच को मज़बूत करें। ग्रामीण और प्रथम पीढ़ी के शिक्षार्थियों के लिये छात्रवृत्तियों, छात्रावासों, परिवहन सुविधाओं तथा डिजिटल पहुँच को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
    • तमिलनाडु जैसे राज्यों की दीर्घकालिक सार्वजनिक निवेश और सामाजिक समावेशन पर आधारित नीतियों से प्रेरणा ली जा सकती है।
  • परिवारों पर वित्तीय बोझ कम करना और शिक्षा को एक सार्वजनिक हित के रूप में पुनः स्थापित करना: सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में सुधार करके निजी संस्थानों की ओर बाध्य पलायन को कम किया जाना चाहिये।
    • राज्य सरकारें मनमानी शुल्क वृद्धि को रोकने और अभिभावकों के लिये निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये तमिलनाडु शुल्क विनियमन समिति के मॉडल का अनुसरण कर सकती हैं।
    • वार्षिक शुल्क का खुलासा, ऑनलाइन पोर्टल और अभिभावक समितियाँ स्कूल के वित्त को अधिक जवाबदेह बना सकती हैं।
  • उच्च शिक्षा में अनुसंधान क्षमता और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाना: भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये विश्वविद्यालयों के भीतर एक मज़बूत अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता है। इसके लिये: 
    • विश्वविद्यालय आधारित अनुसंधान और डॉक्टरेट कार्यक्रमों के लिये सार्वजनिक निधि में वृद्धि की जानी चाहिये।
    • उभरती प्रौद्योगिकियों में उद्योग-अकादमिक सहयोग और मिशन-उन्मुख अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • अमेरिका और पूर्वी एशियाई अनुसंधान संस्थानों जैसे वैश्विक मॉडलों की तर्ज पर अनुसंधान-प्रधान विश्वविद्यालयों का विकास किया जाना चाहिये।
  • शिक्षकों की उपलब्धता और शिक्षण गुणवत्ता को सुदृढ़ करना: भारत को नियमित भर्ती और विभिन्न क्षेत्रों में तर्कसंगत तैनाती के माध्यम से शिक्षकों के रिक्त पदों को भरना चाहिये।
    • DIKSHA, NISHTHA आदि के माध्यम से डिजिटल मॉड्यूल के साथ सेवाकालीन प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
    • फिनलैंड में शिक्षकों की गुणवत्ता, प्रशिक्षण और व्यावसायिक स्वायत्तता पर दिये जाने वाले ज़ोर जैसी अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से प्रेरणा ली जानी चाहिये।
  • स्कूलों के बुनियादी अवसंरचना और सुविधाओं का उन्नयन: लक्षित बुनियादी अवसंरचना नियोजन और निगरानी के लिये UDISE+ डेटा का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • शिक्षा संबंधी पहलों को जल जीवन मिशन और ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रमों जैसी योजनाओं के साथ समेकित किया जाना चाहिये।
    • बुनियादी अवसंरचना की कमियों (शौचालय, बिजली, डिजिटल पहुँच, चारदीवारी, सुरक्षित भवन) पर नज़र रखने के लिये प्रौद्योगिकी-आधारित डैशबोर्ड बनाए जाने चाहिये।
  • ड्रॉपआउट दरों पर नियंत्रण और माध्यमिक शिक्षा में छात्रों की उपस्थिति को मज़बूत करना: छात्रवृत्तियों, सशर्त नकद अंतरण और आवासीय स्कूल सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • ग्रामीण और आकांक्षी ज़िलों में माध्यमिक विद्यालयों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना जैसी सफल पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • भोजन की गुणवत्ता, पोषण मानकों और स्वच्छता में सुधार के लिये PM-POSHAN (मध्याह्न भोजन) को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
  • वैचारिक अधिगम को बढ़ावा देना और रटंत शिक्षा को कम करना: वैचारिक स्पष्टता, विश्लेषणात्मक क्षमता और वास्तविक जीवन अनुप्रयोग का परीक्षण करने के लिये मूल्यांकन प्रणालियों में सुधार किया जाना चाहिये। यशपाल समिति ने रटने पर आधारित स्कूली शिक्षा के बोझ को उजागर किया तथा अधिगम को अनुभव-आधारित बनाने की अनुशंसा की।
    • योग्यता-आधारित मूल्यांकन विकसित किये जाने चाहिये, पाठ्यपुस्तक बोझ को कम किया जाना चाहिये और NCF 2023 दिशानिर्देशों के अनुरूप राज्य पाठ्यक्रमों का पुनरीक्षण किया जाना चाहिये। 
    • OECD देशों के अनुप्रयोग-उन्मुख मूल्यांकन मॉडल जैसे अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाया जाना चाहिये।
  • व्यावसायिक शिक्षा और जीवन कौशल प्रशिक्षण का एकीकरण: कोठारी आयोग ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शिक्षा को काम और व्यावहारिक कौशल से जोड़ा जाना चाहिये।
    • NEP- 2020 के प्रस्ताव के अनुसार कक्षा 6 से व्यावसायिक विषयों को लागू किया जाना चाहिये।
    • व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने के लिये स्थानीय उद्योगों, कारीगरों और कौशल विकास संस्थानों (जैसे: ITI/PMKVY) के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
  • डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा: सरकारी स्कूलों में इंटरनेट कनेक्टिविटी, ICT लैब, स्मार्ट क्लासरूम और डिजिटल लाइब्रेरी विकसित किये जाने चाहिये। 
    • शिक्षकों को मिश्रित अधिगम तथा DIKSHA, SWAYAM और PM e-Vidya जैसे प्लेटफॉर्मों के उपयोग में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
    • वंचित क्षेत्रों में कम लागत वाले उपकरणों और सामुदायिक डिजिटल शिक्षण केंद्रों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिये ताकि कोई भी बच्चा पीछे न छूट जाए।

निष्कर्ष:

भारत की शिक्षा प्रणाली एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। यद्यपि शिक्षा तक अभिगम्यता का विस्तार हुआ है, परंतु निजी लागतों में वृद्धि और कोचिंग पर बढ़ती निर्भरता शिक्षा को संविधान के अनुच्छेद 21A के अंतर्गत प्रदत्त मूल अधिकार से एक बाज़ार-आधारित विशेषाधिकार में बदलने का जोखिम उत्पन्न कर रही है। इससे सामाजिक न्याय की भावना क्षीण होती है और दीर्घकालिक आर्थिक विकास भी प्रभावित होता है। विद्यालयी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सशक्त सार्वजनिक संस्थानों के प्रति पुनः प्रतिबद्धता न्यायसंगत वित्तपोषण और अधिगम-केंद्रित सुधार अत्यंत आवश्यक हैं। केवल इसी मार्ग से भारत SDG-4 (सर्वोत्तम शिक्षा) के सतत विकास लक्ष्य को साकार कर सकता है तथा यह सुनिश्चित कर सकता है कि शिक्षा सामाजिक गतिशीलता, समावेशी विकास और राष्ट्रीय विकास का वास्तविक साधन बन सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

संवैधानिक गारंटियों के बावजूद भारत में शिक्षा व्यवस्था पर सार्वजनिक प्रावधानों की अपेक्षा घरेलू आय का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। शैक्षणिक असमानता में वृद्धि के संरचनात्मक कारणों की विवेचना कीजिये तथा विद्यालयी शिक्षा एवं उच्च शिक्षा दोनों स्तरों पर समतामूलक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये सुधारात्मक उपाय सुझाइये।

                    

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न 1. अनुच्छेद 21A के बावजूद भारत में शिक्षा घरेलू आय पर तेज़ी से निर्भर क्यों होती जा रही है? 
सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था में संरचनात्मक कमज़ोरियों ने परिवारों को निजी स्कूलों और कोचिंग संस्थानों की ओर रुख करने पर विवश कर दिया है, जिससे शिक्षा एक बाजार-संचालित सेवा में परिवर्तित हो गई है।

प्रश्न 2. अपर्याप्त निधि ने भारत की शिक्षा प्रणाली को किस प्रकार प्रभावित किया है? 
सार्वजनिक व्यय GDP का लगभग 3-3.5% ही बना हुआ है, जो NEP- 2020 के 6% के लक्ष्य से काफी कम है, जिसके कारण शिक्षकों की कमी, अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना तथा कमज़ोर अधिगम परिणाम सामने आ रहे हैं।

प्रश्न 3. ड्रॉपआउट कम करने के लिये मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान (FLN) इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है? 
प्रारंभिक कक्षाओं में अधिगम की कमज़ोरी एक फनल-प्रभाव उत्पन्न करती है, जिसमें विद्यार्थी माध्यमिक स्तर पर पाठ्यविषयों का सामना नहीं कर पाते और कमज़ोर समालोचनात्मक आधार के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं।

प्रश्न 4. असमानता को बढ़ाने में निजी स्कूलों और कोचिंग केंद्रों की क्या भूमिका है? 
उच्च शुल्क और कोचिंग पर होने वाला व्यय अपेक्षाकृत समृद्ध परिवारों को अधिक लाभ पहुँचाता है, जिससे सामाजिक-आर्थिक तथा क्षेत्रीय स्तर पर अधिगम परिणामों की असमानताएँ और गहरी होती हैं।

प्रश्न 5. NEP- 2020 शिक्षा में संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करने का प्रयास कैसे करती है? 
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 दक्षता-आधारित अधिगम, NIPUN भारत मिशन के माध्यम से मूलभूत साक्षरता और संख्याज्ञान, DIKSHA जैसे डिजिटल मंचों तथा शासन-संबंधी सुधारों को बढ़ावा देती है, हालाँकि इसके लिये अधिक मज़बूत वित्तपोषण एवं प्रभावी क्रियान्वयन आवश्यक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. भारत में स्कूली शिक्षा के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 6% व्यय करने की अनुशंसा की गई है।
  2. NIPUN भारत मिशन 3-9 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिये मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान पर केंद्रित है।
  3. UDISE+ एक ऐसी प्रणाली है जिसका उपयोग स्कूल स्तर के डेटा को वास्तविक काल में एकत्र करने के लिये किया जाता है।

उपरोक्त कथनों में से कौन-कौन से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


 प्रश्न 2.  भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व  
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय  
  3. पाँचवीं अनुसूची  
  4. छठी अनुसूची  
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)केवल 1 और 2

(b)केवल 3, 4 और 5

(c)केवल 1, 2 और 5

(d)1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न 1.  भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

 प्रश्न 2.  जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

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