इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

17वीं लोकसभा का कामकाज: एक विस्तृत विश्लेषण

  • 17 Feb 2024
  • 17 min read

यह एडिटोरियल 12/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Parliamentary affairs: On the last session of the 17th Lok Sabha” लेख पर आधारित है। इसमें 17वीं लोकसभा के संसदीय कार्यकरण के प्रदर्शन पर प्रकाश डाला गया है जहाँ इसकी उपलब्धियों और चिंता के क्षेत्रों दोनों पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा, महिला आरक्षण विधेयक 2023, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019, डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक, निजी सदस्यों के विधेयक (PMB), जैविकविविधता (संशोधन) विधेयक 2021, तीन श्रम संहिता, तीन कृषि कानून, IPC 1860, CrPC 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को प्रतिस्थापित करने वाले तीन विधेयक

मेन्स के लिये:

17वीं लोकसभा की प्रमुख उपलब्धियाँ, 17वीं लोकसभा के कामकाज में प्रमुख चिंताएँ, लोकसभा के कामकाज में गिरावट के निहितार्थ।

17वीं लोक सभा—जिसकी बैठकें जून 2019 से फ़रवरी 2024 तक संपन्न हुईं, ने 1354 घंटों तक चले कुल 274 सत्र आयोजित किये और लगभग 97% की सराहनीय कार्य उत्पादकता दर दर्ज की।

हालाँकि 17वीं लोकसभा के संचालन को कई आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से शोरगुल के बीच और पर्याप्त बहस के बिना विधेयक पारित करने की सरकार की जल्दबाज़ी के संबंध में, जहाँ सदन की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली प्रभावित होती नज़र आई।

17वीं लोकसभा की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या रहीं? 

  • कई प्रमुख विधेयकों का पारित होना: 17वीं लोकसभा में 179 विधेयक (वित्त और विनियोग विधेयकों को छोड़कर) पारित किये गये। वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने सबसे अधिक संख्या में (इनमें से प्रत्येक ने 15%) विधेयक प्रस्तुत किये, जिसके बाद विधि एवं न्याय मंत्रालय (9%) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (9%) का स्थान रहा। इनमें शामिल कुछ प्रमुख विधेयक ये रहे:
  • निजी सदस्य विधेयक (Private Member Bills): 17वीं लोकसभा में 729 निजी सदस्य विधेयक पेश किये गए।
  • मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किये गए पत्र: 17वीं लोकसभा के दौरान मंत्रियों द्वारा 26,750 पत्र (papers) सदन पटल पर पेश किये गए।
  • संसदीय स्थायी समितियाँ (Parliamentary Standing Committees): उन्होंने कुल 691 रिपोर्टें प्रस्तुत कीं और समिति की 69% से अधिक अनुशंसाएँ सरकार द्वारा स्वीकार कर ली गईं।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग: 17वीं लोकसभा में ‘पेपरलेस ऑफिस’ की परिकल्पना को साकार करते हुए संसदीय कार्यों में डिजिटल टेक्नोलॉजी का अधिकतम उपयोग किया जा रहा है। 
    • वर्तमान में 97 प्रतिशत से अधिक प्रश्न सूचनाएँ (question notices) इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दी जा रही हैं।
  • नया संसद भवन: 19 सितंबर 2023 को संसद एक नए परिसर में स्थानांतरित हो गई। इसने भारत के लोकतंत्र के सदन के रूप में प्रतिष्ठित गोलाकार इमारत से सेंट्रल विस्टा (सिंह शीर्ष युक्त त्रिकोणीय इमारत) में एक ऐतिहासिक बदलाव को चिह्नित किया।
  • तारांकित एवं अतारांकित प्रश्न: 17वीं लोकसभा के दौरान 4,663 तारांकित प्रश्न सूचीबद्ध हुए, जिनमें से 1,116 प्रश्नों का उत्तर मौखिक रूप से दिया गया। इसी अवधि में 55,889 अतारांकित प्रश्न भी पूछे गए जिनका सदन में लिखित उत्तर प्राप्त हुआ।

17वीं लोकसभा के कार्यकरण से संबद्ध प्रमुख चिंताएँ क्या हैं? 

  • 17वीं लोकसभा में सभी पूर्णकालिक लोकसभाओं में से सबसे कम बैठकों का आयोजन: 17वीं लोक सभा की कुल 274 बैठकें हुईं। केवल चार पिछली लोक सभाओं में इससे कम बैठकें हुई थीं, जिनमें से सभी पाँच वर्ष के कार्यकाल से पूर्व ही विघटित हो गई थीं। इस लोकसभा के दौरान आयोजित 15 सत्रों में से 11 समय-पूर्व स्थगित कर दी गईं।

  • पहली बार उपाध्यक्ष का निर्वाचन नहीं: संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा यथाशक्य शीघ्र एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का चुनाव करेगी। यह पहली बार हुआ कि लोकसभा ने अपनी पूरी अवधि में उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं किया।
  • पेश किये जाने के दो सप्ताह के भीतर विधेयकों का पारित हो जाना: 17वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान पेश किये गए अधिकांश विधेयक (58% विधेयक) उन्हें पेश किये जाने के दो सप्ताह के भीतर पारित कर दिये गए।
    • जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 और महिला आरक्षण विधेयक 2023 तो पेश होने के दो दिनों के भीतर ही पारित कर दिये गए।
    • 35% विधेयक लोकसभा में एक घंटे से भी कम की चर्चा अवधि के साथ पारित कर दिये गए।

  • 20% से भी कम विधेयक समितियों को भेजे गए: 16% विधेयक ही विस्तृत संवीक्षा के लिये समितियों को भेजे गए। यह पिछली तीन लोकसभाओं के संगत आँकड़ों से निम्न स्तर को प्रदर्शित करता है।

  • कुछ ही निजी सदस्य विधेयकों और प्रस्तावों पर चर्चा: 17वीं लोकसभा में 729 निजी सदस्य विधेयक पेश किये गए जो 16वीं लोकसभा को छोड़कर अन्य सभी लोकसभाओं से उच्च संख्या को प्रदर्शित करती है। हालाँकि इनमें से केवल दो निजी सदस्य विधेयकों पर ही सदन में चर्चा हुई।
  • बजट चर्चा के लिये कम समय: गुज़रते वर्षों में लोकसभा में बजट चर्चा का समय कम होता जा रहा है।
    • वर्ष 2019 से 2023 के बीच औसतन लगभग 80% बजट पर बिना चर्चा के ही मतदान हो गया। वर्ष 2023 में तो पूरा बजट ही बिना चर्चा के पारित कर दिया गया।
  • गंभीर सुरक्षा उल्लंघन: 13 दिसंबर 2023 को संसद पर हमले (13 दिसंबर 2001) की बरसी के अवसर पर गंभीर सुरक्षा उल्लंघन का मामला सामने आया जब लोकसभा में शून्यकाल के दौरान दो व्यक्ति सार्वजनिक दीर्घा से सभा कक्ष में कूद आए और उन्होंने कनस्तरों से पीला धुँआ छोड़ते हुए नारेबाज़ी की।
  • अपराधीकरण की वृद्धि: भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति राजनीतिक क्षेत्र में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की बढ़ती उपस्थिति एवं प्रभाव को दर्शाती है।
    • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट के अनुसार 17वीं लोकसभा में निर्वाचित संसद सदस्यों में से 43% के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित थे।

लोकसभा के कार्यकरण में इस गिरावट के क्या निहितार्थ हैं? 

  • संस्थागत विश्वसनीयता का कमज़ोर पड़ना:
    • अपनी विधायी उत्तरदायित्वों को प्रभावी ढंग से निभाने की लोकसभा की असमर्थता संसदीय संस्थाओं की विश्वसनीयता एवं प्राधिकार को कमज़ोर कर सकती है।
    • इससे देश का लोकतांत्रिक ताना-बाना कमज़ोर हो सकता है और निर्वाचित प्रतिनिधियों की वैधता घट सकती है।
  • जवाबदेही में कमी:
    • संसदीय सत्रों की कम संख्या और सदस्यों की कम भागीदारी के साथ, सरकार के कार्यकरणों की पर्याप्त संवीक्षा नहीं हो पाती है।
    • इससे जवाबदेही कम हो सकती है क्योंकि विधि निर्माताओं के पास सरकार की नीतियों, निर्णयों एवं व्यय पर सवाल उठाने के कम अवसर होंगे।
  • अपर्याप्त प्रतिनिधित्व:
    • जनसंख्या के विविध हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिये संसदीय सहभागिता महत्त्वपूर्ण है।
    • जब सहभागिता कम हो जाती है तो कुछ आवाज़ें हाशिये पर चली जाती हैं, जिससे फिर कम समावेशी नीति निर्माण एवं विधान की स्थिति बनती है जो सभी संघटकों की आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में विफल हो सकते हैं।
  • अक्षम नीति गुणवत्ता:
    • सार्थक संसदीय सहभागिता में आमतौर पर विधि निर्माताओं के बीच गंभीर बहस, विचार-विमर्श और सहयोग शामिल होता है।
    • जब सहभागिता का स्तर कम हो जाता है तो अपर्याप्त आदान, संवीक्षा एवं विश्लेषण के परिणामस्वरूप नीति निर्माण की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
  • अवरुद्ध नवोन्मेष:
    • संसदीय सहभागिता प्रायः जटिल चुनौतियों के लिये नवीन समाधानों पर चर्चा करने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करती है।
    • सहभागिता में गिरावट विचारों के आदान-प्रदान और नवोन्वेषी नीति निर्माण दृष्टिकोण को बाधित कर सकती है, जिससे प्रगति और बदलती परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • भ्रष्टाचार को बढ़ावा:
    • अपराध और राजनीति के बीच का गठजोड़ भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है, क्योंकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेता अपनी शक्ति एवं प्रभाव को बनाए रखने के लिये रिश्वतखोरी, जबरन वसूली और अन्य अवैध गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं।
    • यह भ्रष्टाचार से निपटने और शासन में पारदर्शिता एवं अखंडता को बढ़ावा देने के प्रयासों को कमज़ोर करता है।

आगे की राह 

  • संसद की बेहतर छवि का निर्माण करना:
    • संसद की बेहतर छवि के निर्माण के लिये संसदीय कार्यवाही में पारदर्शिता बढ़ाने के उपाय लागू किये जाएँ, जैसे सत्रों का सीधा प्रसारण, संसदीय दस्तावेजों एवं रिकॉर्ड तक पहुँच बढ़ाना और संसद सदस्यों की उपस्थिति एवं कार्य-निष्पादन को सार्वजनिक करना।
  • सदस्यों की गुणवत्ता में सुधार:
    • राजनीतिक दलों को संसदीय चुनावों के लिये उम्मीदवारों के चयन के लिये योग्यता-आधारित मानदंड अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाए, जहाँ योग्यता, अनुभव एवं सार्वजनिक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता पर बल दिया जाए।
    • हाशिये पर स्थित समुदायों और कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर विविधता एवं समावेशिता को बढ़ावा देना।
  • एक संविधान समिति का गठन करना:
    • एक संविधान समिति (Constitution Committee) समकालीन चुनौतियों और उभरती सामाजिक आवश्यकताओं को संबोधित करने में इसकी प्रासंगिकता, पर्याप्तता एवं प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये संविधान की समय-समय पर समीक्षा कर सकती है।
    • यह सुनिश्चित करेगा कि संविधान बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में सक्षम एक जीवंत दस्तावेज़ बना रहे।
  • विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना:
    • पक्षपातपूर्ण एजेंडे पर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने के लिये संसदीय समितियों के भीतर सहयोग एवं द्विदलीय या बहुदलीय सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना उपयुक्त होगा।
    • रचनात्मक संवाद और सर्वसम्मति निर्माण को प्रोत्साहित करने से संवीक्षा प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता बढ़ सकती है और संसदीय निगरानी सुदृढ़ हो सकती है।
  • संवीक्षा समर्थन को सबल करना:
    • संसदीय समितियों को उनके संवीक्षा प्रयासों में सहायता के लिये स्वतंत्र अनुसंधान एवं विश्लेषणात्मक सहायता तक पहुँच प्रदान किया जाए।
    • इसमें संसद के भीतर समर्पित अनुसंधान इकाइयाँ स्थापित करना या जटिल मुद्दों पर विशेषज्ञता प्रदान करने के लिये बाहरी अनुसंधान संगठनों के साथ सहयोग करना शामिल हो सकता है।
  • संभावित प्रभावों का आकलन करना:
    • विभिन्न क्षेत्रों और हितधारकों पर प्रस्तावित कानून के संभावित प्रभावों का आकलन करने के लिये विभिन्न विश्लेषणात्मक उपकरणों एवं पद्धतियों का उपयोग किया जाए।
    • इसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभावों की पहचान करने के लिये लागत-लाभ विश्लेषण, जोखिम मूल्यांकन और परिदृश्य योजना-निर्माण शामिल हो सकता है।
  • आचरण के नियम स्थापित करना और लागू करना:
    • संसदीय कार्यवाही के लिये आचरण के स्पष्ट एवं प्रवर्तनीय नियम लागू किये जाएँ, जहाँ शिष्टाचार संबंधी अपेक्षाएँ, भाषणों के लिये समय सीमा, आपत्तियाँ उठाने की प्रक्रिया और व्यवधानकारी व्यवहार के परिणाम को रेखांकित किया जाए।

निष्कर्ष

भारत को सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श और सर्वसम्मति-निर्माण के माध्यम से संसद संबंधी, राजनीतिक दल संबंधी, निर्वाचन संबंधी एवं न्यायिक सुधारों सहित राजनीतिक और आर्थिक सुधार के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। यह सामूहिक प्रयास देश में हमारी लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को संवृद्ध करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में संसदीय कार्यकरण के मानकों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। भारतीय संसद के भीतर जवाबदेही और उत्पादकता बढ़ाने के उपाय भी सुझाइये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2