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श्रम संहिताओं के लिये केंद्र का प्रयत्न

  • 13 Jul 2022
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

श्रम संहिता, श्रम और रोज़गार मंत्रालय, संबंधित सरकारी पहल एवं नियम

मेन्स के लिये:

लेबर कोड और उनका मैंडेट, भारतीय अर्थव्यवस्था में लेबर कोड का महत्त्व, लेबर कोड की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार वर्ष 2020 में प्रस्तुत किये गए चार श्रम संहिताओं (2019 में वेतन संहिता अधिनियम) को लागू करने पर ज़ोर दे रही है, जो श्रम कानूनों के 29 सेटों का स्थान लेंगी।

  • श्रम संहिताओं में 4 संस्करण शामिल हैं: वेतन संहिता अधिनियम, 2019; औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2020; सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020; व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता विधेयक, 2020।

श्रम संहिताओं के बारे में:

  • वेतन संहिता अधिनियम, 2019:
    • परिचय:
      • विधेयक का उद्देश्य पुराने और अप्रचलित श्रम कानूनों को अधिक जवाबदेह एवं पारदर्शी बनाना तथा देश में न्यूनतम वेतन श्रम सुधारों की शुूरुआत का मार्ग प्रशस्त करना है।
      • यह उन सभी रोज़गार क्षेत्रों में वेतन और बोनस भुगतान को नियंत्रित करता है जहांँ कोई उद्योग, व्यापार, व्यवसाय या विनिर्माण किया जा रहा है।
      • विधेयक निम्नलिखित चार श्रम कानूनों को समाहित करता है:
        • न्यूनतम मज़दूरी कानून, 1948
        • मज़दूरी भुगतान कानून, 1936
        • बोनस भुगतान कानून, 1965
        • समान पारितोषिक कानून, 1976
      • वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिये न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान के प्रावधानों को सार्वभौमिक बनाती है तथा प्रत्येक कर्मचारी के लिये "निर्वाह का अधिकार" सुनिश्चित करने का प्रयास करती है, साथ ही न्यूनतम मज़दूरी के विधायी संरक्षण को मज़बूत करती है।
      • विधेयक में यह सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को हर महीने की 7 तारीख तक वेतन मिलेगा, साप्ताहिक आधार पर काम करने वालों को सप्ताह के आखिरी दिन वेतन मिलेगा और दैनिक वेतनभोगियों को उसी दिन वेतन मिल जाएगा।
      • केंद्र सरकार को श्रमिकों के जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम मज़दूरी तय करने का अधिकार है। यह विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित कर सकती है।
        • केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा तय की गई न्यूनतम मज़दूरी, फ्लोर वेज (Floor Wage) से अधिक होनी चाहिये।
  • औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2020:
    • औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम 1946 ऐसे औद्योगिक प्रतिष्ठान के नियोक्ताओं के लिये अनिवार्य है जहांँ 100 या अधिक श्रमिक हैं, रोज़गार की शर्तों और कामगारों के लिये आचरण के नियमों को स्थायी आदेशों/सेवा नियमों के माध्यम से स्पष्ट रूप से परिभाषित करने तथा काम करने वाले कर्मचारियों को उनसे अवगत कराना अनिवार्य बनाता है।
      • स्थायी आदेश का नया प्रावधान हर उस औद्योगिक प्रतिष्ठान पर लागू होगा जिसमें पिछले बारह महीनों के किसी भी दिन 300 या 300 से अधिक कर्मचारी कार्यरत रहे या कार्यरत थे।
      • यह पहली श्रम संबंधी स्थायी समिति द्वारा सुझाया गया था जिसने यह भी सुझाव दिया था कि सीमा को संहिता के अनुसार बढ़ाया जाए औरउपयुक्त सरकार द्वारा अधिसूचित शब्दों को हटा दिया जाए क्योंकि कार्यकारी मार्ग के माध्यम से श्रम कानूनों में सुधार अवांछनीय है तथा जहाँ तक संभव हो इससे बचना चाहिये।
      • कानून बनने के बाद आदेश राज्य सरकारों के अधिकारियों की मर्जी और पसंद पर निर्भर नहीं होंगे।
    • यह वैध हड़ताल करने के लिये नई शर्तें भी पेश करता है। वैध हड़ताल पर जाने से पहले श्रमिकों के लिये शर्तों में मध्यस्थता की कार्यवाही अवधि को शामिल किया गया है, जबकि वर्तमान में केवल समझौते का समय शामिल है।
      • किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत कोई भी व्यक्ति बिना 60 दिन के नोटिस और न्यायाधिकरण या राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित कार्यवाही के दौरान तथा ऐसी कार्यवाही के समापन के 60 दिन बाद हड़ताल पर नहीं जाएगा।
      • वर्तमान में जनोपयोगी सेवा में कार्यरत कोई व्यक्ति तब तक हड़ताल पर नहीं जा सकता जब तक कि वह हड़ताल पर जाने से पहले छह सप्ताह के भीतर या ऐसा नोटिस देने के 14 दिनों के भीतर हड़ताल का नोटिस नहीं देता, यह IR कोड अब सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लागू करने का प्रस्ताव करता है।
    • इसने छंटनी किये गए कामगारों के प्रशिक्षण के लिये नियोक्ता के योगदान के साथ पुनः कौशल निधि स्थापित करने का भी प्रस्ताव किया है, जो श्रमिक द्वारा प्राप्त अंतिम वेतन के 15 दिनों की राशि के बराबर होगी।
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020:
    • संहिता ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों, निश्चित अवधि के कर्मचारियों और गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स, अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों आदि को शामिल करके कवरेज क्षेत्र को व्यापक बना दिया है।
    • साथ ही गिग वर्कर्स को नियोजित करने वाले एग्रीगेटर्स को सामाजिक सुरक्षा के लिये अपने वार्षिक टर्नओवर का 1-2% योगदान करना होगा, कुल योगदान एग्रीगेटर द्वारा गिग एवं प्लेटफॉर्म वर्कर्स को देय राशि के 5% से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति सहिंता विधेयक, 2020:
    • इसने अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगारों को ऐसे श्रमिक के रूप में परिभाषित किया है जो एक राज्य से आकर दूसरे राज्य में अपने दम पर रोज़गार प्राप्त करते हैं और प्रतिमाह 18,000 रुपए तक आय अर्जित करते हैं।
    • प्रस्तावित परिभाषा संविदात्मक रोज़गार की वर्तमान परिभाषा से अलग है।
    • इसने कार्यस्थलों के पास श्रमिकों के लिये अस्थायी आवास हेतु पहले के प्रावधान को हटा दिया है और यात्रा भत्ता का प्रस्ताव दिया है जो कर्मचारी को रोज़गार के स्थान से उनके मूल स्थान तक की यात्रा के लिये नियोक्ता द्वारा भुगतान की जाने वाली एकमुश्त राशि का भुगतान किया जाएगा।

श्रम संहिता के लाभ:

  • वेतन अधिनियम की संहिता, 2019:
    • इससे मुकदमेबाज़ी कम होने और नियोक्‍ता के लिये इसका अनुपालन सरलता से किये जाने की उम्‍मीद है।
    • यह न्यूनतम मज़दूरी की मौजूदा 2000 से अधिक दरों से देश में न्यूनतम मज़दूरी की संख्या को काफी हद तक कम कर देगा।
    • इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्‍यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्‍यवस्‍था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
  • जटिल कानूनों का समेकन और सरलीकरण:
    • तीन संहिताएँ (IR, SS और OSHW) 25 केंद्रीय श्रम कानूनों को कम करके श्रम कानूनों को सरल बनाती हैं।
      • यह उद्योग और रोज़गार को बढ़ावा देगा तथा परिभाषाओं की बहुलता एवं व्यवसायों के लिये प्राधिकरण की बहुलता को कम करेगा।
  • एकल लाइसेंसिंग तंत्र:
    • संहिता एकल लाइसेंसिंग तंत्र प्रदान करती है।
      • यह लाइसेंसिंग तंत्र में व्यापक सुधार लाकर उद्योगों को प्रोत्साहन देगा। वर्तमान में उद्योगों को विभिन्न कानूनों के तहत अपने लाइसेंस के लिये आवेदन करना होता है।
  • आसान विवाद समाधान:
    • संहिता औद्योगिक विवादों से निपटने वाले पुरातन कानूनों को भी सरल बनाती है और विवाद प्रक्रियाओं को संशोधित करती है जो विवादों के शीघ्र समाधान के लिये मार्ग प्रशस्त करेगी।
  • व्यापार करने में आसानी:
    • कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इस तरह के सुधार से निवेश को बढ़ावा मिलेगा तथा व्यापार करने में आसानी होगी।
    • यह जटिलता को कम करता है और आंतरिक विरोधाभास बढ़ाता है तथा सुरक्षा/कार्य स्थितियों पर नियमों का आधुनिकीकरण करता है।
  • श्रमिकों हेतु अन्य लाभ:
    • तीनों संहिताएँ निश्चित अवधि के रोज़गार को बढ़ावा देंगी, मज़दूर संघ के प्रभाव को कम और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल का विस्तार करेंगी।
  • लैंगिक समानता:
    • महिलाओं को हर क्षेत्र में रात में काम करने की अनुमति दी जानी चाहिये, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि उनकी सुरक्षा का प्रावधान नियोक्ता द्वारा किया जाए और रात में काम करने से पहले महिलाओं की सहमति ली जाए।
    • मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया हैप्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्त्साहन योजना (PMRPY) के तहत महिलाओं को खदानों में काम करने की अनुमति दी गई थी।
    • महिला श्रमिकों को उनके पुरुष समकक्षों के समान भुगतान करना।

श्रम संहिताओं के समक्ष चुनौतियांँ:

  • संवैधानिक चुनौती:
    • श्रम समवर्ती सूची का विषय होने के कारण केंद्र और राज्यों दोनों को इस पर कानून एवं नियम बानने का अधिकार है।
      • जबकि संसद ने वर्ष 2020 में चार श्रम संहिताओं को मंज़ूरी दे दी और केंद्र ने सभी चार संहिताओं के लिये मसौदा नियमों को पूर्व-प्रकाशित कर दिया था, वहीँ कुछ राज्य सरकारों ने अभी तक प्रक्रिया को पूरा नहीं किया है।
  • औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक:
    • यह 300 से कम श्रमिकों वाले छोटी कंपनियों में श्रमिकों के श्रम अधिकारों में कमी करेगा और कंपनियों को श्रमिकों के लिये मनमानी सेवा शर्तें पेश करने में सक्षम बनाएगा।
  • मज़दूरी संहिता अधिनियम:
    • यह आरोप लगाया गया है कि नया वेतन कोड संगठित श्रमिकों की आय क्षमता और क्रय शक्ति को बढ़ाएगा जबकि असंगठित श्रमिकों में भुखमरी को और आगे बढ़ाएगा।
  • बहिष्करण की चुनौती:
    • मसौदा नियम श्रम सुविधा पोर्टल पर सभी श्रमिकों (आधार कार्ड के साथ) के पंजीकरण को किसी भी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने में सक्षम होने के लिये अनिवार्य करते हैं।
    • इससे श्रमिकों का आधार-संचालित बहिष्करण हो जाएगा और जानकारी की कमी के कारण श्रमिक स्वयं पंजीकरण करने में असमर्थ होंगे।
  • शहरी केंद्रित:
    • ये कोड असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बहुमत के लिये सामाजिक सुरक्षा के किसी भी रूप का विस्तार करने में विफल रहते हैं, जिसमें प्रमुख रूप से प्रवासी श्रमिक, स्व-नियोजित श्रमिक, घरेलू श्रमिक और अन्य कमज़ोर समूह सहित ग्रामीण क्षेत्र शामिल हैं।
  • अधिकार विहीन आधारित ढांँचा:
    • संहिता सामाजिक सुरक्षा को एक अधिकार के रूप में महत्त्व नहीं देती है, न ही यह संविधान द्वारा निर्धारित इसके प्रावधान का संदर्भ प्रदान करती है।

आगे की राह

  • प्रवासी कार्यबल की देखभाल:
    • मसौदा नियमों के लिये यह स्पष्ट रूप से बताना महत्त्वपूर्ण है कि प्रवासी असंगठित कार्यबल के संबंध में उनकी प्रयोज्यता कैसे सामने आएगी।
    • इस संदर्भ में सरकार की एक भारत एक राशन कार्ड की योजना सही दिशा में एक कदम है।
  • CSR व्यय के तहत कौशल:
    • बड़े कॉरपोरेट घरानों को भी CSR खर्च के तहत असंगठित क्षेत्रों में लोगों को कुशल बनाने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये।
  • अदृश्य श्रम को पहचानना:
    • घरेलू कामगारों के अधिकारों को पहचानने और बेहतर काम करने की स्थिति को बढ़ावा देने के लिये जल्द-से-जल्द एक राष्ट्रीय नीति लाने की ज़रूरत है।
  • अन्य उपाय:
    • असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों के लिये भी एक बहुत ही मज़बूत, विश्वसनीय और अनुकूल सामाजिक सुरक्षा पैकेज तैयार करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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