इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

लोकसभा की दक्षता और निहितार्थ

  • 30 May 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा, संसद, लोकसभा, राज्यसभा, बजट सत्र की दक्षता

मेन्स  के लिये:

लोकसभा की दक्षता और निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

17वीं लोकसभा जो अपने अंतिम वर्ष में प्रवेश कर रही है, ने अब तक 230 बैठकें की हैं।

  • पूरे पाँच वर्ष के कार्यकाल को पूरा करने वाली सभी लोकसभाओं की तुलना में 16वीं लोकसभा की बैठक के दिन सबसे कम (331) हैं। एक और वर्ष शेष होने एवं वर्ष में 58 औसत बैठक दिवसों के साथ 17वीं लोकसभा के 331 दिनों से अधिक बैठने की संभावना नहीं है। 
  • यह वर्ष 1952 के बाद से इसे सबसे छोटी पूर्ण अवधि वाली लोकसभा बना सकता है।

वर्तमान लोकसभा के अब तक के कार्य:

  • बजट सत्र 2023 की दक्षता: 
    • जनवरी 2023 से अप्रैल 2023 तक आयोजित नवीनतम सत्र (बजट सत्र) में लगातार व्यवधानों के बीच सीमित विधायी गतिविधि और बजट पर न्यूनतम चर्चा देखी गई है।
      • इस सत्र में लोकसभा ने अपने निर्धारित समय (46 घंटे) के 33% और राज्यसभा ने (32 घंटे) 24% कार्य किया।
    • वर्ष 1952 के बाद से यह छठा सबसे छोटा बजट सत्र रहा है। लोकसभा ने वित्तीय कामकाज़ पर 18 घंटे लगाए, जिनमें से 16 घंटे बजट की सामान्य चर्चा पर खर्च किये गए।
  • विगत ग्यारह सत्र:
    • वर्ष 2019 के बजट सत्र से लेकर 2023 के बजट सत्र तक 150 विधेयक पेश किये जा चुके हैं और 131 विधेयक पारित किये जा चुके हैं।
    • पहले सत्र में 38 विधेयक पेश किये गए और 28 पारित किये गए। तब से पेश किये गए और पारित किये गए विधेयकों की संख्या में गिरावट आई है।
    • पिछले लगातार चार सत्रों में से प्रत्येक में 10 से कम विधेयक पेश या पारित किये गए हैं।
  • सभा दक्षता: 
    • वर्ष 2022 में लोकसभा का कामकाज़ 177 घंटे और राज्यसभा में 127.6 घंटे का था।
    • वर्ष 2021 में लोकसभा में 131.8 घंटे और राज्यसभा में 104 घंटे कामकाज़ हुआ था।
    • इसी प्रकार वर्ष 2020 में निचले सदन की उत्पादकता 111.2 घंटे और उच्च सदन की 93.8 घंटे थी।
    • इस वर्ष के बजट सत्र के पहले भाग के दौरान लोकसभा ने 12 घंटे के आवंटित समय की तुलना में कुल 14 घंटे 45 मिनट का समय चर्चा के लिये समर्पित किया।
  • संसद में तर्क-वितर्क की कमी:
    • 17वीं लोकसभा में केवल 11 अतिलघु अवधि की चर्चाएँ और आधे घंटे की एक चर्चा हुई तथा नवीनतम सत्र के दौरान कोई भी चर्चा नहीं हुई
    • लोकसभा में प्रश्नकाल निर्धारित समय के विपरीत केवल 19% और राज्यसभा में निर्धारित समय के विपरीत 9% चला।
    • किसी भी निजी सदस्य द्वारा न तो बिल पेश किया गया और न ही चर्चा के लिये लाया गया। प्रत्येक सदन ने केवल एक निजी सदस्य संकल्प पर चर्चा की ।
  • संसदीय समिति के तहत निम्न परीक्षण:
    • 17वीं लोकसभा के दौरान अब तक केवल 14 विधेयकों को आगे की जाँच के लिये संसदीय समिति के पास भेजा गया है।  
      • 15वीं और 14वीं लोकसभा में क्रमश: 71% और 60% की तुलना में 16वीं लोकसभा में प्रस्तुत किये गए बिलों में से 25% कम-से-कम समितियों को भेजे गए थे। यह विशेषज्ञ जाँच के अधीन राष्ट्रीय कानून की गिरावट की प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
  • डिप्टी स्पीकर के चुनाव में विलंब:
    • संविधान के अनुच्छेद 93 में कहा गया है कि लोकसभा जल्द से जल्द सदन के दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी। 17वीं लोकसभा ने अपने पांँच वर्ष के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में प्रवेश करते हुए भी एक उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं किया है।

लोकसभा की न्यूनतम उत्पादकता का कारण:

  • बार-बार होने वाली रुकावटें:
    • 17वीं लोकसभा में विपक्षी दलों द्वारा लगातार व्यवधान और विरोध का अनुभव किया गया। इन व्यवधानों के परिणामस्वरूप समय की महत्त्वपूर्ण हानि हुई तथा उत्पादकता में कमी आई है।
  • समझौते का अभाव:
    • सत्ताधारी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण मामलों पर सहमति का अभाव था। संसद सदस्यों के बीच सहमति की कमी के कारण महत्त्वपूर्ण विधेयकों और कानूनों को पारित करने में देरी हुई।
  • लघु सत्र:
    • 17वीं लोकसभा के पिछले सत्र की तुलना में लघु  सत्र हुए। आवश्यक विधेयकों और मुद्दों पर विस्तृत चर्चा और बहस के लिये यह सीमित समय रहा। परिणामस्वरूप कई महत्त्वपूर्ण मामले पर्याप्त ध्यान दिये बिना लंबित रह गए।

लोकसभा की कम उत्पादकता के निहितार्थ: 

  • विलंबित विधान:
    • प्राथमिक निहितार्थ महत्त्वपूर्ण विधेयकों और कानूनों को पारित करने में देरी है।
    • जब लोकसभा प्रभावी ढंग से कार्य करने में असमर्थ होती है, तो कराधान, बुनियादी ढाँचे और सामाजिक कल्याण जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित विधेयकों को स्थगित किया जा सकता है।
    • यह देरी देश की प्रगति को बाधित करती है क्योंकि यह आवश्यक नीतियों और सुधारों के कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
  • जवाबदेही और निरीक्षण की कमी: 
    • जब लोकसभा उत्पादक नहीं होती है, तो यह संसद के सदस्यों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराने की प्रक्रिया में बाधा डालती है। अपर्याप्त बहस और जाँच के परिणामस्वरूप प्रस्तावित कानूनों और निर्णयों की पूरी तरह से जाँच नहीं हो पाती है।
    • यह जाँच और संतुलन के लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमज़ोर करता है, जिससे कार्यपालिका को पर्याप्त निरीक्षण के बिना निर्णय लेने की अनुमति मिलती है।
  • सार्वजनिक विश्वास में कमी:
    • यह लोकतांत्रिक संस्थानों में नागरिकों के विश्वास को नुकसान पहुँचा सकता है। जब निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में असमर्थ होते हैं, तो यह जनता के बीच मोहभंग और असंतोष की भावना पैदा करता है।
    • इससे नागरिकों की भागीदारी में गिरावट आ सकती है, एक स्वस्थ लोकतंत्र की नींव का क्षरण हो सकता है।
  • संसाधनों की बर्बादी:  
    • लोकसभा की विशेषत: करदाताओं के पैसे की कम उत्पादकता बेकार संसाधनों में बदल जाती है।
    • संसद सदस्यों के वेतन और भत्तों का वित्तपोषण राजकोष से होता है। यदि व्यवधान या उत्पादकता में कमी के कारण इन संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया जाता है तो इसका परिणाम सार्वजनिक धन की बर्बादी होती है जिसका उपयोग अन्य विकासात्मक उद्देश्यों के लिये किया जा सकता था।
  • आर्थिक प्रभाव:  
    • एक कम उत्पादक लोकसभा का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। महत्त्वपूर्ण आर्थिक मुद्दों पर विलंबित या अपर्याप्त कानून विकास, निवेश और विकास को बाधित कर सकते हैं।
    • निश्चितता और कुशल निर्णय लेने की कमी निवेशकों के विश्वास को कम कर सकती है जिससे आर्थिक प्रगति में मंदी आ सकती है।

आगे की राह 

  • भारत में संसदीय लोकतंत्र की संस्कृति को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इसमें सांसदों के बीच सम्मान, मर्यादा तथा व्यावसायिकता की भावना को बढ़ावा देना शामिल है। सदस्यों को जनप्रतिनिधियों के रूप में अपनी भूमिका को प्राथमिकता देने तथा बहस और चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • संसद के भीतर रचनात्मक संवाद तथा बहस की संस्कृति को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। राजनेताओं को विघटनकारी रणनीति या व्यक्तिगत हमलों का सहारा लेने के बजाय नीतिगत मामलों पर ठोस चर्चाओं में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • कठोर पूछताछ, सरकारी कार्यों की जाँच और महत्त्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों पर गहन बहस के माध्यम से संसद के निरीक्षण कार्य को मज़बूत करने के प्रयास किये जाने चाहिये। इसके लिये यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सांसदों को प्रासंगिक जानकारी समय पर और पारदर्शी तरीके से प्रदान की जाए।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2