भारतीय राजव्यवस्था
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव
- 12 Jul 2021
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:अध्यक्ष और उपाध्यक्ष से संबंधित विभिन्न संवैधानिक प्रावधान मेन्स के लिये:विधानसभा एवं लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका और शक्तियाँ |
चर्चा में क्यों?
महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) का पद फरवरी, 2021 से खाली है, जबकि लोकसभा और कई राज्य विधानसभाओं में उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) नहीं है।
- संविधान में प्रावधान है कि अध्यक्ष का पद कभी भी खाली नहीं होना चाहिये।
प्रमुख बिंदु:
अध्यक्ष का चुनाव:
- योग्यताएँ:
- भारतीय संविधान के अनुसार, अध्यक्ष को सदन का सदस्य होना आवश्यक है।
- हालाँकि अध्यक्ष चुने जाने के लिये कोई विशिष्ट योग्यता निर्धारित नहीं की गई है, संविधान और देश के कानूनों की समझ को अध्यक्ष पद धारक हेतु एक प्रमुख गुण माना जाता है।
- आमतौर पर सत्ताधारी दल के सदस्य को अध्यक्ष चुना जाता है। यह प्रक्रिया उन वर्षों में विकसित हुई है जहाँ सत्तारूढ़ दल सदन में अन्य दलों और समूहों के नेताओं के साथ अनौपचारिक परामर्श के बाद अपने उम्मीदवार को नामित करता है।
- यह परंपरा सुनिश्चित करती है कि एक बार निर्वाचित होने के बाद अध्यक्ष को सदन के सभी वर्गों का सम्मान प्राप्त हो।
- मतदान: अध्यक्ष (उपसभापति के साथ) को लोकसभा सदस्यों में से सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से चुना जाता है।
- एक बार उम्मीदवार पर निर्णय हो जाने के बाद उसके नाम का प्रस्ताव आमतौर पर प्रधानमंत्री या संसदीय कार्य मंत्री द्वारा किया जाता है।
- अध्यक्ष का कार्यकाल: अध्यक्ष अपने चुनाव की तिथि से अगली लोकसभा की पहली बैठक (5 वर्ष के लिये) के ठीक पहले तक पद धारण करता है।
- एक बार निर्वाचित अध्यक्ष फिर से चुनाव के लिये पात्र है।
- जब भी लोकसभा भंग होती है, अध्यक्ष अपना पद खाली नहीं करता है और नव-निर्वाचित लोकसभा की बैठक तक अपने पद पर बना रहता है।
- अध्यक्ष की भूमिका और शक्तियाँ:
- व्याख्या: वह भारत के संविधान के प्रावधानों, लोकसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियमों और सदन के भीतर संसदीय मिसालों का अंतिम व्याख्याकार है।
- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक: वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
- किसी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच गतिरोध को दूर करने के लिये राष्ट्रपति द्वारा ऐसी बैठक बुलाई जाती है।
- बैठक का स्थगन: वह सदन को स्थगित कर सकता है या सदन की कुल संख्या का दसवाँ हिस्सा (जिसे गणपूर्ति कहा जाता है) की अनुपस्थिति में बैठक को स्थगित कर सकता है।
- निर्णायक मत: स्पीकर पहली बार में वोट नहीं देता लेकिन बराबरी की स्थिति में; जब किसी प्रश्न पर सदन समान रूप से विभाजित हो जाता है, तो अध्यक्ष को मत देने का अधिकार होता है।
- ऐसे वोट को निर्णायक मत कहा जाता है और इसका उद्देश्य गतिरोध का समाधान करना है।
- धन विधेयक: वह निर्णय लेता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और इस प्रश्न पर उसका निर्णय अंतिम होता है।
- निरर्ह सदस्य: दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत दल-बदल के आधार पर उत्पन्न होने वाले लोकसभा के किसी सदस्य की अयोग्यता के प्रश्नों का निर्णय स्पीकर ही करता है।
- भारतीय संविधान के 52वें संशोधन में यह शक्ति स्पीकर में निहित है।
- वर्ष 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इस संबंध में अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
- भारतीय संसदीय समूह की अध्यक्षता: वह भारतीय संसदीय समूह (IPG) के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जो भारत की संसद और दुनिया की विभिन्न संसदों के बीच एक कड़ी है।
- वह देश में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के पदेन अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करता है।
- समितियों का गठन: सभा की समितियाँ अध्यक्ष द्वारा गठित की जाती हैं और अध्यक्ष के समग्र निर्देशन में कार्य करती हैं।
- सभी संसदीय समितियों के अध्यक्ष इसके द्वारा ही मनोनीत किये जाते हैं।
- इसकी अध्यक्षता में कार्य सलाहकार समिति (Business Advisory Committee), सामान्य प्रयोजन समिति (General Purposes Committee) और नियम समिति (Rules Committee) जैसी समितियाँ सीधे काम करती हैं।
- अध्यक्ष के विशेषाधिकार: अध्यक्ष सदन, उसकी समितियों और सदस्यों के अधिकारों तथा विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है।
- स्पीकर को पद से हटाना: निम्नलिखित शर्तों के अंतर्गत स्पीकर को कार्यकाल से पहले अपने पद को खाली करना पड़ सकता है:
- यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
- यदि वह उपाध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफा दे देता है।
- यदि उसे लोकसभा के सभी सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है।
- ऐसा प्रस्ताव अध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है।
- जब अध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव सदन के विचाराधीन हो, तो वह बैठक में उपस्थित हो सकता है लेकिन अध्यक्षता नहीं कर सकता।
लोकसभा का उपाध्यक्ष:
- निर्वाचन:
- लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने के ठीक बाद उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुनाव भी लोकसभा द्वारा अपने सदस्यों में से किया जाता है।
- उपाध्यक्ष के चुनाव की तिथि अध्यक्ष द्वारा (अध्यक्ष के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा) निर्धारित की जाती है।
- कार्यकाल की अवधि और पदमुक्ति:
- अध्यक्ष की तरह ही उपाध्यक्ष भी आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल (5 वर्ष) तक अपने पद पर बना रहता है।
- उपाध्यक्ष निम्नलिखित तीन मामलों में अपना पद पहले खाली कर सकता है:
- यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
- यदि वह अध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफा दे देता है।
- यदि उसे लोकसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है।
- ऐसा प्रस्ताव उपाध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है।
- ज़िम्मेदारियाँ और शक्तियाँ:
- उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उसके कर्तव्यों का पालन करता है।
- सदन की बैठक से अध्यक्ष के अनुपस्थित रहने की स्थिति में उपाध्यक्ष उसके रूप में कार्य करता है।
- यदि अध्यक्ष ऐसी बैठक से अनुपस्थित रहता है तो वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की भी अध्यक्षता करता है।
- उपाध्यक्ष के पास एक विशेष विशेषाधिकार होता है अर्थात् जब भी उसे संसदीय समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाता है तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाता है।
- उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उसके कर्तव्यों का पालन करता है।