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विपरीत परिसंचरण में सुस्ती

  • 30 May 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विपरीत परिसंचरण, सतही जल, अंटार्कटिक, ग्रीनहाउस प्रभाव, महासागरीय धाराएँ

मेन्स के लिये:

विपरीत परिसंचरण और जलवायु स्थिरता को बनाए रखने में इसका महत्त्व, अंटार्कटिक के गहरे समुद्र की धाराओं की गति में कमी और इसके परिणाम  

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में अंटार्कटिका में गहरे समुद्र की धाराएँ पहले की तुलना में धीमी हो रही हैं जो संभावित रूप से महत्त्वपूर्ण विपरीत परिसंचरण को बाधित कर रही हैं।

  • अंटार्कटिक समुद्र के महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों का संकेत देते हुए पिछले तीन दशकों में गहरे समुद्र में परिसंचरण और ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट देखी गई है।
  • इस परिघटना के परिणाम विपरीत परिसंचरण पर अंटार्कटिक बर्फ के पिघलने के प्रभावों से और अधिक रेखांकित होते हैं।

विपरीत परिसंचरण:

  • परिचय: 
    • विपरीत परिसंचरण महासागरीय धाराओं के वैश्विक नेटवर्क को संदर्भित करता है जो विश्व के महासागरों में ऊष्मा, कार्बन और पोषक तत्त्वों का पुनर्वितरण करता है।
    • अंटार्कटिक में इसकी सतह के घने ऑक्सीजन युक्त पानी का डूबना तथा समुद्र तल के साथ इसका फैलाव और दूर के क्षेत्रों में धीमी वृद्धि शामिल है।
  • प्रक्रिया:
    • ध्रुवीय क्षेत्रों में सतही जल कम तापमान और ठंडी वायु राशियों के संपर्क में आने के कारण ठंडा हो जाता है।
    • शीतलन समुद्री बर्फ का निर्माण करता है, जो आसपास के समुद्री जल से मीठे जल को निकालता है। यह प्रक्रिया शेष जल की लवणता और घनत्व में वृद्धि कर देती है।
    • उच्च लवणता और घनत्व के कारण सतह का जल सघन हो जाता है जिससे इसके डूबने की संभावना अधिक हो जाती है।
      • घना जल गहरी परतों में डूब जाता है, जिसे सतही जल के रूप में भी जाना जाता है।
    • घने जल के डूबने से जल विपरीत परिसंचरण होने लगता  है। यह भूमध्य रेखा की ओर प्रवाहित होता है, जबकि एक ही समय में निचले अक्षांशों से सतह का गर्म जल ध्रुवों की ओर प्रवाहित होता है।
    • जैसे-जैसे गहरे जल आगे की ओर प्रवाहित होता है, यह धीरे-धीरे आस-पास के जल के साथ मिल जाता है, साथ ही  गर्मी, कार्बन और पोषक तत्त्वों का आदान-प्रदान करता है। अंतिम रूप से इस संशोधित जल की अपवेलिंग अन्य क्षेत्रों में होती है जो विपरीत परिसंचरण को पूर्ण करता है।
  • महत्त्व: 
    • पृथ्वी पर जलवायु स्थिरता बनाए रखने में परिवर्तित परिसंचरण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है
    • यह ग्रह की जलवायु प्रणाली को प्रभावित करते हुए ऊष्मा, कार्बन और पोषक तत्त्वों के परिवहन की सुविधा प्रदान करता है।
    • इसके अतिरिक्त यह गहरे समुद्र में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करता है तथा समुद्री जीवन और उसके पारिस्थितिक तंत्र का समर्थन करता है।
  • परिवर्तित परिसंचरण में कमी का प्रभाव: 
    • अंटार्कटिका में गहरे समुद्र की धाराओं की धीमी गति देखी गई जो जलवायु स्थिरता के बारे में चिंता उत्पन्न करती है।
    • नीचे के जल के कम प्रवाह के परिणामस्वरूप गहरे समुद्र में ऑक्सीजन की आपूर्ति में गिरावट आती है जिससे ऑक्सीजन पर निर्भर जीव प्रभावित होते हैं।
    • ऑक्सीजन के स्तर में कमी समुद्री खाद्य शृंखला में व्यवहार परिवर्तन, पलायन और व्यवधान उत्पन्न कर सकती है।
  • अंटार्कटिक की बर्फ के पिघलना में इसका योगदान: 
    • अंटार्कटिक की बर्फ के पिघलने से अंटार्कटिक तलीय जल का निर्माण बाधित होता है जिससे सतही जल ताज़ा और कम घना हो जाता है जिससे उसका डूबना बाधित हो जाता है।
      • यह व्यवधान परिवर्तित परिसंचरण को कमज़ोर करता है जिससे गहरे समुद्र में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है।
    • नीचे के जल को गर्म तथा ऑक्सीजन रहित पानी से बदलने से ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट आती है।
    • इसके अतिरिक्त पिघलने वाली बर्फ थर्मल विस्तार के माध्यम से समुद्र के बढ़ते स्तर में योगदान करती है क्योंकि गर्म पानी अधिक स्थान घेरता है।

अंटार्कटिक की प्रमुख विशेषताएँ:

  • वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये भारत सहित कई देशों द्वारा स्थापित लगभग 40 स्थायी स्टेशनों को छोड़कर अंटार्कटिक निर्जन है।
    • अंटार्कटिक महाद्वीप पर भारत के दो अनुसंधान केंद्र हैं- 'मैत्री' (1989 में स्थापित) शिरमाकर हिल्स में तथा 'भारती' (2012 में स्थापित) लारसेमैन हिल्स में।
    • भारत द्वारा अंटार्कटिक कार्यक्रम के तहत अब तक यहाँ 40 वैज्ञानिक अभियान पूरे किये जा चुके हैं। आर्कटिक सर्कल के ऊपर स्वालबार्ड में 'हिमाद्री' स्टेशन के साथ भारत ध्रुवीय क्षेत्रों में शोध करने वाले देशों के एक विशिष्ट समूह में शामिल है।
  • अंटार्कटिक पृथ्वी का सबसे दक्षिणतम महाद्वीप है। इसमें भौगोलिक रूप से दक्षिणी ध्रुव शामिल है और यह दक्षिणी गोलार्द्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र में स्थित है।
  • 14,000,000 वर्ग किलोमीटर (5,4 लाख वर्ग मील) में विस्तृत यह विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है।
  • भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम एक बहु-अनुशासनात्मक, बहु-संस्थागत कार्यक्रम है, जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के ‘नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिक एंड ओशियन रिसर्च’ (National Centre for Antarctic and Ocean Research) के नियंत्रण में है।
  • भारत ने आधिकारिक रूप से अगस्त 1983 में अंटार्कटिक संधि प्रणाली को स्वीकार किया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. महासागरीय धाराएँ और जलराशियाँ समुद्री जीवन और तटीय पर्यावरण पर अपने प्रभावों में किस प्रकार परस्पर भिन्न हैं? उपयुक्त उदाहरण दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019)

प्रश्न. समुद्री धाराओं को प्रभावित करने वाली शक्तियाँ कौन सी हैं? विश्व के मत्स्य-उद्योग में इनके योगदान का वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: द हिंदू

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