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शासन व्यवस्था

कृषि कानूनों को निरस्त करना

  • 22 Nov 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि कानून, कृषि उपज विपणन समिति, न्यूनतम समर्थन मूल्य, सर्वोच्च न्यायाल

मेन्स के लिये:

कानून को निरस्त करने की प्रक्रिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की।

  • संसद (लोकसभा + राज्यसभा + राष्ट्रपति) के पास किसी भी कानून को बनाने, संशोधित करने और निरस्त करने का अधिकार है।
  • कृषि कानूनों को लेकर एक साल से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा राज्यों के किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था।

प्रमुख बिंदु

  • तीन कृषि कानून:
    • किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन व सुविधा) अधिनियम, 2020: इसका उद्देश्य मौजूदा कृषि उपज विपणन समिति (APMC) को मंडियों के बाहर कृषि उपज में व्यापार करने की अनुमति देना है।
    • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण व संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020: यह अनुबंध खेती के लिये एक फ्रेमवर्क प्रदान करता है। 
    • आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020: इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाना है।
  • कानून बनाने का कारण:
    • कृषि विपणन में सुधार की लंबे समय से मांग की जा रही है, यह एक ऐसा विषय है जो राज्य सरकारों के दायरे में आता है। 
    • केंद्र सरकार ने 2000 के दशक के प्रारंभ में राज्यों के APMC अधिनियमों में सुधारों पर ज़ोर देकर इस मुद्दे को उठाया।
    • तत्कालीन सरकार के तहत कृषि मंत्रालय ने वर्ष 2003 में एक मॉडल APMC अधिनियम तैयार किया और इसे राज्यों के बीच परिचालित किया।
      • इसके पहले आगामी सरकारों ने भी इन सुधारों पर ज़ोर दिया लेकिन यह देखा गया कि यह राज्य का विषय है, केंद्र को राज्यों के मॉडल APMC अधिनियम अपनाने में बहुत कम सफलता मिली है।
    • इसी पृष्ठभूमि में सरकार ने इन कानूनों को पारित करके इस क्षेत्र में सुधार किये।
  • किसानों के विरोध का कारण:
    • कृषि कानूनों को निरस्त करना: विरोध करने वाले किसान संगठनों की पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण मांग तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करना है।
      • किसानों के अनुसार, कानून बड़े निगमों के अनुकूल बनाया गया है जो भारतीय खाद्य और कृषि व्यवसाय पर हावी होना चाहते हैं तथा ये किसानों की बातचीत करने की शक्ति को कमज़ोर करेंगे। साथ ही इससे बड़ी निजी कंपनियों, निर्यातकों, थोक विक्रेताओं और प्रसंस्करण को बढ़ावा मिल सकता है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य: किसानों की दूसरी मांग उचित मूल्य पर फसलों की खरीद सुनिश्चित करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी है।
      • किसान  न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और पारंपरिक खाद्यान्न खरीद प्रणाली को जारी रखने के लिये एक विधेयक के रूप में लिखित आश्वासन प्राप्त करने की भी मांग कर रहे हैं।
      • किसान संगठन चाहते हैं कि APMC या मंडी व्यवस्था को सुरक्षित रखा जाए।
    • विद्युत (संशोधन) विधेयक: किसानों की तीसरी मांग विद्युत (संशोधन) विधेयक को वापस लेने की है, क्योंकि उनका मानना है कि इससे उन्हें मुफ्त बिजली नहीं मिलेगी।
    • स्वामीनाथन आयोग:  किसान स्वामीनाथन आयोग द्वारा अनुशंसित एमएसपी की मांग कर रहे हैं।
      • स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसपी में सरकार को उत्पादन की औसत लागत की कम-से-कम 50% वृद्धि करनी चाहिये। इसे C2 + 50% सूत्र के रूप में भी जाना जाता है।
      • इसमें किसानों को 50% प्रतिफल/रिटर्न देने के लिये पूंजी एवं भूमि पर लगान (जिसे ’C2’ कहा जाता है) को भी शामिल किया गया है।
  • क्रियान्वयन पर रोक:
    • जनवरी 2021 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई थी।
      • ये  कृषि कानून अध्यादेश के प्रख्यापित होने तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन पर रोक लगाने तक केवल 221 दिनों (5 जून, 2020 से 12 जनवरी,  2021) तक ही लागू रहे।
    • रोक के बाद से कानूनों को निलंबित कर दिया गया है। सरकार ने तीन कृषि कानूनों में से एक के माध्यम से अधिनियम में संशोधन करते हुए स्टॉक सीमा का निर्धारण करने के लिये आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के पुराने प्रावधानों का उपयोग किया है।
  • कानून को निरस्त करने के प्रभाव:
    • परामर्श की आवश्यकता:
      • निरसन इस बात को रेखांकित करता है कि ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था में भविष्य में बेहतर सुधार के किसी भी प्रयास हेतु न केवल सुधारों के बेहतर डिज़ाइन की, बल्कि व्यापक स्तर पर स्वीकृति के लिये भी परामर्श की आवश्यकता होगी।
      • इन कानूनों के निरसन से सरकार सुधारों को फिर से आगे बढ़ाने में हिचकिचाएगी।
        • निःसंदेह सरकार को सुधार के लिये बहुत सावधानी बरतनी होगी।
    • किसानों की निम्न आय:
      • यह देखते हुए कि भारत में औसत जोत का आकार मात्र 0.9 हेक्टेयर (2018-19) है, यह कहा जा सकता है कि जब तक कोई किसान उच्च-मूल्य वाली कृषि को नहीं अपनाता है- जहाँ रसद, भंडारण, प्रसंस्करण, ई-कॉमर्स और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में निजी निवेश आवश्यक है, किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो सकती है।
      • इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन क्षेत्रों में उत्पादन के साथ-साथ इनपुट विपणन में भी सुधारों की आवश्यकता है, जिसमें भूमि पट्टा बाज़ार और सभी इनपुट सब्सिडी- उर्वरक, बिजली, ऋण व कृषि मशीनरी का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण शामिल है।
    • उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव:
      • रसद कोल्ड चेन, कृषि और कृषि उपकरण से संबंधित उद्योग सबसे अधिक प्रभावित होंगे क्योंकि उन्हें इन कानूनों का प्रत्यक्ष लाभार्थी माना जाता था।
    • स्थिर कृषि-जीडीपी:
      • पिछले 14 वर्षों में कृषि- सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP)) की वृद्धि 3.5% प्रतिवर्ष रही है। इस प्रवृत्ति के जारी रहने की उम्मीद है, वर्षा के पैटर्न के आधार पर कृषि-जीडीपी में मामूली बदलाव हो सकता है।
      • भारतीय खाद्य निगम के खाद्यान्न भंडार में अनाज के भंडार के साथ चावल और गेहूंँ के फसल पैटर्न में परिवर्तन होगा।

आगे की राह 

  • एक सकारात्मक स्तर पर कृषि कानूनों के साथ प्रयास सरकार को महत्त्वपूर्ण सबक प्रदान कर सकता है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को अधिक परामर्शी व पारदर्शीआधार पर संभावित लाभार्थियों को बेहतर ढंग से संप्रेषित किये जाने की आवश्यकता है। 
  • यह समावेशन भारत की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के केंद्र में निहित है। हमारे समाज की तर्कशील प्रकृति को देखते हुए सुधारों को लागू करने के लिये समय और सहजता की आवश्यकता है लेकिन इस बात को सुनिश्चित करने हेतु सभी का मन भी जीतना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

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