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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत की समृद्ध जैवविविधता

  • 06 Jun 2025
  • 32 min read

यह एडिटोरियल 04/06/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित India’s biodiversity is a strategic advantage पर आधारित है। लेख में भारत की समृद्ध जैवविविधता को वर्ष 2047 तक आत्मनिर्भरता और आर्थिक समुत्थानशीलता हासिल करने की कुंजी के रूप में उजागर किया गया है तथा राष्ट्रीय और वैश्विक ज़िम्मेदारी के रूप में इसके संरक्षण पर जोर दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

जैव विविधता संरक्षण, पश्चिमी घाट, सुंदरवन, आयुर्वेद, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, जैव-विविधता अधिनियम, 2002, कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशें, भारत की प्रवाल भित्तियाँ, माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण, पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), भारत का राष्ट्रीय जीन बैंक, पवित्र उपवन, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढाँचा, प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड। 

मेन्स के लिये:

भारत के राष्ट्रीय विकास और समुत्थानशीलता को आकार देने में जैव विविधता का महत्त्व, भारत की जैव विविधता के लिये प्रमुख खतरे। 

भारत की समृद्ध जैव विविधता एक अप्रयुक्त रणनीतिक संपत्ति का प्रतिनिधित्व करती है जो वर्ष 2047 तक आत्मनिर्भरता और आर्थिक समुत्थानशीलता की ओर देश की यात्रा के लिये आधारशिला के रूप में कार्य कर सकती है। भारत की प्राकृतिक पूंजी व्यापार युद्धों से प्रतिरक्षा प्रदान करती है जबकि प्रत्येक वर्ष अरबों डॉलर की महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करती है। लेकिन यह एक तात्कालिक आवश्यकता भी है: वैश्विक स्तर पर वनों की कटाई तेज़ी से बढ़ रही है और अनेक प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं, ऐसे में भारत की जैव विविधता की रक्षा करना न केवल अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के तहत एक नैतिक कर्तव्य है, बल्कि दीर्घकालिक समृद्धि के लिये एक रणनीतिक आवश्यकता भी है। यदि हम स्वयं को इस पारिस्थितिक विरासत के "शेयरधारक" नहीं, बल्कि "ट्रस्टी" मानें, तो भारत अपनी जैव विविधता को एक विरासती संपत्ति से एक सतत् आर्थिक लाभकारी विशेषता में परिवर्तित कर सकता है, खासकर उस विश्व में जो दिन-ब-दिन संसाधनों की कमी से जूझ रही है।

भारत के राष्ट्रीय विकास और समुत्थानशीलता को आकार देने में जैव विविधता का क्या महत्त्व है?

  • प्रत्यक्ष आर्थिक योगदान: जैव विविधता भारत की अर्थव्यवस्था की आधारशिला है, जो कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों के माध्यम से प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ प्रदान करती है। 
    • जैविक संसाधनों का विशाल भण्डार आजीविका और उद्योगों को सहायता प्रदान करता है। 
    • वानिकी और लकड़ी उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1% का योगदान करते हैं तथा 200 मिलियन से अधिक लोग वनों पर निर्भर हैं। 
      • भारतीय मत्स्य पालन क्षेत्र न केवल लगभग 30 मिलियन लोगों की आजीविका का समर्थन करता है, विशेष रूप से तटीय और ग्रामीण समुदायों में, बल्कि इसमें विकास, रोज़गार सृजन एवं ग्रामीण विकास की भी अपार संभावनाएँ हैं।
  • जलवायु परिवर्तन शमन और कार्बन पृथक्करण: जैव विविधता कार्बन को पृथक करके जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे पर्यावरणीय जोखिम कम होता है। 
    • भारत के वन वर्तमान में देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग 11% को बेअसर करते हैं, जो पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में योगदान देता है। कार्बन पृथक्करण में वनों की भूमिका सीधे जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों और राष्ट्रीय समुत्थानशीलता का समर्थन करती है।
    • हरित भारत मिशन का उद्देश्य भारत के वन क्षेत्र की सुरक्षा, पुनर्स्थापन और संवर्द्धन करना तथा पारिस्थितिकी-पुनर्स्थापन गतिविधियों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • स्वास्थ्य देखभाल और औषधीय संसाधन: जैव विविधता स्वास्थ्य देखभाल का अभिन्न अंग है, जो स्वदेशी और आधुनिक चिकित्सा के लिये औषधीय संसाधन उपलब्ध कराती है। 
    • औषधीय गुणों वाली प्रजातियों सहित 45,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ आयुर्वेद जैसी भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों की रीढ़ हैं। 
    • भारत के राष्ट्रीय जीन बैंक में 0.47 मिलियन एक्सेसियन (प्रजनन के लिये संग्रहीत और प्रयुक्त पौध सामग्री) हैं, जो पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। 
      • यह समृद्ध जैव विविधता आधार नवीन औषधि समाधानों की खोज में सहायक है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
    • कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि: जैव विविधता फसल की समुत्थानशीलता और उत्पादकता को बढ़ाकर कृषि को समृद्ध बनाती है, जो भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
      • भारत फसल विविधता का केंद्र है, जहाँ चावल की 50,000 तथा ज्वार की 5,000 से अधिक किस्में हैं। 
      • यह आनुवंशिक विविधता जलवायु परिवर्तन और कीटों के प्रति फसल अनुकुलता सुनिश्चित करती है, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है। 
      • कृषि में जैव विविधता की भूमिका महतत्त्वपूर्ण है, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है, जो अपनी कृषि जैव विविधता पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ और आजीविका: जैव विविधता सीधे तौर पर पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं जैसे परागण, मृदा उर्वरता और जल विनियमन का समर्थन करती है, जो मानव कल्याण और आर्थिक स्थिरता के लिये आवश्यक है। 
      • उदाहरण के लिये, आर्द्रभूमियाँ मत्स्य पालन, जल शुद्धिकरण और बाढ़ शमन में सहायक होती हैं, जबकि वन जल चक्र को बनाए रखते हैं। 
      • भारत के 4,991.68 वर्ग किमी मैंग्रोव तटीय समुदायों को तूफानी लहरों से बचाते हैं, तथा लचीलेपन में योगदान देते हैं। 
      • भारत के समुद्र तट से 50 किलोमीटर के भीतर 250 मिलियन लोग रहते हैं, अतः पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ आर्थिक स्थिरता के लिये आवश्यक हैं।
    • पर्यटन और संरक्षण पहल को सुदृढ़ बनाना: भारत की समृद्ध जैव विविधता इसके बढ़ते पारिस्थितिकी पर्यटन क्षेत्र की आधारशिला है, जो सतत् राष्ट्रीय विकास में योगदान दे देती है। 
      • पारिस्थितिकी-पर्यटन स्थानीय समुदायों के लिये आय उत्पन्न करता है तथा संरक्षण जागरूकता को बढ़ावा देता है। 
      • पश्चिमी घाट और सुंदरवन प्रमुख पारिस्थितिकी पर्यटन स्थल हैं, जहाँ प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक स्थानीय और विदेशी पर्यटक आते हैं, जिससे पर्याप्त राजस्व प्राप्त होता है। 
        • इस तरह की पहल स्थानीय संरक्षण को भी बढ़ावा देती है, जैसा कि नगालैंड में अमूर फाल्कन संरक्षण परियोजना में देखा गया है, विशेष रूप से पंगती और दोयांग जैसे क्षेत्रों में।
    • सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य: जैव विविधता भारत की सांस्कृतिक में निहित है, जो परंपराओं, अनुष्ठानों और आध्यात्मिक प्रथाओं को प्रभावित करती है। 
      • पवित्र उपवन (जैसे बिहार में सरना, हिमाचल प्रदेश में देव वन, कर्नाटक में देवराकाडु), जिन्हें अक्सर स्थानीय समुदायों द्वारा संरक्षित किया जाता है, सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के साथ-साथ जैवविविधता संरक्षण में भी योगदान करते हैं। 
      • अनुमान है कि भारत में 1,00,000 से 1,50,000 पवित्र उपवन विविध वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में मदद करते हैं। 
        • ऐसे क्षेत्र न केवल जैव विविधता को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि सांस्कृतिक महत्त्व भी रखते हैं तथा समुदाय-संचालित संरक्षण प्रयासों को समर्थन प्रदान करते हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक उत्तरदायित्व: भारत की जैव विविधता इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण शासन के केंद्र में रखती है, जैसा कि जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD) जैसे वैश्विक समझौतों में इसकी सक्रिय भूमिका से देखा जा सकता है।
      • भारत ने वैश्विक कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढाँचे के अनुरूप महत्वाकांक्षी जैव विविधता लक्ष्य निर्धारित किये हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी भूमि, अंतर्देशीय जल और समुद्री क्षेत्रों के 30% हिस्से को संरक्षित करना है।
        • यह वैश्विक ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा देती है तथा वैश्विक जैवविविधता संरक्षण प्रयासों में भारत की भूमिका को मज़बूत करती है।

    भारत की जैव विविधता के लिये प्रमुख उभरते खतरे क्या हैं? 

    • जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका प्रभाव: जलवायु परिवर्तन भारत के पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ा रहा है, वर्षा के पैटर्न, तापमान में बदलाव ला रहा है तथा चरम मौसम की घटनाएँ उत्पन्न कर रहा है। 
      • बढ़ते तापमान के कारण प्रजातियों की प्राकृतिक सीमा में बदलाव आ रहा है, जिससे हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र विशेष रूप से असुरक्षित हो गया है। 
      • उदाहरण के लिये पश्चिमी घाट के दुर्लभ नृत्य करने वाले मेंढक अब बदलते सूक्ष्म जलवायु के कारण खतरे में हैं। 
      • IPC की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारतीय जैवविविधता वाले हॉटस्पॉट, विशेषकर पश्चिमी घाट क्षेत्र की जैवविविधता, जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक 33% तक नष्ट हो सकती हैं।
    • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ: आक्रामक प्रजातियाँ भारत की जैवविविधता के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक के रूप में उभर रही हैं, जो संसाधनों के लिये देशी प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा कर रही हैं जिससे बीमारियाँ फैला रही हैं। 
      • उदाहरण के लिये, राजस्थान में एक आक्रामक वृक्ष प्रजाति प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का प्रसार स्थानीय वनस्पति समुदायों को बाधित कर रहा है तथा वन्यजीवों के लिये चारागाह की भूमि कम हो रही है। 
      • यह अनुमान लगाया गया है कि भारतीय वनस्पतियों की 40% प्रजातियाँ विदेशी हैं, जिनमें से 25% आक्रामक हैं, इनके कारण कृषि उत्पादकता में कमी आ रही है तथा आवास का क्षरण हो रहा है।
      • अफ़्रीकी सेब घोंघा जैसी आक्रामक प्रजातियाँ भी मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा हैं।
    • आवास विखंडन और क्षति: शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और कृषि का तेजी से विस्तार भारत के महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों को विखंडित तथा उनके संचलन में बाधा उत्पन्न कर रहा है। 
      • विखंडन से पारिस्थितिकीय संपर्क बाधित होता है, जिससे प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। 
      • उदाहरण के लिये, ब्रह्मपुत्र के बाढ़ के मैदानों में बड़े पैमाने पर चाय के विस्तार और कृषि के कारण अतीत में वनों की क्षति और विखंडन देखा गया है।
    • प्रदूषण और संदूषक: कृषि, औद्योगिक अपशिष्ट और प्लास्टिक कचरे से निकलने वाले रासायनिक अपवाह सहित प्रदूषण भारत की जैवविविधता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। 
      • जलीय जीवन, विशेषकर गंगा और यमुना नदियों में, विषाक्तता के बढ़ते स्तर का सामना कर रहा है, जिससे गंगा डॉल्फिन जैसी प्रजातियाँ प्रभावित हो रही हैं। 
      • भारत के एक तिहाई से भी कम शहरी अपशिष्ट जल और सीवेज़ का उपचार किया जाता है, जिससे 70% से अधिक अनुपचारित अपशिष्ट जल नदियों, झीलों और भूमि में प्रवाहित हो जाता है (विज्ञान और पर्यावरण केंद्र)। 
      • यह प्रदूषण प्रजनन पैटर्न को बाधित तथा प्रजातियों की आबादी को कम करता है, तथा खाद्य शृंखला में विषाक्त पदार्थों को शामिल करता है।
    • प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन: लकड़ी के लिये वनों की कटाई, अत्यधिक मत्स्य संग्रहण और अवैध वन्यजीव व्यापार जैसे संसाधनों का असंवहनीय दोहन भारत की जैव विविधता के लिये खतरा बना हुआ है।
      • उदाहरण के लिये हाथीदांत के लिये हाथियों का तथा खाल के लिये बाघों का अवैध शिकार एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। 
      • वर्ष 2021 और 2023 के बीच, अवैध शिकार से पूरे भारत में 32 बाघों की मृत्यु हुई है, जिससे मध्य प्रदेश के जंगल प्रभावित हुए हैं।
      • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2017 के प्रतिबंध के बावजूद, भारत की 7500 किलोमीटर लंबी तटरेखा अवैध रूप से मत्स्य संग्रहण के कारण खतरे में है, जिससे जैवविविधता और मत्स्य पालन पर निर्भर स्थानीय अर्थव्यवस्था दोनों प्रभावित हो रही है।
    • असंवहनीय विकास परियोजनाएँ और अनियमित बुनियादी ढाँचे का विस्तार: बाँध, राजमार्ग और खनन परिचालन जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर अतिक्रमण कर रही हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को स्थायी नुकसान हो रहा है। 
      • शहरी विस्तार और बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण हर प्रत्येक वर्ष 500,000 एकड़ से अधिक वन्यजीव आवास नष्ट हो जाते हैं।
      • ग्रेट निकोबार द्वीप में प्रस्तावित 80,000 करोड़ रुपए की बुनियादी ढाँचा परियोजना से उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के नष्ट होने का खतरा है, जिनमें निकोबार स्क्रबफाउल और लेदरबैक कछुए जैसी दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • कृषि गहनता और भूमि उपयोग परिवर्तन: बढ़ती जनसंख्या को भोजन उपलब्ध कराने की आवश्यकता से प्रेरित कृषि गहनता, भारत की जैवविविधता पर भारी दबाव डाल रही है। 
      • एकल फसल उत्पादन, कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग, तथा खेती के लिये भूमि परिवर्तन जैसी प्रथाएँ प्राकृतिक आवासों को नष्ट करती हैं। 
      • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन जैसी प्रजातियों की कमी, जो घास के मैदानों पर निर्भर हैं, कृषि विस्तार से जुड़ी हुई है। 
    • प्रभावी प्रवर्तन और कानूनी ढाँचे का अभाव: यद्यपि भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम सहित एक मज़बूत कानूनी ढाँचा है, फिर भी प्रवर्तन कमज़ोर बना हुआ है, जिसके कारण अवैध गतिविधियाँ जारी हैं।
      • जैवविविधता अपराधों के लिये पर्याप्त निगरानी और दंड का अभाव अक्सर अवैध कटाई, खनन और अवैध शिकार को बढ़ावा देता है। 
      • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2021 की तुलना में 2022 में वन्यजीव अपराधों में 20% की वृद्धि हुई, जो कानून प्रवर्तन में अपर्याप्तता को उज़ागर करता है। 
      • यह कमज़ोर शासन संरक्षण प्रयासों को कमज़ोर करता है, जिससे कई प्रजातियाँ खतरे में पड़ जाती हैं।
    • अति-पर्यटन और मानव-वन्यजीव संघर्ष: भारत के वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में अति-पर्यटन के कारण पर्यावरण क्षरण और मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हो रही है। 
      • रणथम्भौर जैसे बाघ अभयारण्यों में पर्यटकों की आमद से आवास प्रभावित होते हैं, जिससे पशुओं के व्यवहार और प्रजनन पर असर पड़ा है। 
        • मानव-वन्यजीव संघर्षों में भी तेजी से वृद्धि हुई है (वर्ष 2022 में अकेले उत्तराखंड में 700 मामले दर्ज किये गए), वन क्षेत्रों में बाघों द्वारा पशुओं और मनुष्यों पर हमला करने की घटनाएँ बढ़ गई हैं।

    भारत जैवविविधता का सतत् संरक्षण सुनिश्चित करते हुए इसे आर्थिक रूप से कैसे अलग कर सकता है?

    • राष्ट्रीय नीति में हरित अर्थव्यवस्था का एकीकरण: भारत प्राकृतिक पूंजी लेखांकन को राष्ट्रीय और राज्य सकल घरेलू उत्पाद गणनाओं में एकीकृत करके जैव विविधता को अपने आर्थिक ढाँचे में शामिल कर सकता है।
      • इससे पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को मूल्य प्रदान किया जाएगा तथा कृषि, वानिकी और पर्यटन  जैसे क्षेत्रों में उनके योगदान को मान्यता मिलेगी।
      • जैवविविधता को आर्थिक मॉडल में शामिल करके, सरकार उद्योगों को संरक्षण में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है, साथ ही आर्थिक परिसंपत्ति के रूप में स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है। 
      • इस तरह के एकीकरण से अधिक समावेशी हरित अर्थव्यवस्था का निर्माण होगा, जहाँ जैव विविधता वैश्विक बाज़ार में एक प्रमुख विभेदक के रूप में कार्य करेगी।
    • बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये प्रकृति-आधारित समाधानों को बढ़ावा देना: पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाने वाली पारंपरिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर निर्भर रहने के बजाय, भारत प्रकृति-आधारित समाधानों को अपना सकता है जो लचीले विकास के लिये जैवविविधता का उपयोग करते हैं। 
      • इसमें कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशों के आधार पर शहरी वन, बाढ़ प्रबंधन के लिये आर्द्रभूमि पुनरुद्धार तथा तटीय संरक्षण के लिये मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र जैसे हरित बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल हो सकता है।
      • ये परियोजनाएँ जैव विविधता को बढ़ाने के साथ-साथ कार्बन पृथक्करण, जल शोधन जैसे कई सह-लाभ प्रदान कर सकती हैं।
    • जैव विविधता-संचालित पारिस्थितिकी-पर्यटन मॉडल: भारत जैव विविधता-संचालित पारिस्थितिकी-पर्यटन को विकसित और बढ़ावा दे सकता है, जो कम ज्ञात लेकिन पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रजातियों और आवासों के संरक्षण पर ज़ोर देता है। 
      • इसमें प्रमुख प्रजातियों पर केंद्रित पारंपरिक वन्यजीव पर्यटन से हटकर आर्द्रभूमि, घास के मैदान और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र जैसे जैव विविधता वाले आकर्षण केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
      • ऐसा मॉडल सतत् पर्यटन गतिविधियों के माध्यम से आय उत्पन्न करेगा तथा विविध पारिस्थितिकी प्रणालियों में संरक्षण को प्रोत्साहित करेगा। 
      • इससे विकेंद्रित रोज़गार के अवसर भी सृजित होंगे तथा ग्रामीण विकास सीधे जैवविविधता संरक्षण से जुड़ जाएगा।
    • जैव विविधता अनुकूल कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना: भारत जैविक खेती के लिये सब्सिडी, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं हेतु भुगतान और जैव विविधता-प्रमाणित बाज़ारों तक पहुँच जैसे प्रोत्साहन प्रदान करके किसानों को जैव विविधता अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
      • कृषि पारिस्थितिकी, सतत् भूमि उपयोग प्रथाओं और पारंपरिक फसल किस्मों के संरक्षण  को बढ़ावा देकर, भारत जैवविविधता हानि को कम करते हुए खाद्य सुरक्षा को बढ़ा सकता है।
      • इन प्रथाओं को राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन जैसी सरकारी योजनाओं में शामिल किया जा सकता है, जिससे दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता के लिये खाद्य उत्पादन को जैवविविधता संरक्षण के साथ जोड़ा जा सके।
    • जैव प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल्स के माध्यम से जैव-आधारित अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना: भारत की सतत् जैव-पूर्वेक्षण को बढ़ावा देकर अपनी समृद्ध जैवविविधता का लाभ उठाकर अपनी जैव-आधारित अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से जैव प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल्स को बढ़ावा दे सकता है।
      • औषधीय पौधों, समुद्री जीवों और कृषि जैव विविधता के लिये आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने से भारत को सतत् जैव विनिर्माण में अग्रणी स्थान मिल सकता है। 
      • जैव विविधता संरक्षण प्रयासों के साथ एकीकृत जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्रों की स्थापना से वैश्विक जैव-फार्मास्युटिकल बाज़ार में भारत की स्थिति मज़बूत होगी।
    • जैव विविधता आधारित बौद्धिक संपदा के लिये कानूनी ढाँचे में सुधार: भारत अपनी जैव विविधता से संबंधित बौद्धिक संपदा, विशेष रूप से पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों की रक्षा के लिये वर्तमान कानूनी ढाँचे में सुधार कर सकता है।
      • आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण को जैव विविधता पर वैश्विक कन्वेंशन के पहुँच और लाभ-साझाकरण (ABS) प्रावधानों के साथ संरेखित करके, भारत अनुसंधान और विकास के लिये आनुवंशिक संसाधनों के लाइसेंस के माध्यम से राजस्व उत्पन्न कर सकता है। 
      • यह ढाँचा न केवल स्वदेशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि वैश्विक जैव व्यापार क्षेत्र से राजस्व का एक नया स्रोत भी बनाएगा, जिससे वैश्विक मंच पर देश की आर्थिक स्थिति मज़बूत होगी।
    • जैवविविधता को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) में एकीकृत करना: भारत CSR पहलों के माध्यम से जैवविविधता संरक्षण में निवेश करने के लिये कॉर्पोरेट क्षेत्र को प्रोत्साहित कर सकता है, कंपनियों को उनके पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) रणनीतियों में जैव विविधता को एकीकृत करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है। 
      • कॉर्पोरेट्स को जैवविविधता संरक्षण परियोजनाओं में निवेश करने के लिये कर लाभ या मान्यता प्रदान की जा सकती है, जैसे कि आवास पुनर्स्थापन या सतत् आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देना।
    • जैव विविधता पर आधारित वृत्ताकार अर्थव्यवस्था का क्रियान्वयन: भारत वृत्ताकार अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण अपना सकता है, जो न केवल अपशिष्ट को न्यूनतम करेगा, बल्कि जैवविविधता संरक्षण को भी बढ़ावा देगा। 
      • सतत् उत्पादन और उपभोग पैटर्न पर ध्यान केंद्रित करके, संसाधन निष्कर्षण को कम करके तथा जैविक सामग्रियों के पुनर्चक्रण द्वारा, भारत अपने पारिस्थितिक पदचिह्न को कम कर सकता है। 
      • ऐसी अर्थव्यवस्था उन उत्पादों और प्रक्रियाओं को प्राथमिकता देगी जो पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करती हैं तथा जैविक वस्त्र, बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग और पर्यावरण अनुकूल निर्माण सामग्री जैसे सतत् उद्योगों को बढ़ावा देती हैं, जो सभी स्वस्थ, क्रियाशील जैव विविधता पर निर्भर होंगे।

    निष्कर्ष:

    भारत की जैव विविधता एक नैतिक ज़िम्मेदारी और आर्थिक विकास तथा समुत्थानशीलता के लिये एक रणनीतिक अवसर दोनों का प्रतिनिधित्व करती है। अपनी नीतियों को जैवविविधता पर कन्वेंशन (CBD) जैसे अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे के साथ जोड़कर, भारत अपनी प्राकृतिक संपत्तियों को स्थायी आर्थिक चालकों में बदल सकता है। एक समग्र दृष्टिकोण जो जैवविविधता को राष्ट्रीय विकास, पारिस्थितिकी पर्यटन और कृषि में एकीकृत करता है, दीर्घकालिक समृद्धि सुनिश्चित करेगा।

    दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

    जैवविविधता न केवल एक प्राकृतिक विरासत है, बल्कि सतत् विकास के लिये एक आर्थिक परिसंपत्ति भी है। भारत के आर्थिक विकास और समुत्थानशीलता में जैवविविधता की भूमिका की जाँच कीजिये, साथ ही इसके संरक्षण के लिये उभरते खतरों पर प्रकाश डालिये। 

                                           

     

       यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

    प्रारंभिक परीक्षा

    प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा भौगोलिक क्षेत्र की जैवविविधता के लिये खतरा हो सकता है? (वर्ष 2012)  

    1. ग्लोबल वार्मिंग
    2.  आवास का खंडीकरण
    3.  विदेशी प्रजातियों का आक्रमण
    4.  शाकाहार को बढ़ावा देना

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करे सही उत्तर का चयन कीजिये: 

    (a) केवल 1, 2 और 3
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 1 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (a)

    प्रश्न. जैवविविधता निम्नलिखित तरीकों से मानव अस्तित्व के लिये आधार बनाती है: (वर्ष 2011) 

    1. मृदा का निर्माण
    2.  मृदा क्षरण की रोकथाम
    3.  अपशिष्ट का पुनर्चक्रण
    4.  फसलों का परागण

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये: 

    (a) केवल 1, 2 और 3
    (b) केवल 2, 3 और 4
    (c) केवल 1 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: d

    मेन्स

    प्रश्न. भारत में जैव विविधता किस प्रकार भिन्न है? जैव विविधता अधिनियम, 2002 वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में किस प्रकार सहायक है? (वर्ष 2018)

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