शासन व्यवस्था
भारत की माध्यमिक शिक्षा में सुधार
- 07 Jun 2025
- 21 min read
यह एडिटोरियल 06/06/2025 को बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “Secondary education needs to improve” लेख पर आधारित है। लेख में उन्नीकृष्णन निर्णय के बाद भारत में माध्यमिक और व्यावसायिक शिक्षा की उपेक्षा पर प्रकाश डाला गया है, जबकि एशियाई अर्थव्यवस्थाओं ने विकास के लिये इन चरणों पर ध्यान केंद्रित किया है।
प्रिलिम्स के लिये:सर्व शिक्षा अभियान (SSA), अटल टिंकरिंग लैब्स (ATL), एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS), उन्नीकृष्णन निर्णय (1993), पीएम श्री स्कूल, भारत की शिक्षा प्रणाली, वर्ष 2020 की नई शिक्षा नीति, पीएम ईविद्या, कौशल भारत मिशन, अटल इनोवेशन मिशन मेन्स के लिये:भारत की माध्यमिक शिक्षा प्रणाली में प्रमुख विकास, माध्यमिक शिक्षा में परिवर्तन के उपाय |
माध्यमिक शिक्षा पर सार्वजनिक रिपोर्ट (PROSE) 2024 से पता चलता है कि प्राथमिक नामांकन में वृद्धि के बावजूद भारत में माध्यमिक और व्यावसायिक शिक्षा की गंभीर उपेक्षित है। जबकि सिंगापुर और जापान जैसी उच्च प्रदर्शन वाली एशियाई अर्थव्यवस्थाओं ने विकास को गति देने के लिये मज़बूत माध्यमिक स्कूली शिक्षा का लाभ उठाया, भारत के कम निवेश ने कौशल-रोज़गार योग्यता में गंभीर असंतुलन उत्पन्न कर दिया है। चिंताजनक रूप से, शिक्षक भर्ती, बुनियादी ढाँचे और शासन प्रणाली में व्याप्त कमियाँ जनसांख्यिकीय लाभांश को बर्बाद करने का खतरा पैदा कर रही हैं, जिससे "अमीर बनने से पहले बूढ़े हो जाने" का संकट उत्पन्न हो सकता है। आर्थिक स्थिरता के लिये मानव पूंजी को सशक्त बनाने हेतु गुणवत्ता, समानता और उद्योग-अनुरूप कौशल विकास पर तत्काल ध्यान देना अत्यावश्यक है।
माध्यमिक शिक्षा प्रणाली में प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- शिक्षकों की रिक्तियाँ और तदर्थवाद: कई राज्य रिक्त स्थायी पदों, विशेष रूप से विज्ञान के लिये, को भरने के लिये अनुबंध या अतिथि शिक्षकों पर निर्भर हैं। शिक्षा मंत्रालय ने भारत भर के सरकारी स्कूलों में 8.4 लाख से अधिक शिक्षकों के रिक्त पदों की सूचना दी है, जिसमे प्राथमिक और माध्यमिक दोनों स्तर शामिल हैं।
- बुनियादी ढाँचे में भारी असमानता: विभिन्न स्कूलों में प्रति छात्र व्यय में असमानता चौंका देने वाली है। उदाहरण के लिये, तेलंगाना के आवासीय विद्यालयों को प्रति छात्र 2 लाख रुपए मिलते हैं, जबकि केंद्रीय विद्यालयों को केवल 65,000 रुपए आवंटित किये जाते हैं।
- इसके अलावा, PROSE 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, 47% स्कूलों में पेयजल की सुविधा नहीं है तथा 53% स्कूलों में लड़कियों के लिये अलग शौचालय नहीं हैं।
- खराब शासन और वित्तपोषण: स्कूल प्रबंधन समितियाँ (SMC) काफी हद तक अप्रभावी हैं, उन्हें न्यूनतम वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। स्थानीय सरकारों को अक्सर दरकिनार कर दिया जाता है, जिससे खराब प्रबंधन और निरीक्षण प्राप्त होता है।
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में किये गए ऑडिट से पता चला है कि 3% से 88% स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समितियाँ (SMC) नहीं हैं तथा कई समितियों का गठन काफी देरी के बाद किया गया।
- पीएम श्री योजना के तहत आवंटित धनराशि, नवोदय और केंद्रीय विद्यालयों जैसे स्थापित स्कूलों के लिये भी अपर्याप्त है, जबकि केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल को 2024-25 वित्तीय वर्ष के लिये समग्र शिक्षा योजना (SSA) के तहत केंद्र के हिस्से से कोई धनराशि नहीं मिली है।
- व्यावसायिक शिक्षा-रोज़गार अंतर: व्यावसायिक शिक्षा और उद्योग की मांग के बीच लगातार अंतर बना हुआ है, जैसा कि हाल ही में मर्सर-मेटल अध्ययन में उजागर किया गया है, केवल 45% भारतीय स्नातक ही रोज़गार योग्य माने जाते हैं, जिससे अच्छे वेतन वाली नौकरियों तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
- डिजिटल उपकरणों का गलत उपयोग: शिक्षा में डिजिटल उपकरणों का अक्सर दुरुपयोग किया जाता है, जिसमें पूर्व-रिकॉर्ड की गई सामग्री का उपयोग शिक्षण को बढ़ाने के लिये वैचारिक सहायता के रूप में करने के बजाय शिक्षकों के स्थान पर किया जाता है।
- केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, भारत में केवल 57.2% स्कूलों में कंप्यूटर तथा केवल 53.9% स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है।
- सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: लगातार आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ समावेशी शिक्षा में बाधा डालती हैं तथा वंचित, ग्रामीण और आदिवासी पृष्ठभूमि के बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच को सीमित करती हैं।
- एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में आदिवासी छात्रों को भाषा संबंधी बाधाओं के कारण शैक्षिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें अंग्रेज़ी या तेलुगु जैसी उनकी मूल भाषाओं के बजाय हिंदी में पढ़ाया जाता है। यह समस्या केंद्रीय भर्ती नीतियों के कारण और भी बदतर हो जाती है, जो छात्रों की भाषाई विविधता को नजरअंदाज करती हैं।
- शिक्षण विधियों में कमियाँ: भारत की शिक्षा प्रणाली अभी भी विश्लेषणात्मक और समस्या-समाधान कौशल विकसित करने की तुलना में याद करने को प्राथमिकता देती है, जिससे छात्रों का संज्ञानात्मक विकास सीमित हो जाता है।
- यद्यपि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 योग्यता-आधारित शिक्षा का समर्थन करती है, लेकिन पुरानी परीक्षा-आधारित पद्धतियों से बदलाव धीमा है, सर्वेक्षणों से पता चलता है कि कक्षा 3 के अधिकांश छात्र बुनियादी पठन-बोध (रीडिंग कॉम्प्रिहेंशन) में भी संघर्ष कर रहे हैं।
भारत में स्कूली शिक्षा की संरचना
- भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली NEP, 2020 के तहत चरणबद्ध तरीके से 10+2 प्रारूप से 5+3+3+4 संरचना में परिवर्तित हो रही है।
- यह नया मॉडल 3-18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये है, जिसमें प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा को एकीकृत किया गया है। इसमें शामिल हैं:
- आधारभूत चरण (5 वर्ष): 3 वर्ष प्री-स्कूल + कक्षा 1-2
- प्रारंभिक चरण (3 वर्ष): कक्षा 3-5
- मध्य चरण (3 वर्ष): कक्षा 6-8
- माध्यमिक चरण (4 वर्ष): कक्षा 9-12
भारत की शिक्षा प्रणाली में सरकारी पहल के परिणाम क्या हैं?
- समानता आधारित नामांकन वृद्धि: माध्यमिक शिक्षा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों और लड़कियों की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसका मुख्य कारण सर्व शिक्षा अभियान (SSA), लड़कियों के लिये साइकिल योजना और विभिन्न छात्रवृत्तियाँ जैसी पहल हैं।
- शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2014-15 से महिला ST छात्राओं के नामांकन में 80.1% की वृद्धि हुई है तथा अतिरिक्त 7.5 लाख छात्राएँ इसमें शामिल हुई हैं।
- यद्यपि कई पिछड़े क्षेत्रों में लैंगिक समानता हासिल कर ली गई है, फिर भी कम उम्र में विवाह का मुद्दा किशोरियों की शैक्षिक प्रगति में एक महत्त्वपूर्ण बाधा बना हुआ है।
- मिश्रित शिक्षण का उदय: स्मार्ट बोर्ड और यूट्यूब वीडियो जैसी पूर्व-रिकॉर्ड की गई डिजिटल सामग्री के उपयोग ने पारंपरिक शिक्षण विधियों को पूरक बनाकर सीखने के अनुभव को समृद्ध किया है।
- हालाँकि, ये डिजिटल उपकरण अक्सर अनुपस्थित शिक्षकों के विकल्प के रूप में कार्य करते हैं, जिससे छात्रों की प्रमुख अवधारणाओं की समझ सीमित हो सकती है तथा सामग्री के साथ गहन जुड़ाव में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- समग्र शिक्षा का आईसीटी और डिजिटल पहल घटक कक्षा VI से XII तक के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों को ICT प्रयोगशालाओं और स्मार्ट कक्षाओं की स्थापना के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- नवप्रवर्तन अवसंरचना: अटल टिंकरिंग लैब्स की स्थापना छात्रों में रचनात्मकता और प्रयोगशीलता को बढ़ावा देने के लिये की गई है, फिर भी जिन विद्यालयों में योग्य विज्ञान शिक्षकों का अभाव है, वहाँ उनकी क्षमता का बड़े पैमाने पर उपयोग नहीं हो पाया है।
- यह कम उपयोग स्कूलों के सामने नवाचार-केंद्रित बुनियादी ढाँचे को पूरी क्षमता तक उपयोग करने में आने वाली चुनौतियों को उजागर करता है।
- कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों (KGBV) का विस्तार: वर्ष 2004 में शुरू की गई KGBV योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समूहों सहित वंचित समुदायों की लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है।
- वर्ष 2025 तक, 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 2,578 केजीबीवी स्वीकृत किये गए हैं। ये आवासीय विद्यालय इन समुदायों की लड़कियों के लिये न्यूनतम 75% आरक्षण प्रदान करते हैं, जिससे उन लड़कियों के लिये शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित होती है जो अन्यथा वंचित रह सकती हैं।
- शिक्षक भर्ती और लिंग संवेदनशीलता: अधिक महिला शिक्षकों की भर्ती करने और लिंग-संवेदनशील प्रशिक्षण प्रदान करने के प्रयास किये गए हैं। इसमें शिक्षकों के लिये संवेदनशीलता कार्यक्रम और लड़कियों के लिये अलग शौचालय ब्लॉक का निर्माण शामिल है, जिसने सामूहिक रूप से स्कूलों में लड़कियों के नामांकन और प्रतिधारण दर में सुधार करने में योगदान दिया है।
भारत के लिये वैश्विक मॉडल
देश |
मुख्य शक्ति |
भारत के लिये आपनाने योग्य मॉडल |
जापान |
शिक्षक स्वायत्तता और नवाचार |
शिक्षकों को पाठ्यक्रम तैयार करने और प्रयोग करने में सशक्त बनाना। |
जर्मनी |
व्यावसायिक-रोज़गार एकीकरण |
स्कूलों में उद्योग प्रशिक्षुता को मज़बूत करना। |
फिनलैंड |
व्यावसायिक विकास |
सतत् व्यावसायिक विकास में निवेश करना। |
सिंगापुर |
परियोजना-आधारित शिक्षण (PBAL) |
समस्या समाधान कौशल और रचनात्मकता को बढ़ाने के लिये PBAL को अपनाना। |
एस्टोनिया |
डिजिटल शिक्षण अवसंरचना |
डिजिटल परिवर्तन में तेजी लाना और प्रौद्योगिकी तक समान पहुँच सुनिश्चित करना। |
दक्षिण कोरिया |
छात्र-केंद्रित शिक्षा |
विविध छात्र आवश्यकताओं के लिये अधिक वैयक्तिकृत शिक्षण पथ लागू करना। |
माध्यमिक शिक्षा में परिवर्तन के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?
- शिक्षक क्षमता निर्माण: शिक्षण पदों के लिये रिक्तियों, विशेष रूप से विज्ञान जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में, को प्राथमिकता के आधार पर भरा जाना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि योग्य और कुशल शिक्षकों की भर्ती की जाए।
- इसके अतिरिक्त, सभी विज्ञान शिक्षकों के लिये शैक्षणिक प्रशिक्षण अनिवार्य करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे कक्षा में अपनी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये नवीनतम शिक्षण रणनीतियों और पद्धतियों से लैस हों।
- समुदाय-संचालित शासन: स्कूल समितियाँ, जहाँ वे अभी तक मौजूद नहीं हैं, स्थापित की जानी चाहिये। एक बार गठित होने के बाद, उन्हें अपने वित्त का प्रबंधन करने की स्वायत्तता के साथ सशक्त बनाया जाना चाहिये, जिससे वे बजट की देखरेख कर सकें और अपने संस्थानों के विकास के लिये प्रभावी ढंग से संसाधन आवंटित कर सकें।
- हालाँकि, इस स्वतंत्रता को स्थानीय सरकारी निकायों की कड़ी निगरानी के साथ संतुलित किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि धनराशि का उपयोग बुद्धिमानी से और शैक्षिक लक्ष्यों के अनुरूप किया जाए।
- समतामूलक अवसंरचना निधि: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच को बढ़ावा देने के लिये, संसाधनों को अच्छी तरह से वित्तपोषित "मॉडल स्कूलों" से हटाकर साधारण राजकीय स्कूलों की ओर पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिये, जहाँ आवश्यकता अधिक है।
- इस बदलाव से शैक्षिक बुनियादी ढाँचे में असमानताओं को दूर करने में मदद मिलेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि सभी छात्रों को, चाहे उनका स्थान या सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, समान स्तर की सहायता प्राप्त हो।
- इसके अतिरिक्त, स्कूलों में प्रति-छात्र व्यय को मानकीकृत किया जाना चाहिये ताकि प्रत्येक छात्र को सरकारी निवेश से समान लाभ मिल सके।
- व्यावसायिक-रोज़गार गलियारे: औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITI) और पॉलिटेक्निक में पाठ्यक्रम को उद्योग की ज़रूरतों के साथ ज़्यादा निकटता से संरेखित करने के लिये पुनर्गठित किया जाना चाहिये। यह संरेखण छात्रों को कार्यबल के लिये बेहतर ढंग से तैयार करेगा, यह सुनिश्चित करेगा कि उनके पास नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक कौशल हैं।
- इसके अलावा, इन संस्थानों में प्रयोगशालाओं और उपकरणों के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये तथा इसे सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि ये संस्थान अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से सुसज्जित हों तथा विद्यार्थियों को सर्वोत्तम शिक्षण अनुभव प्रदान करें।
- पाठ्यक्रम में संशोधन: रटने की शिक्षा से योग्यता-आधारित शिक्षा की ओर बदलाव आवश्यक है, जिसमें एक अद्यतन पाठ्यक्रम शामिल हो जो छात्रों को समकालीन चुनौतियों के लिये तैयार करने हेतु आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान, रचनात्मकता और अंतःविषयक शिक्षा पर जोर देता हो।
- मिश्रित शिक्षण ढांचा: प्रमुख अवधारणाओं को सुदृढ़ करने और शिक्षण अनुभव को बढ़ाने के लिए डिजिटल उपकरणों को कक्षा में एकीकृत किया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें कभी भी शिक्षकों का स्थान नहीं लेना चाहिए।
- डिजिटल उपकरणों की भूमिका शिक्षक के प्रयासों का समर्थन और पूरक होना चाहिये, जिससे शिक्षण अधिक आकर्षक और प्रभावी हो सके। इस तरह से प्रौद्योगिकी का उपयोग करके, शिक्षक कक्षा में अपनी केंद्रीय भूमिका बनाए रख सकते हैं और साथ ही डिजिटल संसाधनों द्वारा प्रदान किये जाने वाले लाभों का लाभ उठा सकते हैं।
निष्कर्ष:
भारत की माध्यमिक शिक्षा एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। जहाँ एक ओर समानता के क्षेत्र में प्रगति नीतिगत प्रतिबद्धता को दर्शाती है, वहीं गुणवत्ता, शासन और व्यावसायिक शिक्षा के साथ समन्वय की उपेक्षा 'जनसांख्यिकीय लाभांश' को संकट में बदल सकती है। PISA में अग्रणी देशों से सबक लेते हुए, भारत को "अमीर बनने से पहले बूढ़े हो जाने" के खतरे से बचने के लिये शिक्षक सशक्तीकरण, सामुदायिक स्वामित्व और कौशल समन्वय को प्राथमिकता देनी चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. भारत में माध्यमिक शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान न देने के कारण कौशल और रोज़गार के बीच एक गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हो गई है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
नीचे दिये गये कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) |