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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पैंगोंग त्सो के आसपास बुनियादी ढाँचे का विकास

  • 07 Jul 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-चीन गतिरोध, पैंगोंग त्सो झील, वास्तविक नियंत्रण रेखा

मेन्स के लिये:

भारत-चीन सीमा पर बुनियादी ढाँचे का विकास, भारत-चीन गतिरोध की पृष्ठभूमि

चर्चा में क्यों?  

गलवान में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हिंसक झड़प के तीन वर्ष बाद भारत-चीन सीमा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे का विकास हो रहा है।

  • गतिरोध के बाद से दोनों पक्षों द्वारा बुनियादी ढाँचे का विकास किया जा रहा है, जबकि दोनों कोर कमांडर स्तर की वार्ता के 19वें दौर का इंतजार कर रहे हैं ताकि क्षेत्र में उनके बीच विवाद का समाधान निकाला जा सके।

सीमा क्षेत्र के आसपास बुनियादी ढाँचे का विकास: 

  • चीन द्वारा बुनियादी ढाँचे के प्रयास: 
    • उत्तर और दक्षिण तट को जोड़ने वाले पैंगोंग त्सो पर एक पुल का निर्माण प्रगति पर है।
    • चीनी पक्ष में शेडोंग गाँव की ओर सड़क संपर्क सहित बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियाँ देखी गई हैं।
    • G-0177 एक्सप्रेस-वे के साथ 22 किमी. लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा है, जिसे  तिब्बत में महत्त्वपूर्ण G-216 राजमार्ग से जोड़ा जाएगा।
  • भारत की बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ: 
    • भारत पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर फिंगर 4 की ओर एक ब्लैक-टॉप सड़क का निर्माण कर रहा है।
    • सीमा सड़क संगठन (BRO) सेला, नेचिपु और सेला-छबरेला सुरंगों जैसी प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पूरा करने के निकट है, जिससे LAC के साथ हर मौसम में कनेक्टिविटी सुनिश्चित होगी।
    • भारतीय सुरक्षा बलों की गतिशीलता और सीमावर्ती क्षेत्रों की कनेक्टिविटी में सुधार के लिये भारत-चीन सीमा सड़क (ICBR) योजना भी शुरू की गई थी। इसके तीन चरण हैं: ICBR-I (73 सड़कें), ICBR-II (104 सड़कें) और ICBR-III (37 सड़कें)।
      • BRO, जो कि ICBR का अधिकांश कार्य करता है, का  पूंजीगत बजट वर्ष 2023-24 में 43% बढ़कर 5,000 करोड़ रुपए हो गया है
      • ICBR-III के अंतर्गत इनमें से लगभग 70% सड़कें अरुणाचल प्रदेश में बनाई जाएंगी।
        • सेला सुरंग सड़क परियोजना अरुणाचल प्रदेश को सड़कों के नेटवर्क के माध्यम से जोड़ने वाली सबसे प्रमुख परियोजना है। यह 13,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर स्थित विश्व की सबसे लंबी द्वि-लेन सुरंग होगी।
    • केंद्रीय बजट वर्ष 2022-23 में केंद्र प्रायोजित योजना वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की घोषणा की गई थी। 
      • इसका उद्देश्य चीन के साथ लगी सीमा पर गाँवों का व्यापक स्तर पर विकास करना, साथ ही चिह्नित सीमावर्ती गाँवों में रहने वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
      • यह कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बुनियादी ढाँचे में सुधार करेगा, साथ ही इसके अंर्तगत आवासीय एवं पर्यटन केंद्रों का निर्माण किया जाएगा।

इन बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं का निहितार्थ:

  • सकारात्मक: 
    • उन्नत सीमा अवसंरचना से भारत की रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने के साथ ही सीमा पर गश्त और सुरक्षा क्षमता में सुधार होगा।
    • बेहतर कनेक्टिविटी से स्थानीय समुदायों को लाभ होता है, क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलता है तथा नए आर्थिक अवसर उत्पन्न होते हैं।
    • बेहतर बुनियादी ढाँचा भारत को क्षेत्र में एक मज़बूत रणनीतिक स्थिति बनाए रखने की अनुमति देता है, जिससे संभावित रूप से चीन के किसी भी आक्रामक कदम को रोका जा सकता है।
  • नकारात्मक: 
    • बुनियादी ढाँचे का विकास मौजूदा सीमा विवादों में योगदान दे सकता है और तनाव बढ़ा सकता है।
    • अन्य देशों के क्षेत्र में बेहतर कनेक्टिविटी और रक्षा क्षमताओं के चलते भारत और चीन दोनों के लिये चिंता उत्पन्न कर सकता है।
    • भारत (या चीन) की दृढ़ता की धारणा द्विपक्षीय वार्ताओं और संबंधों को प्रभावित कर सकती है

पैंगोंग त्सो झील: 

  • विशेषता: 
    • पैंगोंग त्सो समुद्र तल से 14,000 फीट यानी 4350 मीटर से अधिक की ऊंँचाई पर स्थित 135 किलोमीटर लंबी और चारों ओर से स्थलों से घिरी एक झील है। 
    • यह झील हिमनद के पिघलने से बनी है, इसमें चांग चेनमो शृंखला का पर्वतीय विस्तार है, जिन्हें फिंगर्स कहा जाता है।
      • यह लवणीय जल से भरी विश्व की सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित झीलों में से एक है।
        • खारे जल की झील होने के बावजूद पैंगोंग त्सो पूरी तरह से जम जाती है। 
      • इस क्षेत्र के खारे जल में सूक्ष्म वनस्पति काफी कम है।
      • सर्दियों के दौरान क्रस्टेशियंस को छोड़कर यहाँ कोई भी जलीय जीवन अथवा मछली नहीं पाई जाती है।
    • पैंगोंग त्सो की लोकप्रियता का प्रमुख कारण इसका बदलता रंग है; इसका रंग नीले से हरे और लाल रंग में बदलता रहता है। 
  • पैंगोंग त्सो के फिंगर्स: 
    • पैंगोंग त्सो पूर्वी लद्दाख में स्थित बूमरैंग आकार की अनोखी झील है, यह लगभग 135 किलोमीटर तक फैली हुई है।
    • इस झील की विशेषता यहाँ के जल में कई पहाड़ी उभार हैं, जिन्हें "फिंगर्स" के नाम से जाना जाता है।
    • पैंगोंग त्सो की फिंगर्स की संख्या 1 से 8 तक है, फिंगर 1 झील के पूर्वी छोर के सबसे करीब है और फिंगर 8 सबसे दूर है।
    • भारत और चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा (दोनों देशों के बीच वास्तविक सीमा के रूप में कार्य करती है) के बारे में अलग-अलग धारणाएँ हैं

  • भारत और चीन का हिस्सा:  
    • पैंगोंग त्सो झील का लगभग एक-तिहाई तथा दो-तिहाई हिस्सा भारत और चीन के पास है।
    • पैंगोंग त्सो का लगभग 45 किलोमीटर हिस्सा भारत के नियंत्रण में है। पैंगोंग त्सो का पूर्वी छोर तिब्बत में स्थित है।
  • पैंगोंग त्सो को लेकर सीमा विवाद: 
    • भारत फिंगर 4 तक झील पर नियंत्रण का दावा करता है लेकिन उसका मानना है कि इसका क्षेत्र फिंगर 8 तक फैला हुआ है। 
      • उत्तरी तट दोनों देशों के बीच झड़प और तनाव का केंद्र रहा है जहाँ फिंगर्स स्थित हैं।
    • भारतीय सैनिक फिंगर 3 के पास तैनात हैं, जबकि चीनी सैनिक फिंगर 8 के पूर्वी बेस पर तैनात हैं जो फिंगर 2 तक के क्षेत्र पर दावा करते हैं। 

स्रोत: द हिंदू

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