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भारतीय अर्थव्यवस्था

मुद्रास्फीति डेटा: जून 2021

  • 15 Jul 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, मुद्रास्फीति, कोर मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये

थोक मूल्य- मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के कारण और उसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग’ के तहत आर्थिक सलाहकार कार्यालय ने जून, 2021 के लिये ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (WPI) जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

थोक मूल्य- मुद्रास्फीति:

  • थोक कीमतों में मुद्रास्फीति जून 2021 में भी उच्च स्तर (12.07 प्रतिशत) पर रही, जो कि मई 2021 में अपने रिकॉर्ड स्तर 12.94 पर पहुँच गई थी।

कारण

  • जून 2021 में मुद्रास्फीति की उच्च दर मुख्य रूप से ‘बेस इफेक्ट’ के निम्न रहने के कारण रही।
    • बेस इफेक्ट: इसका आशय दो डेटा बिंदुओं के बीच तुलना के लिये अलग-अलग संदर्भ बिंदु चुनने के कारण तुलना के परिणाम पर पड़ने वाले प्रभाव से है।
  • खनिज तेल जैसे- पेट्रोल, डीज़ल, नेफ्था, फर्नेस ऑयल आदि की कीमतों में वृद्धि।
  • बीते वर्ष के इसी माह की तुलना में विनिर्मित उत्पादों जैसे- धातु, खाद्य उत्पाद, रासायनिक उत्पाद आदि की लागत में वृद्धि।
    • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून 2021 में 6.26 प्रतिशत पर थी।

प्रभाव

  • थोक मूल्य-मुद्रास्फीति का खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति (CPI मुद्रास्फीति) के स्तर पर भी प्रभाव पड़ेगा, जो कि अंततः मौद्रिक नीति को प्रभावित करेगा। 
    • मौद्रिक नीति केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित व्यापक आर्थिक नीति होती है। इसमें मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दर का प्रबंधन शामिल होता है तथा इसका उपयोग देश की सरकार द्वारा मुद्रास्फीति, खपत, विकास और तरलता जैसे व्यापक आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये किया जाता है।

थोक मूल्य सूचकांक (WPI)

  • यह थोक व्यवसायों द्वारा अन्य व्यवसायों को बेचे जाने वाले सामानों की कीमतों में बदलाव को मापता है।
  • इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है। 
  • यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक (Inflation Indicator) है। 
  • इस सूचकांक की सबसे प्रमुख समस्या यह है कि आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है।
  • वर्ष 2017 में अखिल भारतीय WPI के लिये आधार वर्ष को 2004-05 से संशोधित कर 2011-12 कर दिया गया था।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

  • यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य में हुए परिवर्तन को मापता है तथा इसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
  • यह उन वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिसे भारतीय उपभोक्ता उपयोग के लिये खरीदते हैं।
  • इसके कई उप-समूह हैं जिनमें खाद्य और पेय पदार्थ, ईंधन तथा प्रकाश, आवास एवं कपड़े, बिस्तर व जूते शामिल हैं।
  • इसके निम्नलिखित चार प्रकार हैं:
    • औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers- IW) के लिये CPI 
    • कृषि मज़दूर (Agricultural Labourer- AL) के लिये CPI
    • ग्रामीण मज़दूर (Rural Labourer- RL) के लिये CPI
    • CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)
    • इनमें से प्रथम तीन के आँकड़े श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (labor Bureau) द्वारा संकलित किये जाते हैं, जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation-CSO) द्वारा संकलित किया जाता है।
  • सामान्य तौर पर CPI के लिये आधार वर्ष 2012 है। हालाँकि औद्योगिक श्रमिकों हेतु CPI (CPI-IW) आधार वर्ष 2016 है।
  • मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) मुद्रास्फीति (रेंज 4+/-2% के भीतर) को नियंत्रित करने के लिये CPI डेटा का उपयोग करती है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अप्रैल 2014 में  CPI को मुद्रास्फीति के अपने प्रमुख उपाय के रूप में अपनाया था।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बनाम थोक मूल्य सूचकांक

  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का उपयोग उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति का पता लगाने के लिये किया जाता है और CPI उपभोक्ता स्तर पर कीमतों के स्तर में बदलाव को मापता है।
  • WPI सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को शामिल नहीं करता है, जबकि CPI में सेवाओं की कीमतों को शामिल किया जाता है।

मुद्रास्फीति

  • मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या सामान्य उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन आदि की कीमतों में वृद्धि से है।
  • मुद्रास्फीति समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य परिवर्तन को मापती है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है।
    • यह अंततः आर्थिक विकास में मंदी का कारण बन सकती है।
  • हालाँकि उत्पादन वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के एक संतुलित स्तर की आवश्यकता होती है।
  • भारत में मुद्रास्फीति को प्रमुख रूप से दो मुख्य सूचकांकों (WPI और CPI) द्वारा मापा जाता है, जो क्रमशः थोक एवं खुदरा स्तर पर मूल्य में परिवर्तन को मापते हैं।

कोर मुद्रास्फीति

  • यह वस्तुओं और सेवाओं की लागत में बदलाव को दर्शाता है, लेकिन इसमें खाद्य तथा ईंधन की लागतों को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि उनकी कीमतें बहुत अधिक अस्थिर होती हैं।
    • कोर मुद्रास्फीति = हेडलाइन मुद्रास्फीति - (खाद्य और ईंधन) मुद्रास्फीति।

स्रोत: द हिंदू

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