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सामाजिक न्याय

वर्ष 2030 तक भारत के कार्यबल में 55% महिला भागीदारी का लक्ष्य

  • 15 Nov 2025
  • 96 min read

प्रिलिम्स के लिये: महिला श्रम बल भागीदारी दर, समय उपयोग सर्वेक्षण, NSO, अवैतनिक पारिवारिक श्रम, अनौपचारिक रोज़गार, श्रम संहिता (मजदूरी, IR, सामाजिक सुरक्षा, POSH)

मेन्स के लिये: केयर इकॉनमी, कृषि का स्त्रीकरण, लैंगिक-संवेदनशील रोज़गार अवसंरचना, कार्य की गुणवत्ता संकेतक

स्रोत: इकॉनमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) को 41.7% (FY24) से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 55% करने की एक रणनीतिक योजना की घोषणा की है। यह लक्ष्य लैंगिक रोज़गार अंतराल को कम करने की दिशा में निर्धारित किया गया है।

भारत के विकास के लिये महिला श्रम बल में भागीदारी बढ़ाना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • आर्थिक विकास का प्रमुख प्रेरक: कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी समग्र उत्पादकता में वृद्धि होती है, नवाचार को प्रोत्साहित करती है, और वित्तीय स्थिरता को मज़बूत बनाती है, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर अधिक मज़बूत और प्रतिस्पर्द्धी बनता है।
    • मैकिन्से(McKinsey) रिपोर्ट के अनुसार, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने से अतिरिक्त आर्थिक वृद्धि हो सकती है तथा वर्ष 2025 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 46 लाख करोड़ रुपये (700 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की वृद्धि हो सकती है।
  • प्रतिभा में विविधता लाना एवं उद्योगों को मज़बूत बनाना: महिलाएँँ विविध दृष्टिकोण लेकर आती हैं, जिससे श्रम शक्ति बढ़ती है, नए विचारों को प्रोत्साहन मिलता है और उद्योगों को बदलते आर्थिक रुझानों के अनुकूल ढलने में सहायता प्राप्त होती है।
    • स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, वित्तीय सेवाओं एवं STEM जैसे क्षेत्रों को संतुलित लैंगिक कार्यबल से विशेष लाभ प्राप्त हो सकते हैं। 
  • लैंगिक समानता के लिये प्रोत्साहक: कार्यबल में भागीदारी महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता, संपत्ति स्वामित्व और सौदेबाज़ी की शक्ति प्रदान करती है, जो SDG-5 (लैंगिक समानता) को प्राप्त करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • परिवार एवं समुदाय के कल्याण में परिवर्तन: अनुभवजन्य अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाएँ अपनी आय का बड़ा हिस्सा परिवार की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य-सेवा पर व्यय करती हैं।
    • यह मानव पूंजी विकास में वृद्धि करता है और गरीबी के पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाले चक्र को समाप्त करता है।
  • सतत् एवं समावेशी विकास की आधारशिला: कृषि और MSME से लेकर AI एवं स्वच्छ ऊर्जा तक विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना, न्यायसंगतता के साथ-साथ सतत् विकास को भी प्रोत्साहित करता है।
    • महिलाओं का कार्यबल में समावेशन केवल अधिकार-आधारित मुद्दा ही नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक आर्थिक आवश्यकता भी है, जो भारत के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने तथा विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) 

  • परिभाषा: महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) में वे सभी महिलाएँ शामिल होती हैं जो या तो कार्यरत हैं या सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश कर रही हैं।
    • FLFPR में वृद्धि अपने-आप आर्थिक समावेशन में सुधार को नहीं दर्शाती, विशेष रूप से तब जब किया गया कार्य अवैतनिक, अनौपचारिक अथवा बिना पारिश्रमिक हो।
  • भारत में FLFPR के प्रवृत्ति
    • दीर्घकालिक गिरावट एवं हालिया सुधार: PLFS (2023–24) के अनुसार, महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) 2011–12 के 31.2% से घटकर 2017–18 में 23.3% हो गई, जो श्रम बाज़ार से महिलाओं के पीछे छूटने को दर्शाती है।
  • हालाँकि, यह प्रवृत्ति तेज़ी से उलट गई, तथा वर्ष 2023-24 में बढ़कर 41.7% हो गई, जो आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की नए सिरे से भागीदारी का संकेत है।
  • "वृद्धि की प्रमुख चालक ग्रामीण महिलाएँ: हालिया महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) में वृद्धि मुख्यतः ग्रामीण महिलाओं द्वारा संचालित रही है, जबकि शहरी भागीदारी में सीमित सुधार देखने को मिला है।"
  • ग्रामीण संकट, महँगाई, स्थिर वेतन एवं घरेलू आय में पूरक योगदान की आवश्यकता जैसे कारकों ने अधिक महिलाओं को काम-काज से जुड़े भूमिकाओं में आने के लिये प्रेरित किया है।
  • अवैतनिक एवं स्व-रोज़गार में वृद्धि: महिलाओं की भागीदारी मुख्य रूप से अवैतनिक पारिवारिक श्रम और स्व-नियोजित कार्यों में बढ़ी है, न कि वेतनभोगी या मजदूरी आधारित रोज़गार में।

FLFPR का महत्त्व

  • महिलाओं की आर्थिक भागीदारी का संकेतक: FLFPR यह आकलन करने में सहायता प्रदान करता है कि महिलाएँ किस हद तक आर्थिक गतिविधियों में भाग लेती हैं और श्रम बाज़ार के साथ जुड़ती हैं।
    • उच्च महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) को प्रायः लैंगिक समानता, बेहतर स्वायत्तता और व्यापक आर्थिक एकीकरण के संकेत के रूप में देखा जाता है।
  • नौकरी संबंधी गुणवत्ता और आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी: अवैतनिक या अनौपचारिक कार्य में वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती FLFPR आर्थिक संकट का संकेत देती है, न कि सशक्तीकरण का।
  • नीतिगत प्रासंगिकता: FLFPR प्रवृत्ति रोज़गार सृजन में संरचनात्मक बाधाओं की पहचान करने में सहायता प्रदान करते हैं, विशेष रूप से महिलाओं के लिये।
    • यह कौशल विकास, ग्रामीण रोज़गार, बाल देखभाल अवसंरचना एवं श्रम बाज़ार सुधारों पर नीतियाँ तैयार करने के लिये महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी में कौन-सी चुनौतियाँ बाधा डालती हैं?

  • उच्च-गुणवत्ता वाले रोज़गार तक सीमित पहुँच: महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा कृषि और अनौपचारिक कार्य जैसे कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों में केंद्रित रहता है, जिससे उन्हें स्थिर और उच्च वेतन वाले रोज़गार के अवसर सीमित हो जाते हैं।
  • घरेलू एवं आर्थिक भूमिकाओं का दोहरा बोझ: ग्रामीण भारत में महिलाएँ प्रायः घरेलू ज़िम्मेदारियों एवं आर्थिक गतिविधियों के बीच संतुलन बनाती हैं, जिससे घरेलू कार्य और औपचारिक रोज़गार के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।
    • महिलाओं के अवैतनिक देखभाल कार्य का हमारे GDP में 3.1% योगदान है, फिर भी यह ‘अदृश्य’ श्रम प्रायः आय सृजन या संपत्ति के स्वामित्व में नहीं बदलता।
  • लैंगिक मानदंड एवं गतिशीलता पर प्रतिबंध: गहरी जड़ें जमा चुके लैंगिक मानदंड, सुरक्षित परिवहन तक अपर्याप्त पहुँच और विश्वसनीय बाल-देखभाल सेवाओं की अनुपस्थिति महिलाओं की गतिशीलता को गंभीर रूप से सीमित करती है तथा उनके व्यावसायिक विकल्पों को प्रभावित करती है।
  • श्रम बाज़ार में उच्च संवेदनशीलता: 90% से अधिक कार्यरत महिलाएँ अनौपचारिक कार्यों में लगी होती हैं, जहाँ सामाजिक सुरक्षा, मातृत्व लाभ एवं कानूनी संरक्षण या तो अनुपस्थित होते हैं या अत्यंत सीमित।
    • ऐसा रोज़गार प्रायः अनियमित, मौसमी तथा परिवार या स्थानीय नेटवर्क पर निर्भर होता है

      FLFPR भारत ने FLFPR में सुधार के लिये क्या उपाय किये हैं?

      • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP): BBBP लड़कियों के लिये उच्च विद्यालय प्रतिधारण और बेहतर जीवन परिणाम सुनिश्चित करके कार्यबल में महिलाओं की दीर्घकालिक भागीदारी को बढ़ाता है।
      • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020: NEP, 2020 शिक्षा में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देती है, जिससे वंचित समूहों की लड़कियों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समावेशी और समान पहुँच सुनिश्चित होती है।
      • वन स्टॉप सेंटर (OSC) और महिला हेल्पलाइन: वन स्टॉप सेंटर हिंसा से प्रभावित महिलाओं को तत्काल सहायता सेवाएँ- चिकित्सा सहायता, कानूनी परामर्श, अस्थायी आश्रय और पुलिस सुविधा- प्रदान करते हैं।
      • महिला हेल्पलाइन 24×7 सहायता प्रदान करती है, जिससे महिलाओं को न्याय प्राप्त करने और अपनी आर्थिक गतिविधियों को सुरक्षित रूप से जारी रखने में मदद मिलती है।
      • श्रम कानूनों का संहिताकरण: चार समेकित श्रम संहिताएँ अनुपालन में सुधार लाने और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये 29 कानूनों को सरल बनाती हैं।
      • महिला श्रमिकों की सुरक्षा के लिये प्रावधान: नीतियों में 26 सप्ताह का सवेतन मातृत्व अवकाश, 50 से अधिक कर्मचारियों वाले संस्थानों में अनिवार्य क्रेच सुविधाएँ, और उचित सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति शामिल है।

      कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 सुरक्षित और सम्मानजनक कार्यस्थल वातावरण सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत ढाँचा प्रदान करता है।

      भारत समावेशी महिला कार्यबल भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित कर सकता है?

      • गुणवत्तापूर्ण कार्य के लिये श्रम मापदंडों का पुनर्आख्यान: उच्च गुणवत्ता वाले रोज़गार को सुनिश्चित करने के लिये भारत को अपने श्रम मापदंडों का पुनर्आख्यान करना होगा—सिर्फ भागीदारी दर पर ध्यान देने के बजाय आय, कार्य समय, रोज़गार की स्थिरता और संपत्ति स्वामित्व जैसे व्यापक संकेतकों को भी शामिल करना आवश्यक है।
        • NSO के समय उपयोग सर्वेक्षण को एकीकृत करने से अवैतनिक देखभाल कार्य को पहचानने और वास्तविक आर्थिक योगदान को प्रतिबिंबित करने के लिये उत्पादक श्रम को पुनर्परिभाषित करने में मदद मिल सकती है।
      • लैंगिक-संवेदनशील औपचारिक रोज़गार का सृजन: उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन, मेक इन इंडिया और MSME समर्थन जैसी नीतियों में महिला-केंद्रित प्रोत्साहन को शामिल किया जाना चाहिये। 
        • ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम-प्रधान क्षेत्रों का विस्तार करने तथा मनरेगा को महिला-विशिष्ट कार्यों के लिये अनुकूलित करने से निकटता-आधारित, सम्मानजनक मज़दूरी वाले कार्य उत्पन्न हो सकते हैं।
      • देखभाल और सामाजिक बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: सामुदायिक बाल देखभाल केंद्र, वृद्ध देखभाल सेवाएँ और साझा रसोई जैसी सुविधाएँ महिलाओं के अवैतनिक कार्यभार को उल्लेखनीय रूप से कम कर सकती हैं। इससे उनके लिये कार्यबल में सतत् भागीदारी बनाए रखना और औपचारिक रोज़गार में सहज रूप से प्रवेश करना आसान हो जाएगा।
      • कौशल निर्माण और डिजिटल सशक्तीकरण: क्षेत्र-विशिष्ट, मांग-आधारित कौशल उन्नयन- विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा, लॉजिस्टिक्स और डिजिटल सेवाओं में- साथ ही गिग/प्लेटफॉर्म कार्य तक सुरक्षित पहुँच से उत्पादकता और आय में वृद्धि हो सकती है।
      • सामाजिक मानदंडों से निपटना: ऋण, डिजिटल साक्षरता और बाज़ार संपर्कों के साथ स्वयं सहायता समूहों को मज़बूत करना तथा साझा घरेलू भूमिकाओं को बढ़ावा देने वाले व्यवहारिक अभियानों के साथ मिलकर दीर्घकालिक आर्थिक समावेशन के लिये एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकता है।

      निष्कर्ष: 

      भारत की बढ़ती श्रम शक्ति भागीदारी को सुरक्षित, पारिश्रमिक और औपचारिक रोज़गार में बदलना होगा। अवैतनिक देखभाल कार्य की औपचारिक मान्यता - जिसका मूल्य सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10-39% है, महिलाओं के विशाल अदृश्य योगदान को उजागर करती है। देखभाल अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना, गैर-कृषि रोज़गारों का विस्तार करना और सुरक्षित एवं न्यायसंगत कार्यस्थल सुनिश्चित करना भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को प्राप्त करने के लिये आवश्यक होगा।

      दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न

      प्रश्न: भारत में महिला श्रम बल भागीदारी को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का विश्लेषण कीजिये तथा इसे बढ़ाने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयासों का मूल्यांकन कीजिये।

      अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

      प्रश्न: महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) क्या है?

      FLFPR कार्यशील आयु की उन महिलाओं के अनुपात को मापता है जो कार्यरत हैं या सक्रिय रूप से कार्य की तलाश में हैं, जो महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और श्रम बाज़ार के अवसरों तक उनकी पहुँच को दर्शाता है।

      प्रश्न: सीमित रोज़गार सृजन के बावजूद भारत की FLFPR हाल ही में क्यों बढ़ी है?

      FLFPR बढ़ने के पीछे प्रमुख कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कठिनाइयाँ, महँगाई और घरेलू आय पर बढ़ता दबाव हैं, जिनकी वजह से महिलाएँ मज़बूरन कम वेतन या बिना वेतन वाले कृषि कार्यों और स्वरोज़गार में लग रही हैं।

      प्रश्न: महिलाओं की सार्थक कार्यबल भागीदारी में कौन-सी चुनौतियाँ बाधा डालती हैं?

      लैंगिक मानदंड, अवैतनिक देखभाल का बोझ, अनौपचारिक रोज़गार, गतिशीलता की बाधाएँ और बच्चों की देखभाल का अभाव महिलाओं की स्थिर, सुरक्षित और पारिश्रमिक वाली नौकरियों तक पहुँच को कम करता है।

      प्रश्न: कम होती महिला श्रम भागीदारी को दूर करने के लिये सरकारी योजनाएँ किस तरह कार्य कर रही हैं?

      BBBP, NEP 2020, कार्यशील महिला छात्रावास, श्रम संहिताएँ, OSC और मातृत्व लाभ जैसी पहलें शिक्षा, सुरक्षा, बाल-देखभाल और औपचारिक रोज़गार के बेहतर अवसर प्रदान कर महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देती हैं।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न   

      प्रिलिम्स:

      प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है-

      (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं

      (b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है

      (c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है

      (d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

      उत्तर: (d)


      मेन्स:

      प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

      प्रश्न: हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2015)

      प्रश्न. "जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोज़गार-योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।" क्या हम ऐसा करने में कोई चूक कर रहे हैं? भारत को जिन जॉबों की बेसबरी से दरकार है, वे जॉब कहाँ से आएँगे? स्पष्ट कीजिये। (2014)

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