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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

कृषि का स्त्रीकरण

प्रस्तावना

इस लेख में हम कृषि के स्त्रीकरण के बारे में जानेंगे।

महिलाएँ 'नए भारत' के लिये सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिवर्तन की पथ प्रदर्शक हैं। 'कृषि के स्त्रीकरण' शब्द से तात्पर्य कृषि से संबंधित गतिविधियों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से है। जैसे-जैसे कृषि संकट गहराता जा रहा है, खेती से आमदनी कम होती जा रही है। धन अर्जित करने के लिये पुरुष धीरे-धीरे गाँव छोड़कर शहर की ओर पलायन कर रहे हैं परिणामस्वरूप कृषि में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है।

साथ ही शहरीकरण और संरचनात्मक परिवर्तन की प्रतिक्रिया में ग्रामीण क्षेत्रों में लैंगिक श्रम स्वरुप बदल रहे हैं। कई कारक इन परिवर्तनों को प्रभावित कर रहे हैं, जिनमें वैश्विक और स्थानीय श्रम प्रवास, महिलाओं की बढ़ती गतिशीलता, कृषि का व्यावसायीकरण, संघर्ष एवं जलवायु अनुकूलन आदि शामिल हैं।

भारतीय कृषि के स्त्रीकरण के कारण

गरीबी: गरीबी एक प्रमुख कारक है जिसके कारण महिलाओं को परिवार की आय के पूरक के लिये खेतिहर मज़दूरों के रूप में काम करने के लिये मज़बूर किया जाता है। महिलाएँ पारिवारिक क्षेत्रों में भी अवैतनिक श्रमिकों के रूप में काम करती हैं।

कृषि संकट: कृषि संकट कृषि श्रम के विघटन या निरसनीकरण अर्थात् कृषि से पुरुषों के आकस्मिक काम की ओर पलायन का एक प्रमुख कारक है। द हिंदू में प्रकाशित 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच, कुल 7.7 करोड़ किसानों ने कृषि छोड़ दी। पुरुषों के खेत से गैर-कृषि गतिविधियों की ओर बढ़ने के साथ, महिलाएँ कृषि और सम्बंधित गतिविधियों में संलिप्त हो गई हैं।

शहरी क्षेत्रों में प्रवासन: आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, पुरुषों द्वारा ग्रामीण से शहरी प्रवास में वृद्धि के साथ, कृषि क्षेत्र का 'स्त्रीकरण' हुआ है; किसानों, मज़दूरों और उद्यमियों जैसे आदि गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है।

महिला किसान और समस्याएँ

परिवार की खाद्य सुरक्षा के प्रति महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका आज भी अदृश्य है। महिलाओं के कार्य को अक्सर अनौपचारिक, अवैतनिक और घरेलू कार्य के रूप में देखा जाता है। उदहारण के लिये पशुपालन व उनकी देखभाल को सामान्य घरेलू कार्य के रूप में माना जाता है, बावजूद इसके कि खाद्य उत्पादन और खेती की गतिविधियों जैसे कि बीजों का चयन, चारा उत्पादन, बुआई, खाद डालना, निराई, रोपाई, धुनाई, कटाई आदि जैसे गतिविधियों में महिलाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। महिलाओं द्वारा किये गए इन कार्यों को मान्यता प्राप्त नहीं है। इसलिए इन कार्यों का मूल्य उचित तरीके से नहीं लगाया जाता है। महिलाएँ या तो बिना भुगतान के या कम भुगतान पर इन कार्यों को करने के लिये मज़बूर हैं।

कृषि क्षेत्र में महिला कार्यबल में वृद्धि, संपत्ति और विवाह जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय लेने की शक्तियों में परिवर्तन नहीं हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अति प्रतिकूल परिस्थितियों में भी श्रम बाज़ार में शामिल हैं।

बावजूद इसके कि आज कृषि क्षेत्र में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज़्यादा है, किन्तु फिर भी भूमि के ऊपर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। वर्ष 2005 में ‘हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम’ में संशोधन के बाद से पुत्र और पुत्री दोनों कृषि भूमि के बराबर उत्तराधिकारी हैं।

परन्तु इतने वर्षों बाद भी ज़मीनी हकीकत यह है कि आज भी महिलाओं को विरासत में पुरुषों के बराबर भूमि नहीं मिलती है। सामाजिक क्रिया-कलाप अभी भी महिलाओं को भूमि का उत्तराधिकारी बनाने में बाधक साबित हो रहे है।

अधिकांश महिलाएँ भूमिहीन होती हैं। इसलिए उन्हें पशुपालन के अलावा किसी और कार्य के लिये आसानी से ऋण भी नहीं मिलता है। ऋण का संबंध सीधे तौर से भूमि के साथ जुड़ा होता है। यह एक गंभीर समस्या है क्योंकि कई राज्यों में पुरुषों की पलायन दर काफी ज़्यादा है और खेती का सारा बोझ महिलाओं के ऊपर होता है लेकिन भूमि का मालिकाना हक नहीं होने की वजह से वे ऋण या सरकारी स्कीमों से वंचित रह जाती हैं।

कृषि के मशीनीकरण ने महिलाओं को पारंपरिक, कम वेतन वाले कार्यों जैसे कि बुआई, कटाई, बीज बोना और पशुधन पालन तक सीमित कर दिया है।

सरकारी योजनाएँ

कृषि क्षेत्र में महिला कार्यबल को मुख्यधारा में लाने के सरकारी प्रयासों में शामिल हैं:

  • कृषि में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए 15 अक्तूबर को महिला किसान दिवस के रूप में घोषित किया गया है।
  • सभी चालू योजनाओं, कार्यक्रमों और विकासात्मक गतिविधियों में महिला लाभार्थियों के लिये कम से कम 30% बजट आवंटित करना तथा महिला केंद्रित गतिविधियों का कार्यान्वयन करना ताकि विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से लाभ उन तक पहुँच सके।
  • महिला स्वयं सहायता समूहों (self help groups) के क्षमता निर्माण गतिविधियों के माध्यम से सूक्ष्म ऋण से जोड़ा जा रहा है और विभिन्न निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • सरकार ने भूमि, जल, ऋण, प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण के संबंध में महिला समर्थक नीतियों की आवश्यकता को स्वीकार किया है।
  • महिला शक्ति केंद्र एक ऐसी सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को कौशल विकास, रोज़गार, डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य और पोषण के अवसरों के साथ सशक्त बनाना है। महिला शक्ति केंद्र छात्र स्वयंसेवकों के माध्यम से सामुदायिक जुड़ाव की दिशा में काम करेंगे और ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण के माध्यम से अपने अधिकारों का लाभ उठाने के लिये सरकार से संपर्क करने के लिये एक इंटरफेस प्रदान करेंगे।

महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना

"महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना" (एमकेएसपी), दीनदयाल अंत्योदय योजना–एनआरएलएम का एक उप-घटक है। महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना "महिला" की पहचान को "किसान" के रूप में मान्यता देती है और कृषि-पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ प्रथाओं के क्षेत्र में महिलाओं की क्षमता का निर्माण करने का प्रयास करती है। यह सामुदायिक प्रबंधित सतत् कृषि, गैर-कीटनाशक प्रबंधन, शून्य बजट प्राकृतिक खेती, पशु-सखी मॉडल जैसी स्थायी कृषि पद्धतियों को अपनाने के माध्यम से छोटे धारक कृषि को मज़बूत करना चाहती है। महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना कृषि में महिलाओं की केंद्रीयता को मान्यता देती है और इसलिए उन्हें स्थायी कृषि उत्पादन प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिये प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान करना है। यह मुख्य रूप से गरीब महिला किसान के सामुदायिक संस्थानों को मज़बूत करने और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के लिये उनकी ताकत का लाभ उठाने पर केंद्रित है।

निष्कर्ष:

कृषि क्षेत्र महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिये एक बहुत ही आवश्यक अवसर प्रदान करता है। फिर भी, विभिन्न चुनौतियों के कारण यह क्षमता अप्रयुक्त रहती है। इन मुद्दों में से एक यह है कि कई महिला मज़दूर परिवार के खेतों में काम करती हैं, जहाँ वे व्यक्तिगत आय नहीं अर्जित कर सकती हैं। उत्पादन प्रक्रिया की औपचारिकता महिला कार्यबल के मुद्रीकरण को प्रोत्साहित करती है और उनकी कार्य स्थितियों में सुधार करती है।

महिला कार्यबल को जकड़ने वाले सामाजिक मानदंडों को शिक्षा, कौशल विकास, तकनीक और डिजिटल साक्षरता को प्रोत्साहित करके संबोधित किया जा सकता है। ये महिला कार्यबल की दक्षता, लाभ, जागरूकता एवं क्रय शक्ति आदि में सुधार कर सकते हैं। नागरिक समाज कृषि महिलाओं को सामूहिक रूप से संगठित करने, उन्हें उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने, राज्य तक पहुँच को सक्षम बनाने और उन्हें स्थायी आजीविका हेतु प्रशिक्षण देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

अंकित साकेत

अंकित कुमार साकेत मध्यप्रदेश के सतना जिले से हैं। वर्तमान में वे विधि अंतिम वर्ष के छात्र हैं। अंकित हिंदी अनुवादन में कई वर्षों का अनुभव रखते हैं। उन्होंने अपने ब्लॉग लेखन की शुरुआत दृष्टि आईएएस के साथ की है ।

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