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मानव-वन्यजीव संघर्ष

  • 25 Dec 2025
  • 102 min read

प्रिलिम्स के लिये: हाथी, हाथी गलियारा, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN), ज़ूनोटिक रोग, बाघ, तेंदुए, मौलिक कर्त्तव्य, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, राष्ट्रीय उद्यान, जैविक विविधता अधिनियम, 2002, प्रोजेक्ट एलिफेंट, प्रोजेक्ट टाइगर, टाइगर रिज़र्व, राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना, NDMA

मेन्स के लिये: मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति, कारण और परिणाम। मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिये मुख्य पहल और इस संघर्ष को प्रभावी ढंग से कम करने के लिये आवश्यक उपाय।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

असम में हुई एक ट्रेन–हाथी टक्कर की घटना ने मानव–वन्यजीव संघर्ष (HWC) के मुद्दे को गंभीर रूप से उजागर कर दिया है। यह घटना किसी हाथी गलियारे के बाहर हुई, जिससे वन्यजीवों की आवाजाही की पहचान (मैपिंग) और रोकथाम से जुड़ी अवसंरचना में मौजूद कमियों पर चिंता बढ़ गई है।

सारांश

  • आवास ह्रास और जलवायु परिवर्तन के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता जा रहा है, जिससे जान-माल की हानि तथा आर्थिक नुकसान हो रहा है।
  • इस समस्या के समाधान के लिये सक्रिय और समेकित रणनीतियों की आवश्यकता है, जिनमें वन्यजीव गलियारों का संरक्षण, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की तैनाती, समुदाय-आधारित सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना तथा कानूनी-नीतिगत ढाँचों को सुदृढ़ कर प्रतिपूरक प्रतिक्रिया से आगे बढ़ते हुए सतत परिदृश्य प्रबंधन की ओर संक्रमण शामिल है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष क्या है?

  • परिचय: HWC से तात्पर्य मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच होने वाली ऐसी किसी भी अंतःक्रिया से है, जिसके परिणामस्वरूप मानव के सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक जीवन पर वन्यजीव आबादी के संरक्षण पर अथवा पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह केवल शारीरिक हमलों तक सीमित नहीं है, बल्कि स्थान और संसाधनों के लिये होने वाली जटिल प्रतिस्पर्द्धा का परिणाम भी है।
  • भारत में HWC: वर्ष 2019-2024 के बीच भारत में हाथियों के हमलों से 2,700 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु हुई, जबकि बाघों ने 349 व्यक्तियों की जान ली।
    • इसी अवधि में सैकड़ों हाथियों की मृत्यु करंट लगने, ट्रेन दुर्घटनाओं और विषाक्तता के कारण हुई। अनुमान है कि वर्ष 2070 तक भारत मानव-वन्यजीव संघर्ष का एक वैश्विक हॉटस्पॉट बन सकता है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं?

  • आवास हानि और विखंडन: प्राकृतिक आवासों को खेतों, सड़कों और बस्तियों में बदलने से वन्यजीवों के रहने के स्थान सीधे नष्ट तथा खंडित हो जाते हैं। जैसे-जैसे मानव आबादी इन क्षेत्रों और प्रवासन गलियारों में फैलती है, वनों तथा संरक्षित क्षेत्रों की साझा सीमाओं पर मनुष्यों व वन्यजीवों के बीच आमने-सामने की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।
    • राजमार्गों, रेलवे लाइनों और नहरों जैसी रेखीय अवसंरचनाएँ आवासों को काटकर परिदृश्य को खंडित कर देती हैं, प्राचीन प्रवासन मार्गों को बाधित करती हैं तथा वाहन टक्करों और विद्युत करंट से वन्यजीवों की मृत्यु के जोखिम को बढ़ा देती हैं।
      • उदाहरण, हाल ही में असम में ट्रेन की टक्कर से 8 हाथियों की मृत्यु हो गई।
      • इसी तरह कर्नाटक के कोडागु में कॉफी और अदरक की कृषि के विस्तार ने हाथियों के प्रवासन मार्गों को बाधित किया है, जिससे फसलों को भारी नुकसान तथा संपत्ति क्षति की घटनाएँ बढ़ी हैं।
  • मानव-प्रधान परिदृश्यों के प्रति अनुकूलन: बंदर, हाथी और तेंदुए जैसी बुद्धिमान व अनुकूलनशील प्रजातियाँ मानव उपस्थिति की आदी हो जाती हैं। वे बस्तियों और खेतों को भोजन के विश्वसनीय स्रोत के रूप में पहचानने लगती हैं, जिससे उनमें मनुष्यों का प्राकृतिक भय कम हो जाता है।
    • घने गन्ने के खेत मांसाहारी जीवों को आदर्श आवरण प्रदान करते हैं। इसका उदाहरण महाराष्ट्र में देखा गया है, जहाँ तेंदुए पूरी तरह गन्ने के खेतों के भीतर रहने के अनुकूल हो गए हैं, पशुधन का शिकार करते हैं और इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएँ बार-बार होती हैं।
    • इन तेंदुओं को ‘शुगर बेबीज़’ कहा जाता है और ये मानव-आवासीय क्षेत्रों के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि स्थानांतरण के बाद भी वनों में वापस नहीं लौटते।
  • जलवायु परिवर्तन एवं जल संकट: लंबे समय तक चलने वाले सूखे और अनियमित मानसून सहित बदलते मौसम प्रतिरूप, प्राकृतिक वन जलाशयों को सुखा देते हैं, जिससे वन्यजीव ग्रामीण तालाबों और सिंचाई टैंकों की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं।
    • वृक्षों के फलन काल में व्यवधान, भालुओं और बंदरों को भोजन की खोज में अन्य क्षेत्रों की ओर जाने के लिये विवश करता है।
    • उदाहरण के लिये, जम्मू और कश्मीर में हिमालयी भूरे भालू अपने प्राकृतिक आवास में खाद्य उपलब्धता में परिवर्तन के कारण बढ़ती हुई संख्या में निचली ऊँचाइयों की ओर उतर रहे हैं।
  • आवासीय क्षमता से अधिक जनसंख्या पुनरुद्धार: कुछ क्षेत्रों में प्रभावी संरक्षण कानूनों और संरक्षण कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप बाघ, हाथी और तेंदुए जैसी प्रमुख प्रजातियों की जनसंख्या में वृद्धि हुई है, जिससे सीमित संरक्षित क्षेत्रों की परिधि पर पशु घनत्व में उल्लेखनीय वृद्धि हो गई है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष को न्यूनतम करने के लिये सरकार द्वारा की गई प्रमुख पहलें कौन-सी हैं?

  • संवैधानिक अधिदेश: संविधान का अनुच्छेद 51A(g) प्रत्येक नागरिक का यह मौलिक कर्त्तव्य निर्धारित करता है कि वह वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं संवर्द्धन करे। यह सभी अन्य उपायों के लिये नैतिक एवं संवैधानिक आधार प्रदान करता है।
    • न्यायिक मान्यता: भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराज और अन्य (2014) तथा गुजरात राज्य बनाम मीरज़ापुर मोती कुरैशी कसाब जमात (2005) मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने मान्यता दी कि पशुओं को भी मनुष्यों के समान अधिकार प्राप्त होने चाहिये तथा उन्हें कानूनी दर्जा प्रदान करके उनके कल्याण पर बल दिया।
  • वैधानिक ढाँचा: वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WPA) राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना के माध्यम से संरक्षण हेतु प्राथमिक विधिक ढाँचा प्रदान करता है।
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में 2006 का संशोधन पशुओं की आवाजाही को सुगम बनाने तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के उद्देश्य से वन्यजीव गलियारों की अवधारणा को मान्यता देता है।
    • जैव विविधता अधिनियम, 2002 पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों एवं आनुवंशिक विविधता के समग्र संरक्षण का लक्ष्य रखता है तथा विद्यमान वन्यजीव कानूनों के रूप में कार्य करता है।
    • वन्यजीव गलियारा विधेयक, 2019 नामक एक निजी सदस्य विधेयक भी वर्ष 2019 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया, जिसका उद्देश्य मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्या का समाधान करना था।
  • नीतिगत एवं नियोजन उपकरण: राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (NWAP) (2017–31) लुप्तप्राय प्रजातियों एवं उनके आवासों के संरक्षण पर बल देती है तथा सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करने हेतु अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा देती है।
    • NDMA के दिशा-निर्देश मानव-वन्यजीव संघर्ष को एक आपदा जोखिम के रूप में मान्यता देते हैं तथा विकास परियोजनाओं में प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और आवास प्रबंधन जैसे शमन उपायों के एकीकरण की सलाह देते हैं।
  • प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप: गजराज प्रणाली भारतीय रेल की एक AI-आधारित निगरानी व्यवस्था है, जो फाइबर-ऑप्टिक सेंसरों के माध्यम से रेल पटरियों पर हाथियों की उपस्थिति का पता लगाकर टकराव की घटनाओं को रोकने में सहायक है।
    • ट्रेलगार्ड AI एक कॉम्पैक्ट, रियल-टाइम कैमरा प्रणाली है, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता की सहायता से संरक्षित क्षेत्रों में मनुष्यों, शिकारियों तथा वाहनों की पहचान करती है, जिससे त्वरित प्रतिक्रिया संभव हो पाती है।
  • प्रजाति-विशिष्ट संरक्षण: प्रोजेक्ट टाइगर (1973) आवास ह्रास की समस्या से निपटने हेतु कोर और बफर क्षेत्रों के साथ टाइगर रिज़र्व की स्थापना करता है।
    • टाइगर्स आउटसाइड टाइगर रिज़र्व (TOTR) परियोजना उन्नत प्रौद्योगिकी जैसे AI, GPS और कैमरों का उपयोग कर मानव-बाघ संघर्ष को कम करने का प्रयास करती है, क्योंकि भारत के लगभग 30 प्रतिशत बाघ अधिसूचित टाइगर रिज़र्व के बाहर विचरण करते हैं।
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट (1992) हाथियों के आवासों और गलियारों का संरक्षण करता है, ताकि प्रवासी मार्ग सुरक्षित रहें और फसल क्षति तथा दुर्घटनाओं को रोका जा सके।

हाथी गलियारे

  • परिचय: हाथी गलियारे प्राकृतिक आवास की संकीर्ण पट्टियाँ होते हैं, जो सामान्यतः वनाच्छादित या वनस्पतियुक्त भूमि के रूप में होती हैं। ये खंडित वन्यजीव क्षेत्रों को आपस में जोड़ते हैं, जिससे हाथियों को संरक्षित आवासों या मौसमी विचरण क्षेत्रों के बीच सुरक्षित आवागमन संभव हो पाता है।
  • समग्र स्थिति: भारत में हाथी गलियारे रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, भारत में 15 हाथी-आवास राज्यों में कुल 150 हाथी गलियारों की पहचान की गई है। पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक 26 हाथी गलियारे हैं, जो भारत के कुल हाथी गलियारों का 17 प्रतिशत से अधिक हैं।
    • क्षेत्रीय वितरण: पूर्व-मध्य क्षेत्र में हाथी गलियारों की सर्वाधिक हिस्सेदारी है, लगभग 35 प्रतिशत अर्थात 52 गलियारे, इसके बाद उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में 32 प्रतिशत, दक्षिणी क्षेत्र में 21 प्रतिशत तथा उत्तरी क्षेत्र में 12 प्रतिशत गलियारे स्थित हैं।
    • गलियारे का प्रकार: अधिकांश हाथी गलियारे, लगभग 84 प्रतिशत, अंतर-राज्यीय न होकर एक ही राज्य के भीतर स्थित हैं, जबकि 13 प्रतिशत अंतर-राज्यीय तथा 6 प्रतिशत नेपाल के साथ अंतर्राष्ट्रीय गलियारे हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष को प्रभावी ढंग से कम करने हेतु आगे कौन-कौन से कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • परिदृश्य-स्तरीय योजना: ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित दृष्टिकोण को अपनाएँ जो केवल अलग-अलग संरक्षित क्षेत्रों तक सीमित न रहे, बल्कि पूरे परिदृश्य का प्रबंधन करे और वैज्ञानिक रूप से मानचित्रित वन्यजीव मार्गों के माध्यम से जंगलों के बीच कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना।
    • भूमि-उपयोग योजना, अवसंरचना विकास और ज़ोनिंग नियमों में वन्यजीवों के पहलुओं को शामिल करें ताकि आवास के विखंडन को रोका जा सके।
    • राज्यों और एजेंसियों के बीच तालमेल को बढ़ावा दें, क्योंकि जानवरों की आवाजाही अक्सर प्रशासनिक सीमाओं को पार कर जाती है।
  • स्थल पर रोकथाम और निरोध: सौर ऊर्जा वाली बाड़, खाइयाँ, पत्थर की दीवार जैसी बाधाएँ लगाएँ, साथ ही चौकियाँ और मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल करके जानवरों की गतिविधियों पर नजर रखें।
  • आर्थिक और आजीविका समर्थन: मुआवज़ा योजनाओं को समय पर पारदर्शी और नुकसान हुई फसलों या पशुधन के वास्तविक बाज़ार मूल्य के अनुसार पुनर्गठित करें और सीधे बैंक हस्तांतरण का उपयोग करके लोगों में सहनशीलता बढ़ाएँ।
  • कानूनी, संस्थागत और नीति सुधार: समन्वित कार्रवाई और त्वरित प्रतिक्रिया के लिये वन, राजस्व, कृषि, पुलिस और स्थानीय सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ स्थायी ज़िला/राज्य स्तरीय टास्क फोर्स स्थापित करके एजेंसियों के बीच समन्वय को मज़बूत करना।
    • सभी विकास परियोजनाओं हेतु मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रभाव आकलन को अनिवार्य करना और बाड़ लगाने तथा वन्यजीव क्रॉसिंग जैसी निवारक उपायों के लिये समर्पित बजट आवंटित करें।
  • सामुदायिक सहभागिता: ग्राम स्तरीय समितियों के माध्यम से स्थानीय समुदायों को शामिल करके सहभागी प्रबंधन को बढ़ावा देना, साथ ही सुरक्षित व्यवहार, गैर-संघर्षकारी आचरण और वन्यजीव संरक्षण के महत्त्व के बारे में लक्षित जागरूकता अभियान चलाएँ।

निष्कर्ष

असम में हुई दुःखद हाथी की मृत्यु इस बात को उजागर करती है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिये प्रतिक्रियात्मक उपायों से हटकर सक्रिय, समग्र परिदृश्य प्रबंधन की आवश्यकता है। इसके लिये वन्यजीव मार्गों को कानूनी रूप से सुरक्षित करना, विज्ञान-आधारित रोकथाम उपाय लागू करना तथा मज़बूत कानूनी-नीति ढाँचे के भीतर समुदाय-संचालित सहअस्तित्व को बढ़ावा देना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. मानव-वन्यजीव संघर्ष केवल संरक्षण का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक और मानवीय चुनौती भी है। इसे विश्लेषित करें और सतत सहअस्तित्व के लिये बहु-आयामी रणनीति सुझाइये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Animal Conflict: HWC) क्या है?
मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) से आशय मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच होने वाली उन अंतःक्रियाओं से है, जिनके परिणामस्वरूप मानव जीवन आजीविका, संपत्ति या पारिस्थितिक तंत्र को क्षति पहुँचती है। यह संघर्ष मुख्यतः स्थान और संसाधनों पर प्रतिस्पर्द्धा के कारण उत्पन्न होता है।

2. रेलवे और राजमार्ग मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) में कैसे योगदान करते हैं?
रेलवे और राजमार्ग जैसी रेखीय अवसंरचना वन्यजीव आवासों एवं गलियारों को काटती हुई गुजरती हैं, जिससे पशु मृत्यु, प्रवासन में बाधा तथा मानव-वन्यजीव मुठभेड़ों में वृद्धि होती है।

3. मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने हेतु कौन-से कानूनी उपाय मौजूद हैं?
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (जिसमें 2006 का गलियारों से संबंधित संशोधन शामिल है), जैव विविधता अधिनियम, 2002 तथा पशु अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न: 'वाणिज्य में प्राणिजात और वनस्पति-जात के व्यापार-संबंधी विश्लेषण (ट्रेड रिलेटेड एनालिसिस ऑफ फौना एंड फ्लोरा इन कॉमर्स / TRAFFIC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. TRAFFIC, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अंतर्गत एक ब्यूरो है। 
  2. TRAFFIC का मिशन यह सुनिश्चित करना है कि वन्य पादपों और जंतुओं के व्यापार से प्रकृति के संरक्षण को खतरा न हो।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिये सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)

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