शासन व्यवस्था
एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लिये पूर्वोत्तर में संपर्क बढ़ाना
- 05 Aug 2025
- 80 min read
प्रिलिम्स के लिये:पूर्वोत्तर क्षेत्र, सिलीगुड़ी कॉरिडोर, भारत की एक्ट ईस्ट नीति, सित्तवे बंदरगाह, भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर भारत में कनेक्टिविटी की चुनौतियाँ, एक्ट ईस्ट नीति और पूर्वोत्तर भारत की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
भारत की क्ट ईस्ट पॉलिसी का उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत को दक्षिण-पूर्वी एशिया का द्वार बनाना है। मिज़ोरम में 51.38 किलोमीटर लंबी बैराबी-सैरांग रेल लाइन का उद्घाटन इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
पूर्वोत्तर भारत का बुनियादी ढाँचा: संपर्क और विकास के 11 वर्ष (2014-2025)
- बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन: इस क्षेत्र में एक्ट ईस्ट पॉलिसी और नॉर्थ ईस्ट स्पेशल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट स्कीम (NESIDS) जैसी पहलों के तहत सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों तथा डिजिटल नेटवर्क में उल्लेखनीय विकास हुआ है।
- रेल संपर्क: अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम में ऐतिहासिक प्रगति हुई है, जिसमें स्वतंत्र भारत के इतिहास में मिज़ोरम को पहली यात्री रेलगाड़ी मिलना भी शामिल है। मणिपुर और नगालैंड तक भी रेलवे संपर्क बढ़ा दिया गया है।
- मिज़ोरम में बैराबी-सैरांग रेल परियोजना भारत की एक्ट ईस्ट नीति के तहत एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक पहल है, जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
- मूलतः मिज़ोरम में बैराबी (कोलासिब ज़िला) को सिलचर (असम) से जोड़ने वाली केवल 1.5 किमी. मीटर-गेज लाइन थी।
- विशिष्ट भू-भाग और जनशक्ति की कमी जैसी चुनौतियों के बावजूद, इस परियोजना में 48 सुरंगें (कुल 12.85 किमी.) और 142 पुल शामिल हैं जिसकी जून 2025 में सुरक्षा मंज़ूरी प्राप्त हुई।
- अंतर्देशीय जलमार्ग: ब्रह्मपुत्र पर रो-रो नौका सेवाओं को पुनर्जीवित किया गया है, जिससे लागत प्रभावी माल परिवहन उपलब्ध होगा और आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलेगा।
- डिजिटल कनेक्टिविटी: भारतनेट और 4G संतृप्ति जैसे कार्यक्रमों के साथ डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विस्तार हुआ है, जिससे दूर-दराज़ के गाँवों को जोड़ा गया है तथा डिजिटल विभाजन के अंतर को कम किया गया है।
- NESIDS परियोजनाएँ: भारत सरकार ने स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पेयजल और सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने के लिये NESIDS के तहत 90 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी, जिनमें से 30 परियोजनाएँ पहले ही पूरी हो चुकी हैं।
- आर्थिक विकास और क्षेत्रीय एकीकरण: इस बुनियादी ढाँचे की क्रांति ने जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है, निजी निवेश को आकर्षित किया है तथा क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया है, जिससे पूर्वोत्तर भारत राष्ट्रीय और क्षेत्रीय एकीकरण के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में स्थापित हो गया है।
पूर्वोत्तर भारत में क्षेत्रीय संपर्क में सुधार भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के साथ किस प्रकार संरेखित है?
- उन्नत राजनयिक और सुरक्षा संबंध: कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट, IMT त्रिपक्षीय राजमार्ग और साइरांग जैसे रणनीतिक स्थानों के माध्यम से संपर्क, भारत के ASEAN देशों के साथ व्यापार तथा संपर्क को मज़बूत करने के प्रयासों को समर्थन प्रदान करेगा।
- उन्नत बुनियादी ढाँचे से म्याँमार और बांग्लादेश के साथ मज़बूत संबंध विकसित होंगे, जिससे क्षेत्र में भारत के रणनीतिक तथा सुरक्षा उद्देश्यों को समर्थन मिलेगा।
- ट्रांसशिपमेंट हब: सैरांग रेलवे स्टेशन म्याँमार के सित्तवे बंदरगाह से माल की आवाजाही के लिये एक महत्त्वपूर्ण पारगमन बिंदु बनने के लिये तैयार है, जिससे क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- यह रेल लाइन भारत की दीर्घकालिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे पूर्वोत्तर राज्यों को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- सामाजिक-आर्थिक उत्थान: पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) में बेहतर रेल संपर्क रोज़गार सृजन, क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देता है, भौगोलिक अलगाव को कम करता है तथा क्षेत्र को राष्ट्रीय मुख्यधारा से जोड़ता है।
- यह शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आपदा प्रतिक्रिया तक बेहतर पहुँच को भी बढ़ावा देता है, जिससे पूर्वोत्तर तथा शेष भारत के बीच विकास संबंधी असमानताओं के अंतर को कम करने में मदद मिलती है।
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी क्या है?
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी: नवंबर, 2014 में शुरू की गई एक्ट ईस्ट पॉलिसी, पूर्ववर्ती लुक ईस्ट पॉलिसी का उन्नत संस्करण है।
- यह एक कूटनीतिक और रणनीतिक पहल है जिसका उद्देश्य एशिया-प्रशांत तथा भारत-प्रशांत क्षेत्रों, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया के साथ आर्थिक, सांस्कृतिक एवं रक्षा संबंधों को मज़बूत करना है।
- उद्देश्य: भारत-प्रशांत देशों के साथ गहरे संबंध विकसित करना, उत्तर पूर्वी क्षेत्र (NER) में आर्थिक विकास को बढ़ाना और इसे दक्षिण पूर्व एशिया के लिये भारत के प्रवेश द्वार के रूप में स्थापित करना।
- मुख्य विशेषताएँ: आसियान और हिंद-प्रशांत देशों के साथ बहु-स्तरीय संपर्क तथा सक्रिय कूटनीति के माध्यम से कनेक्टिविटी, व्यापार, रक्षा एवं लोगों से लोगों के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित करना।
पूर्वोत्तर संपर्क को बढ़ावा देने वाली भारत की पहल
- पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान
- एक्ट ईस्ट नीति
- पूर्वोत्तर के लिये विशेष त्वरित सड़क विकास कार्यक्रम (SARDP-NE)
- पूर्वोत्तर विशेष अवसंरचना विकास योजना (NESIDS)
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के अंतर्गत क्षेत्रीय संपर्क को लागू करने में कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं?
- भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: म्याँमार नागरिक संघर्ष (2021 से) से कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना बाधित हुई है।
- बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता (2024) के कारण अगरतला-अखौरा रेल संपर्क में देरी हुई है, जिससे चटगाँव बंदरगाह तक पहुँच और क्षेत्रीय व्यापार एकीकरण प्रभावित हुआ है।
- सुरक्षा और उग्रवाद जोखिम: जातीय संघर्ष, जैसे मणिपुर संघर्ष (2023) तथा उग्रवाद की निरंतर स्थितियाँ क्षेत्र में निवेश को हतोत्साहित करते हैं।
- इम्फाल-मोरेह रेल लाइन तथा एशियन हाईवे 1 जैसी प्रमुख परियोजनाएँ क्षेत्रीय अशांति के कारण ही रुकी हुई हैं।
- पूर्वोत्तर भारत में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: पूर्वोत्तर क्षेत्र की अविकसित सड़क, रेल और हवाई संपर्क सुविधाएँ एक्ट ईस्ट नीति के तहत दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में इसकी क्षमता को बाधित करती हैं।
- केवल 22 किलोमीटर चौड़ा सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन्स नेक) व्यवधान का शिकार रहता है। बार-बार आने वाली बाढ़, भूस्खलन, भूकंप और नाज़ुक पारिस्थितिकी बुनियादी ढाँचे के विकास संबंधी कार्यों को बाधित करते हैं।
- पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण बाँधों तथा खनन जैसी व्यापक परियोजनाओं का स्थानीय स्तर पर विरोध किया जाता है।
- मल्टी-मॉडल एकीकरण अधूरा रह गया है, जिसके परिणामस्वरूप निर्बाध क्षेत्रीय संपर्क सीमित हो गया है।
- चीन कारक और रणनीतिक अंतराल: क्षेत्र में बढ़ता चीनी प्रभाव और RCEP से भारत का अलग होना पूर्वी एशिया में भारत की आर्थिक भागीदारी के बारे में चिंताओं को बढ़ाता है।
- सीमित व्यापार समझौते और कनेक्टिविटी पर धीमी प्रगति भारत की क्षेत्रीय स्थिति को कमज़ोर कर रही है।
भारत की एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वोत्तर कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?
- मज़बूत क्षेत्रीय कूटनीति और संपर्क: भारत को कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट परियोजना और अगरतला-अखौरा रेल लिंक जैसी संपर्क परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिये म्याँमार और बांग्लादेश के साथ रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करना चाहिये।
- बिम्सटेक और BBIN जैसे क्षेत्रीय समूहों का लाभ उठाना सीमा पार व्यापार को बढ़ाने, लॉजिस्टिक संबंधी बुनियादी ढाँचे में सुधार करने और चटगाँव बंदरगाह (बांग्लादेश) तथा सित्तवे बंदरगाह (म्याँमार) जैसे प्रमुख समुद्री केंद्रों तक पहुँचने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- आसियान अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत के संबंधों को मज़बूत करने के लिये दीमापुर-जुब्ज़ा और इम्फाल-मोरेह रेलवे लाइनों जैसे अंतर्देशीय संपर्क गलियारों को पूरा करने पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- एकीकृत और लचीला बुनियादी ढाँचा:
- भारत को एक्ट ईस्ट उद्देश्यों का समर्थन करने के लिये PM गति शक्ति, भारतमाला और उड़ान जैसी योजनाओं के तहत बमल्टी-मॉडल परिवहन बुनियादी ढाँचे (सड़क, रेल, वायु, जलमार्ग) का विकास करना चाहिये।
- बुनियादी ढाँचे को आपदा-प्रतिरोधी होना चाहिये तथा इसे पूर्वोत्तर के बाढ़, भूस्खलन और भूकंप से प्रभावित संवेदनशील क्षेत्रों के अनुरूप बनाया जाना चाहिये।
- सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई बाज़ारों तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वैकल्पिक संपर्क मार्ग बनाना आवश्यक है।
- सुरक्षा-संवेदनशील और समावेशी विकास: एक्ट ईस्ट नीति के तहत कनेक्टिविटी को आतंकवाद रोधी उपायों के साथ संरेखित किया जाना चाहिये तथा सीमावर्ती और संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे को सुरक्षित करना चाहिये।
- म्याँमार के साथ शांति स्थापना को मज़बूत करना स्थिर सीमा प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव आकलन (ESIA), न्यायसंगत मुआवज़ा और लाभ-साझाकरण के माध्यम से स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित करने से धारणीयता, समावेशिता तथा क्षेत्रीय स्थिरता को प्रोत्साहन मिलेगा।
- संस्थागत एवं कार्यान्वयन सुधार: एक्ट ईस्ट नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये भूमि अधिग्रहण और परियोजना अनुमोदन के लिये सिंगल विंडों मंज़ूरी जैसे प्रशासकीय सुधारों की आवश्यकता है।
- PPP को बढ़ावा देने और परिवहन, डिजिटल और ऊर्जा बुनियादी ढाँचे को एकीकृत करने से आर्थिक एकीकरण बढ़ेगा और पूर्वोत्तर में परियोजनाओं का समय पर निष्पादन सुनिश्चित होगा।
निष्कर्ष
पूर्वोत्तर न केवल भारत की सीमा है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये इसका प्रवेश द्वार भी है। मज़बूत और समावेशी संपर्क के माध्यम से इसकी क्षमता का दोहन न केवल इस क्षेत्र को सामाजिक-आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भू-रणनीतिक स्थिति को भी मज़बूत करेगा। सफलता बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने तथा पारिस्थितिक संवेदनशीलता, रणनीतिक कूटनीति व स्थानीय सहयोग के बीच संतुलन बनाने में निहित है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: पूर्वोत्तर के संदर्भ में भारत की एक्ट ईस्ट नीति को बढ़ाने में क्षेत्रीय संपर्क की भूमिका पर चर्चा की विवेचना कीजिये। कौन-सी भू-राजनीतिक चुनौतियाँ इस दृष्टिकोण में बाधा डालती हैं? |
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