भारतीय राजव्यवस्था
ग्रामीण निकायों के लिये वित्त पोषण
- 05 Aug 2025
- 71 min read
प्रिलिम्स के लिये:पंचायती राज संस्थाएँ (PRI), 11वीं अनुसूची, राज्य वित्त आयोग (SFC), GST, ग्राम सभा, वित्त आयोग। मेन्स के लिये:ग्रामीण स्थानीय निकायों के वित्तपोषण और पंचायती राज संस्थाओं के कामकाज से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: IE
चर्चा में क्यों?
ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने “पंचायती राज संस्थाओं को आवंटित धनराशि में लगातार गिरावट” को चिन्हित किया है और केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वे यह सुनिश्चित करने के लिये “तत्काल कदम” उठाएँ कि ग्रामीण स्थानीय निकायों को पर्याप्त, गैर-निर्बंधित और प्रदर्शन आधारित निधि आवंटित की जाए।
ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये वित्त या धन का स्रोत
- स्वयं के संसाधनों से प्राप्त राजस्व (OSR): ग्रामीण स्थानीय निकाय स्वतंत्र रूप से करों (जैसे, संपत्ति कर, वाहन कर), गैर-कर राजस्व (जैसे, लाइसेंसिंग शुल्क, जल आपूर्ति शुल्क) तथा अन्य स्रोतों (जैसे, जुर्माने, उपयोगकर्त्ता शुल्क) के माध्यम से धन जुटाते हैं।
- साझा/आवंटित राजस्व: राज्य या केंद्र स्तर की सरकार द्वारा एकत्रित राजस्व जिसे ग्रामीण स्थानीय निकायों के साथ साझा किया जाता है या उन्हें सौंपा जाता है, जिसमें स्थानीय उपकर (सेस) व अधिशुल्क, साझा मनोरंजन कर, सामाजिक वानिकी से प्राप्त खनन रॉयल्टी या पट्टा आय का हिस्सा शामिल है।
- केंद्रीय वित्त आयोग अनुदान: पंचायतों के वित्त का स्रोत मुख्यतः केंद्र सरकार होती है, जिसे वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर आवंटित किया जाता है, जिसमें अबंध (Untied) और बंधित (Tied) अनुदान शामिल हैं।
- राज्य सरकार अनुदान (State Government Grants): राज्य वित्त आयोग की अनुशंसा और राज्य सरकार द्वारा, जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्र आदि के आधार पर स्थानीय निकायों को अनुदान व विकेंद्रीकृत निधि दी जाती है।
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं एवं राज्य योजनाओं के अंतर्गत निधियाँ: यह निधियाँ पंचायतों के माध्यम से योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु दी जाती हैं, जैसे: मनरेगा, PMAY-G (प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण), स्वच्छ भारत मिशन, NRLM आदि।
- विशेष अनुदान (Special Grants): सांसद क्षेत्र विकास योजना (MPLADS), विधायक/एमएलसी क्षेत्र विकास योजनाएँ, पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (BRGF) आदि के तहत।
ग्रामीण स्थानीय निकायों के वित्त पोषण से संबंधित समस्याएँ
- पंचायतों के आवंटन में गिरावट: संसदीय समिति ने उजागर किया है कि पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को आवंटित निधियों में लगातार कमी से राजकोषीय विकेंद्रीकरण प्रभावित होता है और वे अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पातीं।
- वर्ष 2024 की "राज्यों में पंचायतों को हस्तांतरण रिपोर्ट" में सीमित सामाजिक ऑडिट, ग्राम सभा में कम भागीदारी और अपर्याप्त वित्तीय प्रकटीकरण जैसी समस्याओं को रेखांकित किया गया है, जिससे निगरानी और पारदर्शिता कमज़ोर होती है।
- राज्य वित्त आयोग (SFC) का गठन: संसदीय समिति ने राज्यों को समय पर राज्य वित्त आयोग (SFC) का गठन सुनिश्चित करने पर बल दिया है, क्योंकि इसके विलंब, GST के केंद्रीकरण व सीमित राजकोषीय स्वायत्तता से पंचायतों की वित्तीय नियंत्रण क्षमता प्रभावित होती है। समिति ने पाया कि केवल 25 राज्यों द्वारा SFC गठित किया गया हैं, जबकि केवल 9 राज्यों ने 6वाँ SFC गठित किया है।
- जहाँ पंजाब और तमिलनाडु ने SFC के पालन में मज़बूती दिखाई है, वहीं अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड और तेलंगाना जैसे राज्यों में ATRs (कार्रवाई रिपोर्ट) में देरी देखी गई है।
- स्थानीय ज़रूरतें पूरी करने में असमर्थता: समिति ने जताया कि बिना शर्त और योजना आधारित निधियों में कटौती से पंचायतों की स्थानीय विकास ज़रूरतें पूरी करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे सेवाओं, ढाँचागत विकास और सामाजिक कल्याण पर असर पड़ता है।
- वर्ष 2024 की रिपोर्ट दर्शाती है कि संविधान की 11वीं अनुसूची के तहत 29 विषयों का असंगत हस्तांतरण भी राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रण खोने के डर से पंचायतों की निर्णय क्षमता सीमित करता है।
- संस्थागत कमजोरियाँ: वर्ष 2024 रिपोर्ट में चिंता जताई गई कि SC, ST और महिलाओं के लिये आरक्षित सीटों का रोटेशन नेतृत्व की निरंतरता में बाधा उत्पन्न करता है, जिससे नए नेता अपनी अलग प्राथमिकताएँ और दृष्टिकोण लेकर आते हैं।
- ज़िला योजना समितियाँ (DPCs) मौजूद तो हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन कमज़ोर है तथा निर्वाचित प्रतिनिधि शासन, बजट और योजना निर्माण में पर्याप्त प्रशिक्षण से वंचित हैं।
पंचायती राज संस्थाओं (PRI) के वित्तपोषण की स्थिति (राज्यों में पंचायतों को धन हस्तांतरण की स्थिति रिपोर्ट 2024)
- राजस्व संरचना: राजस्व संरचना: पंचायती राज संस्थाएं करों के माध्यम से केवल 1% राजस्व अर्जित करती हैं, जो सीमित स्व-वित्तपोषण क्षमता को दर्शाता है।
- लगभग 95% राजस्व केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रदान किये गए अनुदान से आता है।
- प्रति पंचायत राजस्व: प्रत्येक पंचायत अपने करों से लगभग 21,000 रुपए और गैर-कर स्रोतों से लगभग 73,000 रुपए अर्जित करती है।
- केंद्र सरकार का औसत अनुदान लगभग 17 लाख रुपए तथा राज्य सरकार का अनुदान लगभग 3.25 लाख रुपए प्रति पंचायत है, जो बाहरी सहायता पर भारी निर्भरता को दर्शाता है।
- राजस्व व्यय में कमी: राजस्व व्यय का अनुपात प्रति राज्य के नाममात्र GSDP के मुकाबले 0.6% से भी कम है, जो बिहार में 0.001% से लेकर ओडिशा में 0.56% तक है।
- राज्यवार असमानताएँ: केरल और पश्चिम बंगाल में औसत राजस्व सबसे अधिक है (क्रमशः 60 लाख रुपए और 57 लाख रुपए से अधिक), जबकि आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में राजस्व बहुत कम (6 लाख रुपए से कम) है।
ग्रामीण स्थानीय निकायों के वित्तपोषण में सुधार के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?
- प्रदर्शन-संबद्ध संसाधन: संसदीय समिति की रिपोर्ट में पंचायती राज संस्थाओं को पर्याप्त, असंबद्ध, प्रदर्शन-संबद्ध संसाधन आवंटित करने, निधि संरक्षण सुनिश्चित करने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने का आग्रह किया गया है।
- पंचायतों को स्थानीय करों के माध्यम से राजस्व बढ़ाना चाहिए, तथा बेहतर कर संग्रह के लिये राज्य का सहयोग भी लेना चाहिये।
- निधि आवंटन: संसदीय समिति की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पंचायती राज मंत्रालय को वित्त मंत्रालय और पंद्रहवें वित्त आयोग के साथ समन्वय करके निधि आवंटन में कमी को तत्काल दूर करना चाहिये तथा PRI के लिये सुसंगत, असंबद्ध और प्रदर्शन-आधारित वित्तीय सहायता सुनिश्चित करनी चाहिये।
- पंचायतों को वित्तपोषित करने की राज्यों की क्षमता के अनुरूप नियमित वित्तीय हस्तांतरण, स्थायी स्थानीय शासन के लिये महत्त्वपूर्ण है, जबकि अस्थायी अनुदानों के विपरीत, यह सभी क्षेत्रों में दीर्घकालिक विकास और समानता सुनिश्चित करता है।
- राज्य वित्त आयोग (SFC): समिति की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पंचायती राज मंत्रालय को राज्य सरकारों को राज्य वित्त आयोग (SFC) की स्थापना के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि समय पर धन हस्तांतरण सुनिश्चित हो सके और केंद्रीय अनुदान वितरण में देरी को रोका जा सके।
- राज्यों को ATR संविधान और रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के अनुपालन में सुधार करना चाहिये तथा नियमित रूप से रिपोर्ट और कार्रवाई रिपोर्ट (ATR) प्रस्तुत करना सुनिश्चित करना चाहिये एवं पंचायतों हेतु निरंतर वित्तपोषण सुनिश्चित करने के लिये सिफारिशों का पूर्ण कार्यान्वयन करना चाहिये।
- पारदर्शिता सुनिश्चित करना: राज्यों में पंचायतों को वर्ष 2024 का हस्तांतरण रिपोर्ट यह सिफारिश करता है कि PRI निधियों को डायवर्जन से बचाने, सरकारी स्तरों के बीच राजकोषीय हस्तांतरण में पारदर्शिता को बढ़ावा देने और नियमित ऑडिट, RTI प्रकटीकरण और मज़बूत खरीद प्रक्रियाओं के माध्यम से वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये तंत्र स्थापित किये जाने चाहिये।
- डिजिटल अवसंरचना: राज्यों में पंचायतों को 2024 का हस्तांतरण रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पंचायतों को सार्वजनिक सेवाओं हेतु केंद्र के रूप में कार्य करना चाहिये, सरकारी योजनाओं तक पहुँच में सुधार करना चाहिये तथा बेहतर शासन और पारदर्शिता के लिये डिजिटल अवसंरचना को बढ़ाना चाहिये।
निष्कर्ष
पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये यह आवश्यक है कि समय पर निधियों का विकेंद्रीकरण किया जाए, स्थानीय स्तर पर राजस्व सृजन को बढ़ावा दिया जाए, पारदर्शिता और जवाबदेही की संस्थागत व्यवस्थाओं को सुदृढ़ किया जाए, साथ ही सतत् शासन के उपायों को प्रोत्साहित करते हुए ग्रामीण निकायों को दीर्घकालिक विकास हेतु सशक्त बनाया जाए।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. ग्रामीण निकायों को कम वित्त पोषण मिलने से ग्रामीण विकास पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये। इसके प्रभावों को कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017) (a) संघवाद का उत्तर: (b) प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न 1. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022) प्रश्न 2. भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती हैं? (2018) |