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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पाकिस्तान-चीन संबंध और भारत

  • 05 Feb 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पंचशील की नीति, हुंजा-गिलगित क्षेत्र, 1999 का कारगिल संघर्ष।

मेन्स के लिये:

भारतीय विदेश नीति, पाकिस्तान-चीन संबंध, भारत-चीन संबंधों का इतिहास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विदेश नीति के बहाने संसद में सरकार से सवाल करते हुए विपक्ष ने पाकिस्तान और चीन को एक साथ लाने के लिये ज़िम्मेदार मौजूदा नीतियों की आलोचना की है।

  • इसके जवाब में विदेश मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि दोनों देश हमेशा करीबी रहे हैं और कई मोर्चों पर सहयोग का एक समृद्ध इतिहास साझा किया है।

पाकिस्तान-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि:

  • प्रारंभ में पाकिस्तान संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले दो कम्युनिस्ट विरोधी सैन्य समझौते ‘सीटो और सेंटो’ (SEATO and CENTO) का सदस्य था, इसे गैर-सोवियत ब्लॉक के हिस्से के रूप में देखा गया था और माओत्से तुंग के नेतृत्त्व में चीन वैचारिक स्तर पर इन सबसे अलग था।
    • दूसरी ओर भारत के चीन के साथ कामकाजी संबंध थे। दोनों देशों का उपनिवेश-विरोधी, गुट-निरपेक्ष दृष्टिकोण समान था और इन्होंने मिलकर पंचशील की नीति दी।
    • हालाँकि 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के कारण यह संबंध जल्दी बदल गया।
  • 1962 का युद्ध: 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण चीन ने पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किये। 
    • वर्ष 1963 में एक सीमा समझौते में पाकिस्तान ने शक्सगाम घाटी को चीन को सौंप दिया।
    • शक्सगाम घाटी या ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के हुंजा-गिलगित क्षेत्र का हिस्सा है और यह भारत द्वारा दावा किया गया क्षेत्र है लेकिन पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित है।
    • इस समझौते के माध्यम से 1970 के दशक में चीन और पाकिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित काराकोरम राजमार्ग की नींव रखी गई।
  • 1965 का युद्ध: 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को चीन से कूटनीतिक समर्थन मिला।
    • विश्लेषकों का कहना है कि 1962 में चीन के खिलाफ युद्ध में भारत की हार के बाद पाकिस्तान को आक्रामकता के लिये उकसाया गया था।
  • अमेरिका-चीन और पाकिस्तान: इनका वास्तविक राजनयिक मिलन 1970 के दशक में शुरू हुआ जब पाकिस्तान ने रिचर्ड निक्सन और हेनरी किसिंजर तथा चीन के माओ एवं झोउ एनलाई के नेतृत्व वाले देशों के बीच पहुँच स्थापित की।
  • परमाणु सहयोग: चीन एवं पाकिस्तान के बीच संबंध 1970 और 80 के दशक में विकसित हुए। खासकर वर्ष 1974 में भारत द्वारा परमाणु हथियारों का परीक्षण करने के बाद परमाणु सहयोग प्रमुख स्तंभों में से एक था।
    • चीन ने पाकिस्तान को परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी विकसित करने में मदद कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • सितंबर 1986 में दोनों देशों द्वारा असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
    • चीन वर्ष 1991 में पाकिस्तान को अपने स्वदेशी रूप से विकसित Qinshan-1 परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Qinshan-1 Nuclear Power Plant) की आपूर्ति करने पर सहमत हुआ।
    • वर्ष 1998 में भारत द्वारा अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण करने के बाद पाकिस्तान ने चीन की मदद से इसका अनुसरण किया।

भारत-चीन संबंधों का इतिहास:

  • वर्ष 1988 में राजीव गांधी की चीन यात्रा के साथ भारत और चीन के बीच तालमेल की एक महत्त्वपूर्ण  प्रक्रिया शुरू हुई।
  • चीन द्वारा एक स्पष्ट बदलाव के संकेत देखने को मिले जहांँ उसने भारत के साथ संबंधों को आर्थिक हितों के साथ जोड़ा और व्यापार पर ध्यान केंद्रित किया, वहीं दूसरी ओर उसने सीमा विवाद पर भारत से अलग से बात की।
    • इसके बाद से चीन ने भारत और पाकिस्तान को लेकर सतर्क रुख अपनाया।
  • वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान चीन ने पाकिस्तान को सलाह दी कि वह सैनिकों को वापस बुला ले तथा आत्म-नियंत्रण बरते।
  • वर्ष 2002 में संसद पर हमले, ऑपरेशन पराक्रम बिल्डअप और वर्ष 2008 में मुंबई आतंकी हमले के बाद भी चीन द्वारा इसी इसी प्रकार का रुख अपनाया गया। 
  • फरवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट हवाई हमले के दौरान भी चीन द्वारा इसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त की। 

भारत-चीन-पाकिस्तान ट्राइएंगल की वर्तमान स्थिति:

  • वर्ष 2005-06 में परमाणु समझौते से शुरू हुई अमेरिका-भारत निकटता ने चीन और पाकिस्तान दोनों को चिंतित कर दिया।
  • चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) से संबंधित है जो भारत द्वारा दावा किये गए विवादित क्षेत्र से होकर गुज़रती है।
    • चीन के दृष्टिकोण से यह बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से पश्चिमी हिंद महासागर तक पहुंँच प्रदान करती है।
    • हालाँकि भारत के दृष्टिकोण से ग्वादर बंदरगाह भारत को घेरने के लिये चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति का एक हिस्सा है।
  • अगस्त 2019 में भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने तथा जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के निर्णय ने चीन व पाकिस्तान को और भी करीब ला दिया है।
  • वर्ष 2020 में चीन द्वारा पाकिस्तानी सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने हेतु पाकिस्तान के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • पाकिस्तान ने चीन में निर्मित लड़ाकू ड्रोन या मानव रहित लड़ाकू हवाई विमान खरीदे हैं।
  • पाकिस्तान दक्षिण चीन सागर, ताइवान, शिनज़ियांग और तिब्बत सहित मुख्य मुद्दों पर चीन का समर्थन करता है।
  • तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद चीन को पाकिस्तान की मदद से और संसाधनों हेतु अफगानिस्तान में प्रवेश करने का मौका मिल गया है।

भारत के लिये चीन-पाकिस्तान निकटता के निहितार्थ:

  • दो मोर्चो पर युद्ध: दोनों देशों के बीच निकटता एक 'दो-मोर्चे पर युद्ध’ के विचार को जन्म देती है।
  • अधिग्रहीत क्षेत्रों पर बातचीत: चीन अब अक्साई चिन, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश एवं सिक्किम जैसे भारतीय क्षेत्रों को 'पुनर्प्राप्त' करने के लिये बातचीत करना चाहता है।
    • यह वार्ता कश्मीर तथा संबंधित क्षेत्रों में चीन की भूमिका को बल प्रदान करेगी।
  • वैश्विक शक्ति के रूप में चीन का उदय: चीन और पाकिस्तान दोनों का साझा उद्देश्य विश्व शक्ति के रूप में भारत के उदय को रोकना है।
    • वैश्विक शक्ति के रूप में चीन के उदय के साथ पाकिस्तान और चीन की वर्तमान साझेदारी को भारत पहले की तुलना में अधिक चिंता का विषय मानता है।

आगे की राह

  • दक्षिण एशियाई संबंधों में सुधार: सबसे पहले भारत को अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों में सुधार करने के लिये उचित कदम उठाने होंगे।
    • चीन और पाकिस्तान इस क्षेत्र में भारत को नियंत्रित और प्रतिबंधित करने का प्रयास कर सकते हैं।
  • पड़ोस के साथ संबंधों में सुधार: ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने, समुद्री सहयोग बढ़ाने एवं विस्तारित करने हेतु इसे पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को और मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • रूस के साथ संबंधों में सुधार: भारत को रूस के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना चाहिये, क्योंकि रूस भारत के खिलाफ क्षेत्रीय गंभीरता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • कश्मीर की स्थिति में सुधार: दीर्घकालिक दृष्टिकोण से कश्मीर में राजनीतिक पहुँच का उद्देश्य पीड़ित लोगों की समस्याओं का समाधान कर वहाँ शांति स्थापित करना है।
  • भारत-प्रशांत रणनीति में सुधार: भारत के लिये अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूरोपीय भागीदारों को शामिल करने वाली भारत-प्रशांत रणनीति एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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