लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

COVID-19 महामारी और स्वाइन फ्लू

  • 05 May 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

स्वाइन फ्लू, एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम, इन्फ्लुएंज़ा और COVID-19 में समानता

मेन्स के लिये:

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

'राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र' (National Centre for Disease Control- NCDC) के आँकडों के अनुसार, COVID-19 महामारी के अधिकांश मामले उन राज्यों में देखने को मिले हैं जिनमें स्वाइन फ्लू (Swine Flu) या ‘इन्फ्लुएंज़ा’ (Influenza) के मामलों की दर भी पिछले कुछ वर्षों में उच्च रही है।

मुख्य बिंदु:  

  • ये आँकड़ें ‘एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम' (Integrated Disease Surveillance Programe- IDSP) के भाग के रूप में एकत्रित किये गए हैं। 
  • COVID-19 महामारी के लगभग 70% मामले पाँच राज्यों - महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, और तमिलनाडु से संबंधित हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • वर्ष 2015 के बाद से स्वाइन फ्लू या मौसमी इन्फ्लूएंज़ा (Seasonal Influenza- H1N1) के अधिकतर मामले भी इन राज्यों में ही देखने को मिले हैं। 
  • वर्ष 2020 में स्वाइन फ्लू के 1,1132 मामले दर्ज किये गए हैं। हालाँकि 23 फरवरी के बाद के कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। 

Viral-Connection

H1N1 और COVID-19 में समानता:

Disease

  • H1N1 और COVID-19 दोनों रोगों के वायरस गैर-मानव अर्थात जानवरों या पक्षियों को एक ‘मेज़बान’ (Host) के रूप में रूप में उपयोग करते हैं ।
  • दोनों फेफड़ों को प्रभावित करते हैं तथा फुफ्फुसीय संक्रमण का कारण बनते हैं, यद्यपि इनके फेफड़ों को प्रभावित करने की दर भिन्न-भिन्न होती है।
  • दोनों का प्रसार संपर्क या संदूषित फोमाइट (Fomite) के माध्यम से होता है।
  • संदूषित फोमाइट ऐसी वस्तुएँ या सामग्री होती हैं जिनसे संक्रमण की संभावना है, जैसे कपड़े, बर्तन और फर्नीचर आदि।

COVID- 19 और इन्फ्लुएंज़ा वायरस में अंतर:

  • COVID- 19 के वायरस की तुलना में इन्फ्लुएंज़ा वायरस की 'माध्य ऊष्मायन अवधि' (संक्रमण से लक्षणों के प्रकट होने तक का समय) और 'शृंखला अंतराल' (क्रमिक मामलों के बीच का समय) छोटा होता है। अर्थात इन्फ्लूएंज़ा का प्रसार, COVID-19 महामारी की तुलना में तेज़ी से होता है।
  • स्वाइन फ्लू संक्रमण के मामले में मृत्यु दर, COVID-19 महामारी की तुलना में उच्च होती है। स्वाइन फ्लू या इन्फ्लुएंज़ा न केवल बच्चों अपितु युवा लोगों को बहुत अधिक प्रभावित करता है जबकि COVID-19 महामारी से मुख्यत: 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्ग प्रभावित होते हैं। जबकि बच्चों पर COVID-19 का नगण्य प्रभाव देखा गया है।

अध्ययन के निहितार्थ:

  • यह संभव है कि इन राज्यों में भविष्य में Sars-CoV2 वायरस, H1N1का स्थान ले सकता है।
    • SARS-CoV-2 उस वायरस का नाम है जिसके कारण कोई व्यक्ति COVID-19 से प्रभावित होता है।
  • इन्फ्लूएंज़ा का चरम प्रकोप उत्तर भारत में गर्मियों के महीनों में जबकि दक्षिणी और पश्चिमी भारत में सर्दियों में देखने को मिलता है। अत: Sars-CoV2 वायरस अभी भी संक्रमण के चरण में है तथा भविष्य में इसकी चरम स्थिति देखने को मिल सकती है।
  • उत्तर प्रदेश और बिहार भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से हैं तथा इन राज्यों की एक बड़ी जनसंख्या प्रवासियों के रूप में महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों में रहती है, अत: ऐसी संभावना है कि COVID- 19 महामारी का प्रसार उच्च जनसंख्या वाले राज्यों में हो सकता है। 

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP):

  • एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम विश्व बैंक के सहयोग से भारत सरकार द्वारा वर्ष 2004 में प्रारंभ किया गया है। 
  • यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Affairs) की एक पहल है। 
  • निगरानी प्रक्रिया में रोग कर आँकडों को तीन निर्दिष्ट किये गए रिपोर्टिंग प्रारूप के अनुसार एकत्रित किया जाता है। अर्थात् 'S' (संदिग्ध), 'P' (अनुमानित) और 'L' (प्रयोगशाला में पुष्टि किये गए)।

IDSP के उद्देश्य:

  • रोगों की प्रवृत्ति पर नजर रखने हेतु महामारी प्रवण रोगों के लिये विकेंद्रीकृत, सूचना प्रौद्योगिकी आधारित रोग निगरानी प्रणाली को मज़बूत करना तथा 'प्रशिक्षित रैपिड रिस्पांस टीम' के माध्यम से शुरुआती चरण में प्रकोपों ​​का पता लगाना एवं प्रतिक्रिया करना।

कार्यक्रम के घटक: 

  • केंद्र, राज्य एवं ज़िला स्तर पर निगरानी इकाइयों की स्थापना के माध्यम से रोग निगरानी गतिविधियों का एकीकरण एवं विकेंद्रीकरण करना। 
  • मानव संसाधन विकास हेतु रोग निगरानी के सिद्धांतों पर राज्य एवं ज़िला निगरानी अधिकारियों, रैपिड रिस्पांस टीम एवं अन्य मेडिकल तथा पैरामेडिकल स्टाफ का प्रशिक्षण करवाना। 
  • आँकड़ों के संग्रह, एकत्रीकरण, संकलन, विश्लेषण और प्रसार के लिये सूचना व संचार तकनीक का उपयोग करना। 
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को मज़बूत बनाना। 
  • ज़ूनोटिक (Zoonotic) रोगों के लिये अंतर क्षेत्रीय समन्वय स्थापित करना।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2