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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन: बच्चों पर प्रभाव

  • 26 Apr 2021
  • 11 min read

चर्चा में क्यों:

नोट्रे डेम ग्लोबल एडेप्टेशन इनिशिएटिव (ND-GAIN) सूचकांक पर आधारित एक हालिया विश्लेषण ने विश्व के सभी बच्चों पर जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों को आकलित किया है।

  • इस विश्लेषण का आकलन ‘सेव द चिल्ड्रन इंटरनेशनल द्वारा किया गया। वर्ष 1919 में स्थापित सेव द चिल्ड्रेन संस्था अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो बाल अधिकारों के लिये प्रतिबद्ध है।

नोट्रे डेम ग्लोबल एडेप्टेशन इनिशिएटिव (ND-GAIN)

  • ND-GAIN  नोट्रे डेम पर्यावरण परिवर्तन पहल (ND-ECI) विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कार्यक्रम का हिस्सा है।
  • ND-GAIN द्वारा शामिल देशों के सूचकांक यह आकलन करता है कि कौन से देशों ने अतिवृष्टि, संसाधन-बाधाओं और जलवायु व्यवधान द्वारा  उत्पन्न वैश्विक परिवर्तनों से निपटने के लिये बेहतर संरचना तैयार की है।
  • यह सूचकांक 20 वर्षों से 180 से अधिक देशों की वार्षिक भेद्यता के आधार पर स्थानों का आकलन करता है और साथ ही यह भी आकलित करता है कि ये अनुकूलन के लिये  कितने तैयार हैं।
    • भेद्यता या संवेदनशीलता को छ: जीवन सहायक क्षेत्रों में मापा जाता है - खाद्य, जल, स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र सेवा, मानव आवास और बुनियादी ढाँचा।
    • समग्र तत्परता को तीन घटकों में मापा जाता है- आर्थिक तत्परता, शासन तत्परता और सामाजिक तत्परता।
  • 2018 के स्कोर के अनुसार , भारत 122वें स्थान पर अत्यधिक संवेदनशील देश के रूप में 48वें स्थान पर तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये बुनियादी संरचना के रूप में 70वें स्थान पर है।

प्रमुख बिंदु :

विश्लेषण:

  • सर्वाधिक जलवायु जोखिम वाले देश:
    •  विश्व के 45 देशों में से उप-सहारा अफ्रीका के 35 देश सर्वाधिक जलवायु जोखिम में शामिल हैं।
      • जलवायु जोखिम को जोखिम प्रभाव के प्रति संवेदनशीलता और अनुकूलन क्षमता के संयोजन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। 
    • चाड, सोमालिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, इरिट्रिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने हेतु सबसे कम सक्षम देश हैं।
    • 35 अफ्रीकी देशों में 18 वर्ष से कम आयु के लगभग 490 मिलियन बच्चों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सबसे अधिक खतरा है 
  • दक्षिण एशियाई क्षेत्र की स्थिति:
    • 45 देशों के 750 मिलियन बच्चों में से तीन दक्षिण एशियाई देशों (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) के 210 मिलियन बच्चों के जलवायु जोखिम से सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है।
  • बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • बाढ़, सूखा, तूफान और अन्य चरम मौसमी घटनाओं से असुरक्षित बच्चों और उनके परिवारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
      • मलेरिया और डेंगू बुखार जैसी विपदाएँ कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में प्लेग से पीड़ित बच्चों को प्रभावित करती है।
      • चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि से नए स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं जबकि स्वास्थ्य प्रणाली एक सीमित मात्रा में है।
      • वर्ष 2020 के  प्रथम छ: महीने के दौरान जलवायु परिवर्तन से घटित आपदाओं के कारण लगभग 9.8 मिलियन लोग विस्थापित हुए थे।
        • विश्व जलवायु संगठन की वैश्विक जलवायु रिपोर्ट ने यह पुष्टि की है  कि उनमें से अधिकांश दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में से थे।
    • बच्चे, भोजन की कमी, बीमारियों और अन्य स्वास्थ्य खतरों जैसे- पानी की कमी या बढ़ता जलस्तर जोखिम या इन कारकों के संयोजन से प्रभावित होंगे।
    •  खाद्य उत्पादन पर जलवायु संकट से पड़ने वाले प्रभावो के अनेक साक्ष्य विद्यमान हैं जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय खाद्य में कमी होगी और यह मूल्य वृद्धि को बढ़ावा देगा ।
      • जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक खाद्य आपूर्ति बाधित हो सकती है जिससे यह खाद्य आपूर्ति की पहुँच को कम कर सकते हैं और भोजन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं।
    • इस परिवर्तन से सबसे गरीब घरों के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे। वास्तव में, मोटापे, अल्प पोषण और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध के वैज्ञानिक प्रमाण मिले हैं।

भारतीय परिदृश्य :

  • PwC 2020 रिपोर्ट के परिणाम:
    • वंचित और असुरक्षित आबादी (बच्चों सहित), स्वदेशी लोग और कृषि या तटीय आजीविका पर निर्भर स्थानीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले दुष्परिणामों के प्रतिकूल परिणाम का खतरा अधिक है।
      • बच्चे को जलवायु परिवर्तन का खामियाजा उठाना पड़ता हैं क्योंकि यह उनके अस्तित्व, संरक्षण, विकास और भागीदारी के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है।
    • बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के अन्य संभावित प्रभाव पड़ते हैं,  जैसे- अनाथ, तस्करी, बाल श्रम, शिक्षा और विकास के अवसरों की हानि, परिवार से अलग होना, बेघर होना, भीख मांगना, आघात, भावनात्मक व्यवधान, बीमारियाँ आदि हैं।
  • अन्य संबंधित सूचकांकों में भारत का प्रदर्शन:
    • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक :
      • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक को जर्मनवॉच, न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क द्वारा वर्ष 2005 से वार्षिक आधार पर प्रकाशित किया जाता है। हाल ही में जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2021 में भारत को 10वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
    • विश्व जोखिम सूचकांक (World Risk Index-WRI)- 2020 में भारत 181 देशों में 89वें स्थान पर था। बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्चात् भारत जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया में चौथा सबसे अधिक जोखिम वाला देश है।
      • WRI को संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS), बुंडनिस एंटविक्लंग हिलफ़्ट और जर्मनी में स्टटगार्ट विश्वविद्यालय के सहयोग से विकसित किया गया है।
    •  भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन का आकलन:MoES:
      • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences- MoES) द्वारा भारतीय क्षेत्र रिपोर्ट (Indian Region Report) के आधार पर जलवायु परिवर्तन पर आकलन प्रकाशित किया गया है। यह आने वाली शताब्दी में उपमहाद्वीप पर पड़ने वाले ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को लेकर भारत का पहला राष्ट्रीय पूर्वानुमान है।
    • राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने एक संयुक्त फ्रेमवर्क का उपयोग करते हुए भारत में अनुकूल नियोजन के लिये राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट जारी की है।इस रिपोर्ट ने झारखंड, मिज़ोरम, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल की पहचान ऐसे राज्यों के रूप में की है, जो जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील हैं।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु कुछ भारतीय पहल:

आगे की राह 

  • अनुकूलित और संवेदनशील सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का मापन करना जैसे- गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिये अनुदान प्रदान करना, बच्चों और उनके परिवारों पर जलवायु परिवर्तन द्वारा पड़ने वाले प्रभावों की पहचान करना है।
  • अधिक देशों को बाल अधिकारों पर सम्मेलन में अपनी प्रतिबद्धता बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि प्रत्येक बच्चे को गरीबी से संरक्षित किया जा सके, उदाहरण के लिये बच्चों के जीवन को बेहतर और लचीलापन बनाने के लिये  सार्वभौमिक बाल लाभयोजनाओ को क्रियान्वित करना होगा ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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