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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन के लिये कितना तैयार है भारत

  • 24 Sep 2020
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये

विश्व जोखिम सूचकांक, विश्व जोखिम रिपोर्ट

मेन्स के लिये

जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की सुभेद्यता 

चर्चा में क्यों? 

विश्व जोखिम सूचकांक (World Risk Index-WRI)- 2020 के अनुसार, गंभीर प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक सुभेद्यता के कारण भारत 'जलवायु वास्तविकता' से निपटने के लिये 'खराब रूप से तैयार' (Poorly Prepared) था। 

सूचकांक के प्रमुख बिंदु

  • WRI-2020 में भारत 181 देशों में 89वें स्थान पर था। बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्चात् भारत जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया में चौथा सबसे अधिक जोखिम वाला देश है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका, भूटान और मालदीव ने गंभीर आपदाओं से निपटने के लिये भारत की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत चरम घटनाओं से निपटने की तैयारियों के मामले में इन तीन पड़ोसी देशों से पीछे रह गया।
  • भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों ने एक वर्ष के दौरान विश्व जोखिम सूचकांक में अपनी रैंकिंग में मामूली सुधार किया है। भूटान ने अपनी रैंकिंग में सबसे अधिक सुधार किया। भूटान के पश्चात् पाकिस्तान का स्थान रहा है।
  • WRI-2019 की तुलना में सभी दक्षिण एशियाई देश जलवायु आपातकाल की वास्तविकता से निपटने के लिये रैंकिंग में अनुकूल क्षमता निर्माण के मामले में भी फिसल गए।

देश 

अनुकूलन क्षमता (WRI-2020) 

(100 में से)

अनुकूलन क्षमता (WRI-2019) 

(100 में से)

अफगानिस्तान 

92.09

59.75

बांग्लादेश 

85.81

54.44

भूटान 

72.82

46.65

भारत 

78.15

48.4

मालदीव 

76.51

36.29

नेपाल 

83.34

48.85

पाकिस्तान 

84.81

51.62

श्रीलंका 

77.3

39.94

  • भारत भी जलवायु परिवर्तन के अनुकूल क्षमताओं को मज़बूत करने में असफल रहा है। देश की पहली ‘व्यापक जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट’ में ‘जलवायु संकट’ के खतरों के बारे में चेतावनी दी गई है।
  • सूचकांक के अनुसार, 52.73 से ऊपर के स्कोर वाले देश गंभीर प्राकृतिक आपदाओं के अनुकूल अपनी क्षमताओं के निर्माण में 'बहुत खराब' (Very Poor) थे। 

देश 

विश्व जोखिम सूचकांक- 2020 में रैंक 

विश्व जोखिम सूचकांक- 2019 में रैंक 

अफगानिस्तान 

57

53

बांग्लादेश 

13

10

भूटान 

152

143

भारत 

89

85

मालदीव 

171

169

नेपाल 

121

116

छोटे द्वीपीय राष्ट्र 

  • सूचकांक के अनुसार, ओशिनिया सबसे अधिक जोखिम वाला महाद्वीप था, जिसके पश्चात् अफ्रीका और अमेरिका महाद्वीप थे। 
  • वानुअतु दुनिया भर में सबसे अधिक प्राकृतिक आपदा जोखिम वाला देश था। इसके पश्चात् टोंगा और डोमिनिका का स्थान था।
  • छोटे द्वीपीय राज्य, विशेष रूप से दक्षिण प्रशांत महासागरीय और कैरिबियन द्वीप, अत्यधिक प्राकृतिक घटनाओं के कारण उच्च जोखिम वाले देशों की श्रेणी में आते हैं। इनमें भूमंडलीय तापन के परिणामस्वरूप समुद्र जल स्तर में वृद्धि के कारण उत्पन्न जोखिम वाले देश भी शामिल थे।
  • जलवायु परिवर्तन में कम योगदान के बावजूद, छोटे द्वीपीय राष्ट्र सीमित वित्तीय संसाधनों के कारण जलवायु परिवर्तन के परिणामों से सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।
  • इन छोटे देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल क्षमता निर्माण के लिये केवल वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना ही पर्याप्त नहीं है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पहले से हो चुकी क्षति के लिये उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिये। 
  • सूचकांक के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण कतर सबसे कम जोखिम वाला देश (0.31) था।

अफ्रीका 

  • रिपोर्ट में अफ्रीका को सुभेद्यता के हॉटस्पॉट रूप में पहचाना गया है। दुनिया के सबसेे सुभेद्य देशों में से दो-तिहाई से अधिक देश अफ्रीका महाद्वीप में स्थित थे।
  • सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक सबसे सुभेद्य देश था। इसके पश्चात् चाड, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, नाइजर और गिनी-बिसाऊ का स्थान था।

जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की अधिक सुभेद्यता 

  • भारत की सूखा, बाढ़ और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रति अधिक प्रवणता के कारण इस सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन भारत के लिये एक बड़ा संकट खड़ा कर सकता है।
  • ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ के तत्त्वाधान में ‘भारतीय क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का आकलन’ (Assessment Of Climate Change Over The Indian Region) शीर्षक वाली  जलवायु परिवर्तन पर भारत सरकार की अब तक की पहली रिपोर्ट के अनुसार, इस सदी के अंत तक भारत के औसत तापमान में 4.4 डिग्री की वृद्धि हो सकती है, जिसका सीधा प्रभाव लू, हीट वेव्स और चक्रवाती तूफानों की बारंबारता में वृद्धि के साथ समुद्री जल स्तर में वृद्धि के रूप में दिखाई देगा।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिये बड़े कदम नहीं उठाए गए तो हीट वेव्स की बारंबारता में 3 से 4 गुना की वृद्धि और समुद्र जल के स्तर में 30 सेंटीमीटर तक की वृद्धि हो सकती है।
  • पिछले 30 वर्षों (वर्ष 1986-वर्ष 2015) में सबसे गर्म दिन और सबसे ठंडी रात के तापमान में क्रमश: 0.63 डिग्री और 0.4 डिग्री की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि गर्म दिनों और गर्म रातों की बारंबारता में 55-70 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। भारत के लिये यह अनुमान अच्छी खबर नहीं है क्योंकि वह उन देशों में है जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1951-वर्ष 2015 के बीच मानसून से होने वाली वर्षा में 6 प्रतिशत की कमी हुई है, जिसका प्रभाव गंगा के मैदानी भागों और पश्चिमी घाट पर देखा जा सकता है। वर्ष 1951-वर्ष 1980 की तुलना में वर्ष 1981-वर्ष 2011 के बीच सूखे की घटनाओं में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मध्य भारत में अतिवृष्टि की घटनाओं में वर्ष 1950 के पश्चात् से अब तक 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • इस सदी के प्रथम दो दशकों (वर्ष 2000-वर्ष 2018) में तटीय क्षेत्रों में आने वाले शक्तिशाली चक्रवाती तूफानों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। मौसमी कारकों की वजह से उत्तरी हिन्द महासागर में अब और अधिक शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात उत्पन्न हो सकते हैं।

विश्व जोखिम सूचकांक (WRI)

  • WRI संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS) और  बुंडनीस एंट्विक्लंग हिलफ्ट (Bundnis Entwicklung Hilft) द्वारा जर्मनी के स्टुटगार्ट विश्वविद्यालय के सहयोग से 15 सितंबर को जारी विश्व जोखिम रिपोर्ट-2020 का हिस्सा है।
  • WRI की गणना प्रत्येक देश के आधार पर जोखिम और सुभेद्यता के गुणन के माध्यम से की जाती है। WRI को 2011 के पश्चात् से प्रतिवर्ष जारी किया जाता है।
  •  यह सूचकांक दर्शाता है कि कौन से देशों को चरम प्राकृतिक घटनाओं से निपटने और अनुकूलन के लिये क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

आगे की राह 

  • भारत की 50% से अधिक कृषि वर्षा पर निर्भर है। यहाँ हिमालयी क्षेत्र में हजारों छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं और पूरे देश में कई एग्रो-क्लाइमेटिक जोन हैं। विश्व बैंक के अनुसार, मौसम की अनिश्चितता और प्राकृतिक आपदाओं भारत को कई लाख करोड़ डॉलर की क्षति हो सकती है। 
  • इस खतरे से निपटने के लिये भूमंडलीय तापन में योगदान करने वाली मानवजनित गतिविधियों पर नियंत्रण और जलवायु के बेहतर पूर्वानुमान की आवश्यकता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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