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प्रिलिम्स फैक्ट्स

रैपिड फायर

मेकेदातु बॉंध

स्रोत: TH

कर्नाटक ने घोषणा की है कि वह कावेरी नदी पर मेकेदातु बाँध के लिये केंद्र को एक संशोधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (रिवाइज़्ड डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट- DPR) जमा करेगा।

  • यह तब हुआ जब तमिलनाडु ने कर्नाटक के मेकेदातु बाँध पर चिंता जताई, जिसमें कावेरी जल विवाद, बहुत ज़्यादा पानी जमा करना और पानी का अनियमित रूप से छोड़ा जाना शामिल था।

मेकेदातु बाँध

  • परिचय: यह परियोजना कर्नाटक के कनकपुरा के पास मेकेदातु की गहरी घाटी में, जहाँ कावेरी और अर्कावती नदियाँ मिलती हैं, एक बैलेंसिंग रिज़रवॉयर (संतुलन जलाशय) के निर्माण से संबंधित है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य बंगलूरू और उसके आसपास के क्षेत्रों को पेयजल उपलब्ध कराना और साथ ही 400 मेगावाट जलविद्युत ऊर्जा उत्पादन करना है।
  • विवाद: नदी के निचले हिस्से में स्थित राज्य तमिलनाडु इस प्रोजेक्ट का कड़ा विरोध कर रहा है, क्योंकि उसे नीचे की तरफ पानी का बहाव कम होने का डर है तथा यह कावेरी नदी के पानी के बँटवारे के विवाद का मुख्य केंद्र है।

कावेरी नदी जल विवाद

  • विवाद: यह विवाद कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी से जुड़ा हुआ है। कावेरी नदी कर्नाटक से निकलती है, तमिलनाडु से होकर प्रवाहित होती है तथा इसकी बड़ी सहायक नदियाँ केरल से प्रवाहित होती हैं।
  • ऐतिहासिक शुरुआत: यह विवाद 150 साल से भी ज़्यादा पुराना है, जो मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर के बीच वर्ष 1892 और 1924 के समझौतों से शुरू हुआ था, जिसके तहत कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट के लिये ऊपरी नदी किनारे वाले राज्य (कर्नाटक) को निचले नदी किनारे वाले राज्य (तमिलनाडु) से मंज़ूरी लेनी पड़ती थी।
  • नया विवाद: नया विवाद तब उभरा जब 1974 में कर्नाटक ने पूर्व समझौतों का उल्लंघन करते हुए तमिलनाडु की सहमति के बिना ही पानी के प्रवाह में बदलाव करना शुरू कर दिया।
  • समाधान का तरीका: वर्ष 1990 में गठित कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) ने वर्ष 2007 में अपना अंतिम निर्णय सुनाया, जिसमें कावेरी नदी के जल का विभाजन सभी तटीय राज्यों के बीच निर्धारित किया गया।

नोट: जल राज्य सूची की प्रविष्टि 17 के तहत एक राज्य विषय है, लेकिन अंतर-राज्यीय नदियों के विनियमन और विकास का विषय संघ सूची की प्रविष्टि 56 के अंतर्गत आता है।

और पढ़ें: मेकेदातु प्रोजेक्ट


रैपिड फायर

लाचित बोरफूकन

स्रोत: पी.आई.बी

लाचित दिवस पर प्रधानमंत्री ने लाचित बोरफूकन को श्रद्धांजलि दी और उन्हें साहस, देशभक्ति तथा सच्चे नेतृत्व के प्रतीक के रूप में याद किया।

  • प्रारंभिक जीवन: लाचित बोरफूकन (जन्म: 24 नवंबर, 1622, चराईदेव, असम) अहोम शासक प्रताप सिंह के प्रमुख सैन्य प्रशासक मोमाई तामुली बोरबारुआ के सबसे छोटे पुत्र थे।
    • प्रशासन, सैन्य रणनीति और शास्त्रों में प्रशिक्षित लाचित का पालन-पोषण मुगल–अहोम युद्धों के बीच हुआ तथा आगे चलकर वे असम के महानतम सैन्य नेताओं में से एक बने।
    • उनके नेतृत्व को मान्यता देते हुए, मीर जुमला के आक्रमण के बाद मुगल क़ब्ज़े से असम को पुनः प्राप्त करने के लिये उन्हें बोरफूकन (सर्वोच्च सेनापति) नियुक्त किया गया।
  • सरायघाट का युद्ध (1671): गुरिल्ला वारफेयर, नदी-आधारित नौसैनिक रणनीतियों और रणनीतिक किलेबंदी का उपयोग करके लाचित ने राजा राम सिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुगल सेना को पराजित किया।
    • इस विजय ने पूर्वोत्तर में मुगलों के विस्तार को रोक दिया और असम की संप्रभुता को सुरक्षित रखा।
  • विरासत और पहचान: लाचित का निधन वर्ष 1672 में बीमारी के कारण हुआ और उनका स्मारक (लाचित मैदान) जोरहाट के निकट स्थित है। वे साहस, देशभक्ति, नेतृत्व और सैन्य रणनीति के प्रतीक के रूप में याद किये जाते हैं।
    • 24 नवंबर को लाचित दिवस के रूप में मनाया जाता है और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रदान किया जाने वाला लाचित बोरफूकन गोल्ड मेडल सैन्य नेतृत्व में उत्कृष्टता को सम्मानित करता है।

Lachit Borphukan

और पढ़ें: अहोम साम्राज्य के जनरल लाचित बोरफूकन

रैपिड फायर

पंजाब के तीन ऐतिहासिक सिख स्थल पवित्र शहर के रूप में घोषित

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

पंजाब ने एक प्रस्ताव पारित करके अमृतसर वाल्ड सिटी, आनंदपुर साहिब और तलवंडी साबो को ‘पवित्र शहर’ घोषित किया है। यह निर्णय गुरु तेग बहादुर की 350वीं शहादत वर्षगाॅंठ के अवसर पर सांस्कृतिक और शासनिक महत्त्व से एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

  • निर्णय के तहत निर्धारित पवित्र क्षेत्रों में शराब, माँस, तंबाकू और अन्य मादक पदार्थों की बिक्री तथा उपभोग पर प्रतिबंध लगाया गया है। ये स्थल सिख इतिहास में धार्मिक महत्त्व रखते हैं और पाँच तख्तों में से तीन यहीं में स्थित हैं।
  • तख्त: जिसका अर्थ है सिंहासन, सिखों के लिये सांसारिक आध्यात्मिक केंद्र सीट है। पाँच सिख तख्त हैं- तीन पंजाब में, एक महाराष्ट्र में और एक बिहार में।
    • अकाल तख्त (अमृतसर, पंजाब): वर्ष 1606 में गुरु हरगोबिंद द्वारा स्थापित। यह सिख सर्वोच्च अधिकार का केंद्र है और मीरी (सांसारिक शक्ति) तथा पीरी (आध्यात्मिक शक्ति) के संगम का प्रतीक है।
    • तख्त श्री केशगढ़ साहिब (आनंदपुर साहिब, पंजाब): वह स्थान जहाँ वर्ष 1699 में खालसा बनाया गया था।
    • तख्त श्री दमदमा साहिब (तलवंडी साबो, पंजाब): जहाँ गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्मग्रंथ को अंतिम रूप दिया था।
    • तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब (पटना, बिहार): गुरु गोबिंद सिंह का जन्मस्थान।
    • तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब (नांदेड़, महाराष्ट्र): वर्ष 1708 में गुरु गोबिंद सिंह के अंतिम दिन और उनके अंत्येष्टि स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
और पढ़ें: गुरु तेग बहादुर प्रकाश पर्व


रैपिड फायर

EB-1A और EB2-NIW वीज़ा कार्यक्रम

स्रोत: ET

सितंबर 2025 से H-1B वीज़ा शुल्क 100,000 अमेरिकी डॉलर बढ़ने के कारण भारतीय पेशेवर अब EB-1A और EB2-NIW वीज़ा जैसे विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं, विशेषकर अमेरिका की कड़ी आप्रवासन नीतियों के बीच।

  • EB-1A वीज़ा: EB-1A वीज़ा उन व्यक्तियों के लिये है जिनके पास विज्ञान, कला, व्यवसाय या शिक्षा जैसे क्षेत्रों में असाधारण क्षमताएँ हैं।
    • इसमें नियोक्ता प्रायोजन की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन आवेदकों को दस में से कम से कम तीन मानदंडों को पूरा करना होता है, जैसे महत्त्वपूर्ण योगदान या उच्च वेतन। यह स्थायी निवास (ग्रीन कार्ड) की ओर ले जाता है और इसकी कोई समय सीमा नहीं होती।
  • EB2-NIW वीज़ा: EB2 -NIW, अमेरिकी राष्ट्रीय हितों के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों, जैसे प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवा, में कार्यरत पेशेवरों को स्व-याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान करता है। मानक EB2 के विपरीत, इसके लिये नियोक्ता के प्रायोजन की आवश्यकता नहीं होती है। 
    • यदि योग्यताएँ बरकरार रखी जाएँ तो इससे बिना किसी समय-सीमा के स्थायी निवास प्राप्त किया जा सकता है।
    • EB-1A और EB2-NIW दोनों के लिये आवेदकों में भारतीयों का अनुपात काफी अधिक है, विशेषकर प्रौद्योगिकी और अनुसंधान जैसे उच्च कौशल वाले क्षेत्रों में।
  • लाभ: वे तीव्र प्रसंस्करण, दीर्घकालिक स्थिरता और मूल्यवान ग्रीन कार्ड अवसर प्रदान करते हैं, जिससे वे अनिश्चित H-1B के लिये मज़बूत विकल्प बन जाते हैं।
और पढ़ें: भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी

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