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लाचित बोरफूकन

  • 25 Nov 2025
  • 11 min read

स्रोत: पी.आई.बी

लाचित दिवस पर प्रधानमंत्री ने लाचित बोरफूकन को श्रद्धांजलि दी और उन्हें साहस, देशभक्ति तथा सच्चे नेतृत्व के प्रतीक के रूप में याद किया।

  • प्रारंभिक जीवन: लाचित बोरफूकन (जन्म: 24 नवंबर, 1622, चराईदेव, असम) अहोम शासक प्रताप सिंह के प्रमुख सैन्य प्रशासक मोमाई तामुली बोरबारुआ के सबसे छोटे पुत्र थे।
    • प्रशासन, सैन्य रणनीति और शास्त्रों में प्रशिक्षित लाचित का पालन-पोषण मुगल–अहोम युद्धों के बीच हुआ तथा आगे चलकर वे असम के महानतम सैन्य नेताओं में से एक बने।
    • उनके नेतृत्व को मान्यता देते हुए, मीर जुमला के आक्रमण के बाद मुगल क़ब्ज़े से असम को पुनः प्राप्त करने के लिये उन्हें बोरफूकन (सर्वोच्च सेनापति) नियुक्त किया गया।
  • सरायघाट का युद्ध (1671): गुरिल्ला वारफेयर, नदी-आधारित नौसैनिक रणनीतियों और रणनीतिक किलेबंदी का उपयोग करके लाचित ने राजा राम सिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुगल सेना को पराजित किया।
    • इस विजय ने पूर्वोत्तर में मुगलों के विस्तार को रोक दिया और असम की संप्रभुता को सुरक्षित रखा।
  • विरासत और पहचान: लाचित का निधन वर्ष 1672 में बीमारी के कारण हुआ और उनका स्मारक (लाचित मैदान) जोरहाट के निकट स्थित है। वे साहस, देशभक्ति, नेतृत्व और सैन्य रणनीति के प्रतीक के रूप में याद किये जाते हैं।
    • 24 नवंबर को लाचित दिवस के रूप में मनाया जाता है और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रदान किया जाने वाला लाचित बोरफूकन गोल्ड मेडल सैन्य नेतृत्व में उत्कृष्टता को सम्मानित करता है।

Lachit Borphukan

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