चर्चित स्थान
बगराम एयर बेस
अमेरिकी राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान को चेतावनी दी कि अगर बगराम एयर बेस वापस नहीं किया गया तो इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, साथ ही संभवतः सैन्य कार्रवाई का संकेत भी दिया। यह बेस अमेरिकी सैनिकों द्वारा वर्ष 2021 में अफगानिस्तान से वापसी से पहले खाली किया गया था।
- परिचय: काबुल से लगभग 60 किमी उत्तर में स्थित बगराम एयरफील्ड अफगानिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है जो महत्त्वपूर्ण परवान प्रांत में स्थित है।
- यह प्रांत 2.6 किलोमीटर लंबी सलांग सुरंग के साथ एक रणनीतिक प्रवेशद्वार के रूप में कार्य करता है जो काबुल को मज़ार-ए-शरीफ और अन्य उत्तरी शहरों से जोड़ता है।
- इसके अलावा, परवान से राजमार्ग काबुल को दक्षिण में गज़नी और कंधार तथा पश्चिम में बामियान से जोड़ते हैं, जिससे यह अफगानिस्तान की कनेक्टिविटी तथा नियंत्रण का केंद्र बन जाता है।
- ऐतिहासिक विकास: इस अड्डे का निर्माण 1950 के दशक में सोवियत संघ द्वारा किया गया था और शीत युद्ध तथा सोवियत-अफगान युद्ध (1979-1989) के दौरान यह प्रमुखता में आया।
- वर्ष 2001 में अफगानिस्तान पर अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण के बाद, बगराम अमेरिकी सेनाओं के लिये मुख्य परिचालन केंद्र बन गया तथा आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध के दौरान रसद, खुफिया और कमान केंद्र के रूप में कार्य करता रहा।
- सामरिक महत्त्व: अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बावजूद, बगराम का सामरिक महत्त्व अभी भी बहुत अधिक है।
- इसकी अवस्थिति क्षेत्रीय गतिशीलता पर एक महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करती है। चीन के तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के साथ, एयरबेस की भूमिका नई प्रासंगिकता प्राप्त करती है।
- संवेदनशील चीनी स्थलों की निकटता के कारण इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है - झिंजियांग में लोप नूर परमाणु परीक्षण स्थल केवल 2,000 किमी दूर है, जबकि कोको नूर परमाणु हथियार सुविधा किंघई प्रांत में पूर्व में स्थित है।
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चर्चित स्थान
अचानकमार टाइगर रिज़र्व
अचानकमार टाइगर रिज़र्व (छत्तीसगढ़) में बाघों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2022 में 5 से बढ़कर वर्ष 2025 में 18 हो गई है, जिसका मुख्य कारण बांधवगढ़ (मध्य प्रदेश) से बाघिन झुमरी का आगमन और संरक्षण प्रयासों में वृद्धि है।
- परिचय: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में स्थित अचानकमार टाइगर रिज़र्व (ATR) की स्थापना वर्ष 1975 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में की गई थी और वर्ष 2009 में यह एक बाघ अभयारण्य बन गया। यह अचानकमार-अमरकंटक बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।
- यह रिज़र्व कान्हा और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व को जोड़ने वाला एक महत्त्वपूर्ण गलियारा है, जो बाघों की आवाजाही को संभव बनाता है तथा आनुवंशिक विविधता को बनाए रखता है।
- जनजातीय समुदाय: ATR बैगा (PVTG), गोंड और यादव समुदायों का क्षेत्र है।
- नदी एवं जल संसाधन: इस अभ्यारण्य से होकर बहने वाली मनियारी नदी इसकी जीवन रेखा कही जाती है। यह महानदी बेसिन की शिवनाथ नदी में मिल जाती है।
- वनस्पति: उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वनों से युक्त इस अभ्यारण्य में साल, साजा, तिनसा, बीजा, हल्दू, सागौन, धावरा, लेंडिया, खमार और बाँस पाए जाते हैं।
- जीव-जंतु: वन्यजीवों में बाघ, तेंदुआ, वन्य कुत्ता, लकड़बग्घा, बाइसन, चिंकारा, सांभर, चीतल, उड़ने वाली गिलहरी/फ्लाइंग स्क्विरेल आदि शामिल हैं।
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रैपिड फायर
अंतर्राष्ट्रीय रेड पांडा दिवस
अंतर्राष्ट्रीय रेड पांडा दिवस प्रत्येक वर्ष सितंबर माह के तीसरे शनिवार को लुप्तप्राय रेड पांडा के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा वैश्विक संरक्षण प्रयासों को गति देने के लिये मनाया जाता है।
- परिचय: रेड पांडा (जिसे फायरफॉक्स, लेसर पांडा या रेडकैट-बीयर भी कहा जाता है) हिमालय के पार नेपाल, सिक्किम, भूटान, उत्तरी बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तरी म्याँमार से लेकर चीन के सिचुआन और युन्नान प्रांतों तक पाया जाता है।
- ब्रह्मपुत्र का नदी का "ग्रेट बेंड" उनकी आबादी को हिमालयी रेड पांडा और चीनी रेड पांडा में विभाजित करता है।
- रेड पांडा 2,200-4,800 मीटर की ऊँचाई पर बाँस के नीचे मिश्रित पर्णपाती और शंकुधारी वनों को पसंद करता है।
- सांस्कृतिक महत्त्व: रेड पांडा को 1990 के दशक में सिक्किम का राज्य पशु घोषित किया गया था, और और यह दार्जिलिंग टी फेस्टिवल का शुभंकर (मास्कॉट) भी है।
- पारिस्थितिक भूमिका: यह मुख्यतः बाँस पर निर्भर है, लेकिन पौधों और छोटे जानवरों से अपना भोजन ग्रहण करता है। सर्दियों में यह निष्क्रिय अवस्था (शीत निद्रा) में रहता है।
- संरक्षण स्थिति: रेड पांडा को IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, CITES के परिशिष्ट I में शामिल किया गया है, और भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित है।
- प्रमुख खतरे: आवास की हानि, अवैध शिकार, अवैध पालतू व्यापार, रैखिक अवसंरचना, खाद्य प्रतिस्पर्द्धा (पशुधन और जंगली प्रजातियों के साथ), और अंतःप्रजनन।
- अवैध तस्करी: सिंगालीला और नेओरा घाटी राष्ट्रीय उद्यान (उत्तर बंगाल) में मामले दर्ज किये गए।
- संरक्षण प्रयास: पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क (दार्जिलिंग) ने 1990 के दशक में एक कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम शुरू किया।
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