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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 15 Jun, 2024
  • 20 min read
प्रारंभिक परीक्षा

PFMS द्वारा शुल्क वापसी का वितरण

स्रोत: पी.आई.बी.

हाल ही में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने पारदर्शिता तथा दक्षता सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (PFMS) के माध्यम से शुल्क वापसी निधि को सीधे निर्यातकों के बैंक खातों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है।

शुल्क वापसी क्या है?

सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 75 के अंतर्गत शुल्क वापसी, निर्यात वस्तुओं के विनिर्माण में प्रयुक्त किसी भी आयातित सामग्री या उत्पाद शुल्क योग्य सामग्री पर लागू सीमा शुल्क में छूट प्रदान करती है।

  • यह प्रणाली निर्यातकों को निर्यात प्रक्रिया के दौरान होने वाली कुछ लागतों, विशेष रूप से आपूर्ति या मूल्य शृंखला के अंतर्गत, को कम करने में सहायता करती है।

सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (PFMS)

  • परिचय:
  • PFMS का उद्देश्य: 
    • PFMS का व्यापक लक्ष्य एक कुशल निधि प्रवाह प्रणाली और भुगतान-सह-लेखा नेटवर्क की स्थापना करके एक मज़बूत सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की सुविधा प्रदान करना है। 
    • वर्तमान में, PFMS में केंद्रीय क्षेत्र और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के साथ-साथ वित्त आयोग अनुदान सहित अन्य व्यय भी शामिल हैं।
    • PFMS डिजिटल इंडिया पहल के अनुरूप हितधारकों को वास्तविक समय, विश्वसनीय और सार्थक प्रबंधन सूचना प्रणाली तथा प्रभावी निर्णय समर्थन प्रणाली प्रदान करता है। 
    • यह प्रणाली देश की कोर बैंकिंग प्रणाली के साथ एकीकृत है, जिससे वित्तीय लेन-देन में बाधा नहीं आएगी तथा सार्वजनिक धन के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।

शुल्क वापसी के इलेक्ट्रॉनिक वितरण का क्या महत्त्व है?

  • प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना: प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने, प्रसंस्करण समय को कम करने, मैनुअल हस्तक्षेप को समाप्त करने और सीमा शुल्क परिचालन में पारदर्शिता बढ़ाने के लिये शुल्क वापसी निधियों का इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्थानांतरण शुरू किया गया है।
  • कम कागज़ी कार्रवाई: इससे भौतिक दस्तावेज़ीकरण और मैन्युअल प्रसंस्करण की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, जिससे रिफंड का दावा करने के लिये आवश्यक समय तथा प्रयास कम हो जाता है।
  • पारदर्शिता को बढ़ावा: इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली निर्यातकों को उनके दावों की स्थिति की वास्तविक समय पर जानकारी प्रदान करके तथा रिफंड प्रक्रिया पर निर्बाध निगरानी रखकर पारदर्शिता को बढ़ाती है।
  • व्यापार सुविधा: यह पहल, विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुविधा समझौते (TFA) के कार्यान्वयन पर आधारित, कागज़ रहित सीमा शुल्क और व्यापार सुविधा के प्रति CBIC की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. फरवरी 2006 से प्रभावी हुआ SEZ एक्ट, 2005 के कुछ उद्देश्य हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. अवसंरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) सुविधाओं का विकास 
  2. विदेशी स्रोतों से निवेश को प्रोत्साहन 
  3. केवल सेवा क्षेत्र में निर्यात को प्रोत्साहन  

 उपर्युक्त में से कौन-सा/से एक्ट का/के उद्देश्य है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a) 


प्रश्न2. "बंद अर्थव्यवस्था" वह अर्थव्यवस्था है जिसमें: (2011) 

(a) मुद्रा पूर्णतः नियंत्रित होती है  
(b) घाटे की वित्त व्यवस्था होती है  
(c) केवल निर्यात होता है  
(d) न तो निर्यात होता है, न ही आयात होता है  

उत्तर: (d)


प्रारंभिक परीक्षा

क्लोरेला ग्रोथ फैक्टर

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR)-भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Chemical Technology- IICT) के वैज्ञानिकों ने क्लोरेला ग्रोथ फैक्टर (Chlorella Growth Factor- CGF) की क्षमता पर प्रकाश डाला है, जो सूक्ष्म शैवाल ‘क्लोरेला सोरोकिनियाना’ से प्राप्त एक प्रोटीन युक्त अर्क है, जो खाद्य और चारा अनुप्रयोगों की एक विस्तृत शृंखला के लिये एक आदर्श घटक है।

क्लोरेला ग्रोथ फैक्टर (CGF) और क्लोरेला सोरोकिनियाना क्या हैं?

  • क्लोरेला ग्रोथ फैक्टर (CGF):
    • पोषण संबंधी लाभ: CGF उच्च गुणवत्ता वाले अमीनो एसिड और प्रोटीन से समृद्ध है, जो इसे मानव तथा पशु दोनों के आहार के लिये एक आशाजनक वैकल्पिक स्रोत बनाता है।
      • इसमें वाणिज्यिक सोया भोजन की तुलना में अधिक आवश्यक अमीनो एसिड और पोषक तत्त्व जैसे पेप्टाइड्स, न्यूक्लियोटाइड्स, पॉलीसेकेराइड्स, विटामिन तथा खनिज होते हैं।
    • उत्पादन विधि: CGF के निष्कर्षण में एक गैर-रासायनिक ऑटोलिसिस प्रक्रिया शामिल होती है, जो अमीनो एसिड और अन्य मूल्यवान घटकों की अखंडता को संरक्षित करती है।
    • अनुप्रयोग: मुर्गी के भोजन में CGF मिलाने से अंडों की गुणवत्ता में सुधार होता है तथा पशुओं के लिये यह एक बेहतर प्रोटीन पूरक के रूप में आशाजनक साबित होता है।
    • वहनीयता: क्लोरेला सोरोकिनियाना जैसी सूक्ष्म शैवाल को "अल्प-शोषित फसलें" माना जाता है, जो स्थान और संसाधनों के लिये पारंपरिक खाद्य फसलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा नहीं करती हैं तथा उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन स्रोतों की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने हेतु एक स्थायी समाधान प्रदान करती हैं।
  • क्लोरेला सोरोकिनियाना:
    • क्लोरेला सोरोकिनियाना, एक अंडाकार आकार का एकल-कोशिकीय शैवाल है, जो सूक्ष्म जगत में एक विशिष्ट शैवाल है तथा इसमें सक्रिय रूप से बढ़ने की अद्वितीय क्षमता होती है।
      • प्रत्येक कोशिका एक आत्मनिर्भर जीव है जिसमें जीवन के लिये आवश्यक सभी पोषक तत्त्व मौजूद होते हैं, जो इसे पूर्ण और आत्मनिर्भर बनाता है।
    • क्लोरेला सोरोकिनियाना तेज़ी से प्रजनन कर सकता है, पर्याप्त सूर्यप्रकाश और पोषक तत्त्वों के संपर्क में आने पर यह मात्र 24 घंटों में एक कोशिका से 24 कोशिकाओं तक बढ़ सकता है।

Chlorella_Sorokiniana

सूक्ष्म शैवाल

  • सूक्ष्म शैवाल प्रकाश संश्लेषक सूक्ष्मजीव हैं जो पानी, चट्टानों और मिट्टी जैसे विविध प्राकृतिक वातावरण में पाए जा सकते हैं। वे स्थलीय पौधों की तुलना में उच्च प्रकाश संश्लेषक दक्षता प्रस्तुत करते हैं और विश्व के ऑक्सीजन उत्पादन के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • वे विभिन्न जलीय वातावरणों में पनपते हैं, जिनमें मीठे पानी और समुद्री दोनों तरह के आवास शामिल हैं। उदाहरण के लिये क्लोरेला, डायटम आदि।
    • समुद्री सूक्ष्म शैवाल महासागरीय खाद्य शृंखला और कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • हालाँकि जलवायु परिवर्तन जारी रहने के कारण, ग्लोबल वार्मिंग वृद्धि के कारण सतही समुद्री जल गर्म हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप सतही जल और पोषक तत्वों से भरपूर गहरे जल के बीच कम मिश्रण के कारण पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो रही है।

मैक्रोशैवाल (Macroalgae)

  • मैक्रोशैवाल, जिन्हें समुद्री शैवाल के नाम से जाना जाता है, बहुकोशिकीय और मैक्रोस्कोपिक स्वपोषी हैं, जिन्हें थैलस के रंग के आधार पर वर्गीकरण के अनुसार तीन अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया जाता है, जिनके नाम हैं क्लोरोफाइटा (हरा शैवाल), रोडोफाइटा (लाल शैवाल) और फेओफाइटा (भूरा शैवाल)।
    • समुद्री शैवाल आदिम, बिना जड़, तने और पत्तियों वाला गैर-फूल वाला समुद्री शैवाल है, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख भूमिका निभाता है।
      • समुद्री शैवाल पानी के नीचे जंगलों का निर्माण करते हैं, जिन्हें केल्प वनों (Kelp Forest) कहा जाता है। ये जंगल मछली, घोंघे आदि के लिये नर्सरी का कार्य करते हैं।
      • समुद्री शैवाल की कुछ प्रजातियों में गेलिडिएला एसेरोसा, ग्रेसिलेरिया एडुलिस, ग्रेसिलेरिया क्रैसा और ग्रेसिलेरिया वेरुकोसा शामिल हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.  प्रजैविकों (प्रोबायोटिक्स) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. प्रजैविक, बैक्टीरिया और यीस्ट दोनों से बने होते हैं।
  2. प्रजैविक में जीव, खाए जाने वाले खाद्य में होते हैं किंतु वे नैसर्गिक रूप से हमारी आहार-नली में नहीं पाए जाते।
  3. प्रजैविक दुग्ध शर्कराओं के पाचन में सहायक हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध और विकास-संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होगी? (2021)

प्रश्न. किसानों के जीवन मानकों को उन्नत करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी किस प्रकार सहायता कर सकती है? (2019)


रैपिड फायर

जोशीमठ और कोसियाकुटोली का नाम परिवर्तन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने जोशीमठ तहसील का नाम बदलकर ज्योतिर्मठ और कोसियाकुटोली तहसील का नाम बदलकर परगना श्री कैंची धाम कर दिया है।

  • जोशीमठ को वह स्थान माना जाता है जहाँ 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
  • कोसियाकुटोली का नाम बदलकर परगना श्री कैंची धाम कर दिया गया है, क्योंकि यहाँ बाबा नीम करोली महाराज का आश्रम स्थित है।
  • जोशीमठ हिंदू धर्म के सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक बद्रीनाथ धाम का प्रवेश द्वार है।
  • बद्रीनाथ धाम चमोली ज़िले में स्थित है और यहाँ भगवान विष्णु को समर्पित पवित्र बद्रीनारायण मंदिर स्थित है।

Joshimath

और पढ़ें: चार धाम यात्रा


रैपिड फायर

सुरक्षित भूजल के लिये पर्यावरण-अनुकूल समाधान

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science - IISc) के शोधकर्त्ताओं ने एक नवीन उपचार तकनीक विकसित की है जो न केवल भूजल से भारी धातु प्रदूषकों को खत्म करती है, बल्कि हटाए गए प्रदूषकों का सुरक्षित निपटान भी सुनिश्चित करती है।

  • यह आर्सेनिक और अन्य हानिकारक धातुओं को हटाता है, जिससे पानी पीने के लिये सुरक्षित हो जाता है।
  • यह प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है क्योंकि हटाए गए दूषित पदार्थों का निपटान पर्यावरण के अनुकूल और सतत् तरीके से किया जाता है।
  • 3-चरणीय कार्य प्रणाली:
    • पुनर्जीवित करना: दूषित पानी को चिटोसन आधारित अधिशोषक के माध्यम से पारित किया जाता है जो विषाक्त अकार्बनिक आर्सेनिक को समाप्त है। पुनर्नवीनीकृत क्षारीय धुलाई का उपयोग करके अधिशोषक को पुनर्जीवित किया जाता है।
    • ध्यान केंद्रित करना: आर्सेनिक युक्त क्षारीय द्रव को झिल्लियों का उपयोग करके अलग कर लिया जाता है, जिससे सोडियम हाइड्रोक्साइड पुनः उपयोग के लिये प्राप्त हो जाता है, जबकि सांद्रित आर्सेनिक को अगले चरण में ले जाया जाता है।
    • सुरक्षित निपटान करना: गाय के गोबर में मौजूद सूक्ष्मजीव अकार्बनिक आर्सेनिक को कम विषैले कार्बनिक रूपों में बदल देते हैं। फिर उपचारित कीचड़ का सुरक्षित निपटान किया जा सकता है।
  • भारत में 21 राज्यों के 113 जिलों में आर्सेनिक का स्तर 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है, जबकि 23 राज्यों के 223 ज़िलों में फ्लोराइड का स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है, जो भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization - WHO) द्वारा निर्धारित स्वीकार्य सीमा से अधिक है।

और पढ़ें: भारत में भूजल संदूषण, जल शोधन प्रक्रियाएँ


रैपिड फायर

काला अज़ार के लिये WHO की रूपरेखा

स्रोत: डाउन टू अर्थ

विसराल लीशमैनियासिस (visceral leishmaniasis - VL) (काला अज़ार) के बढ़ते स्वास्थ्य संबंधी खतरे के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पूर्वी अफ्रीका में इस रोग के उन्मूलन (eradicate) में मदद के लिये एक नई रूपरेखा शुरू की।

  • इस रूपरेखा में VL उन्मूलन के लिये मार्गदर्शन हेतु पाँच मुख्य रणनीतियों की रूपरेखा दी गई है:
    • शीघ्र निदान और उपचार।
    • एकीकृत वैक्टर प्रबंधन।
    • प्रभावी निगरानी ।
    • वकालत, सामाजिक लामबंदी और साझेदारी निर्माण।
    • कार्यान्वयन और परिचालन अनुसंधान।
  • विसराल लीशमैनियासिस एक धीमी गति से बढ़ने वाला स्वदेशी रोग है, जो लीशमैनिया फैमिली के प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होता है।
    • यह संक्रमित मादा बालू मक्खी (sandflies) के काटने से फैलता है और यदि समय पर उपचार न किया जाए तो घातक हो सकता है।
      • VL के कारण बुखार, वज़न में कमी तथा प्लीहा और यकृत का आकार बढ़ जाता है।
    • यह 80 देशों में स्थानिक है, तथापि वर्ष 2022 में, पूर्वी अफ्रीका में वैश्विक VL मामलों का 73% हिस्सा होगा, जिनमें से 50% 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों में हुआ।
      • वर्ष 2023 में बांग्लादेश VL को खत्म करने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा।
    • भारत में लीशमैनिया डोनोवानी (Leishmania Donovani) इस रोग का एकमात्र परजीवी है।
      • हाल ही में भारत ने विसराल लीशमैनियासिस को खत्म करने का अपना लक्ष्य भी सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है (प्रारंभिक लक्ष्य वर्ष 2010 था लेकिन इसे वर्ष 2023 तक बढ़ा दिया गया था)।

और पढ़े: काला अज़ार


रैपिड फायर

बिनसर वन्यजीव अभयारण्य

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

इस वर्ष वनाग्नि में अग्रिम पंक्ति के वनकर्मियों की जान जाने की पहली घटना में, अल्मोड़ा के बिनसर वन्यजीव अभयारण्य (Binsar Wildlife Sanctuary) में अग्निशमन अभियान के दौरान चार वन विभाग कर्मियों की मृत्यु हो गई।

  • बिनसर वन्यजीव अभयारण्य उत्तराखंड के कुमाऊँ हिमालय में स्थित है।
    • क्षेत्र की समृद्ध जैवविविधता के संरक्षण के लिये वर्ष 1988 में इस अभयारण्य की स्थापना की गई थी।
    • इसकी विविध स्थलाकृति और ऊँचाई में भिन्नता के कारण यहाँ वनस्पतियों की व्यापक विविधता है। अभयारण्य मुख्य रूप से ओक और चीड़ के घने वनों से ढका हुआ है।
    • इस अभयारण्य में यूरेशियन जे, कोक्लास तीतर, मोनाल तीतर और हिमालयन कठफोड़वा सहित 200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ हैं।
  • बिनसर चंद राजवंश शासकों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी, जिन्होंने 7वीं से 18वीं शताब्दी तक कुमाऊँ पर शासन किया था।
  • स्थानीय लोगों के अनुसार, बिनसर का नाम बिनेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर पड़ा, जिसका निर्माण 16वीं शताब्दी किया गया तथा यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित था।

और पढ़ें: वनाग्नि


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