भारतीय समाज
भारत में शहरी विकास पर पुनर्विचार की आवश्यकता
यह एडिटोरियल 26/05/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Why India needs a national plan for building new cities” पर आधारित है। इस लेख के तहत भारत में ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड शहरी रणनीतियों के बीच विसंगति को सामने लाया गया है, जो सतत् विकास सुनिश्चित करने और विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एकीकृत राष्ट्रीय शहरी योजना की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
प्रिलिम्स के लिये:74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 12वीं अनुसूची, शहरी स्थानीय निकाय, स्पॉन्ज शहर, जलवायु कार्य योजनाएँ, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड शहरी विकास, स्मार्ट सिटी मिशन, AMRUT, PMAY-U मेन्स के लिये:ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड शहरी विकास के बीच मुख्य अंतर, भारत के तीव्र शहरी विकास के प्रमुख चालक, भारत के शहरी परिदृश्य से जुड़े प्रमुख मुद्दे। |
भारत की शहरी विकास रणनीति अमरावती जैसे ग्रीनफील्ड शहरों और मौजूदा शहरी केंद्रों में ब्राउनफील्ड सुधारों के बीच द्वंद्व से ग्रस्त है, जिससे निवेश प्राथमिकताओं व नियोजन दृष्टिकोणों को लेकर भ्रम उत्पन्न होता है। इन दो प्रतिमानों के बीच विसंगति के कारण नियोजन विफलताएँ, अनियंत्रित शहरी विस्तार और शहरों को अपने विरासत के बुनियादी अवसंरचना को प्रबंधित करने में भी संघर्ष करना पड़ रहा है, तीव्र विकास को समायोजित करना तो दूर की बात है। शहरी निवेश में आठ गुना वृद्धि की आवश्यकता है तथा शहरों का प्रबंधन करना लगातार कठिन होता जा रहा है। ऐसे में भारत को तत्काल एक राष्ट्रीय योजना की आवश्यकता है जो विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक सुव्यवस्थित एकीकृत शहरी नेटवर्क बनाए।
भारत के तीव्र शहरी विकास के प्रमुख चालक क्या हैं?
- जनांकिकीय परिवर्तन और ग्रामीण-शहरी प्रवास: भारत में शहरी क्षेत्रों में वृद्धि, बेहतर आजीविका संभावनाओं और बढ़ी हुई शहरी सुविधाओं के कारण निरंतर ग्रामीण-से-शहरी प्रवास से उत्प्रेरित है।
- इस प्रवासन से शहरों पर नौकरियाँ, आवास और बुनियादी अवसंरचना उपलब्ध कराने का दबाव बढ़ रहा है, जिससे शहरी विस्तार में तेज़ी आ रही है, साथ ही शासन के लिये भी चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
- वर्ष 2036 तक भारत की शहरी आबादी बढ़कर 600 मिलियन (कुल आबादी का 40%) हो जाने की उम्मीद है, जबकि वर्ष 2011 में यह 31% थी, जो एक बड़े जनांकिकीय बदलाव का संकेत है।
- संरचनात्मक आर्थिक परिवर्तन और क्षेत्रीय बदलाव: कृषि से उद्योग एवं सेवाओं की ओर बदलाव से आर्थिक गतिविधियाँ शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हो जाती हैं, जिससे शहर विकास और नवाचार के इंजन बन जाते हैं।
- वर्तमान में, शहरी केंद्र सकल घरेलू उत्पाद में 63% का योगदान देते हैं, जिसके वर्ष 2030 तक 75% तक बढ़ने की उम्मीद है, जो तेज़ी से बढ़ते IT, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों द्वारा उत्प्रेरित है।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन जैसी सरकारी योजनाओं द्वारा समर्थित टियर-2 और टियर-3 शहरों का उदय, बड़े शहरों से परे विकास को विकेंद्रित कर रहा है तथा क्षेत्रीय आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा दे रहा है।
- सुदृढ़ सरकारी शहरी नीति कार्यढाँचे और पहल: स्मार्ट सिटीज़ मिशन (8,000 से अधिक परियोजनाएँ), AMRUT और PMAY-U जैसी महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ शहरी बुनियादी अवसंरचना, आवास एवं शासन को आधुनिक बनाने के लिये लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप का उदाहरण हैं।
- ये पहल संवहनीयता, जलवायु अनुकूलन और नागरिक केंद्रित डिजिटल सेवाओं पर ज़ोर देती हैं, जो तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के प्रबंधन के लिये आवश्यक हैं।
- उनका उद्देश्य शहरी स्थानों को आर्थिक गतिविधि और सामाजिक समावेशन के केंद्रों में बदलना है, जो बुनियादी अवसंरचना के निर्माण से लेकर जीवन की गुणवत्ता में सुधार की ओर बदलाव को दर्शाता है।
- तकनीकी एकीकरण और स्मार्ट शहरी समाधान: AI, IoT और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियाँ शहरी प्रबंधन में क्रांति ला रही हैं, दक्षता, पारदर्शिता एवं संवहनीयता को बढ़ावा दे रही हैं।
- परिवहन के लिये पुणे द्वारा 90% स्वच्छ ईंधन चालित बस में रूपांतरण तथा वडोदरा में 10.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से एकीकृत कमांड सेंटर की स्थापना यह दर्शाती है कि प्रौद्योगिकी-आधारित शासन नागरिक सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने एवं पर्यावरणीय लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सकता है।
- डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट यातायात प्रणालियाँ तथा स्मार्ट जल एवं अपशिष्ट प्रबंधन, तीव्र शहरी विकास की जटिलताओं से निपटने में महत्त्वपूर्ण हैं।
- राष्ट्रीय विकास रणनीति के रूप में शहरीकरण: शहरी विकास भारत की वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की महत्त्वाकांक्षा का केंद्र है, जिसमें शहर नवाचार केंद्र और रोज़गार के स्रोत बनेंगे।
- अनुमान है कि दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की जनसंख्या वर्ष 2011 में 53 से बढ़कर वर्ष 2030 तक 87 हो जाएगी, जो तीव्र शहरी एकीकरण को दर्शाता है।
- 'वोकल फॉर लोकल' जैसी पहल का उद्देश्य शहरी आर्थिक गतिशीलता को स्वदेशी उद्यमशीलता के साथ सामंजस्य स्थापित करना, आत्मनिर्भरता तथा संवहनीयता का समर्थन करना तथा जलवायु हेतु प्रतिबद्धताओं के साथ विकास को संतुलित करना है।
भारत के शहरी परिदृश्य से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- बुनियादी अवसंरचना की कमी और सेवा वितरण में बाधाएँ: भारत का शहरी बुनियादी अवसंरचना विकास जनांकिकीय वृद्धि की तुलना में काफी पीछे है, जिसके परिणामस्वरूप आवास, पेयजल, स्वच्छता, परिवहन और ऊर्जा सेवाओं की गंभीर कमी हो रही है।
- कई शहरों में बुनियादी अवसंरचना पुरानी हो चुकी है तथा बढ़ती मांग को पूरा करने में असमर्थ है, जिसके कारण लगातार भीड़भाड़, अपर्याप्त स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो रहे हैं।
- वर्ष 2011-18 के दौरान शहरी बुनियादी अवसंरचना में निवेश सकल घरेलू उत्पाद का औसतन केवल 0.6% था, जो आवश्यक 1.2% का आधा था, जो निरंतर वित्त पोषण अंतराल को दर्शाता है।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद, IMD स्मार्ट सिटी सूचकांक में कोई भी भारतीय मेट्रो विश्व स्तर पर शीर्ष 100 में स्थान नहीं बना पाया है, जो अवसंरचना संबंधी अपर्याप्तताओं को उजागर करता है।
- खंडित शहरी विकास एवं नियोजन विफलताएँ: अमरावती जैसे ग्रीनफील्ड शहरी परियोजनाओं का विकास और पारंपरिक नगरों में ब्राउनफील्ड उन्नयन की प्रक्रिया के सह-अस्तित्व से शहरी विकास की रणनीतियाँ असंगत हो जाती हैं, जिससे नगर विस्तार अकुशल एवं अप्रभावी बनता है।
- यह खंडित विकास भूमि-उपयोग संघर्षों को बढ़ाता है, परिवहन लागत को बढ़ाता है तथा अनियंत्रित शहरी विस्तार के कारण पर्यावरण क्षरण को तीव्र करता है।
- अनुमान है कि भारत के दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या वर्ष 2011 में 53 से बढ़कर वर्ष 2030 तक 87 हो जाएगी, जिससे समेकित महानगरीय नियोजन कार्यढाँचे के अभाव में शहरी प्रशासन और बुनियादी अवसंरचना पर दबाव बढ़ेगा।
- राजकोषीय बाधाएँ और निजी पूंजी का कम उपयोग: शहरी स्थानीय निकाय सीमित राजस्व स्वायत्तता, अकुशल कर संग्रह और राज्य व केंद्रीय अंतरण पर निर्भरता के कारण वित्तीय रूप से विवश रहते हैं, जिससे आवश्यक सेवाओं एवं बुनियादी अवसंरचना को वित्तपोषित करने की उनकी क्षमता कमज़ोर हो जाती है।
- जहाँ शहरी अवसंरचना का 72% वित्तपोषण सरकारों द्वारा किया जाता है, वहीं निजी क्षेत्र की भागीदारी केवल 5% तक सीमित है, जो यह दर्शाता है कि वाणिज्यिक वित्त जुटाने में संरचनात्मक बाधाएँ मौजूद हैं।
- नगर निगम बॉण्ड बाज़ार और नवोन्मेषी वित्तीय उपकरण अभी प्रारंभिक अवस्था में हैं। पुणे और वडोदरा जैसी कुछ गिनी-चुनी सफलताएँ तो देखने को मिली हैं, परंतु संस्थागत कमज़ोरियों एवं जोखिम की धारणा के कारण इनका व्यापक स्तर पर प्रसार नहीं हो सका है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2036 तक शहरी बुनियादी अवसंरचना के क्षेत्र में लगभग 840 अरब डॉलर की भारी वित्तीय कमी बनी हुई है।
- पर्यावरणीय तनाव और संसाधन प्रबंधन चुनौतियाँ: भारतीय शहर बढ़ते पर्यावरणीय संकटों— प्रदूषण, अपशिष्ट कुप्रबंधन, जल की कमी एवं जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता, से जूझ रहे हैं जो शहरी संधारणीयता और स्वास्थ्य के लिये खतरा हैं।
- NITI आयोग की वर्ष 2019 की ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ (Composite Water Management Index) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 60 करोड़ लोग गंभीर से अत्यंत गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। देश के कई शहरों को 'जल-संकटग्रस्त' या 'गंभीर रूप से जल-अभावग्रस्त' की श्रेणी में रखा गया है।
- सूरत का बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण और धरमपुरी का समग्र जल प्रबंधन अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत करते हैं, फिर भी अधिकांश शहरी केंद्रों में एकीकृत पर्यावरण प्रबंधन प्रणालियों का अभाव है, जिससे अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति एवं संसाधन ह्रास का खतरा बना रहता है।
- बढ़ती शहरी असमानता और सामाजिक अपवर्जन: शहरीकरण ने सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बढ़ा दिया है, सीमांत समुदाय अपर्याप्त आवास, स्वच्छता और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा तक सीमित पहुँच से असमान रूप से प्रभावित हैं।
- अनौपचारिक बस्तियों या मलिन बस्तियों में लाखों लोग निम्न स्तर की परिस्थितियों में रह रहे हैं, जिससे वहाँ के निवासियों को स्वास्थ्य संबंधी खतरों और आर्थिक कमज़ोरियों का सामना करना पड़ रहा है।
- यद्यपि PMAY-U ने लाखों लोगों को किफायती आवास उपलब्ध कराने में मदद की है। वर्ष 2020 में भारत की झुग्गी-झोपड़ियों की आबादी अभी भी 236 मिलियन होने का अनुमान (UN-हैबिटेट 2021) था, जो बताता है कि इसकी लगभग आधी शहरी आबादी झुग्गियों में रहती है।
- अपूर्ण डेटा प्रणाली और प्रत्युत्तरहीन शासन: शहरी प्रबंधन की प्रभावशीलता में एक प्रमुख बाधा यह है कि व्यापक और वास्तविक काल पर आधारित डेटा का अभाव है। इसके कारण नीति निर्माण साक्ष्य-आधारित नहीं हो पाता और शासन तंत्र समयानुकूल ढलने में असमर्थ रहता है।
- वर्ष 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के कम से कम 39% राजधानी शहरों में सक्रिय स्थानिक योजनाओं का अभाव है।
- वडोदरा का एकीकृत कमांड सेंटर और पुणे की स्मार्ट मोबिलिटी परियोजनाएँ प्रौद्योगिकी-संचालित शासन के लाभों को प्रदर्शित करती हैं, लेकिन कई शहरी स्थानीय निकायों में ऐसे नवाचारों को देशव्यापी स्तर पर लागू करने के लिये संस्थागत क्षमता एवं तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है।
सतत् शहरी विकास के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- रणनीतिक बहुकेंद्रित शहरीकरण एवं महानगरीय एकीकरण: बहुविधीय पारगमन गलियारों के माध्यम से उभरते उपग्रह कस्बों और शहरी समूहों को मुख्य शहरों के साथ जोड़कर बहुकेंद्रित शहरी विकास को लागू किया जाना चाहिये।
- यह स्थानिक रणनीति, ग्रीनफील्ड शहर कार्यढाँचे को ब्राउनफील्ड पुनरोद्धार के साथ सामंजस्य स्थापित करके, शहरी विस्तार को कम कर सकता है, क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ा सकती है और भूमि उपयोग दक्षता को अनुकूलित कर सकती है।
- स्मार्ट सिटी मिशन और AMRUT कार्यक्रमों के बीच तालमेल का लाभ उठाने से पारगमन-उन्मुख विकास (TOD) तथा मिश्रित-उपयोग ज़ोनिंग मॉडल पर आधारित एक सुसंगत, स्केलेबल महानगरीय शासन मॉडल सक्षम होगा।
- गहन राजकोषीय विकेंद्रीकरण एवं राजस्व नवाचार: नगरीय स्थानीय निकायों को संपत्ति कर सुधार, भूमि मूल्य अभिग्रहण तंत्र और गतिशील उपयोग शुल्क जैसे नगरपालिका राजस्व स्रोतों का विस्तार करके व्यापक राजकोषीय विकेंद्रीकरण के साथ सशक्त बनाया जाना चाहिये, जो राजकोषीय ढाँचे के अनुरूप हों।
- ESG-लिंक्ड उपकरणों के माध्यम से नगरपालिका बॉण्ड बाज़ार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये तथा परिणाम-आधारित प्रदर्शन अनुदान विकसित किया जाना चाहिये, जिससे राजकोषीय अनुशासन, पारदर्शिता और सार्वजनिक-निजी सहयोग को प्रोत्साहन प्राप्त हो तथा समुत्थानशील बुनियादी ढाँचे में निवेश के लिये पूँजी को आकर्षित किया जा सके।
- एकीकृत शहरी शासन के लिये समग्र संस्थागत सुधार: भूमि उपयोग, परिवहन, आवास और पर्यावरण प्रबंधन पर एकीकृत अधिदेश के साथ महानगरीय विकास प्राधिकरणों को संस्थागत बनाकर खंडित शासन संरचनाओं को पुनः स्थापित किया जाना चाहिये।
- स्थानीय सांसदों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को अनिवार्य रूप से शामिल करते हुए स्मार्ट सिटी सलाहकार मंच की बैठकों का नियमित आयोजन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- उत्तरदायी शहरी शासन के लिये जवाबदेहिता एवं बहु-हितधारक सहयोग को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- 74वें संशोधन के अनुरूप सहायकता (subsidiarity) एवं सहकारी संघवाद के सिद्धांतों को शामिल किया जाना चाहिये, ताकि सशक्त और जवाबदेह नेतृत्व सुनिश्चित हो सके। इससे ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज समन्वय को एकीकृत किया जा सकेगा, प्रशासनिक संबंधी बाधाओं को तोड़ा जा सकेगा और नीति क्रियान्वयन को तीव्र किया जा सकेगा।
- शहरी विकास पर स्थायी समिति (सत्र 2020-2021) की सिफारिश के बाद, स्मार्ट सिटी प्रशासन में समावेशी भागीदारी को अनिवार्य बनाया गया है:
- जलवायु-अनुकूली अवसंरचना एवं पारिस्थितिकीय तंत्र-आधारित शहरी समुत्थानशक्ति: हरित भवन प्रमाणन, विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण और शहरी जल-संवेदनशील डिज़ाइनों के माध्यम से शहरी अवसंरचना में जलवायु जोखिम को मुख्यधारा में लाया जाना चाहिये।
- सूक्ष्म जलवायु विनियमन, तूफानी जल प्रबंधन और कार्बन पृथक्करण को बढ़ाने के लिये पर्यावरण प्रणाली आधारित अनुकूलन रणनीतियों के साथ शहरी आर्द्रभूमि पुनर्स्थापन, हरित गलियारे एवं जैवविविधता को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, शहरी विकास को भारत के NDC लक्ष्यों और शुद्ध-शून्य मार्गों के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।
- क्रॉस-स्कीम कन्वर्जेंस के माध्यम से समावेशी शहरी पुनरुत्थान: पीएमएवाई-शहरी (PMAY-Urban) की किफायती आवास पर केंद्रित नीति को स्मार्ट सिटीज़ मिशन की डिजिटल शासन व्यवस्था एवं सेवा वितरण प्लेटफॉर्म्स के साथ जोड़कर एकीकृत शहरी पुनरुत्थान को संचालित किया जाना चाहिये।
- मलिन बस्तियों के उन्नयन की सुविधा प्रदान किया जाना चाहिये, जिसमें भौतिक अवसंरचना, स्वच्छता, आजीविका सहायता और डिजिटल समावेशन शामिल हो, सामाजिक समानता को बढ़ावा मिले तथा भागीदारीपूर्ण नियोजन एवं वास्तविक काल निगरानी प्रणालियों के माध्यम से शहरी सीमांत समुदायों को सशक्त बनाया जा सके।
- लैंगिक-संवेदनशील, बहु-मॉडल स्मार्ट मोबिलिटी नेटवर्क: सतत्, विद्युत-चालित बहु-मॉडल परिवहन पारिस्थितिकीय तंत्र विकसित किया जाना चाहिये, जो लास्ट-माइल कनेक्टिविटी और गैर-मोटर चालित विकल्पों को प्राथमिकता देता हो।
- महिलाओं और दिव्याँग जनों के लिये आवागमन की बाधाओं को दूर करने की दिशा में लैंगिक-संवेदनशील शहरी डिज़ाइन— सुरक्षित गलियारे, निगरानी-सक्षम पारगमन केंद्र एवं सुलभ बुनियादी अवसंरचना को शामिल किया जाना चाहिये, जिससे महिला श्रम भागीदारी और समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले।
- डेटा-संचालित शहरी शासन और पारदर्शी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र: AI, IoT और जियोस्पेशियल एनालिटिक्स का उपयोग करके उन्नत शहरी डेटा पारिस्थितिकी तंत्र को संस्थागत बनाया जाना चाहिये, जिससे ओपन गवर्नमेंट डेटा प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से रियल-टाइम मॉनिटरिंग, प्रेडिक्टिव मेंटेनेंस एवं नागरिक भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
- यह डिजिटल परिवर्तन साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को बढ़ावा देता है, परिचालन दक्षता को बढ़ाता है तथा उत्तरदायी और अनुकूल शहरी प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण जवाबदेही तंत्र को मज़बूत करता है।
- हरित वित्त एवं प्रभाव-संचालित निवेश मॉडल को गति: स्थायी शहरी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं—नवीकरणीय ऊर्जा, हरित भवनों और अपशिष्ट-से-ऊर्जा पहलों के लिये पूंजी एकत्रित करने हेतु नगरपालिका ग्रीन बॉन्ड और ESG-संरेखित प्रभाव निवेशों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- भारत की शहरी जलवायु प्रतिबद्धताओं और सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को गति प्रदान करते हुए वित्तपोषण अंतराल को समाप्त करने के लिये रियायती निधियों, निजी पूंजी और प्रदर्शन प्रोत्साहनों को जोड़कर मिश्रित वित्त मॉडल निर्मित किये जाने चाहिये।
- शहरी-ग्रामीण सहयोगात्मक विकास एवं क्षेत्रीय समुत्थानशक्ति: एकीकृत क्षेत्रीय योजना ढाँचे को आगे बढ़ाया जाना चाहिये, जो साझा बुनियादी अवसंरचना, कृषि-लॉजिस्टिक्स गलियारों और संसाधनों के चक्रीय प्रवाह के माध्यम से शहरी-ग्रामीण आर्थिक संबंधों को मज़बूत करते हैं।
- इस दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर, विकेंद्रीकृत उत्पादन-उपभोग प्रणालियों एवं पर्यावरण-संवेदनशील शहरी विस्तार को अपनाया जा सकता है। यह जनांकिक दबावों को संतुलित करता है, समतामूलक विकास को बढ़ावा देता है और क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा तथा पारिस्थितिकीय संधारणीयता को सुदृढ़ करता है।
निष्कर्ष:
भारत का शहरी भविष्य समावेशी, समुत्थान और सतत् शहरों के निर्माण के लिये ग्रीनफील्ड महत्त्वाकांक्षा और ब्राउनफील्ड व्यावहारिकता के बीच सामंजस्य पर निर्भर है। एक एकीकृत राष्ट्रीय शहरी रणनीति में बहुकेंद्रित विकास, स्मार्ट शासन और जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना सेवा घाटे को कम करने तथा समान विकास सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा। यह SDG 11 (सतत् शहर एवं संतुलित समुदाय), SDG 13 (जलवायु परिवर्तन कार्रवाई) और SDG 9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी सुविधाएँ) के साथ संरेखित है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की शहरी विकास रणनीति एक खंडित दृष्टिकोण को दर्शाती है जो ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड परियोजनाओं के बीच द्वंद्व से चिह्नित है। इस संदर्भ में, भारत के शहरी परिवर्तन के प्रमुख चालकों और चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है? (2019) (a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे। उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न 1. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016) प्रश्न 2. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (2014) |