शासन व्यवस्था
पूर्वोत्तर भारत: परिधि से केंद्र तक
यह एडिटोरियल 26/05/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Frontier of progress: On the potential of the northeast” पर आधारित है। इस लेख में एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वोत्तर के रणनीतिक महत्त्व को रेखांकित किया गया है तथा इस क्षेत्र में जारी संघर्षों, सीमा विवादों और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बीच क्षेत्र-नेतृत्व वाले, समावेशी विकास की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र, सेला सुरंग, डोकलाम गतिरोध- 2017 (ऑपरेशन जुनिपर), भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, भारत-बर्मा जैव-विविधता हॉटस्पॉट, सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA), भारत वन स्थिति रिपोर्ट- 2023, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ समिति, दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM), PM-DevINE मेन्स के लिये:एक्ट ईस्ट पॉलिसी, भारत के विकासात्मक दृष्टिकोण में पूर्वोत्तर क्षेत्र का महत्त्व, भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे। |
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से राष्ट्र की विविधता का उदाहरण है। सरकार सेला सुरंग से लेकर पूर्वोत्तर गैस ग्रिड तक बड़े पैमाने पर बुनियादी अवसंरचना के निवेश के साथ इस क्षेत्र को बदल रही है। हालाँकि महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें नगालैंड में अवरुद्ध शांति प्रक्रिया, अंतर-राज्यीय सीमा विवाद, जलविद्युत परियोजनाओं पर पर्यावरण संबंधी चिंताएँ और आप्रवासन संबंधी बयानबाज़ी से उत्पन्न सामाजिक तनाव शामिल हैं। एक्ट ईस्ट नीति को वास्तव में सफल बनाने के लिये, भारत को पूर्वोत्तर को अपनी मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में एकीकृत करने की आवश्यकता है और विकास के ऐसे मॉडल को प्राथमिकता देनी चाहिये जिसका नेतृत्व यह क्षेत्र स्वयं कर सके।
भारत के विकासात्मक परिदृश्य में पूर्वोत्तर क्षेत्र का क्या महत्त्व है?
- भारत की सुरक्षा और विदेश नीति के लिये रणनीतिक भू-राजनीतिक धुरी: भारत की पूर्वी सीमा के रूप में पूर्वोत्तर का भूगोल चीन, म्याँमार, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को साझा करता है, जो इसे चीनी प्रभाव का मुकाबला करने तथा देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की दृष्टि से एक अग्रिम पंक्ति का रणनीतिक क्षेत्र बनाती है।
- ट्राई-जंक्शन के निकट डोकलाम गतिरोध- 2017 (ऑपरेशन जुनिपर) ने चिकन्स नेक की भेद्यता को रेखांकित किया।
- इस प्रकार, इस क्षेत्र की स्थिरता सीधे तौर पर भारत की हिंद-प्रशांत महत्त्वाकांक्षाओं और सीमा सुरक्षा अनिवार्यताओं से जुड़ी हुई है।
- अप्रयुक्त हाइड्रोकार्बन और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: पूर्वोत्तर का विशाल प्राकृतिक संसाधन आधार (जिसमें जलविद्युत क्षमता के साथ-साथ पर्याप्त तेल और प्राकृतिक गैस भंडार शामिल हैं), इसे भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण और ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण बनाता है।
- उदाहरण के लिये, पूर्वोत्तर में अनुमानतः 7,600 मिलियन मीट्रिक टन तेल समतुल्य (MMTOE) है, लेकिन अभी तक केवल 2,000 MMTOE का ही अन्वेषण हो पाया है।
- अकेले अरुणाचल प्रदेश में 50,000 मेगावाट से अधिक जलविद्युत क्षमता है।
- उदाहरण के लिये, पूर्वोत्तर में अनुमानतः 7,600 मिलियन मीट्रिक टन तेल समतुल्य (MMTOE) है, लेकिन अभी तक केवल 2,000 MMTOE का ही अन्वेषण हो पाया है।
- क्षेत्रीय एकीकरण के लिये उत्प्रेरक के रूप में सांस्कृतिक विविधता: 135 से अधिक जनजातियों के साथ, पूर्वोत्तर भारत की जातीय-सांस्कृतिक बहुलता इसकी विशिष्ट पहचान को रेखांकित करती है और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ सीमा पार सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने में भारत को एक विशिष्ट लाभ प्रदान करती है।
- पूर्वोत्तर महोत्सव जैसी पहलों के माध्यम से स्वदेशी हस्तशिल्प, पारंपरिक त्योहारों और जनजातीय कला को बढ़ावा देने से स्थानीय आजीविका में वृद्धि होती है तथा भारत के बहुलवादी चरित्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया जाता है।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली में नॉर्थ-ईस्ट फेस्टिवल- 2022 में 100 MSME ने भाग लिया, जिससे हस्तशिल्प निर्यात और पर्यटन को काफी बढ़ावा मिला।
- पारिस्थितिक महत्त्व: भारत-बर्मा जैव-विविधता हॉटस्पॉट में स्थित, पूर्वोत्तर का समृद्ध वन क्षेत्र (भारत की वन स्थिति रिपोर्ट- 2023 में वन क्षेत्र के मामले में अरुणाचल प्रदेश भारत में दूसरे स्थान पर है) और स्थानिक प्रजातियाँ जैसे: हूलॉक गिब्बन (भारत का एकमात्र वानर), एक सींग वाला गैंडा एवं लुप्तप्राय रेड पांडा पारिस्थितिक संतुलन व जलवायु अनुकूलन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- इस क्षेत्र में दुर्लभ ऑर्किड, 850 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं तथा यह प्रवासी वन्य जीवन के लिये एक महत्त्वपूर्ण गलियारे के रूप में कार्य करता है, जो भारत की जैव-विविधता और कार्बन पृथक्करण प्रयासों में इसके महत्त्व को रेखांकित करता है।
- भारत की एक्ट ईस्ट नीति और क्षेत्रीय व्यापार के लिये आर्थिक प्रवेशद्वार: भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग तथा कंबोडिया और वियतनाम तक प्रस्तावित विस्तार जैसी पूर्वोत्तर की संपर्क परियोजनाएँ इसे भारत को ASEAN बाज़ारों से जोड़ने वाले एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित करती हैं, जो भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के दृष्टिकोण का समर्थन करती हैं।
- परिवहन और व्यापार संबंधों को मज़बूत करने से यह क्षेत्र पूर्वी एशिया के साथ वाणिज्य एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिये एक जीवंत गलियारे में परिवर्तित हो सकता है।
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- जातीय विखंडन और स्थायी उग्रवाद स्थिरता को कमज़ोर करते हैं: लगातार जातीय विखंडन हिंसक उग्रवाद और अंतर-समुदाय संघर्षों को बढ़ावा देता है, शासन की वैधता को नष्ट करता है और विकास के प्रक्षेप पथ को बाधित करता है।
- प्रभावी सामंजस्य और राजनीतिक समायोजन का अभाव अविश्वास और असुरक्षा के चक्र को कायम रखता है, जिससे निवेश और सामाजिक सामंजस्य में बाधा उत्पन्न होती है। मणिपुर में चल रहा संघर्ष इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार अनसुलझे जातीय शिकायतें क्षेत्र को अस्थिर बनाती हैं और आर्थिक प्रगति को अवरुद्ध करती हैं।
- सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) का व्यापक स्तर पर क्रियान्वयन जारी है, जो लगातार सुरक्षा चुनौतियों को दर्शाता है।
- प्रभावी सामंजस्य और राजनीतिक समायोजन का अभाव अविश्वास और असुरक्षा के चक्र को कायम रखता है, जिससे निवेश और सामाजिक सामंजस्य में बाधा उत्पन्न होती है। मणिपुर में चल रहा संघर्ष इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार अनसुलझे जातीय शिकायतें क्षेत्र को अस्थिर बनाती हैं और आर्थिक प्रगति को अवरुद्ध करती हैं।
- बुनियादी अवसंरचना की कमी आर्थिक अलगाव को बढ़ाती है: भौगोलिक चुनौतियों के साथ-साथ अपर्याप्त मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के साथ पूर्वोत्तर के एकीकरण में बाधा डालती है।
- अविकसित सड़क, रेल, वायु तथा डिजिटल अवसंरचना आपूर्ति शृंखला, स्वास्थ्य-सेवा सुगम्यता एवं आपदा प्रबंधन में बाधा डालती है, जिससे NLCPR व NESIDS जैसी रणनीतिक पहलों के बावजूद क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन और बढ़ रहा है।
- डिजिटल डिवाइड ग्रामीण आबादी को मुख्यधारा के अवसरों से और अधिक हाशिये की ओर उत्प्रेरित करता है।
- उदाहरण के लिये, इंटरनेटएक्सेस 43% है, जो राष्ट्रीय औसत 55% से काफी कम है। राष्ट्रीय राजमार्ग विस्तार 4,950 किमी. (वर्ष 2014-23) तक पहुँच गया, फिर भी रेल संपर्क अविकसित बना हुआ है।
- संवेदनशील सीमाएँ सुरक्षा जोखिम को बढ़ाती हैं: पूर्वोत्तर की 5,182 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ संवेदनशील और अपर्याप्त निगरानी वाली बनी हुई हैं, जिससे अवैध आव्रजन, हथियारों की तस्करी एवं विद्रोही गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
- अकुशल फेंसिंग एवं समन्वय अंतराल क्षेत्रीय संप्रभुता से समझौता करते हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय विद्रोह को बढ़ावा देते हैं, जिससे बांग्लादेश और म्याँमार के साथ राजनयिक संबंध जटिल हो जाते हैं। यह कमज़ोरी भारत की आंतरिक सुरक्षा संरचना के लिये एक रणनीतिक चिंता बनी हुई है।
- उदाहरण के लिये, भारत-म्याँमार सीमा पर फेंसिंग का कार्य अपूर्ण है, जिससे सीमा पार आवागमन (रोहिंग्याओं की तरह) जारी है।
- पर्यावरणीय संघर्षों से विसंगति प्रकट होती हैं: आलोचकों का तर्क है कि मज़बूत पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के बिना पनबिजली एवं खनन परियोजनाओं के आक्रामक कार्यान्वयन से स्थानीय प्रतिरोध उत्पन्न हुआ है, जिससे आर्थिक विकास और पारिस्थितिकी संरक्षण के बीच तनाव उज़ागर हुआ है।
- उदाहरण के लिये, सियांग नदी तट पर नियोजित मेगा जलविद्युत परियोजना ने स्थानीय समुदायों में आक्रोश उत्पन्न कर दिया है, जिससे उन्हें विस्थापन, पर्यावरणीय क्षरण और सांस्कृतिक अवमूल्यन का डर है।
- भूमि की कमी और अंतर्राज्यीय सीमा विवाद: जनसंख्या दबाव और अस्पष्ट भूमि स्वामित्व के कारण तनाव और अंतर्राज्यीय सीमा विवाद बढ़ता है, जिससे विकास परियोजनाओं और सामाजिक सद्भाव में बाधा उत्पन्न होती है।
- विवादों को सुलझाने के लिये विभिन्न आयोग गठित किये गए हैं, लेकिन उनसे बहुत कम प्रगति हुई है।
- उदाहरण के लिये, असम-मेघालय विवाद में मेघालय ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ समिति की रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को खारिज कर दिया, जबकि असम ने उन्हें स्वीकार कर लिया था। इसी तरह, वर्ष 2014 में भी असम ही प्रस्तावित समाधान से असहमत था।
- विवादों को सुलझाने के लिये विभिन्न आयोग गठित किये गए हैं, लेकिन उनसे बहुत कम प्रगति हुई है।
- मानव तस्करी और मादक दवाओं के दुरुपयोग का संकट: पूर्वोत्तर क्षेत्र अपनी छिद्रपूर्ण सीमाओं और रणनीतिक स्थान के कारण मानव तस्करी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी का केंद्र है।
- तस्करी के नेटवर्क प्रायः व्यापक अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध सिंडिकेट से जुड़े होते हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में मादक दवाओं के दुरुपयोग का संकट बढ़ रहा है, जिसमें ओपिओइड और अन्य मादक पदार्थों की तस्करी छिद्रपूर्ण सीमाओं के पार की जा रही है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
- मादक पदार्थों के दुरुपयोग का संकट HIV के मामलों में भी वृद्धि को बढ़ावा दे रहा है, क्योंकि दूषित सुइयों के उपयोग और असुरक्षित दवा प्रथाओं से वायरस फैलता है।
- उदाहरण के लिये, मणिपुर राज्य में अफीम उत्पादन में खतरनाक वृद्धि देखी जा रही है, जिससे स्थानीय स्तर पर नशे की लत की समस्या और व्यापक क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियाँ दोनों बढ़ रही हैं।
- तस्करी के नेटवर्क प्रायः व्यापक अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध सिंडिकेट से जुड़े होते हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में मादक दवाओं के दुरुपयोग का संकट बढ़ रहा है, जिसमें ओपिओइड और अन्य मादक पदार्थों की तस्करी छिद्रपूर्ण सीमाओं के पार की जा रही है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
आर्थिक प्रगति में पूर्वोत्तर को मुख्यधारा में लाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- शांति स्थापना को मज़बूत करना और स्वदेशी समुदायों के लिये मान्यता को औपचारिक बनाना: संवाद, विकास और विश्वास निर्माण के माध्यम से उग्रवाद से निपटने के लिये स्थानीय हितधारकों, सुरक्षा बलों और नागरिक समाज को शामिल करते हुए व्यापक शांति स्थापना पहल को लागू करना।
- लोकुर समिति की सिफारिशों के बाद स्वदेशी समुदायों की औपचारिक मान्यता में तेज़ी लाई गई, जैसे सत्यापन के बाद योग्य जातीय समूहों (जैसे असम में मिसिंग, मोटोक और मोरन) को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया गया।
- लोकुर समिति ने ऐसे समुदायों की पहचान के लिये पाँच मानदंड सुझाए थे: आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े समुदाय के साथ बातचीत करने की अनिच्छा और समग्र सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन।
- लोकुर समिति की सिफारिशों के बाद स्वदेशी समुदायों की औपचारिक मान्यता में तेज़ी लाई गई, जैसे सत्यापन के बाद योग्य जातीय समूहों (जैसे असम में मिसिंग, मोटोक और मोरन) को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया गया।
- मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी और डिजिटल अवसंरचना को मज़बूत करना: भौगोलिक अलगाव को दूर करने के लिये विस्तृत डिजिटल नेटवर्क के साथ सड़कों, रेलवे, अंतर्देशीय जलमार्गों और हवाई अड्डों के एकीकृत विकास को प्राथमिकता देना।
- क्षेत्र-विशिष्ट अवसंरचना गलियारों का क्रियान्वयन करना जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को राष्ट्रीय और आसियान बाज़ारों से जोड़ते हैं, आपूर्ति शृंखला लचीलापन बढ़ाते हैं और लेनदेन लागत को कम करते हैं।
- निर्बाध परिवहन गलियारे बनाने के लिये राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) जैसी भौतिक संपर्क परियोजनाओं को PM गति शक्ति मास्टर प्लान के साथ एकीकृत करना।
- शहरी-ग्रामीण अंतराल को दूर करने और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये ग्रामीण ब्रॉडबैंड एवं ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्मों के माध्यम से डिजिटल इन्क्लूज़न को तीव्र किया जाना चाहिये।
- क्षेत्र-विशिष्ट अवसंरचना गलियारों का क्रियान्वयन करना जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को राष्ट्रीय और आसियान बाज़ारों से जोड़ते हैं, आपूर्ति शृंखला लचीलापन बढ़ाते हैं और लेनदेन लागत को कम करते हैं।
- समावेशी और सहभागी शासन मॉडल को बढ़ावा देना: PM-DevINE योजना के आधार पर दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) जैसी योजनाओं के साथ पंचायती राज संस्थाओं के संवर्द्धित अभिसरण के माध्यम से स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाकर विकेंद्रीकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- इससे समुदाय-आधारित विकास संभव होगा, सामाजिक-सांस्कृतिक संवेदनशीलताओं का सम्मान सुनिश्चित होगा तथा मुख्यधारा की आर्थिक योजना में ज़मीनी स्तर के प्रतिनिधित्व को भी शामिल किया जा सकेगा।
- संधारणीय और पर्यावरण-संवेदनशील औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण-पर्यटन, जैविक कृषि और वन-आधारित सूक्ष्म उद्यमों जैसे हरित उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जो जैवविविधता से समझौता किये बिना पूर्वोत्तर की पारिस्थितिक संपदा का लाभ उठाते हैं।
- कठोर पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को संस्थागत बनाए जाने चाहिये और चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, ताकि विकास एवं संरक्षण के उद्देश्यों के बीच संतुलन बनाते हुए संवहनीयता को आर्थिक विकास के साथ एकीकृत किया जा सके।
- उभरते आर्थिक क्षेत्रों के अनुरूप कौशल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना: कृषि प्रसंस्करण और स्वास्थ्य सेवा जैसी स्थानीय शक्तियों के अनुरूप विशेष व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण केंद्र शुरू किये जाने चाहिये।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) को आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम के साथ जोड़ते हुए कौशल केंद्र बनाए जाने चाहिये, जिसका ध्यान पूर्वोत्तर राज्यों पर केंद्रित हो, ताकि कृषि प्रसंस्करण, पर्यटन और डिजिटल कौशल में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके।
- कार्यबल को भविष्य के लिये तैयार आर्थिक भागीदारी के लिये तैयार करने हेतु डिजिटल साक्षरता और नवाचार-संचालित पाठ्यक्रम को शामिल किया जाना चाहिये।
- सीमा पार आर्थिक गलियारों और उप-क्षेत्रीय सहयोग को संस्थागत बनाना: सीमा शुल्क सुविधा, रसद केंद्रों और मुक्त व्यापार क्षेत्रों के माध्यम से ASEAN देशों के साथ व्यापार एवं सांस्कृतिक संबंधों को औपचारिक बनाकर पूर्वोत्तर की रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाया जाना चाहिये।
- क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने, विदेशी निवेश को आकर्षित करने तथा स्थानीय विनिर्माण और सेवाओं को प्रोत्साहित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने के लिये बिम्सटेक एवं भारत-म्याँमार-थाईलैंड राजमार्ग परियोजनाओं जैसे ढाँचे को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- सांस्कृतिक और विरासत-आधारित उद्यमशीलता को बढ़ावा देना: रचनात्मक उद्योगों - हस्तशिल्प, वस्त्र, संगीत और त्यौहारों को बढ़ावा देकर पूर्वोत्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का लाभ उठाया जाना चाहिये तथा उन्हें वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से जोड़ना चाहिये।
- इनक्यूबेशन सेंटर और डिजिटल मार्केटप्लेस स्थापित किया जाना चाहिये, जो कारीगरों और सांस्कृतिक उद्यमियों को सशक्त बनाएं, स्थायी आजीविका का निर्माण करें और भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाएं। प्रामाणिकता बनाए रखने के लिये व्यावसायीकरण के साथ-साथ कौशल संरक्षण की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
- जलवायु-अनुकूल कृषि और ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देना: किसानों की आय तथा संधारणीयता बढ़ाने के लिये परिशुद्ध कृषि, जलवायु-अनुकूल कृषि और बागवानी एवं वृक्षारोपण क्षेत्रों में मूल्य संवर्द्धन को अपनाया जाना चाहिये।
- फसलों की कटाई के बाद होने वाली हानि को कम करने के लिये कोल्ड स्टोरेज, लॉजिस्टिक्स और बाज़ार तक पहुँच जैसे ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- शहरी प्रवास के दबाव को कम करने वाली लचीली ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करने के लिये पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान को आधुनिक कृषि-तकनीक के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- मादक पदार्थ निषेध हेतु व्यापक जागरूकता और पुनर्वास कार्यक्रम शुरू करना: सामुदायिक जागरूकता, शिक्षा और तस्करी के विरुद्ध कठोर प्रवर्तन को मिलाकर बहुआयामी रणनीतियाँ लागू करके पूर्वोत्तर में बढ़ती मादक पदार्थों के दुरुपयोग की चुनौती का समाधान किया जाना चाहिये।
- प्रभावित क्षेत्रों के सांस्कृतिक संदर्भ के अनुरूप पुनर्वास और नशामुक्ति केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिये तथा पारंपरिक उपचार को आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- युवाओं को कौशल विकास, खेल और परामर्श के माध्यम से शामिल किया जाना चाहिये, ताकि उन्हें मादक पदार्थों के उपयोग के विकल्प उपलब्ध कराए जा सकें तथा परिवारों और समुदायों पर मादक पदार्थों के प्रभाव को कम करने वाले संधारणीय सामाजिक ढाँचे का निर्माण किया जा सके।
निष्कर्ष:
पूर्वोत्तर की वास्तविक क्षमता को उजागर करने के लिये, भारत को केवल बुनियादी अवसंरचना और सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण से आगे बढ़ना होगा। इस क्षेत्र के सतत् भविष्य का मार्ग इसकी विशिष्ट पहचान को अंगीकृत करने तथा युवाओं को 3T—व्यापार (Trade), पर्यटन (Tourism) और प्रशिक्षण (Training) के माध्यम से सशक्त बनाने में निहित है। पूर्वोत्तर को भारत की विकास यात्रा के केंद्र में रखकर, न केवल एक सीमांत क्षेत्र के रूप में, बल्कि एक धुरी के तौर पर भारत अपनी 'एक्ट ईस्ट' (Act East) नीति को साकार कर सकता है तथा एक अधिक समावेशी, सुरक्षित और जीवंत राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. "पूर्वोत्तर भारत की परिधि नहीं है - यह एक धुरी है।" भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के संदर्भ में चर्चा करें कि कैसे पूर्वोत्तर को व्यापार, पर्यटन और प्रतिभा के लिये एक रणनीतिक केंद्र में बदला जा सकता है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) |